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बिहार का यह गांव जो महिला खिलाड़ियों के लिए है 'खेल गांव'

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Published : May 29, 2020, 12:03 AM IST

खेल गांव में फुटबॉल अब खेल न होकर जुनून बन गया है. इस गांव में संतोष ट्रॉफी जैसे बड़े और भव्य आयोजन हो चुके हैं और बाईचुंग भूटिया जैसे फुटबॉलर यहां की महिला खिलाड़ियों को प्रशिक्षित कर चुके हैं.

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बिहार का एक ऐसा गांव जो महिला खिलाड़ियों के लिए है खेल गांव

बेगूसराय : आमतौर पर बेटियां बोझ समझी जाती हैं, लेकिन बिहार के बेगूसराय जिले में एक ऐसा भी गांव है, जहां की बेटियां मां-बाप और जिले के लिए स्वाभिमान हैं. बेटियों के प्रदर्शन के बूते अब गांव का नाम ही खेल गांव है.

इस गांव की दर्जनों बेटियों ने राज्य और देश स्तर के कई टूर्नामेंट में बेहतरीन प्रदर्शन कर खेल गांव और बिहार का नाम रौशन किया है. साथ ही फुटबॉल में बेहतरीन प्रदर्शन कर विभिन्न विभागों में सरकारी नौकरी भी प्राप्त की है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

संतोष ट्रॉफी का आयोजन
बरौनी प्रखंड अंतर्गत पड़ने वाला खेल गांव आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है, क्योंकि इस गांव में फुटबॉल अब खेल न होकर जुनून बन गया है.

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ईटीवी भारत की रिपोर्ट

इस गांव में संतोष ट्रॉफी जैसे बड़े और भव्य आयोजन हो चुके हैं और बाईचुंग भूटिया जैसे फुटबॉलर यहां की महिला खिलाड़ियों को प्रशिक्षित कर चुके हैं.

वैसे तो यह गांव भी जिले के अन्य गांवों की तरह सामान्य गांव ही है, लेकिन इस गांव की बेटियों ने वह कर दिखाया जो बेटों के लिए भी चुनौती बन गई है.

फुटबॉल के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन
दरअसल आज से 27 साल पहले इस गांव में महिलाओं ने फुटबॉल खेलना शुरू किया था. 27 साल पहले जब यहां की बेटियों ने फुटबॉल खेलना शुरू किया तो उन्हें परिवार के सदस्यों और समाज का विरोध झेलना पड़ा. लेकिन समय के साथ इस गांव का माहौल भी बदला.

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बिहार का एक ऐसा गांव जो महिला खिलाड़ियों के लिए है खेल गांव

बेटियों के मां-बाप ने उन्हें अपना कैरियर चुनने का अवसर दिया. इसके बाद ताबड़तोड़ प्रदर्शन कर यहां की दो दर्जन से ज्यादा लड़कियों ने फुटबॉल के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करके विभिन्न विभागों में सरकारी नौकरी हासिल की.

बेहतरीन प्रदर्शन कर किया नाम रौशन
आर्थिक तंगी से जूझ रहे कई परिवारों के लिए बेटियां लक्ष्मी का रूप बनकर आई और अपने परिवार की माली हालत को ठीक करते हुए अपने छोटे भाई बहनों की पढ़ाई लिखाई का जिम्मा भी संभाला.

सामाजिक बदलाव के साथ अब इस गांव की पहचान बेटियों की बदौलत होती है. राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट में यहां की बेटियों ने बेहतरीन प्रदर्शन कर बेगूसराय और बिहार का नाम रौशन किया है.

'सरकार की खेल के प्रति दुर्भावना'
फुटबाल टीम कोच संजीव कुमार उर्फ मुन्ना सिंह ने बताया कि बिहार सरकार की खेल के प्रति दुर्भावना से वह आहत हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार के दावे और वादे सिर्फ कागज पर होते हैं. सरकार मदद के लिए हाथ बढ़ाए तो इस गांव की बेटियां देश में बिहार का नाम रौशन करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी.

बेगूसराय : आमतौर पर बेटियां बोझ समझी जाती हैं, लेकिन बिहार के बेगूसराय जिले में एक ऐसा भी गांव है, जहां की बेटियां मां-बाप और जिले के लिए स्वाभिमान हैं. बेटियों के प्रदर्शन के बूते अब गांव का नाम ही खेल गांव है.

इस गांव की दर्जनों बेटियों ने राज्य और देश स्तर के कई टूर्नामेंट में बेहतरीन प्रदर्शन कर खेल गांव और बिहार का नाम रौशन किया है. साथ ही फुटबॉल में बेहतरीन प्रदर्शन कर विभिन्न विभागों में सरकारी नौकरी भी प्राप्त की है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

संतोष ट्रॉफी का आयोजन
बरौनी प्रखंड अंतर्गत पड़ने वाला खेल गांव आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है, क्योंकि इस गांव में फुटबॉल अब खेल न होकर जुनून बन गया है.

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ईटीवी भारत की रिपोर्ट

इस गांव में संतोष ट्रॉफी जैसे बड़े और भव्य आयोजन हो चुके हैं और बाईचुंग भूटिया जैसे फुटबॉलर यहां की महिला खिलाड़ियों को प्रशिक्षित कर चुके हैं.

वैसे तो यह गांव भी जिले के अन्य गांवों की तरह सामान्य गांव ही है, लेकिन इस गांव की बेटियों ने वह कर दिखाया जो बेटों के लिए भी चुनौती बन गई है.

फुटबॉल के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन
दरअसल आज से 27 साल पहले इस गांव में महिलाओं ने फुटबॉल खेलना शुरू किया था. 27 साल पहले जब यहां की बेटियों ने फुटबॉल खेलना शुरू किया तो उन्हें परिवार के सदस्यों और समाज का विरोध झेलना पड़ा. लेकिन समय के साथ इस गांव का माहौल भी बदला.

daughters-changed-the-fate-of-the-village-in-begusarai bihar
बिहार का एक ऐसा गांव जो महिला खिलाड़ियों के लिए है खेल गांव

बेटियों के मां-बाप ने उन्हें अपना कैरियर चुनने का अवसर दिया. इसके बाद ताबड़तोड़ प्रदर्शन कर यहां की दो दर्जन से ज्यादा लड़कियों ने फुटबॉल के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करके विभिन्न विभागों में सरकारी नौकरी हासिल की.

बेहतरीन प्रदर्शन कर किया नाम रौशन
आर्थिक तंगी से जूझ रहे कई परिवारों के लिए बेटियां लक्ष्मी का रूप बनकर आई और अपने परिवार की माली हालत को ठीक करते हुए अपने छोटे भाई बहनों की पढ़ाई लिखाई का जिम्मा भी संभाला.

सामाजिक बदलाव के साथ अब इस गांव की पहचान बेटियों की बदौलत होती है. राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट में यहां की बेटियों ने बेहतरीन प्रदर्शन कर बेगूसराय और बिहार का नाम रौशन किया है.

'सरकार की खेल के प्रति दुर्भावना'
फुटबाल टीम कोच संजीव कुमार उर्फ मुन्ना सिंह ने बताया कि बिहार सरकार की खेल के प्रति दुर्भावना से वह आहत हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार के दावे और वादे सिर्फ कागज पर होते हैं. सरकार मदद के लिए हाथ बढ़ाए तो इस गांव की बेटियां देश में बिहार का नाम रौशन करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी.

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