नई दिल्ली: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई के दौरान देशभर के अलग अलग हिस्सों में जाकर रहते थे. वे यहां आश्रम बनवाते थे और उसमें अपने परिवार के सदस्यों और अनुयायियों के साथ लंबे समय तक रुकते थे. ऐसा ही एक आश्रम दिल्ली में स्थित है. यहां पर ढाका गांव में बने गांधी आश्रम में महात्मा गांधी और उनके अनुयायी 1932 से 1940 तक रहे.
जब भी गांधी जी दिल्ली में होते थे तो बिरला मंदिर और ढाका गांव में बने गांधी आश्रम में आकर रुकते थे. अपने पूरे जीवन काल में महात्मा गांधी ने यहां पर करीब 180 दिन बिताए. कस्तूरबा गांधी भी इसी आश्रम में रहा करती थीं.
गांधी जी जब आजादी के लिए देश के अलग-अलग राज्यों घूम-घूम कर लोगों को एकत्रित कर सभाएं कर रहे होते तब उनके सबसे छोटे पुत्र आश्रम में कस्तूरबा गांधी के साथ रहते थे.
गांधी के सपनों को कर रहें पूरा
इस आश्रम से जुड़े इतिहास के बारे में ईटीवी भारत ने आश्रम के संरक्षक फूलचंद शर्मा से बातचीत की. उन्होंने आश्रम से जुड़ी हर एक चीज और पूरे इतिहास को विस्तार से हमारे साथ साझा किया. उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी जात-पात, छुआछूत आदि सामाजिक कुरीतियों को नही मानते थे और वह पूरे समाज से साथ रहने का आह्वान करते थे. गांधी जी द्वारा बनाई गई संस्था आज भी उनके अधूरे कामों को पूरा कर रही है. हरिजन सेवक संघ का नारा है कि भेद भाव छोड़ दो, लोगों को दिल से जोड़ दो.
20 एकड़ में बना आश्रम
फूलचंद शर्मा ने बताया कि हरिजन सेवक संघ की स्थापना साल 1932 में हुई थी. उत्तरी दिल्ली के किंग्सवे कैंप स्थित गांधी आश्रम से तो दिल्ली के सभी लोग परिचित हैं लेकिन ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता कि यह आश्रम यहां पर क्यों बनाया गया है. यह ढाका गांव में 20 एकड़ जमीन पर बनाया गया था.
हरिजन सेवक संघ की स्थापना
साल 1930 में सेठ घनश्यामदास बिड़ला ने यह जमीन हरिजन सेवक संघ के नाम पर खरीदी और महात्मा गांधी को दान कर दी. इसके बाद साल 1932 में यहां पर काम शुरू हुआ और उसी दौरान गांधीजी का यहां पर कभी कभार आना जाना भी आता होता था. लेकिन गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा गांधी यहां पर साल 1932 से 1940 तक करीब 8 साल रहीं. साथ में गांधी जी के चारों बच्चे भी इसी आश्रम में पले बढ़े. महात्मा गांधी जी की बात की जाए तो गांधीजी का इस आश्रम में कुल 180 दिन के आसपास रहना हुआ.
विनोबा भावे के साथ किया काम
शर्मा ने बताया कि वे मथुरा के रहने वाले हैं लेकिन पिछले 17 सालों से अपने परिवार के साथ इस आश्रम की देखभाल कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वे इस आश्रम से पिछले 50 से ज्यादा वर्षों से जुड़ा हुए हैं. उन्होंने बताया कि गांधीजी के 2 शिष्य थे, राजनीतिक शिष्य पंडित जवाहरलाल नेहरू और आध्यात्मिक शिष्य विनोबा भावे. उनके दूसरे शिष्य विनोबा भावे के साथ मैंने काफी लंबे समय तक काम किया. हम दोनों ने डाकुओं को आत्मसमर्पण करने के लिए मनाया, जिसमें हमें सफलता भी मिली.
हरिजनों के लिए किया काम
गांधी जी का एक ही सपना था सवर्ण और हरिजनों की खाई को पाटना और गांधी जी ने मरते दम तक उसी के तहत काम किया. गांधी जी और डॉ भीमराव अंबेडकर ने पूना पैक्ट के तहत काम किया. आज हम जिस समाज में हैं उसको एक दूसरे से जोड़ने का काम महात्मा गांधी और डॉ अंबेडकर ने किया.
यहां से जाने के बाद हुई हत्या
इस आश्रम में उनसे मिलने उनके शिष्य और अनुयाई भी आया करते थे. इस आश्रम में सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू, विनोबा भावे सभी आते थे. अपने अंतिम दिनों में गांधीजी इस आश्रम के मंदिर में आराम करते थे. उन्हें यहां से बिरला मंदिर जाने में समय लगता था इसलिए वो बाद में वहीं जाक रहने लगे और वहां उनकी हत्या कर दी गई. उसके बाद कस्तूरबा गांधी भी अपने बच्चों को लेकर यहां से चली गईं.
आश्रम में गांधी से जुड़ी यादें
गांधीजी और कस्तूरबा से जुड़ी हुई बहुत सी यादें आज भी इस आश्रम में संजो कर रखी गई हैं. गांधी जी का चरखा, लाठी, चप्पल, उनका चश्मा, लालटेन और भी बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो आज तक संभाल कर इस आश्रम में रखी गई हैं.
सरकार से नहीं मिला कोई फंड
उन्होंने बताया कि सालों बाद भी आश्रम को केंद्र सरकार की ओर से रखरखाव के लिए कोई फंड नहीं मिल रहा है. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महात्मा गांधी के बड़े प्रशंसक हैं और उनके नाम पर स्वच्छ भारत अभियान चला रखा है. लेकिन आश्रम को सरकार की ओर से कोई फंड नहीं मिला है.