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महाशक्ति को सीख लेने वाला सबक

अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को करारी हार का सामना करना पड़ा है. हालांकि वह अपनी हार को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. उन्होंने कई बार चुनाव में धांधली का आरोप लगाया है और सत्ता में रहने के लिए उन्होंने कानून तक का सहारा लेने की कोशिश की.

lessons to be learned by superpower
राष्ट्रपति ट्रंप
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Published : Nov 28, 2020, 11:56 AM IST

डोनाल्ड ट्रंप अपने खराब स्वभाव के लिए जाने जाते हैं. अब जब अपने शासन के अंत की ओर हैं फिर भी स्वभाव को छोड़ा नहीं है. उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में अपनी हार का जोरदार खंडन किया है. सत्ता हस्तांतरण की उनकी इच्छा अंत में राहत की बात है!

पूर्व रिपब्लिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्रंप के तर्कहीन रुख का समर्थन करने वाले कुछ रिपब्लिकन नेताओं को लोकतांत्रिक प्रणाली और चुनाव प्रक्रिया का अपमान कहकर फटकार लगाई थी. ट्रंप उन राज्यों में अपनी हार को पचाने में असमर्थ हैं, जिन्होंने पिछले चुनाव में उन्हें वोट दिया था. सत्ता में बने रहने के लिए कानूनी लड़ाई का सहारा लेना बहुत सारे लोगों को चौंका दिया. उन्होंने गृह मंत्रालय के उस अधिकारी को बर्खास्त कर दिया जिसने घोषणा की था कि चुनाव साफ-सुथरे ढंग से कराया गया था.

ट्रंप के निजी वकील का आरोप है कि वोटों की गिनती के लिए डिजाइन किए गए सॉफ्टवेयर में छेड़छाड़ की गई थी और इसका सर्वर जर्मनी में था. इससे अमेरिका और दूसरे देशों आक्रोश फैल गया. ट्रंप ने आरोप लगाया है कि दवा, मीडिया और प्रौद्योगिकी कंपनियों ने निर्दयतापूर्वक उनकी हार के लिए काम किया. हालांकि अदालतों ने फैसला सुनाया है कि आरोप अतिशयोक्तिपूर्ण और निराधार हैं.

जॉर्जिया जैसी जगहों पर दोबारा मतगणना का परिणाम नकारात्मक रहा हैं. अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति ट्रंप अनावश्यक रूप से सत्ता का हस्तांतरण कई दिनों तक रोकना चाहते है. वास्तव में जब यह स्पष्ट हो गया कि विजेता कौन है तो सरकार को इसकी पुष्टि करनी चाहिए. जीएसए (सामान्य सेवा प्रशासन) के लिए पुष्टि पत्र जारी करने के साथ सत्ता हस्तांतरण सुचारू रूप से शुरू होना चाहिए.

आधिकारिक रूप से राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप दुश्मन के कैंप पर अपमानजनक आरोप लगाने में लिप्त रहे, उन्होंने मतों की गिनती की स्थापित व्यवस्था को कमजोर किया और अपने समर्थकों को सड़कों पर लड़ाई करने के लिए उकसाया...अंतत: उनका शासन समाप्त हो गया !

जीत चाहे नजदीकी मुकाबले वाली हो या एकतरफा हो अमेरिका में करीब हर चुनावी जंग के समय डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन का अदालत में जाना लगभग कायदा बन गया है. वर्ष 1876, 1888, 1960 और खासकर वर्ष 2000 के राष्ट्रपति चुनाव में यह बहुत जोरदार ढंग से सामने आया.

छह दशक पहले जॉन एफ कैनेडी से केवल दस लाख मतों (0.2 फीसद से भी कम ) से हारने के बावजूद रिचर्ड निक्सन ने खुद को अदालत जाने से रोक लिया था. हालांकि जॉर्ज डब्ल्यू बुश के खिलाफ बीस साल पहले अल्गोर ने फ्लोरिडा में मतों की गिनती के दौरान अदालत का दरवाजा खटखटाया लेकिन अगले ही दिन अपनी पराजय स्वीकार कर ली. उनके इस संयम को लेकर बहुत सारे लोगों उनकी सराहना की.

230 साल लंबे अमेरिकी इतिहास में 50 राज्यों की भिन्न जटिल प्रक्रियाओं और एकरूपता की कमी वाले चुनावी इंतजाम ने दुनिया भर में देशों को हैरान करना जारी रखा है. इसमें खामियां हैं. फ्लोरिडा जैसे स्थानों में मतपत्रों की छपाई, मतगणना प्रणाली में खामियां आदि सामने आई हैं. आधुनिकतम तकनीकी प्रगति का पर्याय महाशक्ति बगैर विवादों के चुनाव कराने में असमर्थ है.

हाल के राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ को देखें तो अमेरिका में मतदान करने के योग्य नागरिकों की संख्या करीब 23 करोड़ है. भारत में अमेरिकी मतदाताओं से लगभग चौगुना मतदाता हैं. चुनाव आयोग एक समान व्यवस्था और आचार संहिता होने के कारण पिछले साल एक तय समय सीमा के अंदर कुशलता के साथ मतदान प्रक्रिया को संपन्न कराने जल्द चुनाव परिणाम जारी करने में सफल रहा.

अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग चुनावी कानून लागू करने को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका का मजाक उड़ाया जा रहा है. महाशक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है कि भारत के चुनावों को सफलतापूर्वक संचालित करने के अनुभव से सीख ले.

डोनाल्ड ट्रंप अपने खराब स्वभाव के लिए जाने जाते हैं. अब जब अपने शासन के अंत की ओर हैं फिर भी स्वभाव को छोड़ा नहीं है. उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में अपनी हार का जोरदार खंडन किया है. सत्ता हस्तांतरण की उनकी इच्छा अंत में राहत की बात है!

पूर्व रिपब्लिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्रंप के तर्कहीन रुख का समर्थन करने वाले कुछ रिपब्लिकन नेताओं को लोकतांत्रिक प्रणाली और चुनाव प्रक्रिया का अपमान कहकर फटकार लगाई थी. ट्रंप उन राज्यों में अपनी हार को पचाने में असमर्थ हैं, जिन्होंने पिछले चुनाव में उन्हें वोट दिया था. सत्ता में बने रहने के लिए कानूनी लड़ाई का सहारा लेना बहुत सारे लोगों को चौंका दिया. उन्होंने गृह मंत्रालय के उस अधिकारी को बर्खास्त कर दिया जिसने घोषणा की था कि चुनाव साफ-सुथरे ढंग से कराया गया था.

ट्रंप के निजी वकील का आरोप है कि वोटों की गिनती के लिए डिजाइन किए गए सॉफ्टवेयर में छेड़छाड़ की गई थी और इसका सर्वर जर्मनी में था. इससे अमेरिका और दूसरे देशों आक्रोश फैल गया. ट्रंप ने आरोप लगाया है कि दवा, मीडिया और प्रौद्योगिकी कंपनियों ने निर्दयतापूर्वक उनकी हार के लिए काम किया. हालांकि अदालतों ने फैसला सुनाया है कि आरोप अतिशयोक्तिपूर्ण और निराधार हैं.

जॉर्जिया जैसी जगहों पर दोबारा मतगणना का परिणाम नकारात्मक रहा हैं. अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति ट्रंप अनावश्यक रूप से सत्ता का हस्तांतरण कई दिनों तक रोकना चाहते है. वास्तव में जब यह स्पष्ट हो गया कि विजेता कौन है तो सरकार को इसकी पुष्टि करनी चाहिए. जीएसए (सामान्य सेवा प्रशासन) के लिए पुष्टि पत्र जारी करने के साथ सत्ता हस्तांतरण सुचारू रूप से शुरू होना चाहिए.

आधिकारिक रूप से राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप दुश्मन के कैंप पर अपमानजनक आरोप लगाने में लिप्त रहे, उन्होंने मतों की गिनती की स्थापित व्यवस्था को कमजोर किया और अपने समर्थकों को सड़कों पर लड़ाई करने के लिए उकसाया...अंतत: उनका शासन समाप्त हो गया !

जीत चाहे नजदीकी मुकाबले वाली हो या एकतरफा हो अमेरिका में करीब हर चुनावी जंग के समय डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन का अदालत में जाना लगभग कायदा बन गया है. वर्ष 1876, 1888, 1960 और खासकर वर्ष 2000 के राष्ट्रपति चुनाव में यह बहुत जोरदार ढंग से सामने आया.

छह दशक पहले जॉन एफ कैनेडी से केवल दस लाख मतों (0.2 फीसद से भी कम ) से हारने के बावजूद रिचर्ड निक्सन ने खुद को अदालत जाने से रोक लिया था. हालांकि जॉर्ज डब्ल्यू बुश के खिलाफ बीस साल पहले अल्गोर ने फ्लोरिडा में मतों की गिनती के दौरान अदालत का दरवाजा खटखटाया लेकिन अगले ही दिन अपनी पराजय स्वीकार कर ली. उनके इस संयम को लेकर बहुत सारे लोगों उनकी सराहना की.

230 साल लंबे अमेरिकी इतिहास में 50 राज्यों की भिन्न जटिल प्रक्रियाओं और एकरूपता की कमी वाले चुनावी इंतजाम ने दुनिया भर में देशों को हैरान करना जारी रखा है. इसमें खामियां हैं. फ्लोरिडा जैसे स्थानों में मतपत्रों की छपाई, मतगणना प्रणाली में खामियां आदि सामने आई हैं. आधुनिकतम तकनीकी प्रगति का पर्याय महाशक्ति बगैर विवादों के चुनाव कराने में असमर्थ है.

हाल के राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ को देखें तो अमेरिका में मतदान करने के योग्य नागरिकों की संख्या करीब 23 करोड़ है. भारत में अमेरिकी मतदाताओं से लगभग चौगुना मतदाता हैं. चुनाव आयोग एक समान व्यवस्था और आचार संहिता होने के कारण पिछले साल एक तय समय सीमा के अंदर कुशलता के साथ मतदान प्रक्रिया को संपन्न कराने जल्द चुनाव परिणाम जारी करने में सफल रहा.

अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग चुनावी कानून लागू करने को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका का मजाक उड़ाया जा रहा है. महाशक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है कि भारत के चुनावों को सफलतापूर्वक संचालित करने के अनुभव से सीख ले.

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