नई दिल्ली: जामिया मिल्लिया इस्लामिया में 15 दिसंबर को पुलिस द्वारा छात्रों पर की गई कार्रवाई के दो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. वहीं इसको लेकर जामिया के प्रवक्ता अहमद अज़ीम ने बताया कि इस तरह का कोई भी वीडियो जामिया प्रशासन द्वारा जारी नहीं किया गया है और न ही प्रशासन इस तरह के वीडियो की सत्यता को प्रमाणित करता है.
विश्वविद्यालय के जन संपर्क अधिकारी अहमद अजीम ने कहा कि हमारे संज्ञान में आया है कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया के डॉ. जाकिर हुसैन पुस्तकालय में पुलिस बर्बरता के बारे में कोई वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहा है। यह स्पष्ट किया जाता है कि इस वीडियो को विश्वविद्यालय ने जारी नहीं किया है.
यह वीडियो जामिया समन्वय समिति (जेसीसी) ने जारी किया है. जेसीसी जामिया मिल्लिया इस्लामिया के वर्तमान और पूर्व छात्रों का संगठन है. पंद्रह दिसंबर को कथित पुलिस बर्बरता के बाद इसका गठन किया गया था.
विश्वविद्यालय 15 जनवरी को उस वक्त युद्धक्षेत्र में तब्दील हो गया था, जब पुलिस उन बाहरी लोगों की तलाश में विश्वविद्यालय परिसर में घुसी, जिन्होंने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान इस शैक्षणिक संस्थान से कुछ ही दूरी पर हिंसा और आगजनी की थी.
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जनसंपर्क अधिकारी के अनुसार जेसीसी विश्वविद्यालय के गेट नंबर सात के बाहर मौलाना मोहम्मद अली जौहर रोड पर संशोधित नागरिकता कानून (सीएए), राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ आंदोलन चला रही है.
अजीम ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाता है कि जेसीसी विश्वविद्यालय का कोई आधिकारिक निकाय नहीं है. जेसीसी के साथ किसी भी संवाद को विश्वविद्यालय के साथ संवाद नहीं समझा जाए.
उन्होंने कहा कि कई ट्विटर एकाउंट, फेसबुक पेज और विभिन्न सोशल मीडिया मंचों के उपयोगकर्ता जामिया मिल्लिया इस्लामिया के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं और लोगों में भ्रम पैदा कर रहे हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर आधिकारिक ट्विटर हैंडल और फेसबुक पेज की जानकारी भी दी.
उन्होंने कहा कि हमने ट्विटर से हमारे आधिकारिक हैंडल का सत्यापन करने का अनुरोध भी किया है और हम अन्य सोशल मीडिया मंचो से भी ऐसा ही करने को कहेंगे.