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भारत को वैश्विक समुदाय को याद दिलाना होगा कि दांव पर है यूएनएससी की विश्वसनीयता

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Published : Jan 28, 2021, 9:56 PM IST

भारत अंतरराष्ट्रीय शांति और समग्र रूप से दुनिया की सुरक्षा से संबंधित मामलों में समावेशी समाधान लाने के लिए अपना काम कर रहा है. हालांकि यह काम भारत के लिए आसान नहीं होगा. इसके लिए भारत को कई तरह की चुनौतियाों का सामना करना पड़ेगा.

हर्षपंत
हर्षपंत

नई दिल्ली : भारत ने इस साल जनवरी में 15-राष्ट्रों की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गैर-स्थायी सदस्य के रूप में अपने दो साल के कार्यकाल की शुरुआत की. सदस्यता लेने के बाद से ही भारत अंतरराष्ट्रीय शांति और समग्र रूप से दुनिया की सुरक्षा से संबंधित मामलों में समावेशी समाधान लाने के लिए अपना काम कर रहा है.

समय के साथ फिर से भारत ने बताया कि विश्व निकाय-यूएनएससी के सबसे शक्तिशाली अंग में अक्षमता का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप काउंसिल अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के जटिल मुद्दों का समाधान नहीं कर पा रही है.

इसलिए, भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील के साथ मिलकर UNSC के तत्काल सुधार और विश्व निकाय के 15 सदस्यीय शीर्ष अंग में एक स्थायी सीट के लिए लगातार दबाव बना रहा है.

साथ ही भारत ने विभिन्न वैश्विक मंच पर सुधारवादी बहुपक्षवाद की आवश्यकता को लेकर अपना रुख स्पष्ट किया है और आतंकवाद, मानवाधिकार उल्लंघन जैसे मुद्दों के खिलाफ अपनी आवाज उठाने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई है, जो वैश्विक सुरक्षा और मानवता के लिए जरूरी है. हालांकि इसकी विश्वसनीयता और इसकी प्रभावशीलता के लिए काफी चुनौतियां हैं.

ईटीवी भारत से बात करते हुए स्ट्रेटेजिक स्टडीज प्रोग्राम,ओआरएफ न्यू डेल्ह के निदेशक और प्रमुख प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि उनका मानना है कि चूंकि भारत अगले दो वर्षों के लिए यूएनएससी का एक गैर-स्थायी सदस्य है, इसलिए वो यूएनएससी सुधारों के मुद्दे को उठाने का कार्य करेगा.

उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि बहुत कुछ पूरा किया जा सकता है. हालांकि अमेरिकी प्रशासन ने कहा है कि वे सुधारों को पसंद करेंगे, लेकिन यह केवल अमेरिका के लिए निर्णय लेने की बात नहीं है.

प्रोफेसर हर्ष ने कहा कि हम एक ऐसे चरण में प्रवेश कर रहे हैं, जहां 'महाशक्तियों के बीच प्रतियोगिता' है और रूसी व चीनी एक तरफ हैं और बाकी शक्तियां दूसरे तरफ हैं, जहां तक स्थायी सदस्यों का संबंध है, उनके बीच किसी भी तरह की समझ बनाना बहुत मुश्किल होगा.

उन्होंने ईटीवी भारत को बताया कि भारत के लिए, वैश्विक समुदाय को यह बताना महत्वपूर्ण है कि यह संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता है दांव पर है.

उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक क्रम पूरी तरह से बदल गया है. एक तरफ इंडो-पैसिफिक है, जो चर्चा के केंद्र में है, जबकि यूएनएससी में पांच स्थायी सदस्यों में से चार यूरोपीय शक्तियां हैं. चीन बड़े इंडो-पैसिफिक का गैर-यूरोपीय इलाके में प्रतिनिधि नहीं है.

इसलिए, भारत जैसे देश के लिए दुनिया को यह बताना जारी रखना महत्वपूर्ण है कि यूएनएससी में समावेशिता की कमी के कारण इसकी कार्रवाई और निर्णय को कम ही लोग मानेंगे. इसलिए इसमें सुधार करने की जरूरत है और इसके लिए भारत को अन्य हितधारकों को साथ लाना होगा.

अगर बात की जाए UNSC में भारत की चुनौतियों की, तो चीन का वर्चस्व और रूसी आक्रामकता कुछ ऐसे कारक हैं, जिन्होंने वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था और बहुपक्षवाद के सुधार में बाधा उत्पन्न की है. इनसे भारत को निपटना होगा.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को कहा कि चीन ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता के लिए भारत का विरोध किया और भारत पर हुए आतंकी हमलों में शामिल पाकिस्तानी आतंकवादियों की संयुक्त राष्ट्र की सूची में भी अवरुद्ध डाला.

उनकी टिप्पणी चीन के 13 वें ऑल इंडिया कांफ्रेंस ऑफ चाइना स्टडीज के दौरान आई थी. भारत-चीन संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, जयशंकर ने इस कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि जब भी हितों और आकांक्षाओं की बात आई, तो भारत और चीन के बीच कुछ मतभेद देखे गए.

भारत के लिए चीन द्वारा बनाई गई बाधाओं की ओर इशारा करते हुए, विदेश मंत्री ने कुछ मुद्दों को सूचीबद्ध किया, जिसमें चीन के NSG में स्थायी सीट के लिए रोकना, UNSC पर पाक आधारित आतंकवादियों की संयुक्त राष्ट्र की सूची को रोकना सहित कुछ मुद्दे सूचीबद्ध शामिल थे. चीन बहुपक्षीय सुधारों की बात करता है, लेकिन वास्तव में यह पर्याप्त नहीं है.

पढ़ें- चीन के रुख में बदलाव का विश्वसनीय स्पष्टीकरण नहीं : एस जयशंकर

प्रोफेसर पंत ने कहा कि स्पष्ट रूप से चीन एक चुनौती है, लेकिन उस दुविधा का कोई आसान समाधान नहीं है. चीन केवल तभी सहमत होगा जब उसे लगे कि उसके लाभ संरक्षित है और UNSC इंडो-पैसिफिक के किसी अन्य सदस्य को सीट देने के लिए रूचि नहीं रखता. वरना चीन सुरक्षा परिषद के किसी भी प्रकार के महत्वपूर्ण सुधारों का विरोध करेगा.

भारत के लिए चुनौती यह भी होगी कि वह दुनिया को यह याद दिलाता रहे कि सुधार भारत के लिए फायदेमंद नहीं हैं बल्कि संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता के लिए हैं. उसमें सुधार करना चाहिए, क्योंकि अगर संयुक्त राष्ट्र में सुधार नहीं हुआ, तो बहुत जल्द दुनिया बहुत ही व्यवहार्यता पर सवाल उठाने लगेगी .

बहुपक्षवाद पहले से ही सुस्त हो रहा है और लोग बहुपक्षीय सिस्टम का विरोध कर रहे हैं. अगर भारत बहुपक्षीयवाद को बचाना चाहता है, तो सबको यकीन दिलाना होगी UNSC में सुधार की जरूरत है.

यह ध्यान देने योग्य है कि संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने बुधवार को भारत के लिए सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के लिए नए प्रशासन का समर्थन स्पष्ट रूप से नहीं किया है.

भारत को इससे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका के तीन पिछले प्रशासन से समर्थन मिला था, जिसमें जॉर्ज डब्ल्यू बुश, ओबामा और ट्रम्प शामिल थे.

नई दिल्ली : भारत ने इस साल जनवरी में 15-राष्ट्रों की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गैर-स्थायी सदस्य के रूप में अपने दो साल के कार्यकाल की शुरुआत की. सदस्यता लेने के बाद से ही भारत अंतरराष्ट्रीय शांति और समग्र रूप से दुनिया की सुरक्षा से संबंधित मामलों में समावेशी समाधान लाने के लिए अपना काम कर रहा है.

समय के साथ फिर से भारत ने बताया कि विश्व निकाय-यूएनएससी के सबसे शक्तिशाली अंग में अक्षमता का अभाव है, जिसके परिणामस्वरूप काउंसिल अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के जटिल मुद्दों का समाधान नहीं कर पा रही है.

इसलिए, भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील के साथ मिलकर UNSC के तत्काल सुधार और विश्व निकाय के 15 सदस्यीय शीर्ष अंग में एक स्थायी सीट के लिए लगातार दबाव बना रहा है.

साथ ही भारत ने विभिन्न वैश्विक मंच पर सुधारवादी बहुपक्षवाद की आवश्यकता को लेकर अपना रुख स्पष्ट किया है और आतंकवाद, मानवाधिकार उल्लंघन जैसे मुद्दों के खिलाफ अपनी आवाज उठाने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई है, जो वैश्विक सुरक्षा और मानवता के लिए जरूरी है. हालांकि इसकी विश्वसनीयता और इसकी प्रभावशीलता के लिए काफी चुनौतियां हैं.

ईटीवी भारत से बात करते हुए स्ट्रेटेजिक स्टडीज प्रोग्राम,ओआरएफ न्यू डेल्ह के निदेशक और प्रमुख प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि उनका मानना है कि चूंकि भारत अगले दो वर्षों के लिए यूएनएससी का एक गैर-स्थायी सदस्य है, इसलिए वो यूएनएससी सुधारों के मुद्दे को उठाने का कार्य करेगा.

उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि बहुत कुछ पूरा किया जा सकता है. हालांकि अमेरिकी प्रशासन ने कहा है कि वे सुधारों को पसंद करेंगे, लेकिन यह केवल अमेरिका के लिए निर्णय लेने की बात नहीं है.

प्रोफेसर हर्ष ने कहा कि हम एक ऐसे चरण में प्रवेश कर रहे हैं, जहां 'महाशक्तियों के बीच प्रतियोगिता' है और रूसी व चीनी एक तरफ हैं और बाकी शक्तियां दूसरे तरफ हैं, जहां तक स्थायी सदस्यों का संबंध है, उनके बीच किसी भी तरह की समझ बनाना बहुत मुश्किल होगा.

उन्होंने ईटीवी भारत को बताया कि भारत के लिए, वैश्विक समुदाय को यह बताना महत्वपूर्ण है कि यह संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता है दांव पर है.

उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक क्रम पूरी तरह से बदल गया है. एक तरफ इंडो-पैसिफिक है, जो चर्चा के केंद्र में है, जबकि यूएनएससी में पांच स्थायी सदस्यों में से चार यूरोपीय शक्तियां हैं. चीन बड़े इंडो-पैसिफिक का गैर-यूरोपीय इलाके में प्रतिनिधि नहीं है.

इसलिए, भारत जैसे देश के लिए दुनिया को यह बताना जारी रखना महत्वपूर्ण है कि यूएनएससी में समावेशिता की कमी के कारण इसकी कार्रवाई और निर्णय को कम ही लोग मानेंगे. इसलिए इसमें सुधार करने की जरूरत है और इसके लिए भारत को अन्य हितधारकों को साथ लाना होगा.

अगर बात की जाए UNSC में भारत की चुनौतियों की, तो चीन का वर्चस्व और रूसी आक्रामकता कुछ ऐसे कारक हैं, जिन्होंने वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था और बहुपक्षवाद के सुधार में बाधा उत्पन्न की है. इनसे भारत को निपटना होगा.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को कहा कि चीन ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता के लिए भारत का विरोध किया और भारत पर हुए आतंकी हमलों में शामिल पाकिस्तानी आतंकवादियों की संयुक्त राष्ट्र की सूची में भी अवरुद्ध डाला.

उनकी टिप्पणी चीन के 13 वें ऑल इंडिया कांफ्रेंस ऑफ चाइना स्टडीज के दौरान आई थी. भारत-चीन संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, जयशंकर ने इस कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि जब भी हितों और आकांक्षाओं की बात आई, तो भारत और चीन के बीच कुछ मतभेद देखे गए.

भारत के लिए चीन द्वारा बनाई गई बाधाओं की ओर इशारा करते हुए, विदेश मंत्री ने कुछ मुद्दों को सूचीबद्ध किया, जिसमें चीन के NSG में स्थायी सीट के लिए रोकना, UNSC पर पाक आधारित आतंकवादियों की संयुक्त राष्ट्र की सूची को रोकना सहित कुछ मुद्दे सूचीबद्ध शामिल थे. चीन बहुपक्षीय सुधारों की बात करता है, लेकिन वास्तव में यह पर्याप्त नहीं है.

पढ़ें- चीन के रुख में बदलाव का विश्वसनीय स्पष्टीकरण नहीं : एस जयशंकर

प्रोफेसर पंत ने कहा कि स्पष्ट रूप से चीन एक चुनौती है, लेकिन उस दुविधा का कोई आसान समाधान नहीं है. चीन केवल तभी सहमत होगा जब उसे लगे कि उसके लाभ संरक्षित है और UNSC इंडो-पैसिफिक के किसी अन्य सदस्य को सीट देने के लिए रूचि नहीं रखता. वरना चीन सुरक्षा परिषद के किसी भी प्रकार के महत्वपूर्ण सुधारों का विरोध करेगा.

भारत के लिए चुनौती यह भी होगी कि वह दुनिया को यह याद दिलाता रहे कि सुधार भारत के लिए फायदेमंद नहीं हैं बल्कि संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता के लिए हैं. उसमें सुधार करना चाहिए, क्योंकि अगर संयुक्त राष्ट्र में सुधार नहीं हुआ, तो बहुत जल्द दुनिया बहुत ही व्यवहार्यता पर सवाल उठाने लगेगी .

बहुपक्षवाद पहले से ही सुस्त हो रहा है और लोग बहुपक्षीय सिस्टम का विरोध कर रहे हैं. अगर भारत बहुपक्षीयवाद को बचाना चाहता है, तो सबको यकीन दिलाना होगी UNSC में सुधार की जरूरत है.

यह ध्यान देने योग्य है कि संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने बुधवार को भारत के लिए सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के लिए नए प्रशासन का समर्थन स्पष्ट रूप से नहीं किया है.

भारत को इससे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका के तीन पिछले प्रशासन से समर्थन मिला था, जिसमें जॉर्ज डब्ल्यू बुश, ओबामा और ट्रम्प शामिल थे.

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