कोलकाता : पश्चिम बंगाल के बांकुरा में मिजिया की दुर्गा पूजा लगभग 262 साल पहले शुरू हुई थी. इस पूजा की शुरुआत 1758 में जमींदार गोविंदा पाल ने की थी. पाल परिवार हुगली के आदिसप्तग्राम का रहने वाला था. उनके पूर्वज मुगलों और अराकानियों के अत्याचार से बचने के लिए मेजिया चले आए थे.
गोविंदा पाल ने एक मंदिर बनाया जहां दुर्गापूजा शुरू की गई. उसी समय नहाबतखाना भी बनाया गया था. मंदिर के ऊपर और नीचे कुछ कमरे बनाए गए थे, जिनका उपयोग ज्यादातर दुर्गा पूजा के दौरान किया जाता था.
चुन सुरकी द्वारा निर्मित महल, रखरखाव के अभाव में आज लगभग खंडहर हो चुका है. हालांकि, नहाबतखाना अभी भी बना हुआ है.
पुराने रिवाज के अनुसार, मां दुर्गा को जंजीरों में बांधकर उनकी पूजा की जाती थी. अब इस रिवाज का पालन नहीं किया जाता है. मूर्ति की पिछली दीवार पर लोहे का एक छल्ला है. नियमों को बरकरार रखने के लिए संरचना के केवल एक हिस्से को रस्सी से बंधा गया है. दूर-दूर से लोग इस पूजा में शामिल होने आते हैं लेकिन इस साल स्थिति बहुत अलग है.
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गोविंदा पाल के दो बेटे राजू पाल और कुंजबिहारी पाल थे. राजू पाल का कोई बच्चा नहीं था. गोविंदा पाल की मौत के बाद, कुंजबिहारी पाल और उनके वंशजों ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस पूजा को जारी रखा. पूजा में मस्कलाई को पशुबलि के बदले बलिदान के रूप में पेश किया जाता है.
इस साल बाहर से कोई नहीं आ पाएगा. इस साल मेजिस दुर्गा पूजा की भव्यता, वैभवता फीकी पड़ गई है.