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मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का निधन

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का निधन हो गया है. पिछले 11 दिनों से अस्पताल में भर्ती बाबूलाल गौर को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था.

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Published : Aug 21, 2019, 8:05 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 5:56 PM IST

भोपाल: मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का भोपाल के निजी अस्पताल में निधन हो गया है. गौर पिछले 11 दिनों से अस्पताल में भर्ती थे, उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था. वे लगातार डॉक्टर्स की निगरानी में थे.

बाबूलाल गौर स्वास्थ्य खराब होने के चलते करीब 11 दिनों से राजधानी भोपाल के निजी अस्पताल में भर्ती थे, उन्हें डॉक्टरों की विशेष निगरानी में रखा गया था. बताया जा रहा है कि जब गौर को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया था. तब उनके शरीर में काफी मूवमेंट हो रहे थे. लेकिन मूवमेंट कम होने के बाद उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था. बाबूलाल गौर के निधन की खबर से बीजेपी में शोक की लहर है.

बाबूलाल गौर के निधन से मध्यप्रदेश की सियासत में एक युग का अंत हो गया. एक ऐसी शख्सियत जिसकी पहचान देशभर में केवल एक नेता के तौर पर नहीं बल्कि जननेता के तौर पर होती थी. वे जितने अपनो के करीब थे उतने ही विरोधियों के भी क्योंकि यह नेता मध्यप्रदेश की राजनीति का एक युगपुरुष था. जिसके ईर्द-गिर्द मध्यप्रदेश की सियासत का एक पूरा अध्याय लिखा गया.

बाबूलाल गौर का सियासी सफर

2 जून 1930 को उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के नेनगिरी गांव में जन्में बाबूलाल गौर अपने पिता के साथ भोपाल के पुठ्टा मिल में काम करने आए थे, जहां उन्हें भेल (भारतीय हेवी इलेक्ट्रिक लिमिटेड) में नौकरी मिल गई. भेल में बाबूलाल गौर मजदूरों की आवाज बन गए. इस दौरान उन्होंने कई श्रमिक आंदोलनों में भाग लिया था. शुरुआती दिनों में वे आरएसएस की शाखा में जाया करते थे. जबकि ट्रेड यूनियनों में उनकी सक्रियता रहती थी. देखते ही देखते वे मजदूरों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरने लगे.

बाबूलाल गौर ने अपनी राजनीति की पहली पारी साल 1972 में खेली लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 1974 में दोबारा भोपाल की गोविंदपुरा सीट से उपचुनाव में मैदान में उतरे और जीत हासिल की. लेकिन ये महज एक जीत नहीं थी. बल्कि एक ऐसी शुरुआत थी जो अब तक उस सीट पर चली आ रही है. साल 1975 में जेपी आंदोलन में बाबूलाल गौर खूब एक्टिव रहे. जेल भी गए. धीरे-धीरे वे जयप्रकाश नारायण के करीब भी पहुंच गए. जबकि जनसंघ में कुशाभाऊ ठाकरे से लेकर पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के वे सबसे करीब लोगों में गिने जाते थे.

1977 का चुनाव उन्होंने जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़ा और जीत हासिल की. प्रदेश में सरकारे आती रही जाती रही. चुनाव भी होते रहे. लेकिन बाबूलाल गौर चुनाव दर चुनाव भोपाल की गोविंदपुरा सीट पर अपनी पकड़ मजबूत करते रहे. 2013 तक वो इस सीट से लगातार 10 बार विधानसभा चुनाव जीते. जो मध्यप्रदेश में किसी एक व्यक्ति के सबसे ज्यादा बार विधानसभा चुनाव जीतने का रिकार्ड है.

बाबूलाल गौर जनसंघ की सुंदरलाल पटवा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे. लेकिन उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी तारीख थी, 23 अगस्त 2004. जब उन्होंने सूबे के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली. अपने छोटे से कार्यकाल में भी उन्होंने कई ऐसे काम किए जिसके लिए उनकी सराहना उनके विरोधी भी करते हैं. मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी वे शिवराज सिंह चौहान की सरकार में बतौर कैबिनेट मंत्री काम करते रहे.

अपने 46 साल के सियासी सफर में बाबूलाल गौर ने तमाम उतार-चढ़ाव देखे. एक साधारण नेता से सूबे के मुख्यमंत्री तक के सफर में वे हमेशा अपने बेबाक अंदाज के लिए जाने जाते रहे. बाबूलाल गौर मध्यप्रदेश की एक ऐसी शख्सियत थे जिनके मुरीद उनके विरोधी भी थे. एक ऐसा नेता जिसका सम्मान विपक्षी पार्टी के नेता पूरे आदर के साथ करते रहे. अब यह नेता एक ऐसे पथ पर सफर करने निकल चुका है. जहां से शायद वे कभी नहीं लौटेंगे. लेकिन मध्यप्रदेश की सियासत में उनका योगदान हमेशा यादगार रहेगा.

भोपाल: मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का भोपाल के निजी अस्पताल में निधन हो गया है. गौर पिछले 11 दिनों से अस्पताल में भर्ती थे, उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था. वे लगातार डॉक्टर्स की निगरानी में थे.

बाबूलाल गौर स्वास्थ्य खराब होने के चलते करीब 11 दिनों से राजधानी भोपाल के निजी अस्पताल में भर्ती थे, उन्हें डॉक्टरों की विशेष निगरानी में रखा गया था. बताया जा रहा है कि जब गौर को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया था. तब उनके शरीर में काफी मूवमेंट हो रहे थे. लेकिन मूवमेंट कम होने के बाद उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था. बाबूलाल गौर के निधन की खबर से बीजेपी में शोक की लहर है.

बाबूलाल गौर के निधन से मध्यप्रदेश की सियासत में एक युग का अंत हो गया. एक ऐसी शख्सियत जिसकी पहचान देशभर में केवल एक नेता के तौर पर नहीं बल्कि जननेता के तौर पर होती थी. वे जितने अपनो के करीब थे उतने ही विरोधियों के भी क्योंकि यह नेता मध्यप्रदेश की राजनीति का एक युगपुरुष था. जिसके ईर्द-गिर्द मध्यप्रदेश की सियासत का एक पूरा अध्याय लिखा गया.

बाबूलाल गौर का सियासी सफर

2 जून 1930 को उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के नेनगिरी गांव में जन्में बाबूलाल गौर अपने पिता के साथ भोपाल के पुठ्टा मिल में काम करने आए थे, जहां उन्हें भेल (भारतीय हेवी इलेक्ट्रिक लिमिटेड) में नौकरी मिल गई. भेल में बाबूलाल गौर मजदूरों की आवाज बन गए. इस दौरान उन्होंने कई श्रमिक आंदोलनों में भाग लिया था. शुरुआती दिनों में वे आरएसएस की शाखा में जाया करते थे. जबकि ट्रेड यूनियनों में उनकी सक्रियता रहती थी. देखते ही देखते वे मजदूरों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरने लगे.

बाबूलाल गौर ने अपनी राजनीति की पहली पारी साल 1972 में खेली लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 1974 में दोबारा भोपाल की गोविंदपुरा सीट से उपचुनाव में मैदान में उतरे और जीत हासिल की. लेकिन ये महज एक जीत नहीं थी. बल्कि एक ऐसी शुरुआत थी जो अब तक उस सीट पर चली आ रही है. साल 1975 में जेपी आंदोलन में बाबूलाल गौर खूब एक्टिव रहे. जेल भी गए. धीरे-धीरे वे जयप्रकाश नारायण के करीब भी पहुंच गए. जबकि जनसंघ में कुशाभाऊ ठाकरे से लेकर पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के वे सबसे करीब लोगों में गिने जाते थे.

1977 का चुनाव उन्होंने जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़ा और जीत हासिल की. प्रदेश में सरकारे आती रही जाती रही. चुनाव भी होते रहे. लेकिन बाबूलाल गौर चुनाव दर चुनाव भोपाल की गोविंदपुरा सीट पर अपनी पकड़ मजबूत करते रहे. 2013 तक वो इस सीट से लगातार 10 बार विधानसभा चुनाव जीते. जो मध्यप्रदेश में किसी एक व्यक्ति के सबसे ज्यादा बार विधानसभा चुनाव जीतने का रिकार्ड है.

बाबूलाल गौर जनसंघ की सुंदरलाल पटवा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे. लेकिन उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी तारीख थी, 23 अगस्त 2004. जब उन्होंने सूबे के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली. अपने छोटे से कार्यकाल में भी उन्होंने कई ऐसे काम किए जिसके लिए उनकी सराहना उनके विरोधी भी करते हैं. मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद भी वे शिवराज सिंह चौहान की सरकार में बतौर कैबिनेट मंत्री काम करते रहे.

अपने 46 साल के सियासी सफर में बाबूलाल गौर ने तमाम उतार-चढ़ाव देखे. एक साधारण नेता से सूबे के मुख्यमंत्री तक के सफर में वे हमेशा अपने बेबाक अंदाज के लिए जाने जाते रहे. बाबूलाल गौर मध्यप्रदेश की एक ऐसी शख्सियत थे जिनके मुरीद उनके विरोधी भी थे. एक ऐसा नेता जिसका सम्मान विपक्षी पार्टी के नेता पूरे आदर के साथ करते रहे. अब यह नेता एक ऐसे पथ पर सफर करने निकल चुका है. जहां से शायद वे कभी नहीं लौटेंगे. लेकिन मध्यप्रदेश की सियासत में उनका योगदान हमेशा यादगार रहेगा.

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Last Updated : Sep 27, 2019, 5:56 PM IST
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