रांची : आमतौर पर मामूली दुर्घटना होने पर भी लोग मुआवजे के लिए सड़कों पर उतर आते हैं, लेकिन तीन परिवारों ने तीन मासूम जिंदगी गंवाने के बाद भी ऐसा फैसला लिया है. जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे. मामला झारखंड के पाकुड़ जिला में महेशपुर प्रखंड से जुड़ा है. 10 जून को अचानक बादल उमड़ने लगे और तेज हवा चलने लगी. यह देखते ही गांव के संथाली समाज के पांच बच्चे आम चुनने के लिए पेड़ के पास जा पहुंचे. फिर अचानक आसमान में तेज गड़गड़ाहट के साथ बच्चों के ऊपर बिजली आ गिरी.
वज्रपात की चपेट में आने से पांच में से तीन बच्चे वहीं अचेत हो गए. गांव वाले जब तक तीनों को अस्पताल लेकर जाते उनकी मौत हो चुकी थी. इसकी जानकारी मिलते ही महेशपुर के जेएमएम विधायक स्टीफन मरांडी ने वहां के स्थानीय प्रशासन से संपर्क किया और पीड़ित परिवारों तक अविलंब राहत पहुंचाने को कहा. बकौल झामुमो विधायक स्टीफन मरांडी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को गांव भेजा और पीड़ित परिवारों से बात की.
पोस्टमार्टम के लिए परिवार ने किया मना
तीनों परिवारों को समझाया गया कि प्राकृतिक आपदा के आगे किसी की नहीं चलती. लिहाजा, तीनों शव के पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पूरी कराने दें ताकि पीड़ित परिवार को आपदा प्रबंधन की तरफ से चार-चार लाख का मुआवजा मिल सके. लेकिन इसके लिए तीनों परिवार तैयार नहीं हुए. ऊपर से यह कह दिया कि मुसीबत के समय किसी ने नहीं पूछा और जब बच्चों की जान चली गई तो पैसे देने की बात कह रहे हैं. बेहद भारी मन से विधायक की स्टीफन मरांडी ने कहा कि अपने इतने लंबे राजनीतिक जीवन में मैंने ऐसा जवाब कभी नहीं सुना था.
हालांकि इन्होंने ग्रामीणों को समझाने की हर संभव कोशिश की. बाद में ग्रामीणों ने तर्क दिया कि बच्चे तो नहीं रहे लेकिन अब पोस्टमार्टम के नाम पर इनके शरीर पर चीरा लगने नहीं देंगे. स्टीफन मरांडी ने कहा कि कहा इसे अशिक्षा से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. इसकी बड़ी वजह जागरूकता की कमी है. उन्होंने कहा कि 10 जून को ही पास के ही एक दूसरे गांव में भी वज्रपात हुआ था, जिसकी वजह से दो नौजवान की जान चली गई थी, लेकिन समझाने बुझाने पर दोनों परिवार समझ गए और शवों का पोस्टमार्टम कराने को राजी हो गए. अब उन परिवारों को आपदा के तहत चार-चार लाख रुपये दिए जाएंगे.
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उन्होंने कहा कि अफसोस है कि तीन मासूम खोने वाले 3 परिवारों को यह बात समझ में नहीं आई. उन्होंने कहा कि जमाना कहां से कहां चला गया लेकिन विचारों के मामले में हम अब भी बहुत पीछे हैं. एक तरफ लोग मरने से पहले अंगदान की घोषणा कर देते हैं ताकि उनके जाने के बाद उनका कोई अंग किसी के काम आ जाए. यह पूछे जाने पर कि आप इस क्षेत्र का लंबे समय से नेतृत्व कर रहे हैं लिहाजा लोगों में जागरूकता की कमी के लिए आपकी जवाबदेही क्यों नहीं बनती. इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हमारी सरकार तमाम प्रवासी श्रमिकों को लाकर उनके लिए रोजी रोटी और रोजगार का जुगाड़ करने में लगी है. लेकिन दूसरी तरफ मासूम बच्चों को गंवाने वाले तीनों परिवार यह सोच कर बैठ हैं कि लॉकडाउन के दौरान उनके बीच जाकर सुख-दुख बांटना चाहिए था. जबकि यह संभव नहीं है.
'अंधविश्वास मिटाने की है जरूरत'
स्थानीय जनप्रतिनिधि होने के नाते मैंने तीनों परिवारों पर मुसीबत आते ही अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश की. स्टीफन मरांडी ने कहा कि अब नए सिरे से जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है. पोस्टमार्टम को लेकर लोगों के बीच जो अंधविश्वास घर कर गया है उसे उनके दिमाग से निकालने की जरूरत है. वहीं उन्होंने कहा कि कोशिश होगी कि एक कमेटी बनाई जाए जो प्राकृतिक आपदा से होने वाली मौत को प्रमाणित करे ताकि शव को पोस्टमार्टम कराने की जरूरत ना पड़े.