हैदराबाद : महान अभियंता भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की याद में हर साल उनके जन्मदिन (15 सितंबर) को राष्ट्रीय अभियंता दिवस (इंजीनियर्स डे) के रूप में मनाया जाता है. हालांकि, यूनेस्को द्वारा हर साल चार मार्च को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व अभियंता दिवस (वर्ल्ड इंजीनियर्स डे) मनाया जाता है.
अभियंता दिवस विज्ञान और प्रौद्योगिकी के हर क्षेत्र में हमारे इंजीनियर्स की उपलब्धियों पर गर्व महसूस करने के लिए समर्पित है. इंजीनियर्स का देश की आर्थिक प्रगति और विकास में उल्लेखनीय योगदान है.
अभियंता दिवस पिछली उपलब्धियों की सराहना करना और वर्तमान इंजीनियरिंग ट्रेंड का गुणगान करने के लिए मनाया जाता है. यह दिन हमारे जीवन में आधुनिक इंजीनियरिंग की दुनिया और इंजीनियरों के महत्व को दर्शाता है.
साथ ही, अभियंता दिवस हमारे जीवन को आसान, सरल और अधिक सुंदर बनाने के लिए जटिल इंजीनियरिंग सिद्धांतों की उपयोगिता को समझने में मदद करने के लिए एक मजबूत संदेश देता है.
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया और उनका योगदान
प्रख्यात इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के योगदान को स्मरण करने के लिए हर साल देशभर में 15 सितंबर को राष्ट्रीय अभियंता दिवस मनाया जाता है. एम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर, 1861 को कर्नाटक के चिकबल्लापुर जिले के मुद्दनेहल्ली गांव में हुआ था.
देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित विश्वेश्वरैया ने मद्रास विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ आर्ट्स (बीए) की पढ़ाई की थी और पुणे के कॉलेज ऑफ साइंस से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की.
बाद में उन्होंने पुणे के पास खडकवासला जलाशय में एक सिंचाई प्रणाली का पेटेंट कराया और स्थापित किया. इसका उद्देश्य खाद्य आपूर्ति स्तर और भंडारण को उच्चतम स्तर तक बढ़ाना था.
इस सिस्टम को ग्वालियर के तिघरा बांध और मैसूर (अब मैसुरु) के कृष्णराज सागर (केआरएस) बांध पर भी स्थापित किया गया था, जिसके बाद यह उस समय एशिया का सबसे बड़ा जलाशय बन गया था.
किंग जॉर्ज पंचम ने उन्हें 1915 में ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के कमांडर के रूप में नाइट की उपाधि से सम्मानित किया था.
उन्होंने स्वचालित जलद्वार बनाए जो बाद में तिघरा डैम (मध्य प्रदेश) और केआरएस डैम (कर्नाटक) में भी उपयोग किए गए थे. इस पेटेंट डिजाइन के लिए, उन्हें रॉयल्टी के रूप में बड़ी आय प्राप्त होनी थी, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया ताकि सरकार इस धन का उपयोग अधिक विकासात्मक परियोजनाओं के लिए कर सके.
हैदराबाद में, विश्वेश्वरैया ने बाढ़ सुरक्षा प्रणाली को डिजाइन किया था, इससे उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली.
उन्हें 1908 में मैसूर का दिवान (प्रधानमंत्री पद) बनाया गया और सभी विकास परियोजनाओं की पूर्ण जिम्मेदारी दी गई. उनके कार्यकाल में मैसूर में कृषि, सिंचाई, औद्योगिकीकरण, शिक्षा, बैंकिंग और वाणिज्य के क्षेत्र में बड़े बदलाव हुए.
आजादी के बाद साल 1955 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. वह लंदन इंस्टीट्यूशन ऑफ सिविल इंजीनियर्स के सदस्य बने. इससे पहले उन्हें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) बैंगलोर द्वारा फेलोशिप प्रदान की गई. प्रख्यात इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरनाथ का 1962 में निधन हो गया.
कोविड-19 से लड़ाई में इंजीनियरों की भूमिका
कोरोना महामारी में इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने अद्भुत पहल की है, वह अक्सर घर से और वर्चुअल टीम में काम करते हैं. कंपनियों और संस्थानों ने असंख्य तरीकों से महामारी से निपटने के प्रयास में योगदान दिया है.
पहली पहल कोरोना मरीजों के लिए अस्पतालों में बेड की कमी को दूर करना और अस्पताल के कर्मचारियों के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) की कमी से निपटने की कोशिश पर केंद्रित थी. संस्थानिक (इन-हाउस) अस्पतालों के साथ कई संस्थानों, जैसे कि हिंदुस्तान एयरोस्पेस, रेलवे और रक्षा सेवाओं, ने कोविद-19 मरीजों के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले वार्ड और खाली कमरों की व्यवस्था की.
कई IMechE सदस्यों सहित भारतीय रेलवे की वर्कशॉप ने बहुत तेजी से 5,000 वातानुकूलित (एसी) स्लीपर कोचों को केयर यूनिट्स में बदल दिया और जरूरत पड़ने पर उन्हें अस्पताल के रूप में इस्तेमाल करने लिए विभिन्न स्थानों पर रखा गया है.
कई कंपनियों ने कुछ हफ्तों में नए अस्पताल के उपकरणों का प्रोटोटाइप तैयार किया और उनका परीक्षण किया, जो नियामक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं. इनमें मानकों और गुणवत्ता उद्देश्यों का पालन किया गया. कंपनियों ने कई उपकरण बनाए, जिसमें पीपीई जेल्स व यूवी सैनिटाइजर और अतिरिक्त सुविधाओं के साथ सहायक श्वास उपकरण, सस्ती थ्रो बैग श्वासयंत्र से लेकर फुल-स्केल आईसीयू इनवेसिव वेंटिलेटर तक शामिल हैं.
ऑटोमोटिव फर्म महिंद्रा एंड महिंद्रा के प्रबंध निदेशक डॉ. पवन गोयनका ने सस्ती रेस्पिरेटर्स के निर्माण के लिए एक बड़ी परियोजना की शुरुआत की. टाटा समूह और रतन टाटा के नेतृत्व वाले ट्रस्टों ने पीपीई और टेस्ट किट के लिए 200 मिलियन डॉलर दान किया. इस बीच, टाटा मोटर्स में इंजीनियरों ने अस्पतालों में सफाई करने के लिए रोबोट बनाने पर काम किया.
वायरोलॉजिस्ट मीनल दखावे भोसले ने एक टेस्टिंग किट तैयार करने के बाद सुर्खियां बटोरीं. यह वायरस के आनुवांशिक कोड पर आधारित थी, जिसे चीनी वैज्ञानिकों ने इंटरनेट पर साझा किया था. उन्होंने प्रेग्नेंसी में भी कड़ी मेहनत कर किट बनाने पर कार्य किया. किट की मैन्युफैक्चरिंग के लिए प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के ठीक एक घंटे बाद, मीनल ने बेटी को जन्म दिया.
कोरोना काल में नवाचार और प्रौद्योगिकी
स्वचालित मास्क मशीन
भारत में एन-95 मास्क की कमी से लड़ने के लिए और चीन से विशेष स्वचालित मशीनों और उनके पार्ट्स के आयात को कम के लिए, एनआईटी और आईआईएम कालीकट के इंजीनियर्स और बेंगलुरु के एक स्टार्ट-अप फर्म अब इन मशीनों का निर्माण कर रहे हैं.
रूहदार: कम लागत वाला इनोवेटर
जम्मू-कश्मीर के अवंतीपोरा स्थित इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के डिजाइन इनोवेशन सेंटर (DIC) के इंजीनियरों ने आईआईटी बॉम्बे के इंजीनियरिंग छात्रों की एक टीम के साथ मिलकर एक कम लागत वाले वेंटिलेटर का प्रोटोटाइप बनाया है और इसे 'Ruhdaar' नाम दिया गया है. श्रीनगर स्थित शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेंज (SKIMS) के चिकित्सा विशेषज्ञों ने हाल ही में इसका मूल्यांकन किया है, जो प्रयोगशाला में सफलतापूर्वक काम कर रहा है और इसकी लागत लगभग 15000 रुपये है.
जीव सेतु वेंटिलेटर
बेंगलुरु में आरईवीए विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कम लागत और पोर्टेबल वेंटिलेटर का आविष्कार किया है, जो ओवन के आकार का है. आरईवीए विश्वविद्यालय के चांसलर ने देश के चिकित्सा बुनियादी ढांचे की सहायता के लिए कर्मचारियों के साथ 'जीव सेतु' वेंटिलेटर का शुभारंभ किया.
आरईवीए विश्वविद्यालय के चांसलर डॉ. पी श्यामा राजू ने कहा कि 'जीव सेतु' वेंटिलेटर प्रति सांस 500-600 मिलीलीटर हवा और प्रति मिनट 15-18 सांसें प्रदान कर सकता है, जो कोरोना मरीजों के लिए निर्दिष्ट है.
कम लागत वाला पीपीई : नौसेना का नवाचार
भारतीय नौसेना में तैनात एक डॉक्टर ने कम लागत वाला पीपीई विकसित किया है. भारतीय नौसेना ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत आने वाले राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (NRDC) के साथ मिलकर इसका पेटेंट हासिल किया है.
सेफ स्वाब : फोन बूथ टेस्टिंग
स्वास्थ्य कर्मचारियों को कोरोना से संक्रमित होने से बचाने के लिए, बीएमसी ने एक फोन बूथ बनाया है जहां मरीजों का कोरोना वायरस के लिए परीक्षण किया जा सकता है.
आईआईटी-बॉम्बे का डिवाइस ट्रैकिंग एप
आईआईटी बॉम्बे के छात्रों और पूर्व छात्रों ने एक ऐसा एप विकसित किया है, जो अधिकारियों को क्वारंटाइन का उल्लंघन करने वालों के बारे में जानकारी दे सकता है. इस एप का नाम 'Corontine' है.
आईआईटी हैदराबाद ने पेश किया कम लागत वाला वेंटिलेटर
आईआईटी हैदराबाद के निदेशक प्रो बी.एस. मूर्ति ने नरेंद्र मोदी सरकार से अपील की है कि 'बैग वाल्व मास्क' तकनीक अपनाने पर विचार करें. यह मौजूदा तकनीक वेंटिलेटर की मांग को पूरा करने के लिए एक सस्ता व आसान विकल्प है.
सैनिटाइजर जागरुकता वीडियो
आईआईटी खड़गपुर के छात्रों ने कोरोना के बारे में जागरुकता के लिए 12 क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं- असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, तमिल और तेलुगु में वीडियो बनाए हैं.
छात्रों ने बनाया हर्बल हैंड सैनिटाइजर
आईआईटी रुड़की की एक टीम ने 150 लीटर से अधिक हर्बल हैंड सैनिटाइटर तैयार किया है. इस टीम का नेतृत्व छात्र सिद्धार्थ शर्मा और वैभव जैन ने किया.
सस्ती टेस्ट किट
आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने एक टेस्ट किट विकसित की है, जो कोरोना के डायग्नोसिस की लागत को कम करने का वादा करती है. कुसुमा स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज द्वारा विकसित की गई यह किट प्रयोगशाला स्तर पर सफल रही है. अब पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) में इसका क्लीनिकल परीक्षण किया जा रहा है. एनआईवी को सरकार द्वारा नए टेस्टिंग इनोवेशंस को मान्य करने का काम सौंपा गया है.
देशभर के इंजीनियर्स (उद्यमियों, छात्रों और अनुसंधानकर्ताओं) ने कोरोना महामारी द्वारा उत्पन्न चुनौती का शीघ्रता से जवाब दिया है. इन लोगों ने नए नवाचारों के लिए कुछ नए स्टार्ट-अप्स, विश्वविद्यालयों और अन्य संस्थानों के साथ मिलकर काम किया.