पटना : बिहार के गया जिले में संगरोध केंद्र की खराब स्थिति ने श्रमिकों की समस्याओं को और अधिक बढ़ा दिया है. श्रमिक चिंता और कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं, भले ही वे सरकार द्वारा निर्धारित नियमों और विनियमों के अनुसार संगरोध केंद्र में 14 दिन बिताने के इच्छुक हों.
बयानों में बेहतर व्यवस्था की बात कहने वाले अधिकारियों के दावे की हकीकत कुछ और है, संगरोध केंद्र पर व्यवस्थाओं के दावे की सच्चाई कुछ और ही है.
दरअसल ,प्रशासन का दावा है कि गया जिले में एक ही समय में हजारों श्रमिकों को समायोजित किया जा सकता है. लेकिन इस दावे के पोल तब खुली, जब प्रशासन के पास 40 श्रमिकों को समायोजित करने के लिए जगह कम पढ़ गई.
इसके बाद स्थानीय लोगों ने गया के डोमारिया ब्लॉक के बछोलिया गांव में एक संगरोध केंद्र स्थापित कर लिया. इसमें श्रमिक अपने स्तर पर स्थापित संगरोध केंद्र में स्वयं सफाई और खाना पकाने का काम भी कर रहे हैं.
मजदूरों ने कहा कि एक सप्ताह पहले वे हरियाणा से गया जिले के डोमारिया पहुंचे थे. इसके बाद उन्हें गांव के जनप्रतिनिधियों के माध्यम से आईटीआई संगरोध और परीक्षण केंद्र मेग्रा भेजा गया, जहां केंद्र प्रभारी के अनुसार उनके लिए रहने की कोई जगह नहीं थी. दो या तीन दिनों तक रहने के बाद, उन्हें वापस भेज दिया गया, जिसके बाद वह अपने गांव रवाना हुए, जहा ग्रामीणों ने उनके लिए अपना पृथक केंद्र स्थापित किया.
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उनका कहना है कि जब मजदूर भूख से पीड़ित थे, तो ग्रामीणों ने उन्हें पहले स्कूल में खिलाया और फिर उन्हें खाने की चीजें उपलब्ध कराईं. मजदूरों ने कहा कि उनके स्वास्थ्य की जांच नहीं की गई है और कुछ खाद्य पदार्थ प्रशासन को स्थानीय प्रतिनिधियों के माध्यम से प्राप्त हुए हैं.