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जानें क्या है सिंधु नदी संधि, भारत और पाक के लिए क्यों है अहम?

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Published : Sep 19, 2020, 7:45 PM IST

तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने सिंधु जल संधि हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते में दोनों देशों की साझा छह नदियों के पानी के उपयोग पर दिशानिर्देश तय किया गया. विश्व बैंक के पूर्व अध्यक्ष यूजीन ब्लैक की पहल पर यह संधि हुई थी.

सिंधु जल संधि
सिंधु जल संधि

हैदराबाद : भारत और पाकिस्तान 1610 किलोमीटर लंबी सीमा और छह नदियों से पानी साझा करते हैं. भारत और पाकिस्तान सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज और ब्यास से जुड़े हुए हैं. सिंधु नदी प्रणाली दुनिया में सबसे बड़ी सिंचाई प्रणाली का स्रोत है. सिंधु नदी का मुख्य स्रोत चीन (तिब्बत) में स्थित है. 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन ने पाकिस्तान और भारत को सिंधु के जल पर अधिकारों को लेकर सोचने पर मजबूर किया. पाकिस्तानी भूमि को सिंचित करने वाली दो प्रमुख नहरों का स्रोत भारत की क्षेत्रीय सीमा में होने के कारण पाकिस्तान विशेष रूप से चिंतित रहता है.

पृष्ठभूमि
भारत और पाकिस्तान ने 3-4 मई 1948 को दिल्ली में सिंधु के जल पर अधिकारों को लेकर एक बैठक की. इसमें भारत ने सिंधु नदी के प्रवाह को जारी रखने पर सहमति जताई, लेकिन इस बात को बनाए रखा कि पाकिस्तान इस जल के किसी भी हिस्से को अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकता. भारत ने कहा कि 1947 के स्टैंडस्टिल समझौते के तहत पाकिस्तान पानी के लिए भुगतान करने पर सहमत हो गया था. इस तरह पाकिस्तान ने भारत के जल अधिकारों को मान्यता दी थी. सिंधु बेसिन बनाने वाली छह नदियों का उद्गम तिब्बत में होता है, जहां से वे हिमालय पर्वतमाला में बहती हैं और कराची के दक्षिण में अरब सागर में समाप्त होती है.

सिंधु जल संधि

इस संधि पर 1960 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते में दोनों देशों की साझा छह नदियों के पानी के उपयोग पर दिशा-निर्देश तय किया गया. विश्व बैंक के पूर्व अध्यक्ष यूजीन ब्लैक की पहल पर यह संधि हुई थी. संधि में पानी के विभाजन पर सटीक विवरण दिया गया. झेलम, चिनाब और सिंधु (3 पश्चिमी नदियों) को पाकिस्तान को आवंटित किया गया था. भारत को रावी, ब्यास और सतलज (3 पूर्वी नदियों) का नियंत्रण प्राप्त हुआ. संधि ने यह भी कहा कि कुछ विशिष्ट मामलों के अलावा पश्चिमी नदियों पर भारत द्वारा कोई भंडारण और सिंचाई प्रणाली नहीं बनाई जा सकती है.

संधि में दोनों देशों के बीच सहयोग और सूचना विनिमय के लिए एक तंत्र भी स्थापित किया गया. इसे स्थायी सिंधु आयोग कहा जाता है. इसमें दोनों देश के एक-एक आयुक्त होते हैं. संधि सभी मुद्दों को संभालने के लिए अलग-अलग प्रक्रियाएं तय करती है. आयोग द्वारा सभी विवादों को सात सदस्यीय मध्यस्थ न्यायाधिकरण के जरिए हल करने पर सहमति बनी. संधि के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में विश्व बैंक की भूमिका सीमित और प्रक्रियात्मक रखी गई. विशेष रूप से मतभेद और विवादों के संबंध में इसकी भूमिका सीमित है. संधि के अनुसार दोनों देशों के जल आयुक्त साल में दो बार मिलते हैं और परियोजनाओं के लिए निरीक्षण की व्यवस्था करते हैं. 2016 में उरी आतंकी हमले के बाद भारत ने पूर्वी नदियों के अप्रयुक्त पानी को टैप करने के लिए सिंधु जल आयोग और फास्ट ट्रैक पनबिजली परियोजनाओं की बातचीत को निलंबित कर दिया. तीन परियोजनाओं में जम्मू और कश्मीर में जम्मू बांध परियोजना (जम्मू-कश्मीर), शाहपुर-कंडी बांध परियोजना और पंजाब में एक सतलुज-ब्यास लिंक शामिल है.

भारत के लिए इसमें क्या है
रावी, ब्यास और सतलज नदियों के पानी का भारत का हिस्सा 33 मिलियन एकड़ फीट आया. नदियों पर तीन मुख्य बांधों के निर्माण के बाद लगभग 95 प्रतिशत पानी का उपयोग किया जाता है और लगभग 5 प्रतिशत पानी पाकिस्तान में बह जाता है. संधि ने भारत पर कुछ प्रतिबंध भी लगाए. पाकिस्तान को आवंटित पश्चिमी नदियों पर भारत को भंडारण करने की अनुमति नहीं थी. सिंचाई परियोजनाओं के विकास के विस्तार के संबंध में भारत पर प्रतिबंध भी लगाए गए थे, मगर भारत को नदी के पानी का उपयोग करके बिजली उत्पादन के लिए पूर्ण अधिकार दिए गए थे. विदेश मंत्रालय के अनुसार पश्चिमी नदियों के बारे में प्रावधानों के तहत भारत सिंधु, झेलम और चिनाब को घरेलू उपयोग, कृषि उपयोग और पनबिजली के उत्पादन में कर सकता है.

पाकिस्तान के लिए इसमें क्या है
सिंधु, चिनाब और झेलम पाकिस्तान की जीवनरेखा हैं. पाकिस्तान अपनी जल आपूर्ति के लिए इन नदियों पर अत्यधिक निर्भर है. ये नदियां पाकिस्तान से उत्पन्न नहीं होती हैं, बल्कि भारत से होकर देश में आती हैं, इसलिए पाकिस्तान को सूखे और अकाल का खतरा है. चिनाब और झेलम भारत से निकलते हैं. वहीं सिंधु चीन से निकलती है.

विरोध
भारत और पाकिस्तान किशनगंगा (330 मेगावाट) और रटले (850 मेगावाट) के हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट के निर्माण को लेकर असहमत हैं. पावर प्लांट भारत द्वारा बनाया जा रहा है. पावर प्लांट झेलम और चिनाब नदियों पर बनाए जा रहे हैं. संधि के तहत भारत को इन नदियों पर पनबिजली सुविधाओं का निर्माण करने की अनुमति है. मगर पाकिस्तान इसे गलत बता रहा है.

वर्ष 1984 में भारत ने झेलम नदी पर टुलबुल नेविगेशन और वुलर परियोजना बनाने का प्रस्ताव रखा. पाकिस्तान ने यह दावा करते हुए विरोध किया कि यह 1960 की सिंधु जल संधि का उल्लंघन है. भारत ने दावा किया कि परियोजना नदी को नौगम्य बनाएगी, लेकिन पाकिस्तान का मानना ​​था कि इसका उपयोग भारत द्वारा नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है. 2006 में टुलबुल नेविगेशन और वुलर परियोजनाओं पर भारत-पाक वार्ता हुई. पाकिस्तान की धारणा में परियोजना संरचना लगभग 0.3 मिलियन एकड़ फीट (0.369 बिलियन क्यूबिक मीटर) की भंडारण क्षमता वाला एक बैराज है और भारत को झेलम के मुख्य तने पर किसी भी भंडारण सुविधा के निर्माण की अनुमति नहीं है. भारतीय पक्ष ने बताया है कि संरचना एक भंडारण सुविधा नहीं है, बल्कि सिंधु जल संधि 1960 में परिभाषित एक नेविगेशन सुविधा है. इसके अलावा भारत सरकार ने कहा कि वुलर झील प्राकृतिक भंडारण प्राप्त करती है और नेविगेशन लॉक केवल विनियमित करने के लिए एक संरचना है.

परियोजना
पाकिस्तान ने चिनाब पर 850 मेगावाट की रटले पनबिजली परियोजना पर आपत्तियां जताईं. इसका निर्माण 2013 से चल रहा है. भारत सरकार ने 2018 में पाकिस्तान की आपत्तियों को अवैध मानते हुए परियोजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया. राज्य में पनबिजली प्रमुख एनएचपीसी ने 2019 में परियोजना के विकास के लिए मोदी की उपस्थिति में जम्मू-कश्मीर बिजली विभाग के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. चिनाब नदी पर फिर से 900 मेगावाट की बागलीहार पनबिजली परियोजना भी दोनों पक्षों के बीच संघर्ष का एक स्रोत रही है. पाकिस्तान ने दावा किया कि बागलीहार परियोजना के डिजाइन मापदंडों ने 1960 की संधि का उल्लंघन किया है. इसने दावा किया कि बिजली उत्पादन के लिए कुछ डिजाइन पैरामीटर बहुत आवश्यक थे और भारत को नदी के प्रवाह में तेजी लाने, खंडित करने या अवरुद्ध करने की अत्यधिक क्षमता प्रदान की. जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चिनाब की सहायक नदियों में से एक पर 800 मेगावाट की बर्सार पनबिजली परियोजना 2016 के उरी हमले के बाद जल्दी से शुरू कर दी गई थी. हाल ही में परियोजना पर काम भी शुरू किया गया है. एक बार पूर्ण होने पर बर्सर पश्चिमी नदियों पर भंडारण के लिए भारत की पहली परियोजना होगी.

2020 में बैठक चली
अगस्त 2020 में भारत ने पाकिस्तान द्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा के पास अटारी चेकपोस्ट पर सिंधु जल संधि के मुद्दों पर एक बैठक आयोजित करने के अनुरोध से इनकार कर दिया. जल संसाधन मंत्रालय में एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार भारत ने एक वर्चुअल बैठक का सुझाव दिया था लेकिन पाकिस्तान ने मार्च 2020 में एक भौतिक बैठक पर जोर दिया था.

हैदराबाद : भारत और पाकिस्तान 1610 किलोमीटर लंबी सीमा और छह नदियों से पानी साझा करते हैं. भारत और पाकिस्तान सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज और ब्यास से जुड़े हुए हैं. सिंधु नदी प्रणाली दुनिया में सबसे बड़ी सिंचाई प्रणाली का स्रोत है. सिंधु नदी का मुख्य स्रोत चीन (तिब्बत) में स्थित है. 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन ने पाकिस्तान और भारत को सिंधु के जल पर अधिकारों को लेकर सोचने पर मजबूर किया. पाकिस्तानी भूमि को सिंचित करने वाली दो प्रमुख नहरों का स्रोत भारत की क्षेत्रीय सीमा में होने के कारण पाकिस्तान विशेष रूप से चिंतित रहता है.

पृष्ठभूमि
भारत और पाकिस्तान ने 3-4 मई 1948 को दिल्ली में सिंधु के जल पर अधिकारों को लेकर एक बैठक की. इसमें भारत ने सिंधु नदी के प्रवाह को जारी रखने पर सहमति जताई, लेकिन इस बात को बनाए रखा कि पाकिस्तान इस जल के किसी भी हिस्से को अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकता. भारत ने कहा कि 1947 के स्टैंडस्टिल समझौते के तहत पाकिस्तान पानी के लिए भुगतान करने पर सहमत हो गया था. इस तरह पाकिस्तान ने भारत के जल अधिकारों को मान्यता दी थी. सिंधु बेसिन बनाने वाली छह नदियों का उद्गम तिब्बत में होता है, जहां से वे हिमालय पर्वतमाला में बहती हैं और कराची के दक्षिण में अरब सागर में समाप्त होती है.

सिंधु जल संधि

इस संधि पर 1960 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते में दोनों देशों की साझा छह नदियों के पानी के उपयोग पर दिशा-निर्देश तय किया गया. विश्व बैंक के पूर्व अध्यक्ष यूजीन ब्लैक की पहल पर यह संधि हुई थी. संधि में पानी के विभाजन पर सटीक विवरण दिया गया. झेलम, चिनाब और सिंधु (3 पश्चिमी नदियों) को पाकिस्तान को आवंटित किया गया था. भारत को रावी, ब्यास और सतलज (3 पूर्वी नदियों) का नियंत्रण प्राप्त हुआ. संधि ने यह भी कहा कि कुछ विशिष्ट मामलों के अलावा पश्चिमी नदियों पर भारत द्वारा कोई भंडारण और सिंचाई प्रणाली नहीं बनाई जा सकती है.

संधि में दोनों देशों के बीच सहयोग और सूचना विनिमय के लिए एक तंत्र भी स्थापित किया गया. इसे स्थायी सिंधु आयोग कहा जाता है. इसमें दोनों देश के एक-एक आयुक्त होते हैं. संधि सभी मुद्दों को संभालने के लिए अलग-अलग प्रक्रियाएं तय करती है. आयोग द्वारा सभी विवादों को सात सदस्यीय मध्यस्थ न्यायाधिकरण के जरिए हल करने पर सहमति बनी. संधि के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में विश्व बैंक की भूमिका सीमित और प्रक्रियात्मक रखी गई. विशेष रूप से मतभेद और विवादों के संबंध में इसकी भूमिका सीमित है. संधि के अनुसार दोनों देशों के जल आयुक्त साल में दो बार मिलते हैं और परियोजनाओं के लिए निरीक्षण की व्यवस्था करते हैं. 2016 में उरी आतंकी हमले के बाद भारत ने पूर्वी नदियों के अप्रयुक्त पानी को टैप करने के लिए सिंधु जल आयोग और फास्ट ट्रैक पनबिजली परियोजनाओं की बातचीत को निलंबित कर दिया. तीन परियोजनाओं में जम्मू और कश्मीर में जम्मू बांध परियोजना (जम्मू-कश्मीर), शाहपुर-कंडी बांध परियोजना और पंजाब में एक सतलुज-ब्यास लिंक शामिल है.

भारत के लिए इसमें क्या है
रावी, ब्यास और सतलज नदियों के पानी का भारत का हिस्सा 33 मिलियन एकड़ फीट आया. नदियों पर तीन मुख्य बांधों के निर्माण के बाद लगभग 95 प्रतिशत पानी का उपयोग किया जाता है और लगभग 5 प्रतिशत पानी पाकिस्तान में बह जाता है. संधि ने भारत पर कुछ प्रतिबंध भी लगाए. पाकिस्तान को आवंटित पश्चिमी नदियों पर भारत को भंडारण करने की अनुमति नहीं थी. सिंचाई परियोजनाओं के विकास के विस्तार के संबंध में भारत पर प्रतिबंध भी लगाए गए थे, मगर भारत को नदी के पानी का उपयोग करके बिजली उत्पादन के लिए पूर्ण अधिकार दिए गए थे. विदेश मंत्रालय के अनुसार पश्चिमी नदियों के बारे में प्रावधानों के तहत भारत सिंधु, झेलम और चिनाब को घरेलू उपयोग, कृषि उपयोग और पनबिजली के उत्पादन में कर सकता है.

पाकिस्तान के लिए इसमें क्या है
सिंधु, चिनाब और झेलम पाकिस्तान की जीवनरेखा हैं. पाकिस्तान अपनी जल आपूर्ति के लिए इन नदियों पर अत्यधिक निर्भर है. ये नदियां पाकिस्तान से उत्पन्न नहीं होती हैं, बल्कि भारत से होकर देश में आती हैं, इसलिए पाकिस्तान को सूखे और अकाल का खतरा है. चिनाब और झेलम भारत से निकलते हैं. वहीं सिंधु चीन से निकलती है.

विरोध
भारत और पाकिस्तान किशनगंगा (330 मेगावाट) और रटले (850 मेगावाट) के हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट के निर्माण को लेकर असहमत हैं. पावर प्लांट भारत द्वारा बनाया जा रहा है. पावर प्लांट झेलम और चिनाब नदियों पर बनाए जा रहे हैं. संधि के तहत भारत को इन नदियों पर पनबिजली सुविधाओं का निर्माण करने की अनुमति है. मगर पाकिस्तान इसे गलत बता रहा है.

वर्ष 1984 में भारत ने झेलम नदी पर टुलबुल नेविगेशन और वुलर परियोजना बनाने का प्रस्ताव रखा. पाकिस्तान ने यह दावा करते हुए विरोध किया कि यह 1960 की सिंधु जल संधि का उल्लंघन है. भारत ने दावा किया कि परियोजना नदी को नौगम्य बनाएगी, लेकिन पाकिस्तान का मानना ​​था कि इसका उपयोग भारत द्वारा नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है. 2006 में टुलबुल नेविगेशन और वुलर परियोजनाओं पर भारत-पाक वार्ता हुई. पाकिस्तान की धारणा में परियोजना संरचना लगभग 0.3 मिलियन एकड़ फीट (0.369 बिलियन क्यूबिक मीटर) की भंडारण क्षमता वाला एक बैराज है और भारत को झेलम के मुख्य तने पर किसी भी भंडारण सुविधा के निर्माण की अनुमति नहीं है. भारतीय पक्ष ने बताया है कि संरचना एक भंडारण सुविधा नहीं है, बल्कि सिंधु जल संधि 1960 में परिभाषित एक नेविगेशन सुविधा है. इसके अलावा भारत सरकार ने कहा कि वुलर झील प्राकृतिक भंडारण प्राप्त करती है और नेविगेशन लॉक केवल विनियमित करने के लिए एक संरचना है.

परियोजना
पाकिस्तान ने चिनाब पर 850 मेगावाट की रटले पनबिजली परियोजना पर आपत्तियां जताईं. इसका निर्माण 2013 से चल रहा है. भारत सरकार ने 2018 में पाकिस्तान की आपत्तियों को अवैध मानते हुए परियोजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया. राज्य में पनबिजली प्रमुख एनएचपीसी ने 2019 में परियोजना के विकास के लिए मोदी की उपस्थिति में जम्मू-कश्मीर बिजली विभाग के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. चिनाब नदी पर फिर से 900 मेगावाट की बागलीहार पनबिजली परियोजना भी दोनों पक्षों के बीच संघर्ष का एक स्रोत रही है. पाकिस्तान ने दावा किया कि बागलीहार परियोजना के डिजाइन मापदंडों ने 1960 की संधि का उल्लंघन किया है. इसने दावा किया कि बिजली उत्पादन के लिए कुछ डिजाइन पैरामीटर बहुत आवश्यक थे और भारत को नदी के प्रवाह में तेजी लाने, खंडित करने या अवरुद्ध करने की अत्यधिक क्षमता प्रदान की. जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में चिनाब की सहायक नदियों में से एक पर 800 मेगावाट की बर्सार पनबिजली परियोजना 2016 के उरी हमले के बाद जल्दी से शुरू कर दी गई थी. हाल ही में परियोजना पर काम भी शुरू किया गया है. एक बार पूर्ण होने पर बर्सर पश्चिमी नदियों पर भंडारण के लिए भारत की पहली परियोजना होगी.

2020 में बैठक चली
अगस्त 2020 में भारत ने पाकिस्तान द्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा के पास अटारी चेकपोस्ट पर सिंधु जल संधि के मुद्दों पर एक बैठक आयोजित करने के अनुरोध से इनकार कर दिया. जल संसाधन मंत्रालय में एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार भारत ने एक वर्चुअल बैठक का सुझाव दिया था लेकिन पाकिस्तान ने मार्च 2020 में एक भौतिक बैठक पर जोर दिया था.

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