चेन्नई : जश्न मौन था, हालांकि नम नहीं था. सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक ने शनिवार को पार्टी का 49 वां स्थापना दिवस धूमधाम से नहीं मनाया. पिछले सप्ताह ही प्रमुख द्रविड़ पार्टी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में आंतरिक विवाद से उबरी थी. मुख्यमंत्री एडप्पाडी के पलानीस्वामी (ईपीएस) और डिप्टी सीएम, ओ पन्नीरसेल्वम (ओपीएस) की अगुवाई में, पार्टी को आने वाले वर्ष में कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, या तो सत्ता में बने रहें या राजनीतिक क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी रहें. चुनावों के लिए पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में ईपीएस की घोषणा के साथ, पार्टी पर संकट का समाधान हो गया जो पार्टी तंत्र पर उनकी पकड़ का एक स्पष्ट संकेत था. अब, उनके पास चुनावों में अन्नाद्रमुक को आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण कार्य है जो पार्टी और उनके नेतृत्व के लिए एक वास्तविक अग्नि परीक्षा है.
2019 के चुनावों में, पार्टी के वोट शेयर में 18.48 प्रतिशत की सर्वकालिक कमी आई, जो 59 प्रतिशत की गिरावट थी और वह 21 में से केवल एक सीट जीत सकी- उसने भाजपा, पीएमके और कुछ अन्य दलों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था. 2014 में इसके विपरीत, जब जयललिता के नेतृत्व में पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा था तब पार्टी को 44 प्रतिशत मत मिले थे और उसने राज्य में 39 में से 38 सीटें जीती थीं. 22 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव में अन्नाद्रमुक केवल नौ सीटें जीत सकी. प्रमुख विपक्ष के रूप में डीएमके ने अपनी चुनावी मशीन को सक्रिय करके अपने पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी से आगे निकलते हुए ईपीएस के लिए चुनौती खड़ी कर दी है.
डॉ. आर थिरुनावुक्करासू जो हैदराबाद विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र पढ़ाते हैं, वह कहते हैं कि 'यह अन्नाद्रमुक के साथ-साथ ईपीएस के नेतृत्व के लिए एक कठिन चुनौती है. हालांकि उन्हें पार्टी को एकजुट रखने का श्रेय दिया जाना चाहिए और अपना कार्यकाल पूरा करने वाले हैं, यह याद रखना चाहिए कि उन्हें दुर्जेय डीएमके के खिलाफ खड़ा किया गया है.' फिर भी, थिरुनावुक्कारसु यह स्पष्ट करते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव 2019 लोक सभा चुनावों का दोहराव होगा. तब द्रमुक मोदी विरोधी भावना के शिखर पर सवार था और उसने एक समृद्ध राजनीतिक फसल काट ली थी, लेकिन विधानसभा चुनावों में वैसा नहीं हो सकता क्यों कि परिस्थिति अलग है. 'हालांकि ईपीएस के पास जयललिता जैसा करिश्मा नहीं है, लेकिन अन्नद्रमुख ने अपनी खोई जमीन वापस लेने के प्रयास किए हैं.'
हालांकि, एक और मुद्दा जो पार्टी में लहर पैदा करता है और जिसका प्रभाव संभव है वह है जयललिता की करीबी विश्वासपात्र वीके शशिकला की अगले साल की शुरुआत में होने वाली अंतिम रिहाई. क्या वह पार्टी के कुश्ती नियंत्रण का प्रयास करके एक अस्थिर करने वाली शक्ति के रूप में काम करेगी या नहीं यह एक सवाल है. हालांकि अन्नाद्रमुक का दावा है कि उन्हें पार्टी मे जगह नहीं दी जाएगी, विश्लेषक इस बात को नहीं मानते.
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मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के सहायक प्रोफेसर डॉ. सी लक्ष्मणन कहते हैं, 'शशिकला को आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता है. केवल मंत्री ही नहीं, यहां तक कि सीएम भी उनके प्रति अपनी श्रद्धा रखते हैं. हालांकि वह चुनाव नहीं लड़ सकीं, लेकिन उनकी हार संभवत: एक झकझोर कर रख देने वाली घटना थी. जो भी हो, पार्टी अब वर्तमान पर ध्यान देती दिखाई दे रही है. स्थापना दिवस पर ईपीएस और ओपीएस दोनों ने लाइमलाइट को समान रूप से साझा किया था.
मुख्यमंत्री, अपनी मां के निधन के बाद भी सलेम के पास अपने मूल स्थान पर रहे, सिलुवमपालयम में पार्टी का झंडा फहराया, जबकि ओपीएस ने शहर में अन्नाद्रमुक मुख्यालय में पार्टी कैडर और पदाधिकारियों का नेतृत्व किया. पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने की कोशिश में, ओपीएस ने उनसे स्वर्ण जयंती वर्ष में पार्टी की सत्ता को बनाए रखने के लिए काम करने का आग्रह किया. एक ट्वीट में और साथ ही एक बयान में उन्होंने कहा, 'चलो सभी 234 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव जीतकर इतिहास बनाते हैं.' यह देखते हुए कि अन्नाद्रमुक लगातार दो बार सत्ता में रही थी और उसे सत्ता-विरोधी जन मानस का सामना करना पड़ सकता है यह एक बड़ा दावा है.