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क्या भारत वैश्विक गठबंधन का नेतृत्व कर सकता है?

अप्रैल 15, 2020 दोपहर तक कोरोना वायरस के दुनियाभर में 20 लाख पुष्ट केस थे. एक लाख से अधिक लोग मर चुके हैं और इनकी संख्या बढ़ ही रही है. कोरोना की वजह से चीन पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा है. हालांकि, यह कहना ठीक नहीं होगा कि इससे चीन के बढ़ते हुए कदम पर ब्रेक लग सकेगा. इसके बावजूद, यह एक ऐसा मौका है, जिसे भारत चाहे तो वह दुनिया का भरोसा जीत सकता है. पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा का आलेख...

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Published : Apr 15, 2020, 5:51 PM IST

कोरोना की वजह से चीन पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा है. उसकी साख पर बट्टा लगा है. हालांकि, यह कहना ठीक नहीं होगा कि इससे चीन के बढ़ते हुए कदम पर ब्रेक लग सकेगा. इसके बावजूद, यह एक ऐसा मौका है, जिसे भारत चाहे और सही नीति का अनुसरण करे, तो वह दुनिया का भरोसा जीत सकता है. भारत अपने आप को वैश्विक गठबंधन का नेतृत्व प्रदान करने के लिए प्रस्तुत कर सकता है. वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने इस पर एक आलेख लिखा है.

क्या भारत वैश्विक गठबंधन का नेतृत्व कर सकता है ?

'ब्लैक स्वान का तर्क यह कहता है कि तुम जो नहीं जानते हो वह तुम जो जानते हो उससे ज्यादा सामयिक है. सोचिये कई ब्लैक स्वान अनअपेक्षित होने की वजह से ही उत्पन्न हो सकते हैं और समस्या खड़ी कर सकते हैं.' नस्सिम निकोलस तालेब (द ब्लैक स्वान)

अब तक एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत

अप्रैल 15, 2020 दोपहर तक कोरोना वायरस के दुनियाभर में 20 लाख पुष्ट केस थे. एक लाख से अधिक लोग मर चुके हैं और इनकी संख्या बढ़ ही रही है. केवल अमेरिका में 18,500 से ज्यादा लोग मर चुके हैं. इटली में सबसे ज्यादा 19,470 लोगों की मृत्यु हो चुकी है. कोरोना वायरस महामारी का केंद्र रहे चीन के वुहान में 3349 लोग मारे गए हैं.

महामारी ने खड़े किए सवालिया निशान

कोरोना वायरस बिमारी से निजात पाने के लिए रसी की खोज के लिए अंधी दौड़ जारी है. दुनिया ब्लैक स्वान घटना से जूझ रही है और महामारी ने वैश्वीकरण पर और अंतर-राष्ट्रीय संबंधों की सार्थकता और न्यायिकता पर सवालिया निशान लगा दिए हैं. संस्थानों की गलतियों और कमियों पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं. सीमाओं पर कड़ी रोक और कई जगह सख्त तालाबंदी लगा दी गई है. जब दुनिया के बड़े नेता अपने अपने देश की जनता की सुरक्षा की समस्या को लेकर उलझ रहे हों तब क्षेत्रीय और वैश्विक गठबंधनों के सामने कौन सी और कैसी चुनौतियां हैं ?

क्या दुनिया में देशों के आपसी संबंध कोई नया रूप लेंगे ? क्या सुरक्षा परिषद् सहित बहुराष्ट्रीय संगठन अपना दायरा विस्तृत करेंगे और अपना पुनर्गठन करेंगे ताकि वे सामयिक हो सकें और विकासशील देशों के अर्थतंत्र के प्रति ज्यादा अर्थपूर्ण और उनकी आवाज को वाचा दे सकें ?

वैश्विक नेतृत्व में शून्यकाल

सेवानिवृत्त कैरियर राजनयिक और चीन और पाकिस्तान में पूर्व भारतीय राजदूत गौतम बंबावाले कहते हैं, 'वैश्विक नेतृत्व में कुछ समय तक शून्यकाल आ जाएगा, लेकिन मध्यम आय वाले देशों या मध्यम शक्तियों के लिए जगह बन रही है. जापान, जर्मनी, भारत, दक्षिण अफ्रीका जैसे देश स्वेच्छा से गठबंधन बना सकते हैं.'

कोरोना के बाद क्या होगा दुनिया का स्वरुप

कार्नेगी इंडिया के वेबिनार में कोरोना वायरस महामारी के बाद दुनिया का स्वरुप क्या होगा, इस विषय पर बोलते हुए बम्बावाले ने कहा कि आने वाले समय में किसी प्रकार का संघ जो अमेरिका और चीन को साथ लेता है एक वैकल्पिक वैश्विक नेतृत्व प्रदान कर सकता है.

विश्व आर्थिक कूटनीति में जी20 ने लिया जी8 का स्थान

2008 में वैश्विक वित्तीय मंदी 1930 की मंदी के बाद का सबसे लंबा समय रहा, जिससे कई नए बहुराष्ट्रीय पटल उभरे. विश्व आर्थिक कूटनीति में जी20 ने जी8 का स्थान ले लिया. चीन जैसे देश ने एशिया इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक के पर्याय ब्रिक्स बैंक में भारी मुद्रा निवेश किया इसलिए वह पिछले एक दशक में सर्वमान्य हो सका. आज कोरोना वायरस महामारी ने यह साबित कर दिया कि दुनिया कैसे जुड़ी हुई और परस्परावलंबी है.

प्रश्न यह है कि क्या भारत किसी ऐसे गठबंधन का नेतृत्व कर सकता है और इस भयंकर संकट के समय उपस्थित मौके के लिए अपने आप को तैयार कर सकता है? भारत के सामने औद्योगिक उत्पादन एक चुनौती है जहां मात्रा, क्वालिटी और आधुनिक टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हमने अपनी क्षमताओं का उपयोग कम किया है.

चीन की क्षमता पर सवाल

दुनिया के विशेष रूप से पश्चिमी देशों ने कोरोना वायरस के प्रकोप से निपटने के लिए चीन की क्षमता पर सवाल खड़े किये और अब बहु राष्ट्रीय कंपनियां अपने बोर्ड रूम में बीजिंग को जिम्मेदार ठहराएंगी.

वाल स्ट्रीट या सिलिकॉन वैली कच्चे माल का इस्तेमाल कर उत्पादन करने वाले कारखानों से अचानक ही अपने संबंध नहीं लेंगे. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनियां अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए चीन के अलावा एक, दो या अधिक देशों में जैसे वियतनाम, मलेशिया, फिलीपीन्स और बांग्लादेश में उत्पादन के केंद्र बनाना या फिर अपने ही देश में बिजनस को वापस ले जाने का सोच सकते हैं.

भारत के लिए फायदा उठाने का समय

यही मौका है भारत के लिए ठीक कदम उठा कर बदलती परिस्थिति से फायदा उठाने का. यदि चीन के बदले किसी और देश में अपना कारोबार बढ़ाना उनके लिए एक मजबूरी हो जाता है तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत जैसे बड़े देश और बाजार को पसंद कर सकती हैं.

प्रतिक्रिया देने के लिए संघीय प्रणाली की क्षमता और विदेशी निवेशकों का स्वागत करने के लिए अंतिम मील कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों की दक्षता आने वाले महीनों में मोदी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण कसौटी होगी.

महामारी से लड़ने के लिए मोदी ने उठाई आवाज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महामारी से लड़ने के लिए समन्वित क्षेत्रीय और वैश्विक रणनीतियों को खोजने के लिए सार्क से जी20 तक के समूहों के माध्यम से सक्रिय प्रतिक्रिया द्वारा सही कूटनीतिक आवाज उठाई है. कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि उन्होंने विशेष रूप से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन सहित निर्यात के लिए निषिद्ध कुछ प्रमुख चिकित्सा वस्तुओं पर लगे प्रतिबंध को हटाने का फैसला लिया.

एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त राजनयिक कहते है कि 'हम आंख बंद करके चीजों पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते क्योंकि धारणा भी मायने रखती है. अगर कुछ घरेलू सामग्री बिना कुछ लाभ और वैश्विक सद्भावना प्राप्त करने के लिए दुसरे देशों में भेजे जाते हैं, तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा. यह एक व्यावहारिक सरकार है.

मनमोहन सिंह का विदेशी वित्तीय सहायता लेने से इनकार

दिसंबर 2004 में एक घातक सुनामी ने हजारों लोगों की जान ले ली थी तब भारत ने पड़ोस में सबसे शुरुआती उत्तरदाताओं में से एक के रूप में, मानवीय सहायता और आपदा राहत में नेतृत्व करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था. तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोई भी विदेशी वित्तीय सहायता लेने से यह कह कर इनकार किया कि भारत आत्मनिर्भर है, इसके संकेत जाएं और यह सहायता अधिक तबाह और छोटे राष्ट्रों को दी जाए.

यमन सहित संघर्ष और युद्ध की स्थितियों से निकलने के बाद प्राकृतिक आपदाओं में दूसरे देशों की मदद कर भारत ने एक वैश्विक सद्भाव वाले और विश्वसनीय दोस्त के रूप अपना नाम अर्जित किया है.

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दों पर भारत गंभीर

अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन बनाने के लिए फ्रांस के साथ प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व ने देश की जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दों पर गंभीरता दिखाई, जो आज सभी सीमाओं को पार करते हैं. फिर भी कोरोना वायरस महामारी के बाद के समय में जहां एक एशियाई या वैश्विक नेतृत्व के लिए चीन के नैतिक अधिकार पर सवाल उठाए जाएंगे, भारत को यथार्थवादी बनकर यह तय करना होगा कि क्या वह एक वैकल्पिक वैश्विक गठबंधन का नेतृत्व करना चाहता है या नहीं.

अमेरिका और चीन के बीच तीव्र संघर्ष

कार्नेगी इंडिया के वेबिनार में बोलते हुए बम्बावाले ने कहा कि चीन आने वाले हफ्तों और दशकों तक आर्थिक और सैन्य शक्ति के रूप में बढ़ता रहेगा, भले ही वह कुछ समय के लिए धीमा हो जाए. चीन को लेकिन उसकी विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा की समस्याओं को लेकर दुनिया का सामना करना पड़ेगा. अमेरिका और चीन के बीच व्यापार और टेक्नोलॉजी को लेकर संघर्ष ज्यादा तीव्र होगा और इन दो पाटों के बीच भारत और कई अन्य देश पीसेंगे.

भारत को मिलेगा वीटो?

यह मानना ​​बालिश होगा कि एक विस्तारित सुरक्षा परिषद में महामारी के बाद के युग में भारत को वीटो के साथ स्थायी सदस्यता मिल जाएगी. बड़े खिलाड़ी अपने विशेषाधिकारों और शक्तियों को आसानी से नहीं छोड़ेंगे, जब तक कि लंबे समय तक चलने वाली महामारी या तीसरे विश्व युद्ध से भारी तबाही न हो. अमेरिकी खुद वेंटिलेटर जैसे चिकित्सा उपकरणों के विकास और उत्पादन में तेजी ला रहे हैं.

अमेरिका गिरती हुई विश्व शक्ति

'संयुक्त राज्य अमेरिका खुद को वापस नहीं ले रहा है, लेकिन अपने वैश्विक बोझों को पुन: व्यवस्थित कर रहा है. यदि वह मध्य पूर्व को खाली कर देता है तो वह दक्षिण पूर्व एशिया में बहुत कुछ कर सकता है.' प्रमुख रणनीतिक विचारक डॉ सी राजमोहन ने वेबिनार में तर्क देते हुए कहा कि अमेरिका को एक गिरती हुई विश्व शक्ति के रूप में बताना जल्दबाजी होगी. लेकिन अमेरिका को चीन को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने या अपने क्षेत्रीय आक्रमणों को रोकने के लिए जापान और भारत की अधिक आवश्यकता होगी.

भारत पर कई जिम्मेदारियां

भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता एक महत्वपूर्ण समूह होगा जो आगे बढ़ेगा. लेकिन भारत की वैश्विक नियति उसकी घरेलू विकास की कहानी से जुड़ी है. भारत को आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल प्रौद्योगिकी में निवेश करना होगा, नई द्विपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापारिक व्यवस्थाओं को देखना होगा, जैव चिकित्सा और जैव प्रौद्योगिकी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में नयी खोज करनी होगी और व्यापारिक भागीदार बनने का काम करना होगा.

अच्छे इरादों से वैश्विक नेतृत्व नहीं मिलता

भारत की अगुआई करने की क्षमता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि उसकी जेब कितनी गहरी है और वह संयुक्त राष्ट्र में छोटे मित्र और साझेदार देशों पर कितना खर्च कर सकता है. सुनामी के बाद, भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों पर प्रतिबद्ध डॉक्टरों और संसाधनों के साथ सूचना आदान-प्रदान और आपातकालीन वैकल्पिक तंत्र के लिए पूर्व चेतावनी केंद्र स्थापित करने के तरीके का नेतृत्व कर सकता है. लेकिन क्या भारत अपना पैसा वहां लगा सकता है जहां उसका मुंह है ? पूर्व भारतीय राजनयिक कहते हैं, 'अच्छे इरादों से वैश्विक नेतृत्व नहीं मिलता.'

अंतिम धुरी राज्य की भूमिका में आ सकता है भारत

नई दिल्ली और बीजिंग के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के इस 70वें वर्ष में, दो एशियाई दिग्गज कोरोना संकट के माध्यम से सहयोग का संकेत देते रहे हैं. लेकिन महामारी के बाद की स्थिति में बढ़ते अंतरराष्ट्रीय संघर्षों में हाथी और ड्रैगन की कुंजी वैश्विक राजनीतिक शतरंज के खेल में दिखाई देगी. रॉबर्ट डी कापलान अपनी प्रशंसित पुस्तक द रिवेंज ऑफ जियोग्राफी में लिखते हैं कि 'संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन महान शक्ति प्रतिद्वंद्वी बन जाते हैं, ऐसे में भारत का झुकाव किस ओर होगा यह 21वीं सदी में यूरेशिया में भू-राजनीति की दिशा निर्धारित कर सकता है. दूसरे शब्दों में भारत अंतिम धुरी राज्य की भूमिका में आ सकता है.'

कोरोना की वजह से चीन पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा है. उसकी साख पर बट्टा लगा है. हालांकि, यह कहना ठीक नहीं होगा कि इससे चीन के बढ़ते हुए कदम पर ब्रेक लग सकेगा. इसके बावजूद, यह एक ऐसा मौका है, जिसे भारत चाहे और सही नीति का अनुसरण करे, तो वह दुनिया का भरोसा जीत सकता है. भारत अपने आप को वैश्विक गठबंधन का नेतृत्व प्रदान करने के लिए प्रस्तुत कर सकता है. वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने इस पर एक आलेख लिखा है.

क्या भारत वैश्विक गठबंधन का नेतृत्व कर सकता है ?

'ब्लैक स्वान का तर्क यह कहता है कि तुम जो नहीं जानते हो वह तुम जो जानते हो उससे ज्यादा सामयिक है. सोचिये कई ब्लैक स्वान अनअपेक्षित होने की वजह से ही उत्पन्न हो सकते हैं और समस्या खड़ी कर सकते हैं.' नस्सिम निकोलस तालेब (द ब्लैक स्वान)

अब तक एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत

अप्रैल 15, 2020 दोपहर तक कोरोना वायरस के दुनियाभर में 20 लाख पुष्ट केस थे. एक लाख से अधिक लोग मर चुके हैं और इनकी संख्या बढ़ ही रही है. केवल अमेरिका में 18,500 से ज्यादा लोग मर चुके हैं. इटली में सबसे ज्यादा 19,470 लोगों की मृत्यु हो चुकी है. कोरोना वायरस महामारी का केंद्र रहे चीन के वुहान में 3349 लोग मारे गए हैं.

महामारी ने खड़े किए सवालिया निशान

कोरोना वायरस बिमारी से निजात पाने के लिए रसी की खोज के लिए अंधी दौड़ जारी है. दुनिया ब्लैक स्वान घटना से जूझ रही है और महामारी ने वैश्वीकरण पर और अंतर-राष्ट्रीय संबंधों की सार्थकता और न्यायिकता पर सवालिया निशान लगा दिए हैं. संस्थानों की गलतियों और कमियों पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं. सीमाओं पर कड़ी रोक और कई जगह सख्त तालाबंदी लगा दी गई है. जब दुनिया के बड़े नेता अपने अपने देश की जनता की सुरक्षा की समस्या को लेकर उलझ रहे हों तब क्षेत्रीय और वैश्विक गठबंधनों के सामने कौन सी और कैसी चुनौतियां हैं ?

क्या दुनिया में देशों के आपसी संबंध कोई नया रूप लेंगे ? क्या सुरक्षा परिषद् सहित बहुराष्ट्रीय संगठन अपना दायरा विस्तृत करेंगे और अपना पुनर्गठन करेंगे ताकि वे सामयिक हो सकें और विकासशील देशों के अर्थतंत्र के प्रति ज्यादा अर्थपूर्ण और उनकी आवाज को वाचा दे सकें ?

वैश्विक नेतृत्व में शून्यकाल

सेवानिवृत्त कैरियर राजनयिक और चीन और पाकिस्तान में पूर्व भारतीय राजदूत गौतम बंबावाले कहते हैं, 'वैश्विक नेतृत्व में कुछ समय तक शून्यकाल आ जाएगा, लेकिन मध्यम आय वाले देशों या मध्यम शक्तियों के लिए जगह बन रही है. जापान, जर्मनी, भारत, दक्षिण अफ्रीका जैसे देश स्वेच्छा से गठबंधन बना सकते हैं.'

कोरोना के बाद क्या होगा दुनिया का स्वरुप

कार्नेगी इंडिया के वेबिनार में कोरोना वायरस महामारी के बाद दुनिया का स्वरुप क्या होगा, इस विषय पर बोलते हुए बम्बावाले ने कहा कि आने वाले समय में किसी प्रकार का संघ जो अमेरिका और चीन को साथ लेता है एक वैकल्पिक वैश्विक नेतृत्व प्रदान कर सकता है.

विश्व आर्थिक कूटनीति में जी20 ने लिया जी8 का स्थान

2008 में वैश्विक वित्तीय मंदी 1930 की मंदी के बाद का सबसे लंबा समय रहा, जिससे कई नए बहुराष्ट्रीय पटल उभरे. विश्व आर्थिक कूटनीति में जी20 ने जी8 का स्थान ले लिया. चीन जैसे देश ने एशिया इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक के पर्याय ब्रिक्स बैंक में भारी मुद्रा निवेश किया इसलिए वह पिछले एक दशक में सर्वमान्य हो सका. आज कोरोना वायरस महामारी ने यह साबित कर दिया कि दुनिया कैसे जुड़ी हुई और परस्परावलंबी है.

प्रश्न यह है कि क्या भारत किसी ऐसे गठबंधन का नेतृत्व कर सकता है और इस भयंकर संकट के समय उपस्थित मौके के लिए अपने आप को तैयार कर सकता है? भारत के सामने औद्योगिक उत्पादन एक चुनौती है जहां मात्रा, क्वालिटी और आधुनिक टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हमने अपनी क्षमताओं का उपयोग कम किया है.

चीन की क्षमता पर सवाल

दुनिया के विशेष रूप से पश्चिमी देशों ने कोरोना वायरस के प्रकोप से निपटने के लिए चीन की क्षमता पर सवाल खड़े किये और अब बहु राष्ट्रीय कंपनियां अपने बोर्ड रूम में बीजिंग को जिम्मेदार ठहराएंगी.

वाल स्ट्रीट या सिलिकॉन वैली कच्चे माल का इस्तेमाल कर उत्पादन करने वाले कारखानों से अचानक ही अपने संबंध नहीं लेंगे. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कंपनियां अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए चीन के अलावा एक, दो या अधिक देशों में जैसे वियतनाम, मलेशिया, फिलीपीन्स और बांग्लादेश में उत्पादन के केंद्र बनाना या फिर अपने ही देश में बिजनस को वापस ले जाने का सोच सकते हैं.

भारत के लिए फायदा उठाने का समय

यही मौका है भारत के लिए ठीक कदम उठा कर बदलती परिस्थिति से फायदा उठाने का. यदि चीन के बदले किसी और देश में अपना कारोबार बढ़ाना उनके लिए एक मजबूरी हो जाता है तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत जैसे बड़े देश और बाजार को पसंद कर सकती हैं.

प्रतिक्रिया देने के लिए संघीय प्रणाली की क्षमता और विदेशी निवेशकों का स्वागत करने के लिए अंतिम मील कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों की दक्षता आने वाले महीनों में मोदी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण कसौटी होगी.

महामारी से लड़ने के लिए मोदी ने उठाई आवाज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महामारी से लड़ने के लिए समन्वित क्षेत्रीय और वैश्विक रणनीतियों को खोजने के लिए सार्क से जी20 तक के समूहों के माध्यम से सक्रिय प्रतिक्रिया द्वारा सही कूटनीतिक आवाज उठाई है. कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि उन्होंने विशेष रूप से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन सहित निर्यात के लिए निषिद्ध कुछ प्रमुख चिकित्सा वस्तुओं पर लगे प्रतिबंध को हटाने का फैसला लिया.

एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त राजनयिक कहते है कि 'हम आंख बंद करके चीजों पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते क्योंकि धारणा भी मायने रखती है. अगर कुछ घरेलू सामग्री बिना कुछ लाभ और वैश्विक सद्भावना प्राप्त करने के लिए दुसरे देशों में भेजे जाते हैं, तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा. यह एक व्यावहारिक सरकार है.

मनमोहन सिंह का विदेशी वित्तीय सहायता लेने से इनकार

दिसंबर 2004 में एक घातक सुनामी ने हजारों लोगों की जान ले ली थी तब भारत ने पड़ोस में सबसे शुरुआती उत्तरदाताओं में से एक के रूप में, मानवीय सहायता और आपदा राहत में नेतृत्व करने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था. तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोई भी विदेशी वित्तीय सहायता लेने से यह कह कर इनकार किया कि भारत आत्मनिर्भर है, इसके संकेत जाएं और यह सहायता अधिक तबाह और छोटे राष्ट्रों को दी जाए.

यमन सहित संघर्ष और युद्ध की स्थितियों से निकलने के बाद प्राकृतिक आपदाओं में दूसरे देशों की मदद कर भारत ने एक वैश्विक सद्भाव वाले और विश्वसनीय दोस्त के रूप अपना नाम अर्जित किया है.

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दों पर भारत गंभीर

अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन बनाने के लिए फ्रांस के साथ प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व ने देश की जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दों पर गंभीरता दिखाई, जो आज सभी सीमाओं को पार करते हैं. फिर भी कोरोना वायरस महामारी के बाद के समय में जहां एक एशियाई या वैश्विक नेतृत्व के लिए चीन के नैतिक अधिकार पर सवाल उठाए जाएंगे, भारत को यथार्थवादी बनकर यह तय करना होगा कि क्या वह एक वैकल्पिक वैश्विक गठबंधन का नेतृत्व करना चाहता है या नहीं.

अमेरिका और चीन के बीच तीव्र संघर्ष

कार्नेगी इंडिया के वेबिनार में बोलते हुए बम्बावाले ने कहा कि चीन आने वाले हफ्तों और दशकों तक आर्थिक और सैन्य शक्ति के रूप में बढ़ता रहेगा, भले ही वह कुछ समय के लिए धीमा हो जाए. चीन को लेकिन उसकी विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा की समस्याओं को लेकर दुनिया का सामना करना पड़ेगा. अमेरिका और चीन के बीच व्यापार और टेक्नोलॉजी को लेकर संघर्ष ज्यादा तीव्र होगा और इन दो पाटों के बीच भारत और कई अन्य देश पीसेंगे.

भारत को मिलेगा वीटो?

यह मानना ​​बालिश होगा कि एक विस्तारित सुरक्षा परिषद में महामारी के बाद के युग में भारत को वीटो के साथ स्थायी सदस्यता मिल जाएगी. बड़े खिलाड़ी अपने विशेषाधिकारों और शक्तियों को आसानी से नहीं छोड़ेंगे, जब तक कि लंबे समय तक चलने वाली महामारी या तीसरे विश्व युद्ध से भारी तबाही न हो. अमेरिकी खुद वेंटिलेटर जैसे चिकित्सा उपकरणों के विकास और उत्पादन में तेजी ला रहे हैं.

अमेरिका गिरती हुई विश्व शक्ति

'संयुक्त राज्य अमेरिका खुद को वापस नहीं ले रहा है, लेकिन अपने वैश्विक बोझों को पुन: व्यवस्थित कर रहा है. यदि वह मध्य पूर्व को खाली कर देता है तो वह दक्षिण पूर्व एशिया में बहुत कुछ कर सकता है.' प्रमुख रणनीतिक विचारक डॉ सी राजमोहन ने वेबिनार में तर्क देते हुए कहा कि अमेरिका को एक गिरती हुई विश्व शक्ति के रूप में बताना जल्दबाजी होगी. लेकिन अमेरिका को चीन को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने या अपने क्षेत्रीय आक्रमणों को रोकने के लिए जापान और भारत की अधिक आवश्यकता होगी.

भारत पर कई जिम्मेदारियां

भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता एक महत्वपूर्ण समूह होगा जो आगे बढ़ेगा. लेकिन भारत की वैश्विक नियति उसकी घरेलू विकास की कहानी से जुड़ी है. भारत को आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल प्रौद्योगिकी में निवेश करना होगा, नई द्विपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापारिक व्यवस्थाओं को देखना होगा, जैव चिकित्सा और जैव प्रौद्योगिकी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में नयी खोज करनी होगी और व्यापारिक भागीदार बनने का काम करना होगा.

अच्छे इरादों से वैश्विक नेतृत्व नहीं मिलता

भारत की अगुआई करने की क्षमता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि उसकी जेब कितनी गहरी है और वह संयुक्त राष्ट्र में छोटे मित्र और साझेदार देशों पर कितना खर्च कर सकता है. सुनामी के बाद, भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों पर प्रतिबद्ध डॉक्टरों और संसाधनों के साथ सूचना आदान-प्रदान और आपातकालीन वैकल्पिक तंत्र के लिए पूर्व चेतावनी केंद्र स्थापित करने के तरीके का नेतृत्व कर सकता है. लेकिन क्या भारत अपना पैसा वहां लगा सकता है जहां उसका मुंह है ? पूर्व भारतीय राजनयिक कहते हैं, 'अच्छे इरादों से वैश्विक नेतृत्व नहीं मिलता.'

अंतिम धुरी राज्य की भूमिका में आ सकता है भारत

नई दिल्ली और बीजिंग के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना के इस 70वें वर्ष में, दो एशियाई दिग्गज कोरोना संकट के माध्यम से सहयोग का संकेत देते रहे हैं. लेकिन महामारी के बाद की स्थिति में बढ़ते अंतरराष्ट्रीय संघर्षों में हाथी और ड्रैगन की कुंजी वैश्विक राजनीतिक शतरंज के खेल में दिखाई देगी. रॉबर्ट डी कापलान अपनी प्रशंसित पुस्तक द रिवेंज ऑफ जियोग्राफी में लिखते हैं कि 'संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन महान शक्ति प्रतिद्वंद्वी बन जाते हैं, ऐसे में भारत का झुकाव किस ओर होगा यह 21वीं सदी में यूरेशिया में भू-राजनीति की दिशा निर्धारित कर सकता है. दूसरे शब्दों में भारत अंतिम धुरी राज्य की भूमिका में आ सकता है.'

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