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भारत-चीन संबंध बिगड़ने से पूर्वोत्तर में बिखरे हुए उग्रवाद को मिलेगा बढ़ावा

भारत-चीन तनाव के बीच तनावपूर्ण स्थिति के कारण पूर्वोतर भारत के इलाकों- विशेषकर असम, मणिपुर और नागालैंड में उग्रवादी आंदोलनों में काफी प्रभाव पड़ सकता है. पूर्वोत्तर क्षेत्रों में चीन की बढ़ती रुचि विद्रोही संगठनों के लिए मददगार बन सकती है. हालांकि, हाल के वर्षों में ये विद्रोही संगठन काफी कमजोर हो चुके हैं.

प्रतीकात्मक चित्र
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Published : May 31, 2020, 9:16 PM IST

नई दिल्ली : भारत-चीन के बीच जारी तनाव के बीच दोनों देशों की स्थिति पैदा होने पर पूर्वोतर इलाकों विशेषकर असम, मणिपुर और नागालैंड में उग्रवादी आंदोलनों में काफी प्रभाव पड़ सकता है. विशेष कर उन संगठनों द्वारा चलाए गए आंदोलनों में, जिसमें चीन का हाथ रहा है.

पूर्वोत्तर क्षेत्रों में चीन की बढ़ती रुचि विद्रोही संगठनों की मदद के लिए आगे आ सकती है, जो हाल के वर्षों में काफी कमजोर हो गए थे. दशकों से अधिकतर समूह भारतीय राज्य के खिलाफ लगातार लड़ाई के बाद प्रासंगिकता के लिए लड़ रहे थे. भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में चीन को उसकी गतिविधि बढ़ाने के लिए कई फैक्टर हो सकते हैं.

इन कारकों में सबसे पहली चीन द्वारा अपनाई गई निहित रणनीति है, जो उसे हर संभव रूप में कई मोर्चों को खोलने का इजाजत देती है.

हजारों भारतीय जवान और चीनी के पीएलए सैनिकों को उच्च-ऊंचाई सीमा में तैनाती के लिए सड़क और विमान से ले जाया जा रहा है, जहां दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देशों के बीच निरंतर गतिरोध चल रहा है.

भारतीय रणनीति गुणात्मक और मात्रात्मक रूप से अपने उत्तरी मोर्चे के पास अपनी सेना को बढ़ाने की है और इन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के उन्नयन की योजना के तहत को उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जवान और युद्ध सामग्री तैनात की गई है.

भारत की रणनीति इन इलाकों में चीनी रणनीति को धीमा करने और 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा के साथ अधिक से अधिक मोर्चों को खोलने की है ताकि इन क्षेत्रों में भारतीय सेना फैल जाए.

पहले उत्तराखंड और सिक्किम में चीन सीमा पर और दूसरा अरुणाचल प्रदेश में चीन के इलाकों पर चीन अपना दावा पेश करता है. लेकिन इसके अलावा वह तीन पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी संगठनों से लाभ उठाना चाहता है, जो भारत के कई राज्यों में फैले हुए हैं. इसके अलावा चीन का पूर्वोत्तर राज्यों में मौजूद उग्रवादी संगठनों से गहरा नाता रहा है.

1967 में 133 नागा विद्रोहियों का एक दल एक कठिन रास्ते के माध्यम से रेल में हथियार लेकर चीन पहुंचा और चीनी सेना से गहरा नाता कायम किया. उसके बाद अन्य कई भी इसी राह पर चल पड़े.

इसी तरह ULFA और मिती उग्रवादियों ने भी अलग-अलग समय में चीन सराकर से अपने संबंध स्थापित किए और यह आज तक जारी है.

उदाहरण के लिए, असम के प्रमुख विद्रोही संगठन उल्फा के मायावी कमांडर इन चीफ परेश बरुआ को माना जाता है कि वह चीन के युन्नान प्रांत के सीमावर्ती शहर रुइली का रहने वाला है, जो अपने जडे माइंस के लिए प्रसिद्ध है.

इसके साथ ही नागास, मणिपुरी और असम उग्रवादी भी चीन की मदद करते रहे हैं. एनएससीएन, उल्फा और मणिपुर के पीएलए, यूएनएलएफ और प्रीपाक जैसे मिती संगठनों के करीबी संघों ने संप्रभुता और स्वतंत्रता की मांग की, जो आज भी जारी है.

दशकों पहले जब यह मांग शुरू हुई थी, उस समय भी अधिकतर समूह चीन के संपर्क में थे. हालांकि कई बार चीनी राज्य ने इन समूहों का समर्थन नहीं किया था, लेकिन उन्हें तरीकों से मदद भेजी गई और गैर-राज्य समूह से हथियारों की खरीद में काफी मदद मिली.

इसके अलावा संप्रभुता की मांग करने वाले नागालैंड और मणिपुर के नगाओं के बीच और असम में, उग्रवादी गुटों में काफी निराशा है, जो उग्रवादियों द्वारा अपने मुद्दों पर काफी समझौता किए जाने के बाद भी बकाया मुद्दों के अंतिम समाधान को विफल करने के लिए सरकार से बात कर रहे हैं, जबकि NSCN से पिछले 23 वर्षों से बात चल रही है. ULFA से बातचीत होते हुए 15 वर्ष हो गए हैं.

NSCN और ULFA दोनों का कहना है कि सरकार के साथ उनकी संबंधित बातचीत समाप्त हो गई है और गेंद सरकार के पाले में है.

पढ़ें- लिपुलेख सीमा तक पहुंचा ईटीवी भारत- जानें, भारत व नेपाल विवाद की पूरी कहानी

कुछ संकेत अशुभ हैं
इस साल 14 फरवरी को, मणिपुर के उखरूल में एक स्थानीय उत्सव में लगभग 2,000 नागा एकत्र हुए और चीन के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए वे अंतिम समाधान से निराशा थे कि सरकार के साथ नागा वार्ता प्रक्रिया सात दशक पुराने मुद्दे को हल करने में विफल रही.

यह वही कड़ी है, जिसे चीन अब ध्यान से देखेगा
नस्लीय भेदभाव के किस्सों के बीच, मुख्य भूमि और पूर्वोत्तर के लोगों के बीच हाल के दिनों में वृद्धि हुई है, कोरोना वायरस के फैलाव के साथ कई मामलों में, पूर्वोत्तर के लोगों के मंगोलॉयड-लुक को चीनी के साथ आत्मीयता के बराबर माना गया है. दिलचस्प बात यह है कि चीनी राज्य के स्वामित्व वाले मीडिया ने ऐसे मामलों की हालिया स्थिति पर प्रमुखता से रिपोर्ट जारी की है - जो इस मुद्दे को हवा देने के लिए उनकी रुचि का संकेत है.

चीन के मौन समर्थन वाले पूर्वोत्तर उग्रवादी विशेष रूप से प्रवासी युवाओं में से रैंक में भर्ती को बढ़ाने की कोशिश करेंगे, जो पूर्वोत्तर में अपने मूल घरों में लौट रहे हैं. शहरों और शहरी केंद्रों में आर्थिक नुकसान के साथ, लाखों युवा बेरोजगार होंगे. पूर्वोत्तर के उग्रवादी इसका फायदा उठाने की कोशिश करेंगे.

इसके अलाला सरकार द्वारा अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे मुस्लिम बहुसंख्यक देशों के गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देने के लिए सीएए बिल पास किया है, जिसने पूर्वोत्तर में चल रहे आंदोलनों को ठीक ठहराते हुए यह संदेश दिया कि नई दिल्ली पूर्वोत्तर के लोगों नहीं समझती.

वहीं पूर्वोत्तर भारत में एक कम-लागत, उच्च-लाभ वाले प्रॉक्सी युद्ध, हाइब्रिड युद्ध के रूप में, चीनी हितों को भारत से बेहतर साबित होंगे, खासकर जब भारत, पाकिस्तान के साथ कश्मीर में सीमा रेखा के पास पहले से बहुत महंगे प्रॉक्सी युद्ध में लगा हुआ है. संभावित चीनी योजना को पूर्व-खाली करने का एकमात्र तरीका प्रतीत होता है कि बारत इन क्षेत्रों में आक्रमक कार्रवाई कर सकता है.

नई दिल्ली : भारत-चीन के बीच जारी तनाव के बीच दोनों देशों की स्थिति पैदा होने पर पूर्वोतर इलाकों विशेषकर असम, मणिपुर और नागालैंड में उग्रवादी आंदोलनों में काफी प्रभाव पड़ सकता है. विशेष कर उन संगठनों द्वारा चलाए गए आंदोलनों में, जिसमें चीन का हाथ रहा है.

पूर्वोत्तर क्षेत्रों में चीन की बढ़ती रुचि विद्रोही संगठनों की मदद के लिए आगे आ सकती है, जो हाल के वर्षों में काफी कमजोर हो गए थे. दशकों से अधिकतर समूह भारतीय राज्य के खिलाफ लगातार लड़ाई के बाद प्रासंगिकता के लिए लड़ रहे थे. भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में चीन को उसकी गतिविधि बढ़ाने के लिए कई फैक्टर हो सकते हैं.

इन कारकों में सबसे पहली चीन द्वारा अपनाई गई निहित रणनीति है, जो उसे हर संभव रूप में कई मोर्चों को खोलने का इजाजत देती है.

हजारों भारतीय जवान और चीनी के पीएलए सैनिकों को उच्च-ऊंचाई सीमा में तैनाती के लिए सड़क और विमान से ले जाया जा रहा है, जहां दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देशों के बीच निरंतर गतिरोध चल रहा है.

भारतीय रणनीति गुणात्मक और मात्रात्मक रूप से अपने उत्तरी मोर्चे के पास अपनी सेना को बढ़ाने की है और इन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के उन्नयन की योजना के तहत को उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जवान और युद्ध सामग्री तैनात की गई है.

भारत की रणनीति इन इलाकों में चीनी रणनीति को धीमा करने और 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा के साथ अधिक से अधिक मोर्चों को खोलने की है ताकि इन क्षेत्रों में भारतीय सेना फैल जाए.

पहले उत्तराखंड और सिक्किम में चीन सीमा पर और दूसरा अरुणाचल प्रदेश में चीन के इलाकों पर चीन अपना दावा पेश करता है. लेकिन इसके अलावा वह तीन पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी संगठनों से लाभ उठाना चाहता है, जो भारत के कई राज्यों में फैले हुए हैं. इसके अलावा चीन का पूर्वोत्तर राज्यों में मौजूद उग्रवादी संगठनों से गहरा नाता रहा है.

1967 में 133 नागा विद्रोहियों का एक दल एक कठिन रास्ते के माध्यम से रेल में हथियार लेकर चीन पहुंचा और चीनी सेना से गहरा नाता कायम किया. उसके बाद अन्य कई भी इसी राह पर चल पड़े.

इसी तरह ULFA और मिती उग्रवादियों ने भी अलग-अलग समय में चीन सराकर से अपने संबंध स्थापित किए और यह आज तक जारी है.

उदाहरण के लिए, असम के प्रमुख विद्रोही संगठन उल्फा के मायावी कमांडर इन चीफ परेश बरुआ को माना जाता है कि वह चीन के युन्नान प्रांत के सीमावर्ती शहर रुइली का रहने वाला है, जो अपने जडे माइंस के लिए प्रसिद्ध है.

इसके साथ ही नागास, मणिपुरी और असम उग्रवादी भी चीन की मदद करते रहे हैं. एनएससीएन, उल्फा और मणिपुर के पीएलए, यूएनएलएफ और प्रीपाक जैसे मिती संगठनों के करीबी संघों ने संप्रभुता और स्वतंत्रता की मांग की, जो आज भी जारी है.

दशकों पहले जब यह मांग शुरू हुई थी, उस समय भी अधिकतर समूह चीन के संपर्क में थे. हालांकि कई बार चीनी राज्य ने इन समूहों का समर्थन नहीं किया था, लेकिन उन्हें तरीकों से मदद भेजी गई और गैर-राज्य समूह से हथियारों की खरीद में काफी मदद मिली.

इसके अलावा संप्रभुता की मांग करने वाले नागालैंड और मणिपुर के नगाओं के बीच और असम में, उग्रवादी गुटों में काफी निराशा है, जो उग्रवादियों द्वारा अपने मुद्दों पर काफी समझौता किए जाने के बाद भी बकाया मुद्दों के अंतिम समाधान को विफल करने के लिए सरकार से बात कर रहे हैं, जबकि NSCN से पिछले 23 वर्षों से बात चल रही है. ULFA से बातचीत होते हुए 15 वर्ष हो गए हैं.

NSCN और ULFA दोनों का कहना है कि सरकार के साथ उनकी संबंधित बातचीत समाप्त हो गई है और गेंद सरकार के पाले में है.

पढ़ें- लिपुलेख सीमा तक पहुंचा ईटीवी भारत- जानें, भारत व नेपाल विवाद की पूरी कहानी

कुछ संकेत अशुभ हैं
इस साल 14 फरवरी को, मणिपुर के उखरूल में एक स्थानीय उत्सव में लगभग 2,000 नागा एकत्र हुए और चीन के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए वे अंतिम समाधान से निराशा थे कि सरकार के साथ नागा वार्ता प्रक्रिया सात दशक पुराने मुद्दे को हल करने में विफल रही.

यह वही कड़ी है, जिसे चीन अब ध्यान से देखेगा
नस्लीय भेदभाव के किस्सों के बीच, मुख्य भूमि और पूर्वोत्तर के लोगों के बीच हाल के दिनों में वृद्धि हुई है, कोरोना वायरस के फैलाव के साथ कई मामलों में, पूर्वोत्तर के लोगों के मंगोलॉयड-लुक को चीनी के साथ आत्मीयता के बराबर माना गया है. दिलचस्प बात यह है कि चीनी राज्य के स्वामित्व वाले मीडिया ने ऐसे मामलों की हालिया स्थिति पर प्रमुखता से रिपोर्ट जारी की है - जो इस मुद्दे को हवा देने के लिए उनकी रुचि का संकेत है.

चीन के मौन समर्थन वाले पूर्वोत्तर उग्रवादी विशेष रूप से प्रवासी युवाओं में से रैंक में भर्ती को बढ़ाने की कोशिश करेंगे, जो पूर्वोत्तर में अपने मूल घरों में लौट रहे हैं. शहरों और शहरी केंद्रों में आर्थिक नुकसान के साथ, लाखों युवा बेरोजगार होंगे. पूर्वोत्तर के उग्रवादी इसका फायदा उठाने की कोशिश करेंगे.

इसके अलाला सरकार द्वारा अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे मुस्लिम बहुसंख्यक देशों के गैर मुस्लिमों को भारत की नागरिकता देने के लिए सीएए बिल पास किया है, जिसने पूर्वोत्तर में चल रहे आंदोलनों को ठीक ठहराते हुए यह संदेश दिया कि नई दिल्ली पूर्वोत्तर के लोगों नहीं समझती.

वहीं पूर्वोत्तर भारत में एक कम-लागत, उच्च-लाभ वाले प्रॉक्सी युद्ध, हाइब्रिड युद्ध के रूप में, चीनी हितों को भारत से बेहतर साबित होंगे, खासकर जब भारत, पाकिस्तान के साथ कश्मीर में सीमा रेखा के पास पहले से बहुत महंगे प्रॉक्सी युद्ध में लगा हुआ है. संभावित चीनी योजना को पूर्व-खाली करने का एकमात्र तरीका प्रतीत होता है कि बारत इन क्षेत्रों में आक्रमक कार्रवाई कर सकता है.

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