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कोरोना संकट : रबी की फसलें तैयार, फिर भी किसान परेशान - कोविड 19 से किसान परेशान

देशभर में कोरोना महामारी फैली हुई है. इस वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन है और इसी समय में रबी की फसलें तैयार हैं. लॉकडाउन की वजह से किसान अपने फसलों को मंडियों और बाजारों में नहीं पहुंचा पा रहे हैं और उनके फसलों की सही कीमत भी नहीं मिल रही है. इसके अलावा उन्हें अपने फसलों की कटाई के लिए मजदूर भी नहीं मिल रहे हैं. इस वजह से किसान बुरी तरह से परेशान हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

प्रतीकात्मक तस्वीर
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Published : Apr 29, 2020, 12:54 PM IST

हैदराबाद : देश में कोरोना वायरस का कहर जारी है. इस महामारी के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए देश में लॉकडाउन है. इसी समय रबी की फसलें भी तैयार हैं, जिसे लेकर किसान परेशान नजर आ रहे हैं. सामान्य परिस्थितियों में इस मौसम में खेतों और बजारों में रबी की पैदावार से हलचल देखा जाता है, लेकिन वर्तमान में कोविड-19 की वजह से किसानों की आजीविका पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है.

क्रिसिल (CRISIL) (भारतीय विश्लेषणात्मक कंपनी जो रेटिंग, अनुसंधान और नीति सलाहकार सेवाएं प्रदान करती हैं) का एक अध्ययन किसान समुदाय के राष्ट्रव्यापी संकट को दर्शाता है.

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल की तुलना में गेहूं और सरसों की पैदावार में 90 प्रतिशत की गिरावट आई है. दो राज्यों पंजाब और हरियाणा में अभी गेंहू कटाई की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है.

क्रिसिल ने अध्ययन में इस स्थिति के लिए चार प्रमुख कारणों को रेखांकित किया है. अध्ययन के मुताबिक इस वर्ष रबी की कटाई में देरी, लॉकडाउन के बीच कृषि श्रमिकों की कमी, पर्याप्त परिवहन सुविधाओं की कमी और सुस्त मार्केट यार्ड ने किसानों को इस गंभीर स्थिति में पहुंचा दिया है.

अधिकांश किसानों को उनकी फसल के लिए कोई खरीदार नहीं मिल रहा है. सबसे ज्यादा फल और सब्जी के किसान प्रभावित हैं, क्योंकि परिवहन सुविधाओं की कमी के कारण वह अपने फसलों को बेच नहीं पा रहे हैं. इससे उनका उत्पादन भी स्थिर है. स्थिति यहां तक आ गई है कि अंगूर और मुसंबी (मौसम्बी) के किसान फलों को मुफ्त में बांट रहे हैं.

पढ़ें : चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन पर पसरा सन्नाटा, भूखे मरने की कगार पर कुली

कुछ किसान लॉकडाउन से परेशान होकर खेतों में चरने के लिए मवेशियों को छोड़ रहे हैं. आम के किसान जो इस गर्मी में लाभ कमाने की उम्मीद में रहते हैं, वह भी अंतरराज्यीय सीमाओं के बंद होने से परेशान नजर आ रहे हैं. देखने से पता चलता है कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश की स्थिति सिर्फ आपूर्ति और वितरण प्रणाली से क्या हो सकती है?

बता दें कि तेलंगाना सरकार ने इस वर्ष किसानों को राहत देने के लिए एक करोड़ टन धान की बीज देने की घोषणा की है. इसके साथ ही राज्य के मुख्यमंत्री केसीआर ने प्रदेश के किसानों को आश्वासन दिया है कि उनकी सरकार ग्रामीण कृषि व्यवसाय केंद्रों से हर अनाज खरीदेगी.

तेलंगाना सरकार ने मक्का और अन्य रबी पैदावार को एकत्र करने की दिशा में 28,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है, जो एक प्रशंसनीय कदम है. इस तरह की पहल सभी राज्यों को करनी चाहिए.

तेलंगाना सरकार की उदार प्रतिक्रिया के बावजूद, जिलास्तर के अधिकारी किसानों के जीवन को दयनीय बना रहे हैं.

कई राज्यों में किसान संस्थागत समर्थन और पारिश्रमिक कीमतों के बिना इस वर्ष फसल कटाई की उम्मीद खो रहे हैं, जबकि कृषि समुदाय एक आसन्न खाद्य संकट को हल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है, उस समय भी हम एक राष्ट्र के रूप में उनके प्रयासों के लिए उचित मूल्य का भुगतान करने के लिए अनिच्छुक हैं.

संयुक्त राष्ट्र संगठन (यूएनओ) का अनुमान है कि दुनियाभर में 13 करोड़ लोग भोजन की कमी का सामना कर रहे हैं. कोविड19 के अंत तक यह संख्या 26 करोड़ तक जा सकती है.

ऐसी परिस्थितियों के बीच किसी भी फसल का उत्पादन नाले में जाना मूर्खतापूर्ण होगा.

पढ़ें : बिहार का 'वुहान' हो या राजधानी, यह महिला अधिकारी सिखा रहीं जिम्मेदारी निभाना

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक नवीन सुझाव के रुप में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी मजदूरी का भुगतान खाद्यान्न के रूप में करने की अनुमति मांगी है.

यदि इसे लागू किया जा सकता है, तो रोजगार सृजन और खाद्य अनाज की खपत दोनों को एक बार में प्राप्त किया जा सकता है.

इसी समय सरकारों को तेजी से खराब होने वाली वस्तुओं की खरीद करने की आवश्यकता है और उन्हें जल्दी से कोल्ड स्टोरेज इकाइयों में पहुंचाना चाहिए.

इस संग्रहित उपज को जरूरत के आधार पर निर्यात या घरेलू बाजार में लाया जा सकता है.

असाधारण समय में केवल असाधारण निर्णय ही राष्ट्र को बचा सकते हैं!

हैदराबाद : देश में कोरोना वायरस का कहर जारी है. इस महामारी के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए देश में लॉकडाउन है. इसी समय रबी की फसलें भी तैयार हैं, जिसे लेकर किसान परेशान नजर आ रहे हैं. सामान्य परिस्थितियों में इस मौसम में खेतों और बजारों में रबी की पैदावार से हलचल देखा जाता है, लेकिन वर्तमान में कोविड-19 की वजह से किसानों की आजीविका पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है.

क्रिसिल (CRISIL) (भारतीय विश्लेषणात्मक कंपनी जो रेटिंग, अनुसंधान और नीति सलाहकार सेवाएं प्रदान करती हैं) का एक अध्ययन किसान समुदाय के राष्ट्रव्यापी संकट को दर्शाता है.

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल की तुलना में गेहूं और सरसों की पैदावार में 90 प्रतिशत की गिरावट आई है. दो राज्यों पंजाब और हरियाणा में अभी गेंहू कटाई की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है.

क्रिसिल ने अध्ययन में इस स्थिति के लिए चार प्रमुख कारणों को रेखांकित किया है. अध्ययन के मुताबिक इस वर्ष रबी की कटाई में देरी, लॉकडाउन के बीच कृषि श्रमिकों की कमी, पर्याप्त परिवहन सुविधाओं की कमी और सुस्त मार्केट यार्ड ने किसानों को इस गंभीर स्थिति में पहुंचा दिया है.

अधिकांश किसानों को उनकी फसल के लिए कोई खरीदार नहीं मिल रहा है. सबसे ज्यादा फल और सब्जी के किसान प्रभावित हैं, क्योंकि परिवहन सुविधाओं की कमी के कारण वह अपने फसलों को बेच नहीं पा रहे हैं. इससे उनका उत्पादन भी स्थिर है. स्थिति यहां तक आ गई है कि अंगूर और मुसंबी (मौसम्बी) के किसान फलों को मुफ्त में बांट रहे हैं.

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कुछ किसान लॉकडाउन से परेशान होकर खेतों में चरने के लिए मवेशियों को छोड़ रहे हैं. आम के किसान जो इस गर्मी में लाभ कमाने की उम्मीद में रहते हैं, वह भी अंतरराज्यीय सीमाओं के बंद होने से परेशान नजर आ रहे हैं. देखने से पता चलता है कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश की स्थिति सिर्फ आपूर्ति और वितरण प्रणाली से क्या हो सकती है?

बता दें कि तेलंगाना सरकार ने इस वर्ष किसानों को राहत देने के लिए एक करोड़ टन धान की बीज देने की घोषणा की है. इसके साथ ही राज्य के मुख्यमंत्री केसीआर ने प्रदेश के किसानों को आश्वासन दिया है कि उनकी सरकार ग्रामीण कृषि व्यवसाय केंद्रों से हर अनाज खरीदेगी.

तेलंगाना सरकार ने मक्का और अन्य रबी पैदावार को एकत्र करने की दिशा में 28,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है, जो एक प्रशंसनीय कदम है. इस तरह की पहल सभी राज्यों को करनी चाहिए.

तेलंगाना सरकार की उदार प्रतिक्रिया के बावजूद, जिलास्तर के अधिकारी किसानों के जीवन को दयनीय बना रहे हैं.

कई राज्यों में किसान संस्थागत समर्थन और पारिश्रमिक कीमतों के बिना इस वर्ष फसल कटाई की उम्मीद खो रहे हैं, जबकि कृषि समुदाय एक आसन्न खाद्य संकट को हल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है, उस समय भी हम एक राष्ट्र के रूप में उनके प्रयासों के लिए उचित मूल्य का भुगतान करने के लिए अनिच्छुक हैं.

संयुक्त राष्ट्र संगठन (यूएनओ) का अनुमान है कि दुनियाभर में 13 करोड़ लोग भोजन की कमी का सामना कर रहे हैं. कोविड19 के अंत तक यह संख्या 26 करोड़ तक जा सकती है.

ऐसी परिस्थितियों के बीच किसी भी फसल का उत्पादन नाले में जाना मूर्खतापूर्ण होगा.

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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक नवीन सुझाव के रुप में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी मजदूरी का भुगतान खाद्यान्न के रूप में करने की अनुमति मांगी है.

यदि इसे लागू किया जा सकता है, तो रोजगार सृजन और खाद्य अनाज की खपत दोनों को एक बार में प्राप्त किया जा सकता है.

इसी समय सरकारों को तेजी से खराब होने वाली वस्तुओं की खरीद करने की आवश्यकता है और उन्हें जल्दी से कोल्ड स्टोरेज इकाइयों में पहुंचाना चाहिए.

इस संग्रहित उपज को जरूरत के आधार पर निर्यात या घरेलू बाजार में लाया जा सकता है.

असाधारण समय में केवल असाधारण निर्णय ही राष्ट्र को बचा सकते हैं!

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