नई दिल्ली : भारत सोमवार को चीन के साथ होने वाली उच्च-स्तरीय सैन्य वार्ता के सातवें दौर में पूर्वी लद्दाख में टकराव के बिंदुओं से चीन द्वारा सैनिकों की पूरी तरह से जल्द वापसी पर जोर देगा. बैठक में दोनों तरफ के राजनयिक भी हिस्सा ले सकते हैं.
सूत्रों ने ईटीवी भारत को बताया कि बैठक में चीनी विदेश मंत्रालय का एक प्रतिनिधि शामिल हो सकता है. पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बैठक भातीय समयानुसार, सुबह साढ़े नौ बजे और चीनी समयानुसार साढ़े 11 बजे शुरू होगी.
यह पहली बार ऐसा होगा जब चीनी विदेश मंत्रालय का कोई अधिकारी कोर कमांडर की बैठक में हिस्सा लेगा. भारत के विदेश मंत्रालय का एक अधिकारी जो 20 सितंबर से अन्य वार्ताओं में हिस्सा लिया था, वह इस बैठक में भी भाग लेगा.
यह समझा जाता है कि, उच्च स्तरीय चीन अध्ययन समूह ने पहले से ही बैठक के एजेंडे को जानबूझकर और अंतिम रूप दिया है, जहां तक भारत का संबंध है.
इससे पहले भारत और चीन के बीच 6 जून, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई, 2 अगस्त और 21 सितंबर को कमांडर स्तर की वार्ता हुई, लेकिन यह सभी बैठकें अनिष्कर्षपूर्ण साबित हुई हैं.
सूत्रों ने बताया कि वार्ता का एजेंडा पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले सभी बिंदुओं से सैनिकों की वापसी के लिए एक रूपरेखा तैयार करना होगा.
चीन अध्ययन समूह (सीएसजी) के शीर्ष मंत्रियों और सैन्य अधिकारियों ने पूर्वी लद्दाख में शुक्रवार को हालात की समीक्षा की थी और सोमवार को होने वाली वार्ता में उठाये जाने वाले प्रमुख मुद्दों पर विचार-विमर्श किया था.
वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भारतीय सेना की लेह स्थित 14 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह करेंगे. इस दौरान लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन और विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) नवीन श्रीवास्तव सहित कई अन्य लोग भी शामिल होंगे.
बता दें कि भारत चीन वार्ता में जनरल हरिंदर सिंह की यह अंतिम भागीदारी होगी. उनकी जगह जनरल मेनन कमान संभालेंगे. जनरल सिंह देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) के कमांडेंट के रूप में अपना अगला कार्यभार संभालेंगे.
बैठक में विघटन और डी-एस्केलेशन प्रक्रिया पर वार्ता हो सकती है. हालांकि, चीन के रूख के कारण सैन्य विघटन में बाधा आ सकती है. चीन का कहना है कि वह 1959 के दावे के आधार पर ही सीमा का निर्धारण करेगा, जिसकी सहमति तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री एम चाउ एन-लाई और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बीच हुई थी. हालांकि इसे भारत इसे खारिज कर चुका है.
उल्लेखनीय है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 10 सितंबर को मास्को में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक से अलग अपने चीनी समकक्ष वांग यी के साथ द्विपक्षीय बैठक की थी.
दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच बनी पांच सूत्री सहमति के क्रियान्वयन के तरीकों पर बैठक के दौरान चर्चा की गई थी.
गौरतलब है कि, इससे पहले अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) ने कहा कि भारत से लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर ताकत के बल पर नियंत्रण करने की चीन की कोशिश उसकी विस्तारवादी आक्रामकता का हिस्सा है और यह स्वीकार करने का समय आ गया है कि बातचीत तथा समझौते से चीन अपना आक्रामक रुख नहीं बदलने वाला.
अमेरिकी एनएसए रॉबर्ट ओ ब्रायन ने इस हफ्ते के शुरुआत में उटाह में चीन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सीसीपी (चीन की कम्युनिस्ट पार्टी) का भारत के साथ लगती सीमा पर विस्तारवादी आक्रामकता स्पष्ट है, जहां पर चीन ताकत के बल पर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा है.
ओ ब्रायन ने कहा कि चीन की विस्तारवादी आक्रामकता ताइवान जलडमरूमध्य में भी स्पष्ट है, जहां धमकाने के लिए जनमुक्ति सेना की नौसेना और वायुसेना लगातार सैन्य अभ्यास कर रही है.
उन्होंने कहा कि बीजिंग के खास अंतरराष्ट्रीय विकास कार्यक्रम वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) में शामिल कंपनियां गैर पारदर्शी और अस्थिर चीनी ऋण का भुगतान चीनी कंपनियों को कर रही हैं जो चीनी मजदूरों को आधारभूत संरचना के विकास कार्यक्रम में रोजगार दे रही हैं. एनएसए ने कहा कि कई परियोजनाएं गैर जरूरी हैं और गलत ढंग से बनायी गई और वे सफेद हाथी हैं.