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जब महंत अवैद्यनाथ ने ठुकरा दिया राम मंदिर पर राजीव गांधी का प्रस्ताव

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Published : Aug 1, 2020, 8:20 PM IST

पांच अगस्त से राम जन्मभूमि पर रामलला का मंदिर बनने जा रहा है. राम मंदिर मुद्दे ने 1984 में ही राजनीतिक रंग लेना शुरू कर दिया था. 1989 आते-आते इस मुद्दे को भारतीय जनता पार्टी ने खुले रूप से अपना लिया. भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा ने मंदिर निर्माण को आंदोलन बना दिया. गोरक्षनाथ पीठ को 35 साल तक कवर करने वाले पत्रकार गिरीश पांडे के अनुसार, भले ही यह मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में शामिल रहा हो, उससे पहले 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने राम मंदिर के मुद्दे पर दिलचस्पी ली थी. राजीव गांधी के कहने पर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह सोमनाथ के तर्ज पर राम मंदिर बनाने का प्रस्ताव लेकर गोरक्ष पीठ के महंत अवैद्यनाथ से मिले थे, जिसे महंत अवैद्यनाथ ने ठुकरा दिया था. महंत अवैद्यनाथ 1984 में गठित श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के आजीवन अध्यक्ष थे.

महंत अवैद्यनाथ
महंत अवैद्यनाथ

लखनऊ : बात उन दिनों की है जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था. विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी समेत पूरा संघ परिवार हिंदुत्व के एजेंडे को धार दे रहा था. भाजपा प्रदेश और देश में अपने पैर जमा रही थी. भाजपा ने देश में कांग्रेस का राजनीतिक विकल्प बनने की ओर अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए थे. गिरीश पांडे के अनुसार, कांग्रेस भी राम मंदिर निर्माण चाहती थी. साथ में वह यह भी चाहती थी कि अल्पसंख्यक भी नाराज न हों. मतलब साफ था कि बिना विवाद के मंदिर निर्माण कराया जाए और इसका श्रेय कांग्रेस को मिले.

संघ के मंसूबों पर पानी फेरने के उद्देश्य को साधने के लिए कांग्रेस के दिग्गज रणनीतिकार मंथन में जुट गए. मंथन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मंदिर निर्माण का एक प्रस्ताव गोरक्ष पीठ के महंत अवैद्यनाथ के पास भेजा, यह प्रस्ताव उस समय के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह लेकर पहुंचे, लेकिन उनके प्रस्ताव को अवैद्यनाथ ने पल भर में ठुकरा दिया.

प्रोटोकॉल तोड़कर महंत अवैद्यनाथ से मिले थे वीर बहादुर सिंह

गिरीश पांडे के अनुसार, 1986 में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह थे. गोरक्ष पीठ के महंत अवैद्यनाथ मंदिर आंदोलन के शीर्ष नेताओं में से एक थे. एक संयोग यह भी था कि दोनों गोरखपुर के थे. दोनों के रिश्ते भी अच्छे थे. ऐसे में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कहने पर वीर बहादुर सिंह ने महन्त अवैद्यनाथ से मिलने की इच्छा जताई. दोनों का मिलना लखनऊ में मुकर्रर हुआ. वीर बहादुर सिंह सारा प्रोटोकॉल तोड़कर अपने सुरक्षा अधिकारी देवेंद्र राय की कार से महानगर स्थित पूर्व आयकर अधिकारी मोहन सिंह के घर पहुंचे, जहां अवैद्यनाथ पहले से मौजूद थे. इस दौरान बातचीत में वीर बहादुर ने महंत अवैद्यनाथ के सामने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का प्रस्ताव रखा.

पढ़ें - राम मंदिर : 40 दिनों में 50 साल का सफर

जानिए क्या था तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का प्रस्ताव

वीर बहादुर सिंह ने महंत अवैद्यनाथ को बताया कि केंद्र सरकार विवादित ढांचे को क्षति पहुंचाए बिना सोमनाथ की तर्ज पर मंदिर बनवाना चाहती हैं. इस निर्माण से भाजपा और विश्व हिंदू परिषद का कोई मतलब नहीं होगा. इतना सुनते ही महंत अवैद्यनाथ हंस पड़े. महंत ने पूछा कि इसका सारा श्रेय तो कांग्रेस को जाएगा. विश्व हिंदू परिषद और भाजपा को क्या मिलेगा? हालांकि बातचीत में तय हुआ कि अवैद्यनाथ इस बाबत विहिप के नेताओं से बात करेंगे. हालांकि विश्व हिंदू परिषद की मीटिंग में राजीव गांधी के इस प्रस्ताव पर चर्चा कभी नहीं हुई. संयोग ही था कि 6 दिसंबर 1992 में जब विवादित ढांचा ढहाया गया तो वीर बहादुर सिंह के सुरक्षा अधिकारी रहे देवेंद्र राय ही फैजाबाद के एसएसपी थे. बाद में त्यागपत्र देकर वह भाजपाई हो गए. साथ ही बाद में वह सुल्तानपुर से सांसद भी रहे.

राम मंदिर आंदोलन का केंद्र रहा है गोरखपुर का गोरक्षपीठ

राम मंदिर आंदोलन के हर महत्वपूर्ण पड़ाव पर गोरखपुर स्थित गोरक्ष पीठ की बेहद सशक्त भूमिका रही है. अयोध्या के मंदिर आंदोलन से गोरक्ष पीठ का संबंध स्वतंत्रता के बाद ही जुड़ गया. 22-23 दिसंबर 1949 को जब विवादित ढांचे के पास रामलला का प्रकटीकरण हुआ तो गोरक्षपीठ के तत्कालीन पीठाधीश्वर महंत दिग्विजय नाथ कुछ साधु-संतों के साथ वहां संकीर्तन कर रहे थे. 1984 में आंदोलन मुखर होने लगा, तब श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया. तब महंत अवैद्यनाथ गठित समिति के अध्यक्ष चुने गए और आजीवन इस पद पर बने रहे. उनकी अगुवाई में अक्टूबर 1984 में लखनऊ से अयोध्या तक धर्म यात्रा का आयोजन हुआ था. अवैद्यनाथ के नेतृत्व में ही लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में एक बड़ा धर्म सम्मेलन भी हुआ था. एक फरवरी 1986 में जब फैजाबाद के जिला जज कृष्ण मोहन पांडे ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा अर्चना के लिए ताला खोलने का आदेश दिया, उस समय भी अवैद्यनाथ अदालत परिसर में मौजूद थे. यह भी एक संयोग ही था कि जज कृष्ण मोहन पांडे भी गोरखपुर के ही थे.

पढ़ें - भूकंप भी नहीं हिला पाएगा राम मंदिर, खड़ा रहेगा हजार साल

मंदिर आंदोलन में गोरक्ष पीठ और अवैद्यनाथ की भूमिका

22 सितंबर 1989 को दिल्ली में आयोजित विराट हिंदू सम्मेलन हुआ, जिसमें नौ नवंबर को जन्मभूमि पर शिलान्यास कार्यक्रम की घोषणा की गई. उसके अगुआ भी अवैद्यनाथ ही थे. तय समय पर दलित समाज के कामेश्वर चौपाल से मंदिर का शिलान्यास करवा कर उन्होंने बहुसंख्यक समाज को सारे भेदभाव भूलकर एक होने का बड़ा संदेश दिया. हरिद्वार के संत सम्मेलन में महंत अवैद्यनाथ ने ही 30 अक्टूबर 1990 से मंदिर निर्माण की घोषणा की. 23 जुलाई 1992 को मंदिर निर्माण के बाबत उनकी अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिला था. सहमति नहीं बनने पर 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली की धर्म संसद में छह दिसंबर को मंदिर निर्माण के लिए कार सेवा की घोषणा कर दी गयी. उसके बाद के घटनाक्रम से हर कोई वाकिफ है.

योगी राज में बनेगा राम मंदिर

12 सितंबर को अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने पर बतौर पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने इस जिम्मेदारी को बखूबी संभाली. नाथ परंपरा में विकसित होने के पहले ही योगी आदित्यनाथ महंत अवैद्यनाथ से खासे प्रभावित रहे. यही वजह है कि 1993 में मुरादाबाद में आयोजित धर्म सम्मेलन में जब अवैद्यनाथ दिल के दौरे के बाद एम्स दिल्ली में भर्ती थे तो योगी ( अजय सिंह बिष्ट) खुद को रोक नहीं सके और उनसे मिलने पहुंच गए. सितंबर 2014 में पीठाधीश्वर बनने के बाद दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि गुरुदेव के सम्मोहन ने संन्यासी बना दिया. अब वह एक संन्यासी मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं यानी गोरक्ष पीठ की तीसरी पीढ़ी राम मंदिर से जुड़ी हुई है. प्रधानमंत्री पांच अगस्त को जब अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास कर रहे होंगे, तो उस वक्त मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी वहां मौजूद होंगे.

लखनऊ : बात उन दिनों की है जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था. विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी समेत पूरा संघ परिवार हिंदुत्व के एजेंडे को धार दे रहा था. भाजपा प्रदेश और देश में अपने पैर जमा रही थी. भाजपा ने देश में कांग्रेस का राजनीतिक विकल्प बनने की ओर अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए थे. गिरीश पांडे के अनुसार, कांग्रेस भी राम मंदिर निर्माण चाहती थी. साथ में वह यह भी चाहती थी कि अल्पसंख्यक भी नाराज न हों. मतलब साफ था कि बिना विवाद के मंदिर निर्माण कराया जाए और इसका श्रेय कांग्रेस को मिले.

संघ के मंसूबों पर पानी फेरने के उद्देश्य को साधने के लिए कांग्रेस के दिग्गज रणनीतिकार मंथन में जुट गए. मंथन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मंदिर निर्माण का एक प्रस्ताव गोरक्ष पीठ के महंत अवैद्यनाथ के पास भेजा, यह प्रस्ताव उस समय के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह लेकर पहुंचे, लेकिन उनके प्रस्ताव को अवैद्यनाथ ने पल भर में ठुकरा दिया.

प्रोटोकॉल तोड़कर महंत अवैद्यनाथ से मिले थे वीर बहादुर सिंह

गिरीश पांडे के अनुसार, 1986 में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह थे. गोरक्ष पीठ के महंत अवैद्यनाथ मंदिर आंदोलन के शीर्ष नेताओं में से एक थे. एक संयोग यह भी था कि दोनों गोरखपुर के थे. दोनों के रिश्ते भी अच्छे थे. ऐसे में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कहने पर वीर बहादुर सिंह ने महन्त अवैद्यनाथ से मिलने की इच्छा जताई. दोनों का मिलना लखनऊ में मुकर्रर हुआ. वीर बहादुर सिंह सारा प्रोटोकॉल तोड़कर अपने सुरक्षा अधिकारी देवेंद्र राय की कार से महानगर स्थित पूर्व आयकर अधिकारी मोहन सिंह के घर पहुंचे, जहां अवैद्यनाथ पहले से मौजूद थे. इस दौरान बातचीत में वीर बहादुर ने महंत अवैद्यनाथ के सामने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का प्रस्ताव रखा.

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जानिए क्या था तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का प्रस्ताव

वीर बहादुर सिंह ने महंत अवैद्यनाथ को बताया कि केंद्र सरकार विवादित ढांचे को क्षति पहुंचाए बिना सोमनाथ की तर्ज पर मंदिर बनवाना चाहती हैं. इस निर्माण से भाजपा और विश्व हिंदू परिषद का कोई मतलब नहीं होगा. इतना सुनते ही महंत अवैद्यनाथ हंस पड़े. महंत ने पूछा कि इसका सारा श्रेय तो कांग्रेस को जाएगा. विश्व हिंदू परिषद और भाजपा को क्या मिलेगा? हालांकि बातचीत में तय हुआ कि अवैद्यनाथ इस बाबत विहिप के नेताओं से बात करेंगे. हालांकि विश्व हिंदू परिषद की मीटिंग में राजीव गांधी के इस प्रस्ताव पर चर्चा कभी नहीं हुई. संयोग ही था कि 6 दिसंबर 1992 में जब विवादित ढांचा ढहाया गया तो वीर बहादुर सिंह के सुरक्षा अधिकारी रहे देवेंद्र राय ही फैजाबाद के एसएसपी थे. बाद में त्यागपत्र देकर वह भाजपाई हो गए. साथ ही बाद में वह सुल्तानपुर से सांसद भी रहे.

राम मंदिर आंदोलन का केंद्र रहा है गोरखपुर का गोरक्षपीठ

राम मंदिर आंदोलन के हर महत्वपूर्ण पड़ाव पर गोरखपुर स्थित गोरक्ष पीठ की बेहद सशक्त भूमिका रही है. अयोध्या के मंदिर आंदोलन से गोरक्ष पीठ का संबंध स्वतंत्रता के बाद ही जुड़ गया. 22-23 दिसंबर 1949 को जब विवादित ढांचे के पास रामलला का प्रकटीकरण हुआ तो गोरक्षपीठ के तत्कालीन पीठाधीश्वर महंत दिग्विजय नाथ कुछ साधु-संतों के साथ वहां संकीर्तन कर रहे थे. 1984 में आंदोलन मुखर होने लगा, तब श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया गया. तब महंत अवैद्यनाथ गठित समिति के अध्यक्ष चुने गए और आजीवन इस पद पर बने रहे. उनकी अगुवाई में अक्टूबर 1984 में लखनऊ से अयोध्या तक धर्म यात्रा का आयोजन हुआ था. अवैद्यनाथ के नेतृत्व में ही लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में एक बड़ा धर्म सम्मेलन भी हुआ था. एक फरवरी 1986 में जब फैजाबाद के जिला जज कृष्ण मोहन पांडे ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा अर्चना के लिए ताला खोलने का आदेश दिया, उस समय भी अवैद्यनाथ अदालत परिसर में मौजूद थे. यह भी एक संयोग ही था कि जज कृष्ण मोहन पांडे भी गोरखपुर के ही थे.

पढ़ें - भूकंप भी नहीं हिला पाएगा राम मंदिर, खड़ा रहेगा हजार साल

मंदिर आंदोलन में गोरक्ष पीठ और अवैद्यनाथ की भूमिका

22 सितंबर 1989 को दिल्ली में आयोजित विराट हिंदू सम्मेलन हुआ, जिसमें नौ नवंबर को जन्मभूमि पर शिलान्यास कार्यक्रम की घोषणा की गई. उसके अगुआ भी अवैद्यनाथ ही थे. तय समय पर दलित समाज के कामेश्वर चौपाल से मंदिर का शिलान्यास करवा कर उन्होंने बहुसंख्यक समाज को सारे भेदभाव भूलकर एक होने का बड़ा संदेश दिया. हरिद्वार के संत सम्मेलन में महंत अवैद्यनाथ ने ही 30 अक्टूबर 1990 से मंदिर निर्माण की घोषणा की. 23 जुलाई 1992 को मंदिर निर्माण के बाबत उनकी अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिला था. सहमति नहीं बनने पर 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली की धर्म संसद में छह दिसंबर को मंदिर निर्माण के लिए कार सेवा की घोषणा कर दी गयी. उसके बाद के घटनाक्रम से हर कोई वाकिफ है.

योगी राज में बनेगा राम मंदिर

12 सितंबर को अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने पर बतौर पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने इस जिम्मेदारी को बखूबी संभाली. नाथ परंपरा में विकसित होने के पहले ही योगी आदित्यनाथ महंत अवैद्यनाथ से खासे प्रभावित रहे. यही वजह है कि 1993 में मुरादाबाद में आयोजित धर्म सम्मेलन में जब अवैद्यनाथ दिल के दौरे के बाद एम्स दिल्ली में भर्ती थे तो योगी ( अजय सिंह बिष्ट) खुद को रोक नहीं सके और उनसे मिलने पहुंच गए. सितंबर 2014 में पीठाधीश्वर बनने के बाद दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि गुरुदेव के सम्मोहन ने संन्यासी बना दिया. अब वह एक संन्यासी मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं यानी गोरक्ष पीठ की तीसरी पीढ़ी राम मंदिर से जुड़ी हुई है. प्रधानमंत्री पांच अगस्त को जब अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास कर रहे होंगे, तो उस वक्त मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी वहां मौजूद होंगे.

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