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कोरोना वायरस और लॉकडाउन बने मोक्ष की राह में बाधा

सनातन धर्म में अंतिम संस्कार के बाद अस्थि विसर्जन का खास महत्व है. मान्यता है कि अस्थि विसर्जन से ही मोक्ष प्राप्ति की राह मिलती है. लेकिन कोरोना वायरस के चलते जारी लॉकडाउन ने मोक्ष की राह में बड़ी बाधा खड़ी कर दी है, क्योंकि पवित्र नदियों में अस्थि विसर्जन ही नहीं हो पा रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

coronavirus pandemic lockdown and salvation
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Published : Apr 13, 2020, 7:06 PM IST

भोपाल : सनातन धर्म में अंतिम संस्कार के बाद पवित्र नदियों में अस्थि विसर्जन का खास महत्व है. मान्यता है कि अस्थि विसर्जन से ही मोक्ष प्राप्ति की राह मिलती है. लेकिन कोरोना वायरस के चलते जारी लॉकडाउन ने मोक्ष की राह में बड़ी बाधा खड़ी कर दी है, क्योंकि पवित्र नदियों में अस्थि विसर्जन ही नहीं हो पा रहे हैं.

मध्यप्रदेश में इस दौरान सामान्य मौतों से लेकर बीमारी के कारण भी मौतों का सिलसिला जारी है और सनातन परंपरा के मुताबिक पार्थिव देह का अंतिम संस्कार किया जाता है. अंतिम संस्कार के दो से तीन दिन बाद अस्थियों का संचयन कर उन्हें पवित्र नदियों में प्रवाहित किया जाता है.

मान्यता है कि अस्थियों को पवित्र जल में प्रवाहित किए जाने से देह त्यागने वाले व्यक्ति को मोक्ष की राह हासिल होती है. लेकिन लॉकडाउन के कारण लोग शहर की सीमा ही पार नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में अस्थियों का विसर्जन मुश्किल हो चला है.

अस्थियों का विसर्जन न होने पर बड़ी संख्या में लोग अस्थियों को संचित कर श्मशान घाट पर ही किसी पेड़ पर लटकाने अथवा गौशाला या अपने घर में ही किसी पवित्र स्थान पर उन्हें रखने को मजबूर हैं.

शुद्घता और तेरहवीं जैसे कर्मकांड जरूर किए जा रहे हैं. यह उन्हें मजबूरी में करना पड़ रहा है. भोपाल के सुभाषनगर विश्रामघाट के ट्रस्ट के प्रबंधक शोभराज सुखानी का कहना है कि 'कई लोग अस्थिकलश को विश्राम घाट में ही रख जाते हैं और कई लोग अस्थिकलश को घर ले जाते हैं और पेड़ पर टांग देते हैं.

सभी लोग लॉकडाउन हटने का इंतजार कर रहे हैं. उसके बाद ही अस्थि विसर्जन के लिए जा पाएंगे. राजधानी भोपाल में एक वरिष्ठ अधिकारी के पिताजी का पिछले दिनों निधन हो गया. उन्हें मुश्किल से पांच लोगों को अंतिम संस्कार में ले जाने की अनुमति मिली. उनके परिजन भी बाहर से नहीं आ पाए. अंतिम संस्कार के बाद उन्होंने अस्थि संचय तो कर लिया है, मगर उसे विश्राम घाट में ही रखा है.

नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा कि यह मजबूरी है और महामारी फैली है इसलिए सभी को इसका पालन करना चाहिए और वह भी लॉकडाउन हटने का इंतजार कर रहे हैं. उसके बाद ही गंगा में जाकर अस्थि विसर्जन करेंगे.

मुरैना जिले के सदर बाजार में रहने वाली कुसुम शर्मा का 27 मार्च को निधन हो गया था, मगर उनका परिवार अस्थि विसर्जन के लिए गंगा के तट पर नहीं जा सका. लिहाजा उनके परिजनों ने अस्थियों को मुक्तिधाम में ही रखवा दिया है, और शेष अन्य कर्मकांड पूरे कराए हैं. महामारी के चलते राज्य में एक शहर से दूसरे शहर शव को ले जाने की अनुमति नहीं है. जिस शहर में मृत्यु होगी वहीं अंतिम संस्कार किया जाएगा.

इंदौर में तो अंतिम यात्रा में सिर्फ पांच लोगों को ही शामिल होने की अनुमति दी जा रही है. अस्थि विसर्जन के लिए शहर से बाहर जाने की अनुमति नहीं मिल रही है. इस तरह की खबरें राज्य के लगभग हर हिस्से से आ रही हैं कि लोग अपने परिजनों के निधन के बाद अंतिम संस्कार तो कर दे रहे हैं, मगर अस्थियों का विसर्जन करने पवित्र नदियों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं.

भोपाल : सनातन धर्म में अंतिम संस्कार के बाद पवित्र नदियों में अस्थि विसर्जन का खास महत्व है. मान्यता है कि अस्थि विसर्जन से ही मोक्ष प्राप्ति की राह मिलती है. लेकिन कोरोना वायरस के चलते जारी लॉकडाउन ने मोक्ष की राह में बड़ी बाधा खड़ी कर दी है, क्योंकि पवित्र नदियों में अस्थि विसर्जन ही नहीं हो पा रहे हैं.

मध्यप्रदेश में इस दौरान सामान्य मौतों से लेकर बीमारी के कारण भी मौतों का सिलसिला जारी है और सनातन परंपरा के मुताबिक पार्थिव देह का अंतिम संस्कार किया जाता है. अंतिम संस्कार के दो से तीन दिन बाद अस्थियों का संचयन कर उन्हें पवित्र नदियों में प्रवाहित किया जाता है.

मान्यता है कि अस्थियों को पवित्र जल में प्रवाहित किए जाने से देह त्यागने वाले व्यक्ति को मोक्ष की राह हासिल होती है. लेकिन लॉकडाउन के कारण लोग शहर की सीमा ही पार नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में अस्थियों का विसर्जन मुश्किल हो चला है.

अस्थियों का विसर्जन न होने पर बड़ी संख्या में लोग अस्थियों को संचित कर श्मशान घाट पर ही किसी पेड़ पर लटकाने अथवा गौशाला या अपने घर में ही किसी पवित्र स्थान पर उन्हें रखने को मजबूर हैं.

शुद्घता और तेरहवीं जैसे कर्मकांड जरूर किए जा रहे हैं. यह उन्हें मजबूरी में करना पड़ रहा है. भोपाल के सुभाषनगर विश्रामघाट के ट्रस्ट के प्रबंधक शोभराज सुखानी का कहना है कि 'कई लोग अस्थिकलश को विश्राम घाट में ही रख जाते हैं और कई लोग अस्थिकलश को घर ले जाते हैं और पेड़ पर टांग देते हैं.

सभी लोग लॉकडाउन हटने का इंतजार कर रहे हैं. उसके बाद ही अस्थि विसर्जन के लिए जा पाएंगे. राजधानी भोपाल में एक वरिष्ठ अधिकारी के पिताजी का पिछले दिनों निधन हो गया. उन्हें मुश्किल से पांच लोगों को अंतिम संस्कार में ले जाने की अनुमति मिली. उनके परिजन भी बाहर से नहीं आ पाए. अंतिम संस्कार के बाद उन्होंने अस्थि संचय तो कर लिया है, मगर उसे विश्राम घाट में ही रखा है.

नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा कि यह मजबूरी है और महामारी फैली है इसलिए सभी को इसका पालन करना चाहिए और वह भी लॉकडाउन हटने का इंतजार कर रहे हैं. उसके बाद ही गंगा में जाकर अस्थि विसर्जन करेंगे.

मुरैना जिले के सदर बाजार में रहने वाली कुसुम शर्मा का 27 मार्च को निधन हो गया था, मगर उनका परिवार अस्थि विसर्जन के लिए गंगा के तट पर नहीं जा सका. लिहाजा उनके परिजनों ने अस्थियों को मुक्तिधाम में ही रखवा दिया है, और शेष अन्य कर्मकांड पूरे कराए हैं. महामारी के चलते राज्य में एक शहर से दूसरे शहर शव को ले जाने की अनुमति नहीं है. जिस शहर में मृत्यु होगी वहीं अंतिम संस्कार किया जाएगा.

इंदौर में तो अंतिम यात्रा में सिर्फ पांच लोगों को ही शामिल होने की अनुमति दी जा रही है. अस्थि विसर्जन के लिए शहर से बाहर जाने की अनुमति नहीं मिल रही है. इस तरह की खबरें राज्य के लगभग हर हिस्से से आ रही हैं कि लोग अपने परिजनों के निधन के बाद अंतिम संस्कार तो कर दे रहे हैं, मगर अस्थियों का विसर्जन करने पवित्र नदियों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं.

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