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चमोली आपदा की जिम्मेदार खो चुकी न्यूक्लियर डिवाइस तो नहीं? जानिए रैणी गांव के लोगों की राय - जलप्रलय की जिम्मेदार खो चुकी न्यूक्लियर डिवाइस तो नहीं?

उत्तराखंड के जोशीमठ आपदा के बाद उत्तराखंड सरकार भविष्य में एक बड़े संकट को लेकर चिंतित है. इसके पीछे का करण हिमालय में दफन 56 किलोग्राम का प्लूटोनियम हो सकता है.

न्यूक्लियर डिवाइस
न्यूक्लियर डिवाइस
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Published : Feb 10, 2021, 9:38 PM IST

देहरादून : उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में आई जल प्रलय से हर कोई स्तब्ध है. इस आपदा ने 2013 में आई केदारनाथ आपदा के जख्मों को हरा कर दिया है. लेकिन इन सबके बीच सरकार एक बात को लेकर फिर चिंता में है.

हम बात कर रहे हैं 1965 में हिमालय की विहंगम चोटियों में दफन की गई 56 किलो वजनी रेडियोधर्मी यंत्र यानी प्लूटोनियम की. सरकार को चिंता इस बात की है कि अगर ये प्लूटोनियम जल्दी नहीं मिला तो कहीं ये भविष्य में किसी बड़ी आपदा का कारण न हो जाए.

न्यूक्लियर डिवाइस की वजह से आपदा आ सकती है

इस मामले में उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि कुछ वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस प्लूटोनियम की जानकारी दी गई थी. उस वक्त उन्होंने इसे खोजने की बात भी कही थी. इसलिए अब इस पर जल्दी से कार्य शुरू किया जाएगा. जोशीमठ जल प्रलय के बाद राज्य सरकार ने ग्लेशियर के निरीक्षण करने के साथ ही तमाम वैज्ञानिकों को हिमालयी क्षेत्रों में प्लूटोनियम को खोजने के निर्देश दिए हैं. सरकार का साफ तौर पर कहना है कि वैज्ञानिकों को नंदा देवी चोटी पर 56 किलो वजनी रेडियोधर्मी यंत्र की तलाश है.

साल 1965 में CIA और IB ने किया था स्थापित
भारत-चीन युद्ध के बाद 1964 में चीन के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका की सीआईए और भारत की शीर्ष खुफिया एजेंसी आईबी ने मिलकर गुरु रिंपोंछी नाम के इस परमाणुवीय यंत्र को स्थापित करने का प्लान किया था. इसका मुख्य उद्देश्य चीन के परमाणुविक महत्वाकांक्षा पर लगाम लगाना था, लेकिन असामयिक एवलॉन्च आ जाने के कारण इस यंत्र को स्थापित करने से पहले ही बीच रास्ते में छोड़ दिया गया. यह यंत्र प्लूटोनियम से बना हुआ है.

साल 1965 में नंदा देवी की चोटी पर लापता हुए रेडियोएक्‍टिव प्‍लूटोनियम का अबतक पता नहीं चल सका है. हालांकि इसे खोजने के लिए तमाम टीमें समय-समय पर लगाई गई हैं. लेकिन अभी तक इसका कोई सुराग नहीं मिल पाया है. इसे लेकर रहस्‍य बरकरार है.

पढ़ें :- चमोली त्रासदी : कहीं ग्लेशियर टूटने का कारण 1965 में खोया न्यूक्लियर डिवाइस तो नहीं?

नंदा देवी के ग्लेशियर में मौजूद प्लूटोनियम के चलते विकिरण का खतरा भी बना हुआ है. लिहाजा भविष्य में इस प्लूटोनियम की वजह से कोई खतरा उत्पन्न न हो, इसे लेकर कुछ सालों पहले पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसकी जानकारी दी थी. साथ ही इस बात का भी जिक्र किया था कि 56 किलोग्राम वजन का यह रेडियोधर्मी यंत्र वर्तमान में बर्फ और मलबे के नीचे दबा पड़ा हो सकता है. जिसे निकालने के लिए एक बार फिर से पहल करनी चाहिए.

जलप्रलय की जिम्मेदार खो चुकी डिवाइस तो नहीं?
नंदा देवी ग्लेशियर पर जापानी ट्रैकरों के साथ जाने वाले रैणी गांव के निवासी धवन सिंह का कहना है कि 'शायद प्लूटोनियम पैक के कारण यह आपदा आई हो'. अब रैणी गांव के लोगों ने आशंका जाहिर की है कि 1965 में नंदा देवी में खो चुकी रेडियोऐक्टिव डिवाइस से उत्पन्न हुई गर्मी से ग्लेशियर फटा. 1965 से इन चोटियों में एक राज दफन है, जो इंसान के लिए विनाशकारी आशंका को बार-बार जिंदा करता है.

देहरादून : उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में आई जल प्रलय से हर कोई स्तब्ध है. इस आपदा ने 2013 में आई केदारनाथ आपदा के जख्मों को हरा कर दिया है. लेकिन इन सबके बीच सरकार एक बात को लेकर फिर चिंता में है.

हम बात कर रहे हैं 1965 में हिमालय की विहंगम चोटियों में दफन की गई 56 किलो वजनी रेडियोधर्मी यंत्र यानी प्लूटोनियम की. सरकार को चिंता इस बात की है कि अगर ये प्लूटोनियम जल्दी नहीं मिला तो कहीं ये भविष्य में किसी बड़ी आपदा का कारण न हो जाए.

न्यूक्लियर डिवाइस की वजह से आपदा आ सकती है

इस मामले में उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि कुछ वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस प्लूटोनियम की जानकारी दी गई थी. उस वक्त उन्होंने इसे खोजने की बात भी कही थी. इसलिए अब इस पर जल्दी से कार्य शुरू किया जाएगा. जोशीमठ जल प्रलय के बाद राज्य सरकार ने ग्लेशियर के निरीक्षण करने के साथ ही तमाम वैज्ञानिकों को हिमालयी क्षेत्रों में प्लूटोनियम को खोजने के निर्देश दिए हैं. सरकार का साफ तौर पर कहना है कि वैज्ञानिकों को नंदा देवी चोटी पर 56 किलो वजनी रेडियोधर्मी यंत्र की तलाश है.

साल 1965 में CIA और IB ने किया था स्थापित
भारत-चीन युद्ध के बाद 1964 में चीन के परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका की सीआईए और भारत की शीर्ष खुफिया एजेंसी आईबी ने मिलकर गुरु रिंपोंछी नाम के इस परमाणुवीय यंत्र को स्थापित करने का प्लान किया था. इसका मुख्य उद्देश्य चीन के परमाणुविक महत्वाकांक्षा पर लगाम लगाना था, लेकिन असामयिक एवलॉन्च आ जाने के कारण इस यंत्र को स्थापित करने से पहले ही बीच रास्ते में छोड़ दिया गया. यह यंत्र प्लूटोनियम से बना हुआ है.

साल 1965 में नंदा देवी की चोटी पर लापता हुए रेडियोएक्‍टिव प्‍लूटोनियम का अबतक पता नहीं चल सका है. हालांकि इसे खोजने के लिए तमाम टीमें समय-समय पर लगाई गई हैं. लेकिन अभी तक इसका कोई सुराग नहीं मिल पाया है. इसे लेकर रहस्‍य बरकरार है.

पढ़ें :- चमोली त्रासदी : कहीं ग्लेशियर टूटने का कारण 1965 में खोया न्यूक्लियर डिवाइस तो नहीं?

नंदा देवी के ग्लेशियर में मौजूद प्लूटोनियम के चलते विकिरण का खतरा भी बना हुआ है. लिहाजा भविष्य में इस प्लूटोनियम की वजह से कोई खतरा उत्पन्न न हो, इसे लेकर कुछ सालों पहले पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसकी जानकारी दी थी. साथ ही इस बात का भी जिक्र किया था कि 56 किलोग्राम वजन का यह रेडियोधर्मी यंत्र वर्तमान में बर्फ और मलबे के नीचे दबा पड़ा हो सकता है. जिसे निकालने के लिए एक बार फिर से पहल करनी चाहिए.

जलप्रलय की जिम्मेदार खो चुकी डिवाइस तो नहीं?
नंदा देवी ग्लेशियर पर जापानी ट्रैकरों के साथ जाने वाले रैणी गांव के निवासी धवन सिंह का कहना है कि 'शायद प्लूटोनियम पैक के कारण यह आपदा आई हो'. अब रैणी गांव के लोगों ने आशंका जाहिर की है कि 1965 में नंदा देवी में खो चुकी रेडियोऐक्टिव डिवाइस से उत्पन्न हुई गर्मी से ग्लेशियर फटा. 1965 से इन चोटियों में एक राज दफन है, जो इंसान के लिए विनाशकारी आशंका को बार-बार जिंदा करता है.

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