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पूर्वी लद्दाख के तेल-गैस भंडार हैं भारत-चीन टकराव का कारण !

पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन के बीच टकराव सिर्फ क्षेत्र को लेकर ही नहीं, बल्कि इस क्षेत्र में संभावित तेल-गैस के भंडार को लेकर भी हो सकता है. कई शोध में इस हिमालयी क्षेत्र में तेल-गैस व हाइड्रोकार्बन का भंडार होने की बात का खुलासा हुआ है. विस्तार से पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की विशेष रिपोर्ट...

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भारत-चीन टकराव
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Published : Jul 27, 2020, 8:49 PM IST

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच जारी सैन्य संघर्ष केवल ऐतिहासिक विरासत, क्षेत्र या भू-राजनीतिक रणनीति के मुद्दों के लिए नहीं हो सकता है, बल्कि पूर्वी भाग सहित इस पूरे क्षेत्र में तेल और गैस सहित विशाल हाइड्रोकार्बन का भंडार हो सकता है. इसके अलावा यह क्षेत्र जियो-थर्मल ऊर्जा के लिए बड़ी क्षमता भी प्रस्तुत करता है.

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पूर्वी लद्दाख के अक्साई चिन क्षेत्र के बारे में प्रसिद्ध कथन, 'जहां घास नहीं उगती है' को ज्यादा तरजीह नहीं दी गई है, लेकिन अब अध्ययनों से पता चलता है कि इस ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन भंडार हो सकते हैं.

ऊर्जा की कमी वाले दोनों देशों भारत और चीन के लिए यह अनुमानित भंडार भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, क्योंकि दोनों दुनिया के सबसे बड़े तेल आयातक देश हैं. दोनों पेट्रोल-डीजल की अपनी अधिकांश जरूरतें अन्य देशों से पूरी करते हैं.

भारत अपनी जरूरतों का 82 प्रतिशत से अधिक तेल आयात करता है और 2022 तक स्थानीय तेल की खोज, नवीकरणीय ऊर्जा और स्वदेशी इथेनॉल ईंधन के उपयोग का सहारा लेते हुए इसे घटाकर 67 प्रतिशत करने की कोशिश चल रही है. वहीं, चीन अपनी कुल तेल आवश्यकता का लगभग 77 प्रतिशत आयात करता है.

इस विषय के जानकार ओएनजीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया, 'लंबे समय से हम लद्दाख क्षेत्र की क्षमता को जानते थे और यह हाइड्रोकॉर्बन भंडार का बहुत मजबूत क्षेत्र था. इसका कारण यह है कि इस क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा टेथिस सागर का समुद्री तल था, जो प्लेट विवर्तनिक बल (टेक्टोनिक फोर्स) के कारण लाखों वर्षों में पश्चिमी और मध्य हिमालय के रूप में ऊपर उठ गया था. यह प्राकृतिक है कि समुद्र के तल से बने जोन में हाइड्रोकार्बन भंडार होना चाहिए.'

टेथियन हिमालयन जोन लद्दाख के जांस्कर पहाड़ों में 70 किमी चौड़ा क्षेत्र है और भविष्य में शेल गैस/शेल तेल की खोज के लिए सबसे भरोसेमंद लक्ष्य है. यह पूर्व में तिब्बती पठार के दक्षिणी सीमांत से लेकर पश्चिम में जांस्कर पर्वत तक फैला हुआ है. पश्चिमी हिमालय में, कश्मीर, जांस्कर, चंबा और स्पीति में टेथियन हिमालयी उत्तराधिकार अच्छी तरह से उजागर होता है.

सितंबर 2018 में ओएनजीसी, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, जम्मू विश्वविद्यालय, एनी अपस्ट्रीम एंड टेक्निकल सर्विसेज (इटली), पाकिस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा प्रस्तुत शोध रिपोर्ट में इस क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन भंडार की मजबूत संभावना को उजागर किया गया था.

77 पन्नों के वैज्ञानिक पत्र 'पेट्रोलियम सिस्टम और भारत तथा पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम हिमालय की हाइड्रोकार्बन क्षमता' में कहा गया है, 'उत्तर-पश्चिम हिमालय को हाइड्रोकार्बन की खोज के लिए संभावित माना जाता है क्योंकि उपयुक्त विवर्तनिक-तलछटी वातावरण में कई स्तरिक स्तरों में पेट्रोलियम सिस्टम तत्वों की उपस्थिति है. इसके अलावा गैस शो और वाणिज्यिक तेल और गैस खोजों की उपस्थिति है.'

यह भी पढ़ें- पूर्वी लद्दाख में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पुल तैयार

रिपोर्ट में कहा गया है, 'जेंस्कर-स्पीति बेसिन में बने मेसोजोइक-टेर्शियरी में चिकनी मिट्टी तलछट में ओएम (कार्बनिक पदार्थ) सामग्री और क्रीटेशस-इओसीन इंडस फॉर्मेशन (Cretaceous-Eocene Indus Formation) के शेल्स संभावित हाइड्रोकार्बन की स्रोत चट्टानें हैं.'

शोध रिपोर्ट के मुताबिक, बेसिनल सिस्टम की आंतरिक बेल्ट में क्षेत्रीय पतन की गतिविधि के दौरान बनीं ट्रैप्स में तेल और गैस के संचय की महत्वपूर्ण क्षमता है और परिणामस्वरूप, हिमालय के ओरोजन वारंट्स की आंतरिक बेल्ट आगे की खोज करती है.'

इसके अलावा रिपोर्ट कहती है, 'उत्तर-पश्चिम हिमालय का भारतीय भाग लंबे समय से हाइड्रोकार्बन के लिए संभावित माना जाता है, क्योंकि इसके उपयुक्त विवर्तनिक-तलछटी वातावरण के कारण, गैस का अस्तित्व सतह पर (उदाहरण के लिए, ज्वालामुखी 'अग्नि मंदिर' में) और उपसतह में दिखाई देता है. मोटे तौर पर समान संरचनात्मक में तेल और गैस खोजों की उपस्थिति.'

यह शोध पत्र उत्तर पश्चिम हिमालय की हाइड्रोकार्बन क्षमता को उजागर करने वाले गंभीर प्रयासों में से एक है.

भौगोलिक अलगाव, उच्च ऊंचाई, अत्यधिक ठंड जैसे कई कारकों ने क्षेत्र के एक व्यापक अध्ययन में बाधा उत्पन्न की है, जिसमें 'बड़े पैमाने पर संरचनात्मक जटिलता और गहन विवर्तनिक विकृति और उच्च गुणवत्ता वाले भूकंपीय क्षेत्र शामिल हैं. जटिल आंतरिक विकृति, खड़ी संरचनाएं और पार्श्व वेग इसकी सटीक छवि बनाने के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हैं.

ओएनजीसी के अधिकारी ने कहा, 'समुचित अन्वेषण के लिए, विस्फोट सहित कई प्रक्रियाओं का संचालन किया जाना है, जो उच्च-ऊंचाई, अत्यंत संवेदनशील और हिमालय के हिमस्खलन वाले क्षेत्रों में संभव नहीं है.'

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच जारी सैन्य संघर्ष केवल ऐतिहासिक विरासत, क्षेत्र या भू-राजनीतिक रणनीति के मुद्दों के लिए नहीं हो सकता है, बल्कि पूर्वी भाग सहित इस पूरे क्षेत्र में तेल और गैस सहित विशाल हाइड्रोकार्बन का भंडार हो सकता है. इसके अलावा यह क्षेत्र जियो-थर्मल ऊर्जा के लिए बड़ी क्षमता भी प्रस्तुत करता है.

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पूर्वी लद्दाख के अक्साई चिन क्षेत्र के बारे में प्रसिद्ध कथन, 'जहां घास नहीं उगती है' को ज्यादा तरजीह नहीं दी गई है, लेकिन अब अध्ययनों से पता चलता है कि इस ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन भंडार हो सकते हैं.

ऊर्जा की कमी वाले दोनों देशों भारत और चीन के लिए यह अनुमानित भंडार भविष्य की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, क्योंकि दोनों दुनिया के सबसे बड़े तेल आयातक देश हैं. दोनों पेट्रोल-डीजल की अपनी अधिकांश जरूरतें अन्य देशों से पूरी करते हैं.

भारत अपनी जरूरतों का 82 प्रतिशत से अधिक तेल आयात करता है और 2022 तक स्थानीय तेल की खोज, नवीकरणीय ऊर्जा और स्वदेशी इथेनॉल ईंधन के उपयोग का सहारा लेते हुए इसे घटाकर 67 प्रतिशत करने की कोशिश चल रही है. वहीं, चीन अपनी कुल तेल आवश्यकता का लगभग 77 प्रतिशत आयात करता है.

इस विषय के जानकार ओएनजीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया, 'लंबे समय से हम लद्दाख क्षेत्र की क्षमता को जानते थे और यह हाइड्रोकॉर्बन भंडार का बहुत मजबूत क्षेत्र था. इसका कारण यह है कि इस क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा टेथिस सागर का समुद्री तल था, जो प्लेट विवर्तनिक बल (टेक्टोनिक फोर्स) के कारण लाखों वर्षों में पश्चिमी और मध्य हिमालय के रूप में ऊपर उठ गया था. यह प्राकृतिक है कि समुद्र के तल से बने जोन में हाइड्रोकार्बन भंडार होना चाहिए.'

टेथियन हिमालयन जोन लद्दाख के जांस्कर पहाड़ों में 70 किमी चौड़ा क्षेत्र है और भविष्य में शेल गैस/शेल तेल की खोज के लिए सबसे भरोसेमंद लक्ष्य है. यह पूर्व में तिब्बती पठार के दक्षिणी सीमांत से लेकर पश्चिम में जांस्कर पर्वत तक फैला हुआ है. पश्चिमी हिमालय में, कश्मीर, जांस्कर, चंबा और स्पीति में टेथियन हिमालयी उत्तराधिकार अच्छी तरह से उजागर होता है.

सितंबर 2018 में ओएनजीसी, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, जम्मू विश्वविद्यालय, एनी अपस्ट्रीम एंड टेक्निकल सर्विसेज (इटली), पाकिस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा प्रस्तुत शोध रिपोर्ट में इस क्षेत्र में हाइड्रोकार्बन भंडार की मजबूत संभावना को उजागर किया गया था.

77 पन्नों के वैज्ञानिक पत्र 'पेट्रोलियम सिस्टम और भारत तथा पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम हिमालय की हाइड्रोकार्बन क्षमता' में कहा गया है, 'उत्तर-पश्चिम हिमालय को हाइड्रोकार्बन की खोज के लिए संभावित माना जाता है क्योंकि उपयुक्त विवर्तनिक-तलछटी वातावरण में कई स्तरिक स्तरों में पेट्रोलियम सिस्टम तत्वों की उपस्थिति है. इसके अलावा गैस शो और वाणिज्यिक तेल और गैस खोजों की उपस्थिति है.'

यह भी पढ़ें- पूर्वी लद्दाख में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पुल तैयार

रिपोर्ट में कहा गया है, 'जेंस्कर-स्पीति बेसिन में बने मेसोजोइक-टेर्शियरी में चिकनी मिट्टी तलछट में ओएम (कार्बनिक पदार्थ) सामग्री और क्रीटेशस-इओसीन इंडस फॉर्मेशन (Cretaceous-Eocene Indus Formation) के शेल्स संभावित हाइड्रोकार्बन की स्रोत चट्टानें हैं.'

शोध रिपोर्ट के मुताबिक, बेसिनल सिस्टम की आंतरिक बेल्ट में क्षेत्रीय पतन की गतिविधि के दौरान बनीं ट्रैप्स में तेल और गैस के संचय की महत्वपूर्ण क्षमता है और परिणामस्वरूप, हिमालय के ओरोजन वारंट्स की आंतरिक बेल्ट आगे की खोज करती है.'

इसके अलावा रिपोर्ट कहती है, 'उत्तर-पश्चिम हिमालय का भारतीय भाग लंबे समय से हाइड्रोकार्बन के लिए संभावित माना जाता है, क्योंकि इसके उपयुक्त विवर्तनिक-तलछटी वातावरण के कारण, गैस का अस्तित्व सतह पर (उदाहरण के लिए, ज्वालामुखी 'अग्नि मंदिर' में) और उपसतह में दिखाई देता है. मोटे तौर पर समान संरचनात्मक में तेल और गैस खोजों की उपस्थिति.'

यह शोध पत्र उत्तर पश्चिम हिमालय की हाइड्रोकार्बन क्षमता को उजागर करने वाले गंभीर प्रयासों में से एक है.

भौगोलिक अलगाव, उच्च ऊंचाई, अत्यधिक ठंड जैसे कई कारकों ने क्षेत्र के एक व्यापक अध्ययन में बाधा उत्पन्न की है, जिसमें 'बड़े पैमाने पर संरचनात्मक जटिलता और गहन विवर्तनिक विकृति और उच्च गुणवत्ता वाले भूकंपीय क्षेत्र शामिल हैं. जटिल आंतरिक विकृति, खड़ी संरचनाएं और पार्श्व वेग इसकी सटीक छवि बनाने के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हैं.

ओएनजीसी के अधिकारी ने कहा, 'समुचित अन्वेषण के लिए, विस्फोट सहित कई प्रक्रियाओं का संचालन किया जाना है, जो उच्च-ऊंचाई, अत्यंत संवेदनशील और हिमालय के हिमस्खलन वाले क्षेत्रों में संभव नहीं है.'

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