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नक्सली इलाकों में शौर्य दिखाने वाले सी-60 के जवानों की खासियत, जानें कैसे मिलती है ट्रेनिंग - anti naxal

महाराष्ट्र दिवस के दिन नक्सली तांडव में 15 जवान शहीद हो गए. नक्सलियों के निशाने पर सी-60 के जवान थे. जानें क्या है इन जवानों की खासियत. कैसे इन जवानों को बेहद मुश्किल हालातों के लिए तैयार किया जाता है. ये कैसे नक्सली इलाकों में ऑपरेशन करते हैं.

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Published : May 1, 2019, 5:55 PM IST

हैदराबाद (डेस्क): गढ़चिरौली जिले के विभाजन के बाद नक्सली वारदातों में काफी इजाफा देखा गया. नक्सली गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए केपी रघुवंशी ने दिसंबर 1992 में सी-60 कमांडो का गठन किया. रघुवंशी गढ़चिरौली में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक थे.

सी-60 में सिर्फ 60 जवानों का चयन होता है. इन्हें विशेष रुप से ट्रेनिंग दी जाती है. पुलिस इंस्पेक्टर एसवी पासिंग इसके पहले प्रमुख थे.

मार्च 1994 में मुंशीगंज में सी-60 का दूसरा मुख्यालय बनाया गया. इसका मकसद गढ़चिरौली के दक्षिणी इलाकों से होने वाली नक्सली गतिविधि पर रोक लगाना था.

नक्सलियों के काल के रूप में जाने वाले सी-60 को पहले क्रैक कमांडो भी कहा जाता था. इसके हर कमांडो नक्सलि गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए दिन-रात काम करते हैं.

सी-60 में शामिल जवान देश के प्रतिष्ठित प्रशिक्षण संस्थानों से अलग-अलग प्रकार के गुरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित होते हैं. इन्हें हैदराबाद के ग्रे हाउंड, बिहार में हजारीबाग, और नागपुर के गैर पारंपरिक ऑपरेशन ट्रेनिंग सेंटर (UOTC) में भी ट्रेनिंग दी जाती है.

हैदराबाद स्थित ग्रे हाउंड जंगली इलाकों में लड़ाई के विशेषज्ञ माने जाते हैं. खास तौर से ये एंटी नक्सल और माओवादियों के खिलाफ होने वाले ऑपरेशन में शामिल होते हैं. 1989 में आंध्र प्रदेश कैडर के भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी केएस व्यास ने इसकी शुरुआत की थी.

सी-60 के जवान गढ़चिरौली के सुदूर इलाकों, पहाड़ी क्षेत्रों, जंगलों में एंटी नक्सल ऑपरेशन चलाते हैं. सी-60 के नक्सलियों का साथ देने वाले लोगों और नक्सलियों के परिजनों को समाज की मुख्यधारा से जुड़ने और लोकतांत्रिक प्रणाली का भाग बनने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं.

शारीरिक और मानसिक चुनौती का सामना करने में सक्षम बनने के लिए सी-60 के जवानों को कड़ा प्रशिक्षण दिया जाता है. अलग-अलग क्षेत्रों में ये जवान कठिनाइयों और संवेदनाओं का सामना करते हैं. ट्रेनिंग के बाद जवान काफी कुशलता से सर्दी, गर्मी, बरसात, दिन-रात, और आंधी तूफान जैसे हालातों का सामना करते हैं.

इनकी ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद के ग्रे हाउंड्, हरियाणा के मानेसर में नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG), नागपुर के UOTC समेत झारखंड के हजारीबाग और छत्तीसगढ़ के कांकेर में इंतजाम किए जाते हैं.

सी-60 के मुख्यालय में रहने के दौरान सभी लोगों को नक्सलियों की युद्धनीति और दांव पेंच से अवगत कराया जाता है. इन्हें प्रोत्साहित बनाए रखने के लिए समय-समय पर कमांडो फिल्म दिखाई जाती है. मोटिवेशनल लेक्चर भी आयोजित कराए जाते हैं.

सी-60 की टैगलाइन 'वीर भोग्या वसुंधरा' है. इसकी व्याख्या 'भाग्य बहादुर का ही साथ देता है' के संदर्भ में की जाती है.

ये भी पढ़ें: गढ़चिरौली में कमांडो टीम पर नक्सली हमला, 15 शहीद

बता दें कि महाराष्ट्र दिवस के दिन नक्सलियों ने गढ़चिरौली के जंबूल खेड़ा में नक्सलियों ने घात लगाकर सी-60 के जवानों पर हमला किया. आईईडी धमाके में 15 जवानों के शहीद होने समेत उनके एक चालक के भी मरने की खबर है.

हैदराबाद (डेस्क): गढ़चिरौली जिले के विभाजन के बाद नक्सली वारदातों में काफी इजाफा देखा गया. नक्सली गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए केपी रघुवंशी ने दिसंबर 1992 में सी-60 कमांडो का गठन किया. रघुवंशी गढ़चिरौली में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक थे.

सी-60 में सिर्फ 60 जवानों का चयन होता है. इन्हें विशेष रुप से ट्रेनिंग दी जाती है. पुलिस इंस्पेक्टर एसवी पासिंग इसके पहले प्रमुख थे.

मार्च 1994 में मुंशीगंज में सी-60 का दूसरा मुख्यालय बनाया गया. इसका मकसद गढ़चिरौली के दक्षिणी इलाकों से होने वाली नक्सली गतिविधि पर रोक लगाना था.

नक्सलियों के काल के रूप में जाने वाले सी-60 को पहले क्रैक कमांडो भी कहा जाता था. इसके हर कमांडो नक्सलि गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए दिन-रात काम करते हैं.

सी-60 में शामिल जवान देश के प्रतिष्ठित प्रशिक्षण संस्थानों से अलग-अलग प्रकार के गुरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित होते हैं. इन्हें हैदराबाद के ग्रे हाउंड, बिहार में हजारीबाग, और नागपुर के गैर पारंपरिक ऑपरेशन ट्रेनिंग सेंटर (UOTC) में भी ट्रेनिंग दी जाती है.

हैदराबाद स्थित ग्रे हाउंड जंगली इलाकों में लड़ाई के विशेषज्ञ माने जाते हैं. खास तौर से ये एंटी नक्सल और माओवादियों के खिलाफ होने वाले ऑपरेशन में शामिल होते हैं. 1989 में आंध्र प्रदेश कैडर के भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी केएस व्यास ने इसकी शुरुआत की थी.

सी-60 के जवान गढ़चिरौली के सुदूर इलाकों, पहाड़ी क्षेत्रों, जंगलों में एंटी नक्सल ऑपरेशन चलाते हैं. सी-60 के नक्सलियों का साथ देने वाले लोगों और नक्सलियों के परिजनों को समाज की मुख्यधारा से जुड़ने और लोकतांत्रिक प्रणाली का भाग बनने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं.

शारीरिक और मानसिक चुनौती का सामना करने में सक्षम बनने के लिए सी-60 के जवानों को कड़ा प्रशिक्षण दिया जाता है. अलग-अलग क्षेत्रों में ये जवान कठिनाइयों और संवेदनाओं का सामना करते हैं. ट्रेनिंग के बाद जवान काफी कुशलता से सर्दी, गर्मी, बरसात, दिन-रात, और आंधी तूफान जैसे हालातों का सामना करते हैं.

इनकी ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद के ग्रे हाउंड्, हरियाणा के मानेसर में नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG), नागपुर के UOTC समेत झारखंड के हजारीबाग और छत्तीसगढ़ के कांकेर में इंतजाम किए जाते हैं.

सी-60 के मुख्यालय में रहने के दौरान सभी लोगों को नक्सलियों की युद्धनीति और दांव पेंच से अवगत कराया जाता है. इन्हें प्रोत्साहित बनाए रखने के लिए समय-समय पर कमांडो फिल्म दिखाई जाती है. मोटिवेशनल लेक्चर भी आयोजित कराए जाते हैं.

सी-60 की टैगलाइन 'वीर भोग्या वसुंधरा' है. इसकी व्याख्या 'भाग्य बहादुर का ही साथ देता है' के संदर्भ में की जाती है.

ये भी पढ़ें: गढ़चिरौली में कमांडो टीम पर नक्सली हमला, 15 शहीद

बता दें कि महाराष्ट्र दिवस के दिन नक्सलियों ने गढ़चिरौली के जंबूल खेड़ा में नक्सलियों ने घात लगाकर सी-60 के जवानों पर हमला किया. आईईडी धमाके में 15 जवानों के शहीद होने समेत उनके एक चालक के भी मरने की खबर है.

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