नई दिल्लीः असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की सूची 31अगस्त को प्रकाशित होने वाली है. इसे लेकर एक मानवाधिकार संस्था आरआरएजी (राइट एण्ड रिस्क एनालसिस ग्रुप) की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 1971 के बाद असम में कोई भी शरणार्थी नहीं आए है.
आरआरएजी ने अपनी रिपोर्ट 'फारेनर्स इन असम ए ब्लास्ट फ्राम द पास्ट' में कहा कि असम में पिछले कुछ वर्षों में एक भी शरणार्थी नहीं आए हैं.
भारत की जनगणना में कहा गया था कि 1901 से 1971 के बीच असम में भारी मात्रा में शरणार्थी आए थे, जबकि आरआरएजी यह दावा कर रही है कि 1971 के बाद असम में कोई भी शरणार्थी नहीं आए है.
एनआरसी शरणार्थीओं की जांच के लिए 25 मार्च 1971 को रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाला था. असम में भारत की जनसंख्या के मुकाबले असम में काफी मात्रा में जनसंख्या वृद्धि हुई है.
इस पर आरआरएजी ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कहा गया है कि भारत में 1901 से 1971 और 1901 से 2001 की जनगणना में पूरे भारत की जनसंख्या में 12.90 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि इस मुकाबले केवल में असम में 23.95 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई है.
रिपोर्ट में कहा गया है पूरे भारत में जितनी और जनसंख्या वृद्धि होती है, इसकी तुलना में असम में दोगुना होती है.
इतनी भारी मात्रा में जनसंख्या वृद्धि के चलते असम के जनसांख्यिकीय पैटर्न को भी बदल दिया गया था.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि असम की औसत जनसंख्या वृद्धि 1991 से 2011 में गिरावट दर्ज की गई है.
असम में 1971 से 2011 के दौरान पूरे भारत की तुलना में औसत जनसंख्या वृद्धि कम हुई है. भारत की औसत जनसंख्या वृद्धि 21.94 और असम की औसत जनसंख्या वृद्धि 20.90 दर्ज की गई है. इससे पता चलता है 1971 के बाद भारत की तुलना में असम की जनसंख्या कम बढ़ी है.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि वास्तव में 1971 से 2011 के बीच में पूर्वोत्तर क्षेत्र असम में सबसे कम जनसंख्या वृद्धि दर्ज की गई है.
रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, सीपीएम के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद हन्नान मोल्ला ने ईटीवी भारत को बताया यह एक तथ्य है कि 1971 से पहले बंग्लादेश से काफी मात्रा में शरणार्थी आए थे, लेकिन 1971 के बाद बहुत कम लोग ही आए हैं. उन्होंने सवाल किया कि एनआरसी के प्रकाशन के बाद जो लोग सूची के बाहर हो जायेंगे तो उनका क्या होगा, वो लोग कहां जाएंगे.
उन्होंने कहा कि एनआरसी के प्रकाशन के बाद मानवीय समस्या उत्पन्न होगी. सरकार इस समस्या को कैसे हल करेगी. मोल्ला ने कहा कि इसे सांप्रदायिक तरीके से नहीं हल किया जा सकता है.
इसके साथ ही उन्होंने एनआरसी पर बीजेपी की नीति की आलोचना की और बीजेपी पर आरोप लगाया कि भगवा ब्रिगेड हमेशा धर्मनिरपेक्ष राजनीति करने के बजाय सांप्रदायिक राजनीति करती है.
मोल्ला ने कहा कि इस मामले को संयुक्त राष्ट्र भी नोटिस कर रही है और पूरी दुनिया इस मामले पर नजर रख रही है.
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यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) ने एक बयान में कहा है कि असम में लोगों को एनआरसी के कारण कठिनाई झेलनी पड़ रही है और नागरिकता के धर्म का परिचय देना चिंतनीय है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के आदर्शों के विपरीत है.