औरंगाबाद : केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे ने कहा है कि किसान आंदोलन के पीछे पाकिस्तान और चीन का हाथ है. उन्होंने औरंगाबाद के टाकली में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि कृषि कानून किसानों के फायदे के लिए बनाए गए हैं.
एक जनसभा को संबोधित करते हुए दानवे ने कहा कि किसान आंदोलन के पिछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार किसानों के भले के लिए पैसे देने को तैयार है, लेकिन बाकी लोगों को यह मंजूर नहीं है.
बता दें कि इससे पहले किसान आंदोलन को लेकर केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने भी बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि विरोध प्रदर्शन कर रहे अधिकतर लोग किसान नहीं हैं. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कृषि कानूनों से किसानों को नहीं बल्कि दूसरे लोगों को तकलीफ हो रही है.
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वीके सिंह ने कहा था कि यह मांग अक्सर होती रही है कि किसान को स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह किसी का बंधुआ न रहे. स्वामिनाथन रिपोर्ट में भी यह मांग की गई थी. कृषि कानूनों में जो चीज किसानों के हित में हैं वह की गई हैं. किसान मंडी या बाहर अपनी मर्जी से अनाज बेच सकते हैं.
इससे किसान को नहीं बाकी लोगों को दिक्कत हो रही है. किसान आंदोलन में विपक्ष के साथ-साथ उन लोगों का हाथ है जो कमीशन खाते हैं.
...वीके सिंह
कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने भी किसानों को लेकर दिए बयान में कहा था कि प्रदर्शन करने वाले किसान नहीं हैं. उन्होंने कहा था, 'मुझे नहीं लगता कि असली किसान, जो अपने खेतों में काम कर रहे हैं, उन्हें इस बात से परेशानी है. विपक्ष किसानों को भड़काने की कोशिश कर रही है.'
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कैलाश चौधरी ने कहा कि सरकार ने कहा है, एमएसपी जारी रहेगा. हम इसे लिखित में भी दे सकते हैं. मुझे लगता है कि कांग्रेस सरकार (राज्यों में) और विपक्ष किसानों को भड़काने की कोशिश कर रही है. राष्ट्र के किसान इन कानूनों के पक्ष में हैं, लेकिन कुछ राजनीतिक लोग आग में घी डालने की कोशिश कर रहे हैं.
बता दें कि आज इन कृषि कानूनों के विरोध में कुछ विपक्षी नेताओं ने आज राष्ट्रपति कोविंद से भेंट की. बैठक में कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी शामिल रहे. बैठक के बाद राहुल ने कहा कि हमने राष्ट्रपति से मांग की है कि इन किसान विरोधी कानूनों को वापस लिया जाए.
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वहीं पूर्व कृषि मंत्री और राकांपा प्रमुख शरद पवार ने कहा कि सभी विपक्षी दलों के साथ इन विधेयक पर गहन चर्चा करने और फिर इसे समिति के पास भेजने का अनुरोध किया गया था, लेकिन कोई सुझाव स्वीकार नहीं किया गया और जल्दबाजी में इन विधेयकों को पारित किया गया है. पवार ने आगे कहा कि इतनी ठंड में भी किसान शांतिपूर्ण ढंग से सड़क पर उतरने को मजबूर हैं. इन मुद्दों को जल्द से जल्द सुलझाना सरकार का कर्तव्य है.
सरकार के साथ बैठक नहीं
बता दें कि गतिरोध थमता न देख मंगलवार को आहूत भारत बंद के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने किसान नेताओं के साथ बैठक की थी. इसके बाद आज यानी 9 दिसंबर को भी केंद्र और किसान नेताओं के बीच छठे दौर की वार्ता होनी थी.
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हालांकि, किसान नेताओं और गृह मंत्री अमित शाह के बीच लगभग तीन घंटे की बैठक के बाद यह सामने आया कि किसानों और सरकार के बीच 9 दिसंबर को कोई बैठक नहीं होगी. अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया था कि किसान नेताओं को सरकार की ओर से एक प्रस्ताव दिया जाएगा. इसके बाद किसान नेता सरकार के प्रस्ताव पर एक बैठक करेंगे.
इससे पहले सोमवार को किसान कानूनों का विरोध कर रहे किसान नेता टिकैत ने कहा था कि संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आहूत भारत बंद जनता के समर्थन से सफल होगा. उन्होंने कहा कि बीकेयू कार्यकर्ता दिल्ली-यूपी गाजीपुर सीमा पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
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सोमवार को राकेश टिकैत दिल्ली-हरियाणा सिंघु बॉर्डर पर किसान नेताओं के साथ बैठक करते दिखे. उन्होंने बताया कि वह यहां देशव्यापी भारत बंद की योजना पर चर्चा करने आए थे. ईटीवी भारत से बात करते हुए टिकैत ने कहा कि उन्होंने मंगलवार के भारत बंद के लिए 'अपना गांव-अपनी सड़क' का नारा दिया है.
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बता दें कि गृहमंत्री अमित शाह इससे पहले भी किसानों को वार्ता करने की सलाह दे चुके हैं. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रित करते हुए कहा था कि सरकार सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है. उन्होंने गतिरोध खत्म करने और बुराड़ी मैदान में जाने की अपील की थी.
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कहां से पनपना शुरू हुआ असंतोष
बीते 17 सितंबर को विधेयकों के पारित होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा, किसान को उत्पाद सीधे बेचने की आजादी मिलेगी. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था भी जारी रहेगी.
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कृषि सुधार विधेयकों को लेकर पीएम मोदी का कहना है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है. उनके अनुसार इन विधेयकों के पारित हो जाने के बाद किसानों की न सिर्फ आमदनी बढ़ेगी, बल्कि उनके सामने कई विकल्प भी मौजूद होंगे.