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3200 वर्षों से वैश्विक जलवायु में परिवर्तन, जानें भारतीय मानसून पर इसका असर

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Published : Oct 2, 2020, 1:07 PM IST

Updated : Oct 2, 2020, 1:21 PM IST

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) का एक ताजा अध्ययन कहता है कि पिछले 3200 वर्षों में हुईं वैश्विक जलवायु की घटनाएं भू आकृति, वनस्पतियों एवं सामाजिक-आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून में बदलाव का कारक हो सकती हैं.

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भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून में बदलाव

हैदराबाद : भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (आईएसएम) में अचानक बदलाव के साथरोमन वॉर्म पीरियड, मिडिवल क्लाइमेट एनोमली और थोड़ा हिमयुग (Little Ice Age) जैसी वैश्विक जलवायु संबंधी घटनाओं का भारत की भू आकृति, वनस्पतियों एवं सामाजिक-आर्थिक विकास पर अहम प्रभाव पड़ सकता है.

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) द्वारा किया गया एक नया अध्ययन 1200 और 550 ईसा पूर्व के बीच उत्तर-पश्चिमी हिमालय में गीले मानसून की स्थिति को दर्शाता है. यह स्थिति 450 ईसवी तक बनी रही, जो कि रोमन वार्म पीरियड (आरडब्ल्यूपी) के साथ जुड़ती थी. इसके बाद, 950 ईस्वी तक कम वर्षा एवं एक कमजोर आईएसएम वाली स्थिति आई और फिर 950 से 1350 ईस्वी के बीच मिडिवल क्लाइमेट एनोमली (एमसीए) के दौरान इसमें मजबूती दिखी. थोड़े हिमयुग के काल में, मानसूनी बारिश में साफतौर पर कमी आई.

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वनस्पतियों एवं सामाजिक-आर्थिक विकास पर पड़ रहा प्रभाव

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के एक मीठे पानी रेवाल्सर झील के तलछट के साथ किए गए इस अध्ययन से वैज्ञानिकों के बीच इस किस्म की घटनाओं के स्थानीय या वैश्विक होने के बारे में चल रही लंबी बहस का हल निकल सकता है. इस झील के तलछट उन संकेतों को संरक्षित करते हैं, जिन्हें अतीत में मानसून की परिवर्तनशीलता को समझने के लिए प्रतिनिधि के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

'क्वाटरनेरी इंटरनेशनल' (Quaternary International) जर्नल में प्रकाशित इस हालिया अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने अनाज के आकार संबंधित आंकड़े, कार्बन एवं नाइट्रोजन के स्थिर आइसोटोप, कुल जैविक कार्बन (टीओसी), और झील के तलछट से कुल नाइट्रोजन संबंधी आंकड़े प्राप्त किए. उन्होंने पिस्टन कोरर का इस्तेमाल करके लगभग 6.5 मीटर की पानी की गहराई पर झील के केंद्र से 15-मीटर की लंबाई वाली तलछट कोर को पुनः प्राप्त किया, जिसका उपयोग एक नमूने के रूप में किया गया. तब रेवाल्सर झील के तलछट का कालक्रम एक्सीलरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (किसी दुर्लभ समस्थानिक को एक प्रचुर पड़ोसी द्रव्यमान से अलग करने वाले द्रव्यमान स्पेक्ट्रोमेट्री का एक रूप) (एएमएस) एवं 14 नमूनों के 14सी रेडियोकार्बन डेटके आधार पर 2950 से लेकर 200 साल पहले का निर्धारित किया गया.

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ग्रीष्मकालीन मानसून में हो रहा बदलाव

कुल जैविक कार्बन टीओसी एवं कुल नाइट्रोजन टीएन की गणना, औरकार्बन समस्थानिक अनुपात के मूल्यों में गिरावट ने 1200 से 550 ईसा पूर्व के अंतराल के दौरान उत्तर-पश्चिमी हिमालय में गीला मानसून की स्थिति का संकेत दिया. यह स्थिति 450 ईस्वी तक बनी रही, जोकि रोमन वार्म पीरियड (आरडब्ल्यूपी) के साथ जुड़ती थी. इसके बाद 950 ईस्वी तक कम वर्षा और एक कमजोर आईएसएम का काल था.

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वैश्विक जलवायु घटनाएं हैं जिम्मेदार

यह भी पढ़ें- वर्चस्व की लड़ाई : अंतरिक्ष में शुरू हुई खनन करने की होड़

950 से 1350 ईस्वी के बीच मिडिवल क्लाइमेट एनोमली (एमसीए) के दौरान आईएसएमतुलनात्मक रूप से मजबूत हो गया. थोड़े हिमयुग के दौरान, आईएसएम की वर्षा में अपेक्षाकृत कमी देखी गई, जैसाकि अपेक्षाकृत कम सी / एन अनुपात तथा टीओसी सामग्री में कमी से संकेत मिलता है. इन निष्कर्षों ने थोड़े हिमयुग काल के बाद 1600 ईस्वी के आसपास एक मजबूत आईएसएम के साथ गीली जलवायु परिस्थितियों के पुनरुत्थान की ओर इशारा किया, जो कि वर्तमान समय में कायम है. आईएसएम केवर्तमान तथा भविष्यके व्यवहार को समझने के लिए ऐतिहासिक अतीत में आईएसएम की परिवर्तनशीलता का पता लगाने की जरूरत है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन और पानी की आपूर्ति ने प्राचीन सभ्यताओं के उत्थान और पतन को निर्देशित किया है.

हैदराबाद : भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (आईएसएम) में अचानक बदलाव के साथरोमन वॉर्म पीरियड, मिडिवल क्लाइमेट एनोमली और थोड़ा हिमयुग (Little Ice Age) जैसी वैश्विक जलवायु संबंधी घटनाओं का भारत की भू आकृति, वनस्पतियों एवं सामाजिक-आर्थिक विकास पर अहम प्रभाव पड़ सकता है.

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) द्वारा किया गया एक नया अध्ययन 1200 और 550 ईसा पूर्व के बीच उत्तर-पश्चिमी हिमालय में गीले मानसून की स्थिति को दर्शाता है. यह स्थिति 450 ईसवी तक बनी रही, जो कि रोमन वार्म पीरियड (आरडब्ल्यूपी) के साथ जुड़ती थी. इसके बाद, 950 ईस्वी तक कम वर्षा एवं एक कमजोर आईएसएम वाली स्थिति आई और फिर 950 से 1350 ईस्वी के बीच मिडिवल क्लाइमेट एनोमली (एमसीए) के दौरान इसमें मजबूती दिखी. थोड़े हिमयुग के काल में, मानसूनी बारिश में साफतौर पर कमी आई.

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वनस्पतियों एवं सामाजिक-आर्थिक विकास पर पड़ रहा प्रभाव

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के एक मीठे पानी रेवाल्सर झील के तलछट के साथ किए गए इस अध्ययन से वैज्ञानिकों के बीच इस किस्म की घटनाओं के स्थानीय या वैश्विक होने के बारे में चल रही लंबी बहस का हल निकल सकता है. इस झील के तलछट उन संकेतों को संरक्षित करते हैं, जिन्हें अतीत में मानसून की परिवर्तनशीलता को समझने के लिए प्रतिनिधि के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

'क्वाटरनेरी इंटरनेशनल' (Quaternary International) जर्नल में प्रकाशित इस हालिया अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने अनाज के आकार संबंधित आंकड़े, कार्बन एवं नाइट्रोजन के स्थिर आइसोटोप, कुल जैविक कार्बन (टीओसी), और झील के तलछट से कुल नाइट्रोजन संबंधी आंकड़े प्राप्त किए. उन्होंने पिस्टन कोरर का इस्तेमाल करके लगभग 6.5 मीटर की पानी की गहराई पर झील के केंद्र से 15-मीटर की लंबाई वाली तलछट कोर को पुनः प्राप्त किया, जिसका उपयोग एक नमूने के रूप में किया गया. तब रेवाल्सर झील के तलछट का कालक्रम एक्सीलरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (किसी दुर्लभ समस्थानिक को एक प्रचुर पड़ोसी द्रव्यमान से अलग करने वाले द्रव्यमान स्पेक्ट्रोमेट्री का एक रूप) (एएमएस) एवं 14 नमूनों के 14सी रेडियोकार्बन डेटके आधार पर 2950 से लेकर 200 साल पहले का निर्धारित किया गया.

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ग्रीष्मकालीन मानसून में हो रहा बदलाव

कुल जैविक कार्बन टीओसी एवं कुल नाइट्रोजन टीएन की गणना, औरकार्बन समस्थानिक अनुपात के मूल्यों में गिरावट ने 1200 से 550 ईसा पूर्व के अंतराल के दौरान उत्तर-पश्चिमी हिमालय में गीला मानसून की स्थिति का संकेत दिया. यह स्थिति 450 ईस्वी तक बनी रही, जोकि रोमन वार्म पीरियड (आरडब्ल्यूपी) के साथ जुड़ती थी. इसके बाद 950 ईस्वी तक कम वर्षा और एक कमजोर आईएसएम का काल था.

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वैश्विक जलवायु घटनाएं हैं जिम्मेदार

यह भी पढ़ें- वर्चस्व की लड़ाई : अंतरिक्ष में शुरू हुई खनन करने की होड़

950 से 1350 ईस्वी के बीच मिडिवल क्लाइमेट एनोमली (एमसीए) के दौरान आईएसएमतुलनात्मक रूप से मजबूत हो गया. थोड़े हिमयुग के दौरान, आईएसएम की वर्षा में अपेक्षाकृत कमी देखी गई, जैसाकि अपेक्षाकृत कम सी / एन अनुपात तथा टीओसी सामग्री में कमी से संकेत मिलता है. इन निष्कर्षों ने थोड़े हिमयुग काल के बाद 1600 ईस्वी के आसपास एक मजबूत आईएसएम के साथ गीली जलवायु परिस्थितियों के पुनरुत्थान की ओर इशारा किया, जो कि वर्तमान समय में कायम है. आईएसएम केवर्तमान तथा भविष्यके व्यवहार को समझने के लिए ऐतिहासिक अतीत में आईएसएम की परिवर्तनशीलता का पता लगाने की जरूरत है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन और पानी की आपूर्ति ने प्राचीन सभ्यताओं के उत्थान और पतन को निर्देशित किया है.

Last Updated : Oct 2, 2020, 1:21 PM IST
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