हरिद्वार : पांच अगस्त 2020 की तारीख इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हो जाएगी. यह दिन हर राम भक्त के लिए खास होगा. राम मंदिर आंदोलन में धर्मनगरी हरिद्वार की अहम भूमिका रही है. मां गंगा के दर से ही राम मंदिर निर्माण की पहली अलख जगी थी, जिसने समूचे देश में राम मंदिर बनाने का बिगुल फूंक दिया था. राम मंदिर के राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन खड़ा करने में जिसने अहम भूमिका अदा की थी, जिसे भुलाया नहीं जा सकता. पांच सदी पुराने विवाद का हल पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हुआ. जिससे लोगों की जनभावनाएं जुड़ी हुई हैं.
गौर हो कि राम मंदिर आंदोलन को लेकर पूरे देश में जो तपिश महसूस होती थी, उसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने शांत कर दिया. हिन्दू स्वावलंबियों का राम मंदिर का सपना पूरा हो रहा है. पांच अगस्त को होने जा रहे ऐतिहासिक राम मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम को लेकर शासन और प्रशासन की ओर से तैयारियां अंतिम चरण में हैं. पांच अगस्त को पीएम नरेंद्र मोदी राम मंदिर का भूमि पूजन करेंगे और इसकी आधारशिला रखेंगे.
धर्म संसद ने निभाई अहम भूमिका
राम मंदिर निर्माण को लेकर पूरे देश में उत्साह का माहौल है, क्योंकि लंबी लड़ाई लड़ने के बाद भगवान श्री राम एक बार फिर अपने वनवास को काटकर अयोध्या में टैंट से भव्य मंदिर में विराजमान हो रहे हैं. राम मंदिर निर्माण को लेकर हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों द्वारा बड़े स्तर पर आंदोलन किए गये थे.
धर्मनगरी से हुआ आंदोलन का उद्घोष
राम के नाम से पानी में पत्थर भी तैर जाते हैं. भगवान राम के मंदिर निर्माण को लेकर लंबा आंदोलन चलाना पड़ा. इस आंदोलन में धर्मनगरी हरिद्वार ने मुख्य भूमिका निभाई है. हरिद्वार से ही श्री राम मंदिर निर्माण का पहला उद्घोष हुआ था. राम मंदिर निर्माण के लिए हरिद्वार से आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाले अशोक त्रिपाठी का कहना है कि राम मंदिर निर्माण आंदोलन की शुरुआत पहली बार हरिद्वार की भूमि से ही हुई थी.
समय-समय पर होती रही बैठकें
1986 में विश्व हिंदू परिषद का गठन हुआ था और जनवरी 1989 में राम जन्मभूमि को मुक्त कराने का आंदोलन शुरू किया गया. हरिद्वार में ही विजय जुलूस निकाला गया. हरिद्वार में विश्व हिंदू परिषद द्वारा साधु संतों के साथ मिलकर धर्म संसद का आयोजन किया गया. पहला बड़ा सम्मेलन हरिद्वार के भल्ला कॉलेज मैदान में हुआ था, जिसमें राम जन्म भूमि की मुक्ति के लिए घोषणा की गई, यहीं से आंदोलन की शुरुआत हुई थी. अशोक सिंघल, चंपत राय आचार्य, गिरिराज किशोर और हरिद्वार के प्रमुख संत जिसमें ब्रह्मलीन स्वामी सत्यमित्रानंद, स्वामी चिन्मयानंद महाराज, देव आनंद जी महाराज का बड़ा योगदान रहा है. हरिद्वार से विश्व हिंदू परिषद के राकेश बजरंगी का मंदिर निर्माण आंदोलन में प्रमुख योगदान रहा.
बैठकों में होती थी रणनीति पर चर्चा
हरिद्वार में ही पहली बार राम मंदिर को लेकर घोषणा की गई थी. उसके बाद शिला पूजन का जगह-जगह कार्यक्रम हुआ, इसमें लोगों से सवा रुपए दक्षिणा और शिला ली जाती थी. इसके बाद राम ज्योति यात्रा का चरण चला. यह सभी कार्यक्रम जन आंदोलन के लिए किये गए. अशोक त्रिपाठी का कहना है कि हरिद्वार में धर्म संसद के कार्यक्रम कई बार किए गये, जिसमें अशोक सिंघल के साथ आचार्य गिरिराज किशोर, चंपत राय और साधु-संतों के साथ कई अहम बैठकें हरिद्वार में हुईं.
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गंगा तट से लिया संकल्प
हरिद्वार को राम मंदिर आंदोलन का बड़ा केंद्र इसलिये भी माना जाता है क्योंकि यहां गंगा के तट से जो संकल्प लिया गया साथ ही जो घोषणा की गई उसका व्यापक असर हुआ. अशोक त्रिपाठी का कहना है कि देश में कई नगरी संतों की हैं- अयोध्या, काशी, मथुरा मगर हरिद्वार प्रमुख रूप से धर्म की नगरी जानी जाती है. यहां गंगा का तट है. मां गंगा की गोद से जो उद्घोषणा की गई थी वह आज सफल हुई है. यहां संतों की एक हुंकार से लोग उनके पीछे-पीछे चल पड़ते हैं.
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500 साल की लड़ाई हुई सार्थक
राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य युगपुरुष परमानंद गिरि महाराज का कहना है कि सभी अखाड़ों के साधु संत समय-समय पर हरिद्वार में ही बैठक आयोजित करते आए हैं, जिसमें मार्गदर्शक मंडल और धर्म संसद में पूरे देश से संत हरिद्वार में इकट्ठा होते थे और मार्गदर्शक मंडल में मुख्य संत हिस्सा लेते थे, जिसमें आगे की रणनीति पर मंथन होता था.
गौर हो कि अयोध्या राम मंदिर निर्माण को लेकर जहां पूरे देश में खुशी की लहर है तो वहीं हरिद्वार के लोग भी राम मंदिर निर्माण में हरिद्वार का अहम योगदान होने को लेकर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. अयोध्या में भगवान श्री राम भव्य और सुंदर मंदिर में विराजमान हो जाएंगे. इसके साथ ही भगवान राम के लिए तकरीबन 500 साल की लड़ाई भी सार्थक हो जाएगी.