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देवी बाट मंगला ने भगवान ब्रह्मा को दिखाया था पुरी का रास्ता

पुरी के मुख्य मंदिर के रास्ते में मां बाट मंगला देवी का मंदिर स्थापित है. देवी बाट मंगला के बारे में कहा जाता है कि वह श्रद्धालुओं को भगवान जगन्नाथ के मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बताती हैं. इस मंदिर के पीछे भी वर्षों पुरानी कहानी है. पुरी आने-जाने वाले भक्त रास्ते में देवी बाट मंगला के दर्शन जरूर करते हैं. इनके दर्शन से देवी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. पढ़ें पूरी खबर...

goddes Bata Mangala
देवी बाट मंगला
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Published : Jun 29, 2020, 8:10 PM IST

पुरी : मंदिरों के पवित्र शहर पुरी आने वाले तीत्रयात्रियों को कालिया ठाकुर के दर्शन की बेसब्री रहती है. उत्सुकता में वह पवित्र मंदिर का रास्ता याद करते हैं. इसी रास्ते पर एक देवी विराजमान हैं, जो श्रद्धालुओं और आस्थावानों को भगवान जगन्नाथ के पास ले जाती हैं. इन्हें देवी बाट मंगला (पवित्र माता) के नाम से जाना जाता है. देवी बाट मंगला परोपकारी हैं, जो हमेशा मानवता की भलाई करती हैं. बाट मंगला देवी का निवास स्थान शंख क्षेत्र (मंदिरों के शहर पुरी) के रास्ते में पड़ता है. पवित्र शहर में प्रवेश करने से पहले भक्त यहां रुकते हैं और मां बाट मंगला देवी का आशीर्वाद लेकर पुरी जाते हैं. मां के दर्शन के उपरांत ही पुरी की यात्रा की शुरुआत होती है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार मां बाट मंगला की उत्पत्ति असाधारण और अद्भुत है. पुराणों (पौराणिक पुस्तकों) के अनुसार, श्री जगन्नाथ मंदिर में अभिषेक करने के लिए राजा इंद्रद्युम्न स्वर्ग में भगवान ब्रह्मा के निवास पर गए थे. उन्हें अनुष्ठान करने के लिए पृथ्वी पर आमंत्रित किया गया था. जब राजा इन्द्रद्युम्न और भगवान ब्रह्मा पृथ्वी पर अवतरित हुए, तब वे श्री क्षेत्र (पुरी के पवित्र भूमि) का रास्ता भूल गए थे. वहीं पुरी के रास्ते पर एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठीं मां बाट मंगला ने गंतव्य तक पहुंचने के लिए उनका मार्गदर्शन किया.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

मां बाट मंगला से जुड़ी एक और कहानी है. कहा जाता है कि राजा इंद्रद्युम्न के आदेश पर विद्यापति देवताओं को गढ़ने के लिए पवित्र लकड़ी की गांठ की तलाश में निकले थे. लेकिन पुरी लौटते समय वह रास्ता भटक गए, तब मां बाट मंगला ने विद्यापति को राजा के महल तक पहुंचाया था.

देवी मां बाट मंगला के चार हाथ हैं. वह कमल की पंखुड़ी के अपने सिंहासन पर विराजमान हैं. नीचे की तरफ उनके दो हाथ खुले हैं, जो भक्तों के मन से भय दूर करने का संकेत दिखाते हैं. शेष दो हाथ ऊपर की ओर है. उनके दाएं हाथ में एक शंख है. उन्होंने अपने बाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है. मां बाट मंगला की छवि दो फीट से अधिक ऊंचे काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी है. यह एक शानदार, सुंदर और मनमोहक छवि है. भगवान जगन्नाथ के नव कलेबर (देवताओं की नई आकृतियों के निर्माण को चिह्नित करने वाला त्योहार) के लिए बैलगाड़ी में जब पवित्र लकड़ी की गांठें ले जाई जाती हैं तो लोग मां बाट मंगला मंदिर के निकट रुकते हैं और वहां देवी का अनुष्ठान किया जाता है और प्रसाद चढ़ाया जाता है.

पढ़ें- पारंपरिक महरी नृत्य व देवदासियों का जगन्नाथ संस्कृति में अहम स्थान

श्रद्धालु सभी बाधाओं, पीड़ा और दुखों से राहत पाने के लिए मां बाट मंगला के चरणों में शरण लेते हैं. सभी भक्त और आस्थावान पुरी जाते और आते वक्त मां बाट मंगला मदिर के पास रुकते हैं. वहां मिट्टी के दीये जलाते हैं. फूल-माला चढ़ाते हैं और देवी की पूजा करते हैं. इस मंदिर में श्रद्धालु अपने नए वाहनों की पूजा करते हैं और वाहनों पर देवी के शरीर का पवित्र सिंदूर लगाकर उनसे आशीर्वाद मांगते हैं.

पुरी : मंदिरों के पवित्र शहर पुरी आने वाले तीत्रयात्रियों को कालिया ठाकुर के दर्शन की बेसब्री रहती है. उत्सुकता में वह पवित्र मंदिर का रास्ता याद करते हैं. इसी रास्ते पर एक देवी विराजमान हैं, जो श्रद्धालुओं और आस्थावानों को भगवान जगन्नाथ के पास ले जाती हैं. इन्हें देवी बाट मंगला (पवित्र माता) के नाम से जाना जाता है. देवी बाट मंगला परोपकारी हैं, जो हमेशा मानवता की भलाई करती हैं. बाट मंगला देवी का निवास स्थान शंख क्षेत्र (मंदिरों के शहर पुरी) के रास्ते में पड़ता है. पवित्र शहर में प्रवेश करने से पहले भक्त यहां रुकते हैं और मां बाट मंगला देवी का आशीर्वाद लेकर पुरी जाते हैं. मां के दर्शन के उपरांत ही पुरी की यात्रा की शुरुआत होती है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार मां बाट मंगला की उत्पत्ति असाधारण और अद्भुत है. पुराणों (पौराणिक पुस्तकों) के अनुसार, श्री जगन्नाथ मंदिर में अभिषेक करने के लिए राजा इंद्रद्युम्न स्वर्ग में भगवान ब्रह्मा के निवास पर गए थे. उन्हें अनुष्ठान करने के लिए पृथ्वी पर आमंत्रित किया गया था. जब राजा इन्द्रद्युम्न और भगवान ब्रह्मा पृथ्वी पर अवतरित हुए, तब वे श्री क्षेत्र (पुरी के पवित्र भूमि) का रास्ता भूल गए थे. वहीं पुरी के रास्ते पर एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठीं मां बाट मंगला ने गंतव्य तक पहुंचने के लिए उनका मार्गदर्शन किया.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

मां बाट मंगला से जुड़ी एक और कहानी है. कहा जाता है कि राजा इंद्रद्युम्न के आदेश पर विद्यापति देवताओं को गढ़ने के लिए पवित्र लकड़ी की गांठ की तलाश में निकले थे. लेकिन पुरी लौटते समय वह रास्ता भटक गए, तब मां बाट मंगला ने विद्यापति को राजा के महल तक पहुंचाया था.

देवी मां बाट मंगला के चार हाथ हैं. वह कमल की पंखुड़ी के अपने सिंहासन पर विराजमान हैं. नीचे की तरफ उनके दो हाथ खुले हैं, जो भक्तों के मन से भय दूर करने का संकेत दिखाते हैं. शेष दो हाथ ऊपर की ओर है. उनके दाएं हाथ में एक शंख है. उन्होंने अपने बाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है. मां बाट मंगला की छवि दो फीट से अधिक ऊंचे काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी है. यह एक शानदार, सुंदर और मनमोहक छवि है. भगवान जगन्नाथ के नव कलेबर (देवताओं की नई आकृतियों के निर्माण को चिह्नित करने वाला त्योहार) के लिए बैलगाड़ी में जब पवित्र लकड़ी की गांठें ले जाई जाती हैं तो लोग मां बाट मंगला मंदिर के निकट रुकते हैं और वहां देवी का अनुष्ठान किया जाता है और प्रसाद चढ़ाया जाता है.

पढ़ें- पारंपरिक महरी नृत्य व देवदासियों का जगन्नाथ संस्कृति में अहम स्थान

श्रद्धालु सभी बाधाओं, पीड़ा और दुखों से राहत पाने के लिए मां बाट मंगला के चरणों में शरण लेते हैं. सभी भक्त और आस्थावान पुरी जाते और आते वक्त मां बाट मंगला मदिर के पास रुकते हैं. वहां मिट्टी के दीये जलाते हैं. फूल-माला चढ़ाते हैं और देवी की पूजा करते हैं. इस मंदिर में श्रद्धालु अपने नए वाहनों की पूजा करते हैं और वाहनों पर देवी के शरीर का पवित्र सिंदूर लगाकर उनसे आशीर्वाद मांगते हैं.

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