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जल संकट के कगार पर विश्वभर के विकसित महानगर

पृथ्वी के 70 प्रतिशत भाग में पानी है, लेकिन इसका केवल 3 प्रतिशत हिस्सा ही मीठे पानी का है. विश्व की जनसंख्या 800 करोड़ है. कम से कम एक करोड़ लोग पानी की पहुंच के बिना जी रहे हैं. 270 करोड़ लोग पानी की कमी के कारण मुश्किल से जीवन व्यापन कर रहे हैं. दुनिया भर के 500 शहर, जिनमें कुछ भारतीय शहर भी शामिल हैं, जल संकट के कगार पर हैं. साल दर साल पानी की गुणवत्ता गिर रही है. जानें क्यों हो रहा है शहरी जीवन जल संकट के कारण दूभर...

जल संकट (प्रतीकात्मक चित्र)
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Published : Nov 8, 2019, 12:39 PM IST

पानी का भयानक संकट हमारे इंतजार में है. पेयजल संसाधन कई कारणों से कम होते जा रहे हैं. अगर हम समय रहते सतर्क होकर जरूरी क़दम नहीं उठाएंगे तो एक घूँट पानी के लिए भी तरसना पड़ जायेगा.
पिछले साल तमिल नाडू और महाराष्ट्र ने जिस जल संकट का सामना किया था वो जगजाहिर है. यदि सरकारें जल संरक्षण के मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेती हैं, तो भारत 2022 तक जल युद्ध छेड़ने वाले देशों में से एक बन सकता है.

जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि इस संकट के लिए नागरिक और सरकार समान रूप से जिम्मेदार हैं. उन्होंने आगे कहा कि भारतीय केवल अधिकारों के बारे में बात करते हैं लेकिन कर्तव्यों के बारे में कभी नहीं. शेखावत का दावा है कि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि चेन्नई और बेंगलुरु दूसरे केपटाउन में बदल सकते हैं.

केप टाउन ने वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन के पहले प्रभावों का अनुभव किया है. 2017-18 आये जल संकट जिसमें 40 लाख निवासियों को एक साथ कई दिनों के लिए पानी नहीं मिला था, दुनिया के लिए एक सबक है. पानी की कमी के कारण, शहर के निवासियों को प्रति दिन केवल 50 लीटर ही दिया गया था, जो कि एक औसत अमेरिकी अपने दैनिक स्नान के लिए उपयोग करता है. उन लोगों को इनाम देने की घोषणा की गई जिन्होंने कपड़े न धो कर पानी बचाया था. सरकार ने रेस्तरां, दुकानों और सार्वजनिक शौचालयों को पानी की खपत को रोकने का आदेश दिया था.

जीरो डे के नाम पर नगर पालिकाओं ने महीनों तक जलापूर्ति में कटौती की थी. पानी की बर्बादी पर नजर रखने के लिए, जल पुलिस ने घरों पर छापा मारा और भारी जुर्माना भी लगाया. जब उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र का तापमान सामान्य स्तर से ऊपर बढ़ जाता है, तो जलवायु पैटर्न को एलनीनो कहा जाता है. एलनीनो के प्रभाव के कारण, तापमान में वृद्धि हुई और बादल अंतर्देशीय हो गए.

परिणामस्वरूप दक्षिण अफ्रीका जो हरियाली का पर्याय था उसे गंभीर आकाल का सामना करना पड़ा. जलाशय पानी की मांगों को पूरा नहीं कर सके. कभी जल प्रबंधन का एक उदाहरण रहा केपटाउन, पानी की कमी झेल रहा था. बढ़ती हुई आबादी की पानी की माँग को पूरा करने में स्थानीय सरकारें विफल रहीं. यह जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों में से एक है.

केप टाउन शहर दक्षिण अफ्रीका के दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित एक बंदरगाह है. यह विश्व के सबसे बड़े शहरों में से एक है. यह वही शहर है जहाँ नेल्सन मंडेला को जेल में बंद रखा गया था. हर साल तकरीबन 20 लाख पर्यटक केप टाउन घूमने आते हैं. सिर्फ पर्यटन का योगदान यहाँ की अर्थव्यवस्था में 330 करोड़ डॉलर है जो इसे आय का प्रमुख स्रोत बनाता है.

इसे भी पढ़ें- दिल्ली को घेरता 'मौत का धुआं'

पांच-सितारा होटल, सुंदर समुद्र तट, शानदार बंदरगाह, केबल कार, द्वीप रिसॉर्ट, साइकिल रेस, क्रिकेट, रग्बी यहां के कुछ पर्यटकों के आकर्षण केंद्र हैं. लेकिन बढ़ते जल संकट के साथ, ये सभी विलासिताएं निरर्थक साबित होती हैं. पानी की कमी के कारण पर्यटन प्रभावित हुआ और अर्थव्यवस्था धीमी हो गई. पानी की एक बूंद ने वर्षों के विकास को डूबा दिया.

हम केपटाउन में संकट के प्रति उदासीन हो सकते हैं, लेकिन यह दुनिया भर के देशों के लिए खतरे की घंटी है. ब्राजील में साओ पाउलो एक गंभीर जल संकट के कगार पर है और यही हाल बेंगलुरु का भी है. बीजिंग, काहिरा और मॉस्को की हालत भी बेहतर नहीं हैं. आज भी शहर के निवासी पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं. स्वतंत्रता के समय, प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,000 घन मीटर थी जो 2018 में घटकर 1,540 रह गई है. हम वनों को काट रहे हैं और विकास के नाम पर झीलों पर अतिक्रमण कर रहे हैं. मानसून अनियमित हो चला है। भले ही बारिश समय पर हो, वर्षा जल संचयन की कोई भी योजना नहीं है. नतीजतन, भूजल स्तर में संकटपूर्ण गिरावट आई है. तेलंगाना सरकार द्वारा शुरू किया गया मिशन काकतीय और मिशन भागीरथ ऐसी विकट परिस्थितियों में आशा की किरण हैं.

पृथ्वी के 70 प्रतिशत भाग में पानी है, लेकिन इसका केवल 3 प्रतिशत हिस्सा ही मीठे पानी का है. विश्व की जनसंख्या 800 करोड़ है. कम से कम एक करोड़ लोग पानी की पहुंच के बिना जी रहे हैं. 270 करोड़ लोग पानी की कमी के कारण मुश्किल से जीवन व्यापन कर रहे हैं. दुनिया भर के 500 शहर, जिनमें कुछ भारतीय शहर भी शामिल हैं, जल संकट के कगार पर हैं. साल दर साल पानी की गुणवत्ता गिर रही है.

नतीजतन, कृषि की उपज प्रभावित हो रही है. नदियाँ नालों में परिवर्तित हो रहीं हैं. यदि किसी नदी का अतिक्रमण किया जाता है, तो सहायक नदियाँ और आसपास की झीलें धीरे-धीरे मर जाती हैं. जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर जल संरक्षण और प्रबंधन का अत्यधिक महत्व है. यह ज़िम्मेदारी सरकारों के साथ नागरिकों को भी साझा करनी होगी. उभरते संकट को दूर करने के लिए प्रत्येक नागरिक को अपने हिस्से की भूमिका निभानी चाहिए.

पानी का भयानक संकट हमारे इंतजार में है. पेयजल संसाधन कई कारणों से कम होते जा रहे हैं. अगर हम समय रहते सतर्क होकर जरूरी क़दम नहीं उठाएंगे तो एक घूँट पानी के लिए भी तरसना पड़ जायेगा.
पिछले साल तमिल नाडू और महाराष्ट्र ने जिस जल संकट का सामना किया था वो जगजाहिर है. यदि सरकारें जल संरक्षण के मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेती हैं, तो भारत 2022 तक जल युद्ध छेड़ने वाले देशों में से एक बन सकता है.

जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि इस संकट के लिए नागरिक और सरकार समान रूप से जिम्मेदार हैं. उन्होंने आगे कहा कि भारतीय केवल अधिकारों के बारे में बात करते हैं लेकिन कर्तव्यों के बारे में कभी नहीं. शेखावत का दावा है कि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि चेन्नई और बेंगलुरु दूसरे केपटाउन में बदल सकते हैं.

केप टाउन ने वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन के पहले प्रभावों का अनुभव किया है. 2017-18 आये जल संकट जिसमें 40 लाख निवासियों को एक साथ कई दिनों के लिए पानी नहीं मिला था, दुनिया के लिए एक सबक है. पानी की कमी के कारण, शहर के निवासियों को प्रति दिन केवल 50 लीटर ही दिया गया था, जो कि एक औसत अमेरिकी अपने दैनिक स्नान के लिए उपयोग करता है. उन लोगों को इनाम देने की घोषणा की गई जिन्होंने कपड़े न धो कर पानी बचाया था. सरकार ने रेस्तरां, दुकानों और सार्वजनिक शौचालयों को पानी की खपत को रोकने का आदेश दिया था.

जीरो डे के नाम पर नगर पालिकाओं ने महीनों तक जलापूर्ति में कटौती की थी. पानी की बर्बादी पर नजर रखने के लिए, जल पुलिस ने घरों पर छापा मारा और भारी जुर्माना भी लगाया. जब उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र का तापमान सामान्य स्तर से ऊपर बढ़ जाता है, तो जलवायु पैटर्न को एलनीनो कहा जाता है. एलनीनो के प्रभाव के कारण, तापमान में वृद्धि हुई और बादल अंतर्देशीय हो गए.

परिणामस्वरूप दक्षिण अफ्रीका जो हरियाली का पर्याय था उसे गंभीर आकाल का सामना करना पड़ा. जलाशय पानी की मांगों को पूरा नहीं कर सके. कभी जल प्रबंधन का एक उदाहरण रहा केपटाउन, पानी की कमी झेल रहा था. बढ़ती हुई आबादी की पानी की माँग को पूरा करने में स्थानीय सरकारें विफल रहीं. यह जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों में से एक है.

केप टाउन शहर दक्षिण अफ्रीका के दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित एक बंदरगाह है. यह विश्व के सबसे बड़े शहरों में से एक है. यह वही शहर है जहाँ नेल्सन मंडेला को जेल में बंद रखा गया था. हर साल तकरीबन 20 लाख पर्यटक केप टाउन घूमने आते हैं. सिर्फ पर्यटन का योगदान यहाँ की अर्थव्यवस्था में 330 करोड़ डॉलर है जो इसे आय का प्रमुख स्रोत बनाता है.

इसे भी पढ़ें- दिल्ली को घेरता 'मौत का धुआं'

पांच-सितारा होटल, सुंदर समुद्र तट, शानदार बंदरगाह, केबल कार, द्वीप रिसॉर्ट, साइकिल रेस, क्रिकेट, रग्बी यहां के कुछ पर्यटकों के आकर्षण केंद्र हैं. लेकिन बढ़ते जल संकट के साथ, ये सभी विलासिताएं निरर्थक साबित होती हैं. पानी की कमी के कारण पर्यटन प्रभावित हुआ और अर्थव्यवस्था धीमी हो गई. पानी की एक बूंद ने वर्षों के विकास को डूबा दिया.

हम केपटाउन में संकट के प्रति उदासीन हो सकते हैं, लेकिन यह दुनिया भर के देशों के लिए खतरे की घंटी है. ब्राजील में साओ पाउलो एक गंभीर जल संकट के कगार पर है और यही हाल बेंगलुरु का भी है. बीजिंग, काहिरा और मॉस्को की हालत भी बेहतर नहीं हैं. आज भी शहर के निवासी पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं. स्वतंत्रता के समय, प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,000 घन मीटर थी जो 2018 में घटकर 1,540 रह गई है. हम वनों को काट रहे हैं और विकास के नाम पर झीलों पर अतिक्रमण कर रहे हैं. मानसून अनियमित हो चला है। भले ही बारिश समय पर हो, वर्षा जल संचयन की कोई भी योजना नहीं है. नतीजतन, भूजल स्तर में संकटपूर्ण गिरावट आई है. तेलंगाना सरकार द्वारा शुरू किया गया मिशन काकतीय और मिशन भागीरथ ऐसी विकट परिस्थितियों में आशा की किरण हैं.

पृथ्वी के 70 प्रतिशत भाग में पानी है, लेकिन इसका केवल 3 प्रतिशत हिस्सा ही मीठे पानी का है. विश्व की जनसंख्या 800 करोड़ है. कम से कम एक करोड़ लोग पानी की पहुंच के बिना जी रहे हैं. 270 करोड़ लोग पानी की कमी के कारण मुश्किल से जीवन व्यापन कर रहे हैं. दुनिया भर के 500 शहर, जिनमें कुछ भारतीय शहर भी शामिल हैं, जल संकट के कगार पर हैं. साल दर साल पानी की गुणवत्ता गिर रही है.

नतीजतन, कृषि की उपज प्रभावित हो रही है. नदियाँ नालों में परिवर्तित हो रहीं हैं. यदि किसी नदी का अतिक्रमण किया जाता है, तो सहायक नदियाँ और आसपास की झीलें धीरे-धीरे मर जाती हैं. जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर जल संरक्षण और प्रबंधन का अत्यधिक महत्व है. यह ज़िम्मेदारी सरकारों के साथ नागरिकों को भी साझा करनी होगी. उभरते संकट को दूर करने के लिए प्रत्येक नागरिक को अपने हिस्से की भूमिका निभानी चाहिए.

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पानी का भयानक संकट हमारे इंतज़ार में है। पेयजल संसाधन कई कारणों से कम होते जा रहे हैं। अगर हम समय रहते सतर्क होकर ज़रूरी क़दम नहीं उठाएंगे तो एक घूँट पानी के लिए भी तरसना पड़ जायेगा। पिछले साल तमिल नाडू और महाराष्ट्र ने जिस जल संकट का सामना किया था वो जग ज़ाहिर है। यदि सरकारें जल संरक्षण के मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेती हैं, तो भारत 2022 तक जल युद्ध छेड़ने वाले देशों में से एक बन सकता है। जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि इस संकट के लिए नागरिक और सरकार समान रूप से जिम्मेदार हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय केवल अधिकारों के बारे में बात करते हैं लेकिन कर्तव्यों के बारे में कभी नहीं। शेखावत का दावा है कि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि चेन्नई और बेंगलुरु दूसरे केपटाउन में बदल सकते हैं।



केप टाउन ने वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन के पहले प्रभावों का अनुभव किया है। 2017-18 आये जल संकट जिसमें 40 लाख निवासियों को एक साथ कई दिनों के लिए पानी नहीं मिला था, दुनिया के लिए एक सबक है। पानी की कमी के कारण, शहर के निवासियों को प्रति दिन केवल 50 लीटर ही दिया गया था, जो कि एक औसत अमेरिकी अपने दैनिक स्नान के लिए उपयोग करता है। उन लोगों को इनाम देने की घोषणा की गई जिन्होंने कपड़े न धो कर पानी बचाया था। सरकार ने रेस्तरां, दुकानों और सार्वजनिक शौचालयों को पानी की खपत को रोकने का आदेश दिया था। जीरो डे के नाम पर नगर पालिकाओं ने महीनों तक जलापूर्ति में कटौती की थी। पानी की बर्बादी पर नजर रखने के लिए, जल पुलिस ने घरों पर छापा मारा और भारी जुर्माना भी लगाया। जब उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र का तापमान सामान्य स्तर से ऊपर बढ़ जाता है, तो जलवायु पैटर्न को एल नीनो कहा जाता है। अल नीनो के प्रभाव के कारण, तापमान में वृद्धि हुई और बादल अंतर्देशीय हो गए। परिणामस्वरूप दक्षिण अफ्रीका जो हरियाली का पर्याय था उसे गंभीर आकाल का सामना करना पड़ा। जलाशय पानी की मांगों को पूरा नहीं कर सके। कभी जल प्रबंधन का एक उदाहरण रहा  केप टाउन, पानी की कमी झेल रहा था। बढ़ती हुई आबादी की पानी की माँग को पूरा करने में स्थानीय सरकारें विफल रहीं। यह जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों में से एक है। केप टाउन शहर दक्षिण अफ्रीका के दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित एक बंदरगाह है। यह विश्व के सबसे बड़े शहरों में से एक है। यह वही शहर है जहाँ नेल्सन मंडेला को जेल में बंद रखा गया था। हर साल तकरीबन 20 लाख पर्यटक केप टाउन घूमने आते हैं। सिर्फ पर्यटन का योगदान यहाँ की अर्थव्यवस्था में 330 करोड़ डॉलर है जो इसे आय का प्रमुख स्रोत बनाता है। 5-सितारा होटल, सुंदर समुद्र तट, शानदार बंदरगाह, केबल कार, द्वीप रिसॉर्ट, साइकिल रेस, क्रिकेट, रग्बी यहां के कुछ पर्यटकों के आकर्षण केंद्र हैं। लेकिन बढ़ते जल संकट के साथ, ये सभी विलासिताएं निरर्थक साबित होती हैं। पानी की कमी के कारण पर्यटन प्रभावित हुआ और अर्थव्यवस्था धीमी हो गई। पानी की एक बूंद ने वर्षों के विकास को डूबा दिया।



हम केपटाउन में संकट के प्रति उदासीन हो सकते हैं, लेकिन यह दुनिया भर के देशों के लिए खतरे की घंटी है। ब्राजील में साओ पाउलो एक गंभीर जल संकट के कगार पर है और यही हाल बेंगलुरु का भी है। बीजिंग, काहिरा और मॉस्को की हालत भी बेहतर नहीं हैं। आज भी शहर के निवासी पानी के टैंकरों पर निर्भर हैं। स्वतंत्रता के समय, प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,000 घन मीटर थी जो 2018 में घटकर 1,540 रह गई है। हम वनों को काट रहे हैं और विकास के नाम पर झीलों पर अतिक्रमण कर रहे हैं। मानसून अनियमित हो चला है। भले ही बारिश समय पर हो, वर्षा जल संचयन की कोई भी योजना नहीं है। नतीजतन, भूजल स्तर में संकटपूर्ण गिरावट आई है। तेलंगाना सरकार द्वारा शुरू किया गया मिशन काकतीय और मिशन भागीरथ ऐसी विकट परिस्थितियों में आशा की किरण हैं।



पृथ्वी के 70 प्रतिशत भाग में पानी है, लेकिन इसका केवल 3 प्रतिशत हिस्सा ही मीठे पानी का है। विश्व की जनसंख्या 800 करोड़ है। कम से कम एक करोड़ लोग पानी की पहुंच के बिना जी रहे हैं। 270 करोड़ लोग पानी की कमी के कारण मुश्किल से जीवन व्यापन कर रहे हैं। दुनिया भर के 500 शहर, जिनमें कुछ भारतीय शहर भी शामिल हैं, जल संकट के कगार पर हैं। साल दर साल पानी की गुणवत्ता गिर रही है। नतीजतन, कृषि की उपज प्रभावित हो रही है। नदियाँ नालों में परिवर्तित हो रहीं हैं। यदि किसी नदी का अतिक्रमण किया जाता है, तो सहायक नदियाँ और आसपास की झीलें धीरे-धीरे मर जाती हैं। जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर जल संरक्षण और प्रबंधन का अत्यधिक महत्व है। यह ज़िम्मेदारी सरकारों के साथ नागरिकों को भी साझा करनी होगी। उभरते संकट को दूर करने के लिए प्रत्येक नागरिक को अपने हिस्से की भूमिका निभानी चाहिए।



 


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