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अब पराली जलाने की जरूरत नहीं, ICAR ने ढूंढ निकाला समाधान

भारतीय किसान अनुसंधान परिषद (ICAR) ने कृषि क्षेत्र में होने वाले प्रदूषण में पराली जलाने को सबसे प्रमुख कारण बताया. साथ ही इससे निपटान के लिये कृषि यंत्रों के निर्माण के बारे में बताया जो ICAR और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने मिलकर बनाए हैं.

अब पराली जलाने की जरूरत नहीं, ICAR ने ढूंढ निकाला समाधान.
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Published : Aug 13, 2019, 8:52 PM IST

Updated : Sep 26, 2019, 9:59 PM IST

नई दिल्ली: कृषि क्षेत्र से होने वाले प्रदूषण में पराली जलाना सबसे प्रमुख कारण रहा है. (ICAR) ने दावा किया है कि तकनीक की मदद से इसे बहुत हद तक नियंत्रण में लाया जा चुका है और आने वाले कुछ सालों में इसे पूरी तरह कम करने का लक्ष्य भी रखा गया है.

आज दिल्ली में मीडिया को संबोधित करते हुए ICAR के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने मिलकर ऐसे कृषि यंत्रों का निर्माण किया है जिनकी मदद से पराली को जमीन में ही छोड़ कर किसान आगे की फसल की बुआई कर सकता है जिसके बाद पराली जलाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी.

देखें वीडियो.

लगभग छह साल के शोध के बाद कुल आठ ऐसे कृषि यंत्र विकसित किये गए हैं जिनमें से हैप्पी सीडर एक प्रमुख यंत्र है.

पढ़ें: 'चायवाला' सुनते ही अब भी कितना भड़कते हैं मणिशंकर, यकीन न हो तो देख लीजिए वीडियो

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 4500 गांवों को अभी तक इस योजना के तहत शामिल कर लिया गया है और इन्हें 'जीरो स्टबल बर्निंग विलेज' भी घोषित किया जा चुका है.

देखें वीडियो.

ICAR ने अपने द्वारा विकसित की गई तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के लिये अनेकों योजनाओं के तहत पिछले कुछ सालों में काम किया है. भारत सरकार ने इन कृषि यंत्रों पर 50 से 80 प्रतिशत तक कि सब्सिडी भी दी है जिसकी वजह से अब ये यंत्र किसानों के बीच पहुंच भी रहे हैं और उनका इस्तेमाल भी खूब हो रहा है.

कुल मिलाकर पराली जलाने की घटनाओं में 41 प्रतिशत तक की कमी आई है.

भारत सरकार ने इस योजना के तहत कुल 1151.8 करोड़ का बजटीय आवंटन किया था, जिसमें से ज्यादातर राशी किसानों को सब्सिडी के माध्यम से लाभ पहुंचाने के लिये दी गई है जिससे कि वो पराली को जलाने की बजाय अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए उसे जमीन में ही रहने दें और प्रदूषण की समस्या से निजात मिल सके.

ICAR के महानिदेशक ने बताया कि आने वाले वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं में भारी कमी आएगी क्योंकि किसान भी अब जागरूक होने लगे हैं और उन्हें पता चल रहा है कि पराली को जलाने से नुकसान है लेकिन उसको जमीन में रहने देने से उनका ही फायदा है.

किसानों को जागरूक करने के लिये भी इस योजना के तहत कई कार्यक्रम चलाए गए और हजारों किसानों को प्रशिक्षण भी दिया गया.

सरकार और कृषि अनुसंधान परिषद के प्रयास अगर जमीन पर भी सही साबित हुए तो आने वाले दिनों में पराली से होने वाले प्रदूषण से दिल्ली और एनसीआर की जनता को भारी निजात मिलने की उम्मीद की जा सकती है.

नई दिल्ली: कृषि क्षेत्र से होने वाले प्रदूषण में पराली जलाना सबसे प्रमुख कारण रहा है. (ICAR) ने दावा किया है कि तकनीक की मदद से इसे बहुत हद तक नियंत्रण में लाया जा चुका है और आने वाले कुछ सालों में इसे पूरी तरह कम करने का लक्ष्य भी रखा गया है.

आज दिल्ली में मीडिया को संबोधित करते हुए ICAR के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने मिलकर ऐसे कृषि यंत्रों का निर्माण किया है जिनकी मदद से पराली को जमीन में ही छोड़ कर किसान आगे की फसल की बुआई कर सकता है जिसके बाद पराली जलाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी.

देखें वीडियो.

लगभग छह साल के शोध के बाद कुल आठ ऐसे कृषि यंत्र विकसित किये गए हैं जिनमें से हैप्पी सीडर एक प्रमुख यंत्र है.

पढ़ें: 'चायवाला' सुनते ही अब भी कितना भड़कते हैं मणिशंकर, यकीन न हो तो देख लीजिए वीडियो

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 4500 गांवों को अभी तक इस योजना के तहत शामिल कर लिया गया है और इन्हें 'जीरो स्टबल बर्निंग विलेज' भी घोषित किया जा चुका है.

देखें वीडियो.

ICAR ने अपने द्वारा विकसित की गई तकनीकों को किसानों तक पहुंचाने के लिये अनेकों योजनाओं के तहत पिछले कुछ सालों में काम किया है. भारत सरकार ने इन कृषि यंत्रों पर 50 से 80 प्रतिशत तक कि सब्सिडी भी दी है जिसकी वजह से अब ये यंत्र किसानों के बीच पहुंच भी रहे हैं और उनका इस्तेमाल भी खूब हो रहा है.

कुल मिलाकर पराली जलाने की घटनाओं में 41 प्रतिशत तक की कमी आई है.

भारत सरकार ने इस योजना के तहत कुल 1151.8 करोड़ का बजटीय आवंटन किया था, जिसमें से ज्यादातर राशी किसानों को सब्सिडी के माध्यम से लाभ पहुंचाने के लिये दी गई है जिससे कि वो पराली को जलाने की बजाय अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए उसे जमीन में ही रहने दें और प्रदूषण की समस्या से निजात मिल सके.

ICAR के महानिदेशक ने बताया कि आने वाले वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं में भारी कमी आएगी क्योंकि किसान भी अब जागरूक होने लगे हैं और उन्हें पता चल रहा है कि पराली को जलाने से नुकसान है लेकिन उसको जमीन में रहने देने से उनका ही फायदा है.

किसानों को जागरूक करने के लिये भी इस योजना के तहत कई कार्यक्रम चलाए गए और हजारों किसानों को प्रशिक्षण भी दिया गया.

सरकार और कृषि अनुसंधान परिषद के प्रयास अगर जमीन पर भी सही साबित हुए तो आने वाले दिनों में पराली से होने वाले प्रदूषण से दिल्ली और एनसीआर की जनता को भारी निजात मिलने की उम्मीद की जा सकती है.

Intro:कृषि क्षेत्र से होने वाले प्रदूषण में पराली जलाना सबसे प्रमुख कारण रहा है । भारतीय किसान अनुसंधान परिषद (ICAR) ने दावा किया है कि तकनीक की मदद से इसे बहुत हद तक नियंत्रण में लाया जा चुका है और आने वाले कुछ सालों में इसे पूरी तरह कम करने का लक्ष्य भी रखा गया है ।
आज दिल्ली में मीडिया को संबोधित करते हुए आईसीएआर के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने मिलकर ऐसे कृषि यंत्रों का निर्माण किया है जिनकी मदद से पराली को जमीन में ही छोड़ कर किसान आगे की फसल की बुआई कर सकता है जिसके बाद पराली जलाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी ।
लगभग छः साल के शोध के बाद कुल आठ ऐसे कृषि यंत्र विकसित किये गए हैं जिनमें से हैप्पी सीडर एक प्रमुख यंत्र है ।
पंजाब , हरियाणा , दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 4500 गाँवों को अभी तक इस योजना के तहत शामिल कर लिया गया है और इन्हें 'जीरो स्टबल बर्निंग विलेज' भी घोषित किया जा चुका है ।
ICAR ने अपने द्वारा विकसित की गई तकनीकों को किसानों तक पहुँचाने के लिये अनेकों योजनाओं के तहत पिछले कुछ सालों में काम किया है । भारत सरकार ने इन कृषि यंत्रों पर 50 से 80% तक कि सब्सिडी भी दी है जिसकी वजह से अब ये यंत्र किसानों के बीच पहुँच भी रहे हैं और उनका इस्तेमाल भी खूब हो रहा है ।
कुल मिलाकर पराली जलाने की घटनाओं में 41% तक कि कमी आई है ।
भारत सरकार ने इस योजना के तहत कुल 1151.8 करोड़ का बजटीय आवंटन किया था जिसमें से ज्यादातर राशी किसानों को सब्सिडी के माध्यम से लाभ पहुंचाने के लिये दी गई है जिससे कि वो पराली को जलाने की बजाय अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करते हुए उसे जमीन में ही रहने दें और प्रदूषण की समस्या से निजात मिल सके ।


Body:आईसीएआर के महानिदेशक ने बताया कि आने वाले वर्षों में पराली जलाने की घटनाओं में भारी कमी आएगी क्योंकि किसान भी अब जागरूक होने लगे हैं और उन्हें पता चल रहा है कि पराली को जलाने से नुकसान है लेकिन उसको जमीन में रहने देने से उनका ही फायदा है ।
किसानों को जागरूक करने के लिये भी इस योजना के तहत कई कार्यक्रम चलाए गए और हजारों किसानों को प्रशिक्षण भी दिया गया ।
सरकार और कृषि अनुसंधान परिषद के प्रयास अगर जमीन पर भी सही साबित हुए तो आने वाले दिनों में पराली से होने वाले प्रदूषण से दिल्ली और एनसीआर की जनता को भारी निजात मिलने की उम्मीद की जा सकती है ।


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Last Updated : Sep 26, 2019, 9:59 PM IST
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