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कोटा के कृषि विज्ञान केंद्र का 'गार्लिक कैप्सूल' कैंसर के इलाज में भी कारगर - Garlic as a medicine

राजस्थान के कोटा जिले के कृषि विज्ञान केंद्र में लहसुन के कैप्सूल बन रहे हैं. इनकी बिक्री पूरे देश में हो रही है. लहसुन के ये कैप्सूल कई बीमारियों में लाभकारी बताए जा रहे हैं. साथ ही दावा किया जा रहा है कि कैंसर की बीमारी से लड़ने में भी गार्लिक कैप्सूल कारगर हैं. देखिये यह खास रिपोर्ट...

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Published : Feb 2, 2021, 11:02 PM IST

कोटा : जिन लोगों को लहसुन और उसकी गंध से परेशानी है उनके लिए बाजार में अब गार्लिक कैप्सूल उपलब्ध है. कोटा कृषि विज्ञान केंद्र में लहसुन के कैप्सूल तैयार किए जा रहे हैं. इन कैप्सूल की बिक्री देशभर में हो रही है. गार्लिक कैप्सूल को पानी के साथ अन्य गोली-कैप्सूल की तरह निगला जा सकता है. दावा है कि गार्लिक कैप्सूल बॉडी में इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करते हैं. इसके अलावा गैस्टिक प्रॉब्लम और अन्य हार्ट डिजीज से लेकर कई बीमारियों में भी उपयोगी साबित हो रहे हैं.

विशेषज्ञों की मानें तो लहसुन में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल क्वालिटी होती है. एंटीबैक्टीरियल गुणों से यह चर्म रोगों से दूर रखता है. हृदय की बीमारियों में दवा के तौर पर यह काम करता है. ब्लड में कोलेस्ट्रोल नहीं जमने देता है. साथ ही खून को पतला रखता है. लहसुन के कैप्सूल बनाने में काफी मेहनत लगती है. इसमें मुख्य उत्पाद लहसुन ही है. हालांकि जिस कैप्सूल के जरिए यह पैक होता है उसमें एनिमल जिलेटिन आता है. वह सस्ता पड़ता है, जबकि राइस ब्रान का कैप्सूल महंगा होता है. ऐसे में इनकी कीमत 1 से 3 रुपए तक होती है. शाकाहारी लोगों के लिए राइस ब्रान जिलेटिन ही उपयोग में लिया जाता है. हालांकि इससे लागत थोड़ी बढ़ गई है. कृषि केंद्र में कैप्सूल बनाते समय पूरी तरह से हाईजेनिक पद्धति अपनाई जाती है. कैप्सूल तैयार करने वाले कर्मचारी मास्क, कैप और ग्लब्स पहनकर ही काम में जुटते हैं. साथ ही इस प्रोडक्ट को ऑनलाइन कंपनियों के जरिए भी बेचा जा रहा है.

कोटा के कृषि विज्ञान केंद्र का 'गार्लिक कैप्सूल'

10 दिन की है यह पूरी प्रक्रिया

लहसुन के कैप्सूल बनाने के काम करने में जुटी गायत्री वैष्णव बताती हैं कि यह पूरी प्रक्रिया करीब 10 दिन की है. पहले पूरे लहसुन को लाकर मशीन में डालते हैं ताकि उसकी अलग-अलग कलियां हो जाएं. इसके बाद कलियों को सूखा लिया जाता है. फिर मशीन में डालकर उसको ग्राइंडिंग की जाती है. इसके बाद लहसुन का हाथों से भी छिलका हटाया जाता है और फिर उसे पीसकर पाउडर बना लिया जाता है. इसी पाउडर को जिलेटिन के कैप्सूल में भरकर लोगों तक पहुंचाया जाता है.

प्रशिक्षण के बाद कर रहे काम

कृषि विज्ञान केंद्र कोटा में ही 10 महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई थी. इसके बाद इन महिलाओं ने लहसुन का कैप्सूल बनाना शुरू कर दिया. बेबीरानी का कहना है कि उन्होंने लहसुन के कैप्सूल बनाने का काम शुरू किया है. इसके लिए मशीनरी की सहायता कृषि विज्ञान केंद्र से मिल रही है. ऑर्डर भी कृषि विज्ञान केंद्र से ही उन्हें मिलते हैं. जिसके बाद ही लहसुन का कैप्सूल बनाने के लिए कच्चा माल खरीदा जाता है. कैप्सूल बनाने का अनोखा काम करने में जुटी सूरत सुमन का कहना है कि जब नया लहसुन आता है, तो उसकी दाम काफी कम होते हैं. ऐसे में 30 से 50 रुपए किलो में वे लहसुन खरीद लेते हैं, ताकि उसको स्टोर भी कर सकें. साथ ही जो कैप्सूल बनते हैं वह एक कैप्सूल 500 एमजी और 1000 एमजी का होता है. जिनके भी दाम अलग-अलग होते हैं. इनको भी 50 व 100 ग्राम के बॉक्स में ही पैक करके रखा जाता है.

लहसुन का पावडर भी बिक रहा

लहसुन के कैप्सूल बनाने के लिए जिस तरीके से पाउडर तैयार किया जाता है. उस पाउडर को भी पैकेजिंग करके कृषि विज्ञान केंद्र में काम करने वाली यह एंटरप्रेन्योर बेच रही हैं. जिसकी अलग-अलग पैकेजिंग यहां पर की जाती है. एक किलो लहसुन में 100 ग्राम लहसुन का पाउडर बन जाता है. लहसुन को सूखाकर छीलते हैं, बाकी जो छिलका होता है वह कचरे के रूप में ही निकलता है. जिसे अलग-अलग लेयर के रूप में निकाल कर फेंकना ही पड़ता है.

इस तरह से फायदेमंद है लहसुन

कृषि विज्ञान केंद्र की ह्यूमन रिसोर्स निदेशक डॉ. ममता तिवारी का कहना है कि लहसुन में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल क्वालिटी होती है. एंटीबैक्टीरियल क्वालिटी से यह स्किन डिजीज से दूर रखता है. हृदय की बीमारियों में दवा के तौर पर यह काम करता है. ब्लड में कोलेस्ट्रोल नहीं जमने देता है, ब्लड को पतला रखता है. अर्थराइटिस या फिर रूमेटाइटिस की प्रॉब्लम में भी ये काफी फायदा करता है.

यह भी पढ़ें-'आत्मनिर्भर भारत' बना ऑक्सफोर्ड हिंदी वर्ड ऑफ द ईयर

लहसुन को नियमित रूप से सेवन करने से कैंसर जैसी बीमारी से बचाव होता है. पेट की बीमारियों में भी लहसुन लाभकारी होता है.

कोटा : जिन लोगों को लहसुन और उसकी गंध से परेशानी है उनके लिए बाजार में अब गार्लिक कैप्सूल उपलब्ध है. कोटा कृषि विज्ञान केंद्र में लहसुन के कैप्सूल तैयार किए जा रहे हैं. इन कैप्सूल की बिक्री देशभर में हो रही है. गार्लिक कैप्सूल को पानी के साथ अन्य गोली-कैप्सूल की तरह निगला जा सकता है. दावा है कि गार्लिक कैप्सूल बॉडी में इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करते हैं. इसके अलावा गैस्टिक प्रॉब्लम और अन्य हार्ट डिजीज से लेकर कई बीमारियों में भी उपयोगी साबित हो रहे हैं.

विशेषज्ञों की मानें तो लहसुन में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल क्वालिटी होती है. एंटीबैक्टीरियल गुणों से यह चर्म रोगों से दूर रखता है. हृदय की बीमारियों में दवा के तौर पर यह काम करता है. ब्लड में कोलेस्ट्रोल नहीं जमने देता है. साथ ही खून को पतला रखता है. लहसुन के कैप्सूल बनाने में काफी मेहनत लगती है. इसमें मुख्य उत्पाद लहसुन ही है. हालांकि जिस कैप्सूल के जरिए यह पैक होता है उसमें एनिमल जिलेटिन आता है. वह सस्ता पड़ता है, जबकि राइस ब्रान का कैप्सूल महंगा होता है. ऐसे में इनकी कीमत 1 से 3 रुपए तक होती है. शाकाहारी लोगों के लिए राइस ब्रान जिलेटिन ही उपयोग में लिया जाता है. हालांकि इससे लागत थोड़ी बढ़ गई है. कृषि केंद्र में कैप्सूल बनाते समय पूरी तरह से हाईजेनिक पद्धति अपनाई जाती है. कैप्सूल तैयार करने वाले कर्मचारी मास्क, कैप और ग्लब्स पहनकर ही काम में जुटते हैं. साथ ही इस प्रोडक्ट को ऑनलाइन कंपनियों के जरिए भी बेचा जा रहा है.

कोटा के कृषि विज्ञान केंद्र का 'गार्लिक कैप्सूल'

10 दिन की है यह पूरी प्रक्रिया

लहसुन के कैप्सूल बनाने के काम करने में जुटी गायत्री वैष्णव बताती हैं कि यह पूरी प्रक्रिया करीब 10 दिन की है. पहले पूरे लहसुन को लाकर मशीन में डालते हैं ताकि उसकी अलग-अलग कलियां हो जाएं. इसके बाद कलियों को सूखा लिया जाता है. फिर मशीन में डालकर उसको ग्राइंडिंग की जाती है. इसके बाद लहसुन का हाथों से भी छिलका हटाया जाता है और फिर उसे पीसकर पाउडर बना लिया जाता है. इसी पाउडर को जिलेटिन के कैप्सूल में भरकर लोगों तक पहुंचाया जाता है.

प्रशिक्षण के बाद कर रहे काम

कृषि विज्ञान केंद्र कोटा में ही 10 महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई थी. इसके बाद इन महिलाओं ने लहसुन का कैप्सूल बनाना शुरू कर दिया. बेबीरानी का कहना है कि उन्होंने लहसुन के कैप्सूल बनाने का काम शुरू किया है. इसके लिए मशीनरी की सहायता कृषि विज्ञान केंद्र से मिल रही है. ऑर्डर भी कृषि विज्ञान केंद्र से ही उन्हें मिलते हैं. जिसके बाद ही लहसुन का कैप्सूल बनाने के लिए कच्चा माल खरीदा जाता है. कैप्सूल बनाने का अनोखा काम करने में जुटी सूरत सुमन का कहना है कि जब नया लहसुन आता है, तो उसकी दाम काफी कम होते हैं. ऐसे में 30 से 50 रुपए किलो में वे लहसुन खरीद लेते हैं, ताकि उसको स्टोर भी कर सकें. साथ ही जो कैप्सूल बनते हैं वह एक कैप्सूल 500 एमजी और 1000 एमजी का होता है. जिनके भी दाम अलग-अलग होते हैं. इनको भी 50 व 100 ग्राम के बॉक्स में ही पैक करके रखा जाता है.

लहसुन का पावडर भी बिक रहा

लहसुन के कैप्सूल बनाने के लिए जिस तरीके से पाउडर तैयार किया जाता है. उस पाउडर को भी पैकेजिंग करके कृषि विज्ञान केंद्र में काम करने वाली यह एंटरप्रेन्योर बेच रही हैं. जिसकी अलग-अलग पैकेजिंग यहां पर की जाती है. एक किलो लहसुन में 100 ग्राम लहसुन का पाउडर बन जाता है. लहसुन को सूखाकर छीलते हैं, बाकी जो छिलका होता है वह कचरे के रूप में ही निकलता है. जिसे अलग-अलग लेयर के रूप में निकाल कर फेंकना ही पड़ता है.

इस तरह से फायदेमंद है लहसुन

कृषि विज्ञान केंद्र की ह्यूमन रिसोर्स निदेशक डॉ. ममता तिवारी का कहना है कि लहसुन में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल क्वालिटी होती है. एंटीबैक्टीरियल क्वालिटी से यह स्किन डिजीज से दूर रखता है. हृदय की बीमारियों में दवा के तौर पर यह काम करता है. ब्लड में कोलेस्ट्रोल नहीं जमने देता है, ब्लड को पतला रखता है. अर्थराइटिस या फिर रूमेटाइटिस की प्रॉब्लम में भी ये काफी फायदा करता है.

यह भी पढ़ें-'आत्मनिर्भर भारत' बना ऑक्सफोर्ड हिंदी वर्ड ऑफ द ईयर

लहसुन को नियमित रूप से सेवन करने से कैंसर जैसी बीमारी से बचाव होता है. पेट की बीमारियों में भी लहसुन लाभकारी होता है.

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