पुरी : भगवान जगन्नात की प्रतिमा का आकार अद्भुत और रहस्यों से भरा हुआ है. इसी तरह उनके भव्य मंदिर में किए जाने वाले अनुष्ठान भी गुप्त रहस्यों का महासागर है. उनमें से एक 'निलाद्री बिज' (रथ महोत्सव के बाद अपने भव्य मंदिर में भगवान की वापसी) से एक दिन पहले और 'सुनै बैशा' (स्वर्ण आभूषणों में भगवान श्री जगन्नाथ की सजावट) के एक दिन बाद एक अनुष्ठान 'अधरपणा' किया जाता है. इस दौरान रथों पर देवताओं को चढ़ाए गए उच्च मिट्टी के बर्तन में रखा जाने वाला पेय पदार्थ दिया जाता है. यह 'अधरपणा' अनुष्ठान देवताओं के रथों पर आडिया महीने के उज्जवल चंद्र पक्ष के तेरहवें दिन किया जाता है.
इस अनुष्ठान के लिए देवताओं के होठ के निचले भाग तक तीन ऊंचे-ऊंचे मिट्टी के बर्तनों को तैयार किया जाता है. क्योकि यह मिट्टी के बर्तन 'पाना' (शरबत) देवताओं के निचले होठों को छूते हैं, इसलिए इस अनुष्ठान को 'अधरपणा' नाम दिया गया है. यह 'अधरपणा' (शरबत का प्रस्ताव) एक बहुत महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो कई सारे रहस्यों से भरा हुआ है. इसके पीछे बहुत सी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं.
यह 'अधरपणा' कई देवी-देवताओं, भजनों, गंधर्वों (स्वर्गीय संगीतकारों), यक्ष (धन-संपत्ति की देखरेख करने वाले देवता), देवी दुर्गा, किन्नर, तारे, भूतों, आत्माओं, महामारियों को नियंत्रित करने और प्रसन्न करने के लिए दी जाती है. क्योकि चाशनी भूतों और आत्माओं को संतुष्ट करने कि लिए होती है. इसलिए इन शरबत वाले मिट्टी के बर्तनों को रथों पर तोड़ा जाता है.
'अधरपणा' अनुष्ठान में कुल नौ मिट्टी के बर्तन, प्रत्येक देवता के लिए तीन शरबत के बर्तन तैयार कर रखे जाते हैं. 'पनिया आपटा' सेवक (जो लोग पानी ढोते हैं) अपने चेहरे पर मास्क लगाकर भव्य मंदिर के मुख्य द्वार के सामने स्थित 'चौनी मठ' (एक धर्मशाला) के कुएं से पानी लाते हैं. पानी को छानने के बाद उसे बड़े पीतल के बर्तनों में रखा जाता है. इसके बाद भगवान के रसोइये और सेवक चाशनी तैयार करते हैं. जिसमें चीनी, दूध, मलाई, पनीर, गुड़, पके केले, काली मिर्च, कपूर और जाय फल के मिश्रण से अधरपणा तैयार किया जाता है.
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इस 'अधरपणा' अनुष्ठान के बाद भगवान के सारे अनुष्ठान पूरे हो जाते हैं. इसके बाद तीनों देवता स्वयं भव्य मंदिर में अपने सिंहासन पर वापस जाने के लिए तैयार हो जाते हैं.