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जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना, नोटबंदी की ही तरह बड़ी गलती : शबनम हाशमी - अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर पर रिपोर्ट

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और विशेष राज्य का दर्जा हटाये जाने के बाद घाटी में उपजी परिस्थितियों के मद्देनजर देश के कुछ बुद्धजीवियों ने जम्मू-कश्मीर की जमीनी हकीकत को लेकर एक रिपोर्ट पेश की है. इस रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू व कश्मीर, दोनों जगहों के लोग विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने को लेकर नराज हैं. पढ़ें पूरी खबर...

रिपोर्ट पेश करती टीम
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Published : Oct 12, 2019, 10:08 PM IST

नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के 60 दिन से अधिक हो गये हैं. देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े बुद्धिजीवियों की टीम ने प्रदेश के जमीनी स्तर पर एक रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जम्मू कश्मीर के लोग खुद को हाशिए पर धकेला हुआ मान रहे हैं. वे सरकार के इस निर्णय से अशांत व नाराज हैं और स्वयं को अपमानित महसूस कर रहे हैं.

बता दें, टीम में अनिरुद्ध कला (मनोचिकित्सक) ब्राइनेल डिसूजा (शिक्षक), रेवती लॉल (पत्रकार) और शबनम हाशमी (सामाजिक कार्यकर्ता) शामिल है. इस टीम ने शनिवार को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में संवाददाताओं को रिपोर्ट के बारे में जानकारी दी.

गौरतलब है कि टीम के सदस्यों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया, ताकि अनुच्छेद 370 के हटाये जाने के बाद के प्रभाव को जान सकें. उन्होंने सुरक्षा घेरा, लोगों की नाकाबंदी और संचार को लेकर 76 पेज की एक रिपोर्ट तैयार की है. जिसका नाम है - कश्मीर सिविल डिसऑबिडिएंस (KashmirCivilDisobedience) है.इसमें कश्मीर के लोगों के अघात, प्रतिरोध, भय जैसे मुद्दों को ध्यान में रखा गया है.

जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी देती बुद्धिजीवियों की टीम.

सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी कहा, 'हर कश्मीरी के दिल में यही एक तमन्ना है कि क्या हिन्दुस्तान में रहने वाले लोग उसके बारे में सोच रहे हैं, जो हमारे ऊपर बीत रहा है. क्या हिन्दूस्तानियों की समझ में आ रहा है कि दो महीना बगैर इंटरनेट बगैर मोबाइल बगैर टेलीफोन और बगैर वाईफाई के जीने का मतलब क्या होता है. जब किसी की मौत हो जाती है. मां के जनाजे में उसकी बेटी और बेटा नहीं पंहुच पाए तो उसका मतलब क्या होता है.'

उन्होंने आगे कहा कि '370 को हटाया जाना, बिना दिमाग का काम है. भाजपा सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटा कर बहुत बड़ी गलती की है, यह गलती नोट बंदी की तरह है जिसका परिणाम देर से आएगा'.

रेवती लॉल ने कहा कि 'कश्मीर के नेता प्रेस कांफ्रेस करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने नहीं करने दिया. जम्मू के लोग कश्मीर से ज्यादा सदमे में हैं क्योंकि उन्हें कहा गया है कि आपको अनुच्छेद 370 पर खुशियां मनानी होंगी'.

पढ़ेंः जम्मू-कश्मीर में सेना भर्ती के लिए रैली का आयोजन, हजारों युवाओं ने की शिरकत

उन्होंने कहा कि 'जम्मू के लोगों ने हमसे कहा कि सरकार के इस फैसले से हमारा व्यापार ठप हो गया है. हमारा 50 फीसदी कारोबार कश्मीर पर आधारित है. अगर कश्मीर का दरबार (प्रशासनिक अमला) यहां आता है तो सेब बिकते हैं और कपड़े बिकते हैं. इसके साथ अन्य वस्तुएं भी बिकती हैं. कुल मिलाकर देखें तो यदि कश्मीर की एक आंख गई है तो जम्मू की दोनों आंखें चली गई हैं.'

नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के 60 दिन से अधिक हो गये हैं. देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े बुद्धिजीवियों की टीम ने प्रदेश के जमीनी स्तर पर एक रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जम्मू कश्मीर के लोग खुद को हाशिए पर धकेला हुआ मान रहे हैं. वे सरकार के इस निर्णय से अशांत व नाराज हैं और स्वयं को अपमानित महसूस कर रहे हैं.

बता दें, टीम में अनिरुद्ध कला (मनोचिकित्सक) ब्राइनेल डिसूजा (शिक्षक), रेवती लॉल (पत्रकार) और शबनम हाशमी (सामाजिक कार्यकर्ता) शामिल है. इस टीम ने शनिवार को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में संवाददाताओं को रिपोर्ट के बारे में जानकारी दी.

गौरतलब है कि टीम के सदस्यों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया, ताकि अनुच्छेद 370 के हटाये जाने के बाद के प्रभाव को जान सकें. उन्होंने सुरक्षा घेरा, लोगों की नाकाबंदी और संचार को लेकर 76 पेज की एक रिपोर्ट तैयार की है. जिसका नाम है - कश्मीर सिविल डिसऑबिडिएंस (KashmirCivilDisobedience) है.इसमें कश्मीर के लोगों के अघात, प्रतिरोध, भय जैसे मुद्दों को ध्यान में रखा गया है.

जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी देती बुद्धिजीवियों की टीम.

सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी कहा, 'हर कश्मीरी के दिल में यही एक तमन्ना है कि क्या हिन्दुस्तान में रहने वाले लोग उसके बारे में सोच रहे हैं, जो हमारे ऊपर बीत रहा है. क्या हिन्दूस्तानियों की समझ में आ रहा है कि दो महीना बगैर इंटरनेट बगैर मोबाइल बगैर टेलीफोन और बगैर वाईफाई के जीने का मतलब क्या होता है. जब किसी की मौत हो जाती है. मां के जनाजे में उसकी बेटी और बेटा नहीं पंहुच पाए तो उसका मतलब क्या होता है.'

उन्होंने आगे कहा कि '370 को हटाया जाना, बिना दिमाग का काम है. भाजपा सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटा कर बहुत बड़ी गलती की है, यह गलती नोट बंदी की तरह है जिसका परिणाम देर से आएगा'.

रेवती लॉल ने कहा कि 'कश्मीर के नेता प्रेस कांफ्रेस करना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने नहीं करने दिया. जम्मू के लोग कश्मीर से ज्यादा सदमे में हैं क्योंकि उन्हें कहा गया है कि आपको अनुच्छेद 370 पर खुशियां मनानी होंगी'.

पढ़ेंः जम्मू-कश्मीर में सेना भर्ती के लिए रैली का आयोजन, हजारों युवाओं ने की शिरकत

उन्होंने कहा कि 'जम्मू के लोगों ने हमसे कहा कि सरकार के इस फैसले से हमारा व्यापार ठप हो गया है. हमारा 50 फीसदी कारोबार कश्मीर पर आधारित है. अगर कश्मीर का दरबार (प्रशासनिक अमला) यहां आता है तो सेब बिकते हैं और कपड़े बिकते हैं. इसके साथ अन्य वस्तुएं भी बिकती हैं. कुल मिलाकर देखें तो यदि कश्मीर की एक आंख गई है तो जम्मू की दोनों आंखें चली गई हैं.'

Intro:New Delhi: 60 days after the reading down of Article 370, a ground report prepared by a team of intellectuals from different professional backgrounds, claims, "Kashmir is on edge- humiliated, angry, disturbed and disrobed."


Body:A team consisting of a Anirudh Kala, a psychiatrist, Brinelle Dsouza, an academic, Revati Laul, a journalist and Shabnam Hashmi, a social activist, visited Jammu and Kashmir to know about the impact of the abrogation of Article 370 and the subsequent security clampdown and communication blockade on the lives of people living there. They've prepared a 76 page report, namely #KashmirCivilDisobedience, which covered the trauma, resistance, resilience and fear among the people of J&K.

While addressing the media, Shabnam Hashmi said, "The fact that there has been no violence in that area, has to do with the resilience of people. It is an active and collective choice being exercised each day, to observe civil disobedience. In feeling rejected and betrayed by the Indian state, Kashmiris have chosen to respond back, through a largely non-violent protest."

"Most people we met told us they were keeping their shops and offices closed not under any call by militants or separatists or political leaders but as an act of resistance against the Indian state. This decision has been taken by the individuals across Kashmir, largely on their own," she added.

Revati Laul claimed that people living in Kashmir are no longer interested in an interaction with the Indian state. "There is an atmosphere of fear not just in the Valley but in Jammu as well. Students feel that they won't be able to get jobs after the abrogation of Article 370. They are not raising their voice in the fear of getting lynched," she said.

She also claimed that the people of Jammu are forced to celebrate the decision. "Kashmir has had one eye taken out, Jammu has has both eyes removed. Along with the tourism, even trade has got affected in the region of Jammu."


Conclusion:The group has also claimed that the government's decision has affected the health of people enormously. "There is no internet services, no transportation available in the Valley. Even the Asha workers are not able to go to their workplaces because of which people are not getting adequate medical services."
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