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असम में 1971 के बाद नहीं आया एक भी शरणार्थी : रिपोर्ट

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Published : Aug 30, 2019, 12:11 AM IST

Updated : Sep 28, 2019, 7:49 PM IST

सीपीएम के वरिष्ठ नेता हन्नान मोल्ला ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि बीजेपी धर्मनिरपेक्ष राजनीति करने के बजाय संप्रदायिकता की राजनीति करती है. पढ़ें पूरी खबर...

हन्नन मोल्ला (फाइल फोटो)

नई दिल्लीः असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की सूची 31अगस्त को प्रकाशित होने वाली है. इसे लेकर एक मानवाधिकार संस्था आरआरएजी (राइट एण्ड रिस्क एनालसिस ग्रुप) की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 1971 के बाद असम में कोई भी शरणार्थी नहीं आए है.

आरआरएजी ने अपनी रिपोर्ट 'फारेनर्स इन असम ए ब्लास्ट फ्राम द पास्ट' में कहा कि असम में पिछले कुछ वर्षों में एक भी शरणार्थी नहीं आए हैं.

भारत की जनगणना में कहा गया था कि 1901 से 1971 के बीच असम में भारी मात्रा में शरणार्थी आए थे, जबकि आरआरएजी यह दावा कर रही है कि 1971 के बाद असम में कोई भी शरणार्थी नहीं आए है.

एनआरसी शरणार्थीओं की जांच के लिए 25 मार्च 1971 को रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाला था. असम में भारत की जनसंख्या के मुकाबले असम में काफी मात्रा में जनसंख्या वृद्धि हुई है.

इस पर आरआरएजी ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया है कि भारत में 1901 से 1971 और 1901 से 2001 की जनगणना में पूरे भारत की जनसंख्या में 12.90 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि इस मुकाबले केवल में असम में 23.95 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई है.

रिपोर्ट में कहा गया है पूरे भारत में जितनी और जनसंख्या वृद्धि होती है, इसकी तुलना में असम में दोगुना होती है.

इतनी भारी मात्रा में जनसंख्या वृद्धि के चलते असम के जनसांख्यिकीय पैटर्न को भी बदल दिया गया था.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि असम की औसत जनसंख्या वृद्धि 1991 से 2011 में गिरावट दर्ज की गई है.

हन्नन मोल्ला एनआरसी पर

असम में 1971 से 2011 के दौरान पूरे भारत की तुलना में औसत जनसंख्या वृद्धि कम हुई है. भारत की औसत जनसंख्या वृद्धि 21.94 और असम की औसत जनसंख्या वृद्धि 20.90 दर्ज की गई है. इससे पता चलता है 1971 के बाद भारत की तुलना में असम की जनसंख्या कम बढ़ी है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि वास्तव में 1971 से 2011 के बीच में पूर्वोत्तर क्षेत्र असम में सबसे कम जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई है.

रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, सीपीएम के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद हन्नान मोल्ला ने ईटीवी भारत को बताया यह एक तथ्य है कि 1971 से पहले बंग्लादेश से काफी मात्रा में शरणार्थी आए थे, लेकिन 1971 के बाद बहुत कम लोग ही आए हैं. उन्होंने सवाल किया कि एनआरसी के प्रकाशन के बाद जो लोग सूची के बाहर हो जायेंगे तो उनका क्या होगा, वो लोग कहां जाएंगे.

उन्होंने कहा कि एनआरसी के प्रकाशन के बाद मानवीय समस्या उत्पन्न होगी. सरकार इस समस्या को कैसे हल करेगी. मोल्ला ने कहा कि इसे सांप्रदायिक तरीके से नहीं हल किया जा सकता है.

इसके साथ ही उन्होंने एनआरसी पर बीजेपी की नीति की आलोचना की और बीजेपी पर आरोप लगाया कि भगवा ब्रिगेड हमेशा धर्मनिरपेक्ष राजनीति करने के बजाय सांप्रदायिक राजनीति करती है.

मोल्ला ने कहा कि इस मामले को संयुक्त राष्ट्र भी नोटिस कर रही है और पूरी दुनिया इस मामले पर नजर रख रही है.

पढ़ेंः असम NRC : अंतिम सूची के प्रकाशन में जल्दबाजी न करे सरकार, सामाजिक कार्यकर्ता की अपील

यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) ने एक बयान में कहा है कि असम में लोगों को एनआरसी के कारण कठिनाई झेलनी पड़ रही है और नागरिकता के धर्म का परिचय देना चिंतनीय है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के आदर्शों के विपरीत है.

नई दिल्लीः असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की सूची 31अगस्त को प्रकाशित होने वाली है. इसे लेकर एक मानवाधिकार संस्था आरआरएजी (राइट एण्ड रिस्क एनालसिस ग्रुप) की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 1971 के बाद असम में कोई भी शरणार्थी नहीं आए है.

आरआरएजी ने अपनी रिपोर्ट 'फारेनर्स इन असम ए ब्लास्ट फ्राम द पास्ट' में कहा कि असम में पिछले कुछ वर्षों में एक भी शरणार्थी नहीं आए हैं.

भारत की जनगणना में कहा गया था कि 1901 से 1971 के बीच असम में भारी मात्रा में शरणार्थी आए थे, जबकि आरआरएजी यह दावा कर रही है कि 1971 के बाद असम में कोई भी शरणार्थी नहीं आए है.

एनआरसी शरणार्थीओं की जांच के लिए 25 मार्च 1971 को रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाला था. असम में भारत की जनसंख्या के मुकाबले असम में काफी मात्रा में जनसंख्या वृद्धि हुई है.

इस पर आरआरएजी ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया है कि भारत में 1901 से 1971 और 1901 से 2001 की जनगणना में पूरे भारत की जनसंख्या में 12.90 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि इस मुकाबले केवल में असम में 23.95 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई है.

रिपोर्ट में कहा गया है पूरे भारत में जितनी और जनसंख्या वृद्धि होती है, इसकी तुलना में असम में दोगुना होती है.

इतनी भारी मात्रा में जनसंख्या वृद्धि के चलते असम के जनसांख्यिकीय पैटर्न को भी बदल दिया गया था.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि असम की औसत जनसंख्या वृद्धि 1991 से 2011 में गिरावट दर्ज की गई है.

हन्नन मोल्ला एनआरसी पर

असम में 1971 से 2011 के दौरान पूरे भारत की तुलना में औसत जनसंख्या वृद्धि कम हुई है. भारत की औसत जनसंख्या वृद्धि 21.94 और असम की औसत जनसंख्या वृद्धि 20.90 दर्ज की गई है. इससे पता चलता है 1971 के बाद भारत की तुलना में असम की जनसंख्या कम बढ़ी है.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि वास्तव में 1971 से 2011 के बीच में पूर्वोत्तर क्षेत्र असम में सबसे कम जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई है.

रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, सीपीएम के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद हन्नान मोल्ला ने ईटीवी भारत को बताया यह एक तथ्य है कि 1971 से पहले बंग्लादेश से काफी मात्रा में शरणार्थी आए थे, लेकिन 1971 के बाद बहुत कम लोग ही आए हैं. उन्होंने सवाल किया कि एनआरसी के प्रकाशन के बाद जो लोग सूची के बाहर हो जायेंगे तो उनका क्या होगा, वो लोग कहां जाएंगे.

उन्होंने कहा कि एनआरसी के प्रकाशन के बाद मानवीय समस्या उत्पन्न होगी. सरकार इस समस्या को कैसे हल करेगी. मोल्ला ने कहा कि इसे सांप्रदायिक तरीके से नहीं हल किया जा सकता है.

इसके साथ ही उन्होंने एनआरसी पर बीजेपी की नीति की आलोचना की और बीजेपी पर आरोप लगाया कि भगवा ब्रिगेड हमेशा धर्मनिरपेक्ष राजनीति करने के बजाय सांप्रदायिक राजनीति करती है.

मोल्ला ने कहा कि इस मामले को संयुक्त राष्ट्र भी नोटिस कर रही है और पूरी दुनिया इस मामले पर नजर रख रही है.

पढ़ेंः असम NRC : अंतिम सूची के प्रकाशन में जल्दबाजी न करे सरकार, सामाजिक कार्यकर्ता की अपील

यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) ने एक बयान में कहा है कि असम में लोगों को एनआरसी के कारण कठिनाई झेलनी पड़ रही है और नागरिकता के धर्म का परिचय देना चिंतनीय है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के आदर्शों के विपरीत है.

Intro:New Delhi: With just a day left for the publication of final National Register of Citizen (NRC) in Assam, Rights and Risks Analysis Group (RRAG), a human rights watchdog said that no noticeable influx of foreigners took place after 1971 in Assam.


Body:The RRAG in its report "Foreigners in Assam a Blast from the Past" stated that the reports of the census of India clearly states that there was a mammoth influx of immigrants from 1901 to 1971 but "no noticeable influx of foreigners into Assam in the post 1971 period took place."

NRC in Assam is going to be published recognising March 25, 1971 as the cut off date for recognition of migrants as Citizens of India.

The report stated, as per the decadal variation in population since 1901 to 2011 of the census of India, from 1901 to 1971, Assam's average decades population growth rate was 23.95 percent against all India average decadel population growth rate of 12.90 percent.

"The average decadel growth rate of population in Assam was almost double of all India percentage and it changed the demographic pattern of Assam," said the report.

The report further stated that the census of India's decadal variation in population since 1901to 2011 also states that Assam has consistently registered lower decadel population growth rate than all India during 1971 to 2011 and Assam recorded average decadel population growth rate of 20.90 percent against all India average of 21.94 percent.

"In fact, from 1971 to 2011, Assam had the lowest average decadel population growth rate in the northeastern region," said the report.

Reacting over the report, senior CPM leader and former MP, Hannan Mollah told ETV Bharat, "It is a fact that there was a large scale influx from Bangladesh before 1971. But after 1971 the influx was minimal."

"After publication of NRC, India may face a humanaterian crisis as what will happen to the people who will be excluded from the NRC list," said Mollah.


Conclusion:Criticising BJP, Mollah alleged that the saffron brigade always peruse a "communal politics" instead of a secular politics.

"The issue has also some to the notice of United Nations...entire world is looking in to this matter...' said Mollah.

The United States Commission on International Religious Freedom (USCIRF) in a statement said, "We remain concerned with with potential abuse of the NRC in Assam and the resulting introductions of a religious requirement for citizenship, which are contrary to the ideals of religious freedom in India."

In fact, a June 2018 joint letter by four United Nations special rapporteur on freedom of religion or belief, argued that the updated NRC could be used to disenfranchise Muslims in the region and is part of Government's on going efforts to introduce a "religious test" specially aimed at clearing out Muslims.

end.
Last Updated : Sep 28, 2019, 7:49 PM IST
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