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महाकुंभ 2025 : कितने सालों पर होता है आयोजन, क्या है निर्धारित होने की प्रक्रिया, जानें सबकुछ

हर 12 साल पर लगने वाला महाकुंभ 2025 में प्रयागराज (इलाहाबाद) में संगम के तट पर लगेगा. आइए जानें इससे जुड़ी प्रमुख बातें.

Maha Kumbh Mela 2025
महाकुंभ मेला 2025 (Getty Images/ ETV Bharat Graphics)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 17 hours ago

हैदराबादः प्रत्येक 12 साल पर जब सूर्य, मेष राशि में और बृहस्पति ग्रह, कुंभ राशि में होता है, तब महाकुंभ मेला आयोजित किया जाता है. इस अवसर पर संगम तट पर भारी भीड़ जमा होती है. महाकुंभ 2025 प्रयागराज (इलाहाबाद) में 13 जनवरी से प्रारंभ होगा. इसका समापन 26 फरवरी के दिन होगा. इसको लेकर उत्तर प्रदेश सरकार, रेलवे सहित अन्य एजेंसियां की ओर से बड़े पैमाने पर तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है.

Prayagraj Mahakumbh 2025
महाकुंभ मेला (Getty Images)
महाकुंभ मेला 2025
क्र.सं. त्यौहार का नामदिनांकदिन
1पौष पूर्णिमा13 जनवरी 2025सोमवार
2मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025मंगलवार
3मौनी अमावस्या (सोमवती)29 जनवरी 2025बुधवार
4 बसंत पंचमी 03 फरवरी 2025सोमवार
5माघी पूर्णिमा 12 फरवरी 2025बुधवार
6 महाशिवरात्रि26 फरवरी 2025बुधवार
स्रोतः प्रयागराज जिला प्रशासन
Prayagraj Mahakumbh 2025
महाकुंभ मेला (Getty Images)

12 साल पर लगने वाले महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. वहीं 12 साल में दो अर्ध-कुंभ (आधा कुंभ) पड़ता है. यह 6-6 साल पर होता है. वहीं एक महाकुंभ से दूसरे महाकुंभ के बीच 4 कुंभ पड़ता है. कुंभ मेला, अर्द कुंभ मेला और महाकुंभ भारत में 4 नदियों (शहरों) के किनारे आयोजित होता है. चक्रानुक्रम के हिसाब से एक के बाद एक शहर में इससे संभंधित मेले का आयोजन होता है.

Prayagraj Mahakumbh 2025
महाकुंभ मेला (Getty Images)

इलाहाबाद के गजेटियर के अनुसार कुंभ मेले में आने वाले तीर्थयात्री धर्म के सभी वर्गों से आते हैं, जिनमें साधु (संत) और नागा साधु शामिल हैं जो ‘साधना’ करते हैं. इस दौरान वे आध्यात्मिक अनुशासन के सख्त मार्ग का पालन करते हैं. इनमें ऐसे संन्यासी भी होते हैं जो अपना एकांत छोड़कर केवल कुंभ मेले के दौरान सभ्यता का भ्रमण करने आते हैं. आध्यात्मिकता के साधक और हिंदू धर्म का पालन करने वाले आम लोग शामिल हैं.

कुंभ मेले के दौरान कई तरह के समारोह होते हैं; हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस जिसे ‘पेशवाई’ कहा जाता है, ‘शाही स्नान’ के दौरान नागा साधुओं की चमचमाती तलवारें और अनुष्ठान, और कई अन्य सांस्कृतिक गतिविधियाँ जो कुंभ मेले में भाग लेने के लिए लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती हैं.

Prayagraj Mahakumbh 2025
महाकुंभ मेला (Getty Images)
भारत में महाकुंभ आयोजन स्थल
क्र.सं.स्थलराज्यनदी के तट पर
1.हरिद्वारउत्तराखंडगंगा के तट पर
2.उज्जैनमध्य प्रदेशशिप्रा के तट पर
3.नासिकमहाराष्ट्र गोदावरी के तट पर
4.प्रयागराजउत्तर प्रदेश गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर

दो कुंभों के बीच अर्ध-कुंभ (आधा कुंभ) आता है. कुंभ के मेलों की एक विशेषता विभिन्न हिंदू अखाड़ों (आदेशों) के सैकड़ों तपस्वियों की उपस्थिति है. जो मुख्य स्नान के दिन औपचारिक जुलूस के रूप में नदी तक मार्च करते हैं. मेला क्षेत्र में अलग-अलग संप्रदाय का अपना शिविर होता है. इस दौरान सिर्फ निर्धारित अधिकार रखने वालों को ही जुलूस में भाग लेने की अनुमति होती है.

निरहानी, नागा गोसाईं हैं, जो शिव के अनुयायी होते हैं. वे जुलूस का नेतृत्व करते हैं. वे नग्न रहते हैं, उनके बाल उलझे (जटाएं) होते हैं और उनमें से प्रत्येक के हाथ में एक घंटी होती है. मजबूत व एक धनी समुदाय होने के कारण इलाहाबाद शहर में दारागंज में एक बड़ा सेंटर (प्रतिष्ठान) है.

Prayagraj Mahakumbh 2025
महाकुंभ मेला (Getty Images)

जुलूस में अगले आने वाले बैरागी, विचित्र साधु होते हैं और उनके तीन उपविभाग होते हैं: निर्बानी, निर्मोही और दिगंबरी. फिर आता है छोटा पंचायती अखाड़ा, पंजाब के उदासी लोगों से (Part of Udasis) संबंधित लोगों का एक समूह, जिसका मुट्ठीगंज में एक बड़ा मठ है: मूल रूप से सिख, वे हिंदू बन गए हालांकि वे अभी भी (सिखों के) ग्रंथ को अपनी मुख्य धार्मिक पुस्तक के रूप में मानते हैं.

इस निकाय की एक शाखा है भव्य बड़ा पंचायती अखाड़ा (जिसका मुख्यालय कीडगंज में है) जिसके साथ बंधुआ हसनपुर (सुल्तानपुर जिले में) के नानक-शाही और निर्मली (जो सिख हैं, कीडगंज में अपना प्रतिष्ठान रखते हैं और बैंकर हैं) जुड़े हुए हैं, दोनों के सदस्य और बिंधासी के सदस्य भी जुलूस में शामिल होते हैं.

Prayagraj Mahakumbh 2025
महाकुंभ मेला (Getty Images)

बैरागियों को छोड़कर, विभिन्न अखाड़े अपने महंतों (धार्मिक प्रमुखों या मठाधीशों) के लिए कई हाथियों, संगीतकारों और पालकियों के साथ बड़ी धूमधाम से मार्च करते हैं. अखाड़ों के अलावा, बड़ी संख्या में साधु भी इन मेलों में आते हैं और उनके अपने शिविर होते हैं.

दो महत्वपूर्ण वैष्णव संप्रदाय, दारागंज के रामानुजी और बाबा हरिदास (कीडगंज में) की धर्मशाला के राम नंदी भी इन अवसरों पर धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं. उनके सदस्य विवाहित पुरुष होते हैं जो अपने परिवारों या त्यागियों के साथ रहते हैं- जिन्होंने परिवार और सांसारिक संबंधों को त्याग दिया है और मुख्य रूप से भिक्षा पर निर्भर हैं. ये मेले और त्यौहार अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के हिंदू सदस्यों द्वारा भी मनाए जाते हैं और इसके अलावा, कुछ अवसरों पर, उनके पूर्वजों (वाल्मीकि, रैदास और अन्य) से जुड़े जुलूस भी उनके द्वारा निकाले जाते हैं.

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हैदराबादः प्रत्येक 12 साल पर जब सूर्य, मेष राशि में और बृहस्पति ग्रह, कुंभ राशि में होता है, तब महाकुंभ मेला आयोजित किया जाता है. इस अवसर पर संगम तट पर भारी भीड़ जमा होती है. महाकुंभ 2025 प्रयागराज (इलाहाबाद) में 13 जनवरी से प्रारंभ होगा. इसका समापन 26 फरवरी के दिन होगा. इसको लेकर उत्तर प्रदेश सरकार, रेलवे सहित अन्य एजेंसियां की ओर से बड़े पैमाने पर तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है.

Prayagraj Mahakumbh 2025
महाकुंभ मेला (Getty Images)
महाकुंभ मेला 2025
क्र.सं. त्यौहार का नामदिनांकदिन
1पौष पूर्णिमा13 जनवरी 2025सोमवार
2मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025मंगलवार
3मौनी अमावस्या (सोमवती)29 जनवरी 2025बुधवार
4 बसंत पंचमी 03 फरवरी 2025सोमवार
5माघी पूर्णिमा 12 फरवरी 2025बुधवार
6 महाशिवरात्रि26 फरवरी 2025बुधवार
स्रोतः प्रयागराज जिला प्रशासन
Prayagraj Mahakumbh 2025
महाकुंभ मेला (Getty Images)

12 साल पर लगने वाले महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. वहीं 12 साल में दो अर्ध-कुंभ (आधा कुंभ) पड़ता है. यह 6-6 साल पर होता है. वहीं एक महाकुंभ से दूसरे महाकुंभ के बीच 4 कुंभ पड़ता है. कुंभ मेला, अर्द कुंभ मेला और महाकुंभ भारत में 4 नदियों (शहरों) के किनारे आयोजित होता है. चक्रानुक्रम के हिसाब से एक के बाद एक शहर में इससे संभंधित मेले का आयोजन होता है.

Prayagraj Mahakumbh 2025
महाकुंभ मेला (Getty Images)

इलाहाबाद के गजेटियर के अनुसार कुंभ मेले में आने वाले तीर्थयात्री धर्म के सभी वर्गों से आते हैं, जिनमें साधु (संत) और नागा साधु शामिल हैं जो ‘साधना’ करते हैं. इस दौरान वे आध्यात्मिक अनुशासन के सख्त मार्ग का पालन करते हैं. इनमें ऐसे संन्यासी भी होते हैं जो अपना एकांत छोड़कर केवल कुंभ मेले के दौरान सभ्यता का भ्रमण करने आते हैं. आध्यात्मिकता के साधक और हिंदू धर्म का पालन करने वाले आम लोग शामिल हैं.

कुंभ मेले के दौरान कई तरह के समारोह होते हैं; हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस जिसे ‘पेशवाई’ कहा जाता है, ‘शाही स्नान’ के दौरान नागा साधुओं की चमचमाती तलवारें और अनुष्ठान, और कई अन्य सांस्कृतिक गतिविधियाँ जो कुंभ मेले में भाग लेने के लिए लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती हैं.

Prayagraj Mahakumbh 2025
महाकुंभ मेला (Getty Images)
भारत में महाकुंभ आयोजन स्थल
क्र.सं.स्थलराज्यनदी के तट पर
1.हरिद्वारउत्तराखंडगंगा के तट पर
2.उज्जैनमध्य प्रदेशशिप्रा के तट पर
3.नासिकमहाराष्ट्र गोदावरी के तट पर
4.प्रयागराजउत्तर प्रदेश गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर

दो कुंभों के बीच अर्ध-कुंभ (आधा कुंभ) आता है. कुंभ के मेलों की एक विशेषता विभिन्न हिंदू अखाड़ों (आदेशों) के सैकड़ों तपस्वियों की उपस्थिति है. जो मुख्य स्नान के दिन औपचारिक जुलूस के रूप में नदी तक मार्च करते हैं. मेला क्षेत्र में अलग-अलग संप्रदाय का अपना शिविर होता है. इस दौरान सिर्फ निर्धारित अधिकार रखने वालों को ही जुलूस में भाग लेने की अनुमति होती है.

निरहानी, नागा गोसाईं हैं, जो शिव के अनुयायी होते हैं. वे जुलूस का नेतृत्व करते हैं. वे नग्न रहते हैं, उनके बाल उलझे (जटाएं) होते हैं और उनमें से प्रत्येक के हाथ में एक घंटी होती है. मजबूत व एक धनी समुदाय होने के कारण इलाहाबाद शहर में दारागंज में एक बड़ा सेंटर (प्रतिष्ठान) है.

Prayagraj Mahakumbh 2025
महाकुंभ मेला (Getty Images)

जुलूस में अगले आने वाले बैरागी, विचित्र साधु होते हैं और उनके तीन उपविभाग होते हैं: निर्बानी, निर्मोही और दिगंबरी. फिर आता है छोटा पंचायती अखाड़ा, पंजाब के उदासी लोगों से (Part of Udasis) संबंधित लोगों का एक समूह, जिसका मुट्ठीगंज में एक बड़ा मठ है: मूल रूप से सिख, वे हिंदू बन गए हालांकि वे अभी भी (सिखों के) ग्रंथ को अपनी मुख्य धार्मिक पुस्तक के रूप में मानते हैं.

इस निकाय की एक शाखा है भव्य बड़ा पंचायती अखाड़ा (जिसका मुख्यालय कीडगंज में है) जिसके साथ बंधुआ हसनपुर (सुल्तानपुर जिले में) के नानक-शाही और निर्मली (जो सिख हैं, कीडगंज में अपना प्रतिष्ठान रखते हैं और बैंकर हैं) जुड़े हुए हैं, दोनों के सदस्य और बिंधासी के सदस्य भी जुलूस में शामिल होते हैं.

Prayagraj Mahakumbh 2025
महाकुंभ मेला (Getty Images)

बैरागियों को छोड़कर, विभिन्न अखाड़े अपने महंतों (धार्मिक प्रमुखों या मठाधीशों) के लिए कई हाथियों, संगीतकारों और पालकियों के साथ बड़ी धूमधाम से मार्च करते हैं. अखाड़ों के अलावा, बड़ी संख्या में साधु भी इन मेलों में आते हैं और उनके अपने शिविर होते हैं.

दो महत्वपूर्ण वैष्णव संप्रदाय, दारागंज के रामानुजी और बाबा हरिदास (कीडगंज में) की धर्मशाला के राम नंदी भी इन अवसरों पर धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं. उनके सदस्य विवाहित पुरुष होते हैं जो अपने परिवारों या त्यागियों के साथ रहते हैं- जिन्होंने परिवार और सांसारिक संबंधों को त्याग दिया है और मुख्य रूप से भिक्षा पर निर्भर हैं. ये मेले और त्यौहार अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के हिंदू सदस्यों द्वारा भी मनाए जाते हैं और इसके अलावा, कुछ अवसरों पर, उनके पूर्वजों (वाल्मीकि, रैदास और अन्य) से जुड़े जुलूस भी उनके द्वारा निकाले जाते हैं.

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