चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार से दिवंगत मुख्यमंत्री जे. जयललिता के आवास को स्मारक बनाने के फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा और उनके भतीजे-भतीजी को उनकी करोड़ों की संपत्ति का कानूनी वारिस घोषित कर दिया.
न्यायमूर्ति एन. किरूबाकरण और न्यायमूर्ति अब्दुल कुद्दूस की एक पीठ ने कहा कि पोएस गार्डन स्थित 'वेदा नीलयम' को राज्य के मुख्यमंत्री का आधिकारिक आवास भी बनाया जा सकता है और परिसर के कुछ हिस्से को जरूरत हो तो स्मारक बनाया जा सकता है.
तमिलनाडु के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने दिवंगत मुख्यमंत्री जे. जयललिता के आवास को स्मारक में बदलने के लिए उसे अस्थाई तौर पर कब्जे में लेने का एक अध्यादेश जारी करने के कुछ दिन बाद अदालत ने यह आदेश दिया.
अध्यादेश के खिलाफ जयललिता के भतीजे और भतीजी दीपक और दीपा की याचिका को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा, 'दीपक और दीपा दिवंगत मंख्यमंत्री के दिवंगत भाई जयकुमार की संतान होने की वजह से उनके दूसरी श्रेणी के वारिस हैं.'
उसने यह भी स्पष्ट किया कि यह दोनों दिवंगत जयललिता द्वारा व्यक्तिगत रूप से रखी गई संपत्ति के संबंध में, फर्मों या कंपनी के नाम और पूर्व अन्नाद्रमुक प्रमुख के क्रेडिट के प्रशासन के हकदार हैं.
दीपक और दीपा अपने विवेक के अनुसार कुछ संपत्तियों का आवंटन करेंगे और आदेश की प्रति मिलने की तारीख से आठ सप्ताह के भीतर सामाजिक सेवा करने के उद्देश्य से अपनी दिवंगत बुआ के नाम पर एक पंजीकृत सार्वजनिक ट्रस्ट बनाएंगे.
अदालत ने फिर मामले की सुनवाई आठ सप्ताह के लिए स्थगति कर दी ताकि ट्रस्ट बनाने का काम पूरा किया जा सके.
पीठ ने अन्नाद्रमुक कार्यकर्ता के. पुगलेंथी द्वारा दायर की गई एक अन्य याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने दिवंगत मुख्यमंत्री की संपत्तियों के प्रशासक के रूप में खुद को नियुक्त करने की मांग की थी.