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कोरोना संकट : जीवन रक्षक दवाओं की खरीद में भारत के सामने चुनौतियां

कोरोना वायरस से जंग जीतने में वैक्सीन को लेकर जद्दोजहद जारी है. इस कड़ी में भारत भी शामिल है. फिलहाल कोरोना से संक्रमित मरीजों का इलाज टोसिलिजुमैब और रेमडेसिविर जैसी दवाओं की मदद से ही किया जा रहा है. ये दवाएं कोरोना संक्रमण को ठीक करने में मददगार भी साबित हो रही हैं. आइए जानते हैं इन दवाओं के बारे में और जानते हैं इन जीवन रक्षक दवाओं की खरीद में भारत के सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं...

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जीवन रक्षक दवाओं की खरीद में भारत की लड़ाई
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Published : Jul 14, 2020, 7:36 PM IST

हैदराबाद : जब विभिन्न देशों के वैज्ञानिक संस्थान कोरोना की वैक्सीन खोजने में जुटे हुए हैं, तो टोसिलिजुमैब और रेमडेसिविर जैसी दवाएं रोगियों के जीवन को बचाने में कारगर साबित हुई हैं.

कोविड-19 के लिए टोसिलिजुमैब (Tocilizumab)
यह एक पुनः संयोजक मानवकृत मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है, जो गंभीर रूमेटॉयड अर्थराइटिस, सिस्टेमेटिक जुवेनाइल इडियोपैथिक अर्थराइटिस, ज्वॉइंट सेल अर्थराइटिस और जानलेवा साइटेकिन रिलीज सिंड्रोम के समय काम में लाई जाती है.

भारत सरकार द्वारा कोरोना के लिए क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल के अनुसार, टोसिलिजुमैब को मध्यम बीमारी वाले रोगियों में ऑक्सीजन की बढ़ती जरूरत के समय दिया जाता है.

चीन के वुहान में जब कोरोना से ग्रसित 15 रोगियों में निमोनिया के लक्षण मिले, तो इस दवा के साथ इलाज काफी हद तक मददगार साबित हुआ. इसकी मात्रा तब 80 mg से 600 mg के बीच रखी गई.

रेमडेसिविर
इबोला वायरस संक्रमण के लिए क्लीनिकल ट्रायल में ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीवायरल एजेंट रेमडेसिविर का अध्ययन किया गया था, लेकिन सीमित लाभ दिखा, हालांकि, यूएस एफडीए ने वयस्कों और बच्चों में गंभीर COVID-19 को लेकर आपातकालीन उपयोग की अनुमति देने के लिए रेमडेसिविर का EUA जारी किया.

इस दवा की मांग इस तथ्य से प्रेरित है कि दुनियाभर के अस्पतालों में क्लीनिकल परीक्षण में कोरोना के लक्षणों की अवधि को 15 दिनों से घटाकर 11 दिन करने की कोशिश की गई.

सिप्रेमी को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा देश में प्रतिबंधित आपातकालीन उपयोग के लिए स्वीकृति प्रदान की गई थी.

दवाओं की कमी
भारत सरकार द्वारा COVID-19 के लिए क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल के दस्तावेज (दिनांक 13.06.2020) में यह भी उल्लेख किया गया है कि टोसिलिजुमैब की काफी कमी है. इसके अलावा, इन दवाओं की देश में सीमित मात्रा में उपलब्धता है.

वितरण मानदंडों के अनुसार, उत्पाद बनाने और विपणन करने के लिए अधिकृत कंपनियों को केवल अस्पतालों में इसकी आपूर्ति करनी है, न कि केमिस्ट को.

सिप्ला ने कोविड-19 उपचार दवा रेमडेसिविर का जेनेटिक संस्करण लॉन्च किया है. सिप्ला ने एक बयान में कहा कि दवा की प्रति 100 मिलीग्राम शीशी की कीमत 4000 रुपये है.

फिर भी दवाओं की ब्लैक मार्केटिंग जारी है और इन्हें 4,000 से भी ज्यादा दामों पर बेचा जा रहा है.

इसके अलावा, सरकार के सूत्रों के अनुसार, कोविड-19 ड्रग्स रेमडेसिविर और फेविपिरविर के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण कच्चे माल का प्रबंधन कस्टम करता है, जिससे इसका उत्पादन प्रभावित होता है.

बीएमसी कमिश्नर आईएस चहल ने सभी नागरिक अस्पतालों के डीन से कहा था कि वे संस्थागत स्तर पर एंटीवायरल टोसिलिजुमैब और रेमडेसिविर की खरीद करें और एक महीने का स्टॉक रखें.

चहल ने उन्हें फार्मा कंपनियों से संपर्क करने के लिए कहा था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दवाएं थोक में उपलब्ध हैं.

रॉश प्रोडक्ट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड
रॉश प्रोडक्ट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड, जो भारत में टोसिलिजुमैब का निर्माण करता है, अपने उत्पादों की कीमत किसी के साथ साझा नहीं करता है.

हालांकि, कंपनी अपने रोगी सहायता कार्यक्रमों (पीएसपी) में नामांकित मरीजों को मुफ्त दवा की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान में भारत के प्रमुख शहरों में स्थित अपने स्थानीय वितरकों के माध्यम से एक केंद्रीकृत प्रेषण प्रणाली से विकेंद्रीकृत मॉडल अपना रही है. उसकी पीएसपी टीमें स्थानीय वितरकों के साथ मिलकर काम कर रही हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी रोगियों को मुफ्त दवाएं उपलब्ध कराई जा सकें.

दवाओं की कालाबाजारी
कोविड-19 रोगियों की जान बचाने के लिए आवश्यक दवाओं की कालाबाजारी की रिपोर्ट सामने आई है. रेमडेसिविर दवा की कथित तौर पर कालाबाजारी करते हुए इसे 30 हजार या इससे भी ज्यादा रुपये में बेचा जा रहा था, जबकि सरकार ने पहले ही एक शीशी के लिए 5,400 रुपये निर्धारित किए थे.

फूड एंड ड्रग्स कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन (FDCA) ने अहमदाबाद में एक रैकेट का भंडाफोड़ किया, जो कथित रूप से इन दवाओं की कालाबाजारी कर रहा था.

आपूर्ति और मांग का अंतर
अमेरिका स्थित गिलियड साइंसेज ने, जिसने मूल रूप से इबोला के उपचार के लिए रेमडेसिविर विकसित की है, भारत में चार भारतीय कंपनियों सिप्ला, जुबिलेंट लाइफ, हेटेरो ड्रग्स और मायलोन को इसका उत्पादन करने की अनुमति दी है. हालांकि, इनमें से केवल एक ही कंपनी हेटेरो ने अब तक इसका उत्पादन किया है. कंपनी ने पांच राज्यों के बीच दवा की 20,000 खुराक वितरित की है.

टोसिलिजुमैब का महत्व जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है और इसके आस-पास के वैज्ञानिक साक्ष्य सामने आ रहे हैं, इसकी आपूर्ति और उपलब्धता की समस्या बढ़ रही है. इसका मुख्य कारण है कि वर्तमान समय में केवल रॉश और इसकी सहायक कंपनी जेनटेक इसे बनाती हैं. रॉश ने किसी अन्य कंपनी को इसका लाइसेंस नहीं दिया है.

इससे भारत में टोसिलिजुमैब की कीमत अधिक है और आपूर्ति कम है और संकट काल में कोरोना मरीज के परिवार इसे खरीदने के लिए मुसीबत का सामना कर रहे हैं.

हैदराबाद : जब विभिन्न देशों के वैज्ञानिक संस्थान कोरोना की वैक्सीन खोजने में जुटे हुए हैं, तो टोसिलिजुमैब और रेमडेसिविर जैसी दवाएं रोगियों के जीवन को बचाने में कारगर साबित हुई हैं.

कोविड-19 के लिए टोसिलिजुमैब (Tocilizumab)
यह एक पुनः संयोजक मानवकृत मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है, जो गंभीर रूमेटॉयड अर्थराइटिस, सिस्टेमेटिक जुवेनाइल इडियोपैथिक अर्थराइटिस, ज्वॉइंट सेल अर्थराइटिस और जानलेवा साइटेकिन रिलीज सिंड्रोम के समय काम में लाई जाती है.

भारत सरकार द्वारा कोरोना के लिए क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल के अनुसार, टोसिलिजुमैब को मध्यम बीमारी वाले रोगियों में ऑक्सीजन की बढ़ती जरूरत के समय दिया जाता है.

चीन के वुहान में जब कोरोना से ग्रसित 15 रोगियों में निमोनिया के लक्षण मिले, तो इस दवा के साथ इलाज काफी हद तक मददगार साबित हुआ. इसकी मात्रा तब 80 mg से 600 mg के बीच रखी गई.

रेमडेसिविर
इबोला वायरस संक्रमण के लिए क्लीनिकल ट्रायल में ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीवायरल एजेंट रेमडेसिविर का अध्ययन किया गया था, लेकिन सीमित लाभ दिखा, हालांकि, यूएस एफडीए ने वयस्कों और बच्चों में गंभीर COVID-19 को लेकर आपातकालीन उपयोग की अनुमति देने के लिए रेमडेसिविर का EUA जारी किया.

इस दवा की मांग इस तथ्य से प्रेरित है कि दुनियाभर के अस्पतालों में क्लीनिकल परीक्षण में कोरोना के लक्षणों की अवधि को 15 दिनों से घटाकर 11 दिन करने की कोशिश की गई.

सिप्रेमी को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा देश में प्रतिबंधित आपातकालीन उपयोग के लिए स्वीकृति प्रदान की गई थी.

दवाओं की कमी
भारत सरकार द्वारा COVID-19 के लिए क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल के दस्तावेज (दिनांक 13.06.2020) में यह भी उल्लेख किया गया है कि टोसिलिजुमैब की काफी कमी है. इसके अलावा, इन दवाओं की देश में सीमित मात्रा में उपलब्धता है.

वितरण मानदंडों के अनुसार, उत्पाद बनाने और विपणन करने के लिए अधिकृत कंपनियों को केवल अस्पतालों में इसकी आपूर्ति करनी है, न कि केमिस्ट को.

सिप्ला ने कोविड-19 उपचार दवा रेमडेसिविर का जेनेटिक संस्करण लॉन्च किया है. सिप्ला ने एक बयान में कहा कि दवा की प्रति 100 मिलीग्राम शीशी की कीमत 4000 रुपये है.

फिर भी दवाओं की ब्लैक मार्केटिंग जारी है और इन्हें 4,000 से भी ज्यादा दामों पर बेचा जा रहा है.

इसके अलावा, सरकार के सूत्रों के अनुसार, कोविड-19 ड्रग्स रेमडेसिविर और फेविपिरविर के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण कच्चे माल का प्रबंधन कस्टम करता है, जिससे इसका उत्पादन प्रभावित होता है.

बीएमसी कमिश्नर आईएस चहल ने सभी नागरिक अस्पतालों के डीन से कहा था कि वे संस्थागत स्तर पर एंटीवायरल टोसिलिजुमैब और रेमडेसिविर की खरीद करें और एक महीने का स्टॉक रखें.

चहल ने उन्हें फार्मा कंपनियों से संपर्क करने के लिए कहा था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दवाएं थोक में उपलब्ध हैं.

रॉश प्रोडक्ट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड
रॉश प्रोडक्ट्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड, जो भारत में टोसिलिजुमैब का निर्माण करता है, अपने उत्पादों की कीमत किसी के साथ साझा नहीं करता है.

हालांकि, कंपनी अपने रोगी सहायता कार्यक्रमों (पीएसपी) में नामांकित मरीजों को मुफ्त दवा की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान में भारत के प्रमुख शहरों में स्थित अपने स्थानीय वितरकों के माध्यम से एक केंद्रीकृत प्रेषण प्रणाली से विकेंद्रीकृत मॉडल अपना रही है. उसकी पीएसपी टीमें स्थानीय वितरकों के साथ मिलकर काम कर रही हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी रोगियों को मुफ्त दवाएं उपलब्ध कराई जा सकें.

दवाओं की कालाबाजारी
कोविड-19 रोगियों की जान बचाने के लिए आवश्यक दवाओं की कालाबाजारी की रिपोर्ट सामने आई है. रेमडेसिविर दवा की कथित तौर पर कालाबाजारी करते हुए इसे 30 हजार या इससे भी ज्यादा रुपये में बेचा जा रहा था, जबकि सरकार ने पहले ही एक शीशी के लिए 5,400 रुपये निर्धारित किए थे.

फूड एंड ड्रग्स कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन (FDCA) ने अहमदाबाद में एक रैकेट का भंडाफोड़ किया, जो कथित रूप से इन दवाओं की कालाबाजारी कर रहा था.

आपूर्ति और मांग का अंतर
अमेरिका स्थित गिलियड साइंसेज ने, जिसने मूल रूप से इबोला के उपचार के लिए रेमडेसिविर विकसित की है, भारत में चार भारतीय कंपनियों सिप्ला, जुबिलेंट लाइफ, हेटेरो ड्रग्स और मायलोन को इसका उत्पादन करने की अनुमति दी है. हालांकि, इनमें से केवल एक ही कंपनी हेटेरो ने अब तक इसका उत्पादन किया है. कंपनी ने पांच राज्यों के बीच दवा की 20,000 खुराक वितरित की है.

टोसिलिजुमैब का महत्व जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है और इसके आस-पास के वैज्ञानिक साक्ष्य सामने आ रहे हैं, इसकी आपूर्ति और उपलब्धता की समस्या बढ़ रही है. इसका मुख्य कारण है कि वर्तमान समय में केवल रॉश और इसकी सहायक कंपनी जेनटेक इसे बनाती हैं. रॉश ने किसी अन्य कंपनी को इसका लाइसेंस नहीं दिया है.

इससे भारत में टोसिलिजुमैब की कीमत अधिक है और आपूर्ति कम है और संकट काल में कोरोना मरीज के परिवार इसे खरीदने के लिए मुसीबत का सामना कर रहे हैं.

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