बेंगलुरुः चंद्रयान-2 के लैंडर 'विक्रम' को निचली कक्षा में लाने के बाद आज चंद्रमा के और नजदीक ले जाया गया, जहां से यह अंतत: नीचे की ओर आगे बढ़ते हुए शनिवार तड़के पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह (चंद्रमा) की सतह पर ऐतिहासिक 'सॉफ्ट लैंडिंग' करेगा.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि चंद्रमा की सतह पर 'चंद्रयान-2' के उतरने का सीधा नजारा देखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 60 हाईस्कूल विद्यार्थियों के साथ बेंगलुरु स्थित इसरो केंद्र में मौजूद रहेंगे.
अनगिनत सपनों को लेकर चंद्रमा पर गए 'चंद्रयान-2' के पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह पर सफलतापूर्वक उतरने के साथ ही रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत वहां 'सॉफ्ट लैंडिंग' करने वाला दुनिया का चौथा और चंद्रमा के अनदेखे दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा.
इसरो ने बताया कि बुधवार तड़के तीन बजकर 42 मिनट पर 'चंद्रयान-2' के लैंडर 'विक्रम' को निचली कक्षा में उतारने का कार्य किया गया. इस प्रक्रिया में नौ सेकंड का समय लगा. इसके लिए प्रणोदन प्रणाली का प्रयोग किया गया.
इसने कहा कि इस प्रक्रिया के साथ ही लैंडर के चंद्रमा की सतह पर उतरने की दिशा में आगे बढ़ने की शुरुआत के लिए आवश्यक कक्षा हासिल कर ली गई.
इससे पहले यान को चंद्रमा की निचली कक्षा में उतारने का पहला चरण मंगलवार को पूरा किया गया था. यह प्रक्रिया 'चंद्रयान-2' के ऑर्बिटर से लैंडर 'विक्रम' के अलग होने के एक दिन बाद संपन्न की गई.
'चंद्रयान-2' का ऑर्बिटर अब चंद्रमा की कक्षा में 96 किलोमीटर पेरिजी (चंद्र सतह के सबसे नजदीकी बिन्दु) और 125 किलोमीटर अपोजी (सबसे दूरस्थ बिन्दु) पर है, जबकि 'विक्रम' लैंडर 101 किलोमीटर अपोजी और 35 किलोमीटर पेरिजी पर है जहां से यह अंतत: चांद पर उतरने के लिए नीचे की ओर आगे बढ़ेगा.
एजेंसी ने कहा, 'ऑर्बिटर और लैंडर दोनों पूरी तरह ठीक हैं.'
इसने कहा कि 'विक्रम' को कक्षा से निकाल कर नीचे लाने का कार्य सात सितंबर को रात एक से दो बजे के बीच किया जाएगा और इसके बाद यह रात एक बजकर 30 मिनट से दो बजकर 30 मिनट के बीच चंद्रमा की सतह पर उतरेगा.
इसरो अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि चंद्रमा पर लैंडर के उतरने का क्षण 'दिल की धड़कनों को थाम देने वाला' होगा क्योंकि एजेंसी ने पहले ऐसा कभी नहीं किया है.
चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद 'विक्रम' के भीतर से रोवर 'प्रज्ञान' सात सितंबर की सुबह साढ़े पांच बजे से साढ़े छह के बीच बाहर निकलेगा और एक चंद्र दिवस की अवधि (धरती के 14 दिन के बराबर) तक चंद्रमा की सतह पर रहकर वैज्ञानिक प्रयोग करेगा.
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ऑर्बिटर का जीवनकाल एक साल का है और यह लगातार चंद्रमा की परिक्रमा कर धरती पर मौजूद इसरो के वैज्ञानिकों को संबंधित जानकारी भेजता रहेगा.
गौरतलब है कि 'चंद्रयान-2' का प्रक्षेपण तकनीकी खामी के चलते 15 जुलाई को टाल दिया गया था. इसके बाद 22 जुलाई को इसके प्रक्षेपण की तारीख पुनर्निर्धारित करते हुए इसरो ने कहा था कि 'चंद्रयान-2' अनगिनत सपनों को चांद पर ले जाने के लिए तैयार है.
इसरो ने अपने सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान जीएसएलवी मार्क- एम 1 के जरिए 3,840 किलोग्राम वजनी 'चंद्रयान-2' को प्रक्षेपित किया था. इस योजना पर 978 करोड़ रुपये की लागत आई है.
चंद्रमा पर 'सॉफ्ट लैंडिंग' के संबंध में इसरो के पूर्व अध्यक्ष एवं एक दशक पहले 'चंद्रयान-1' मिशन का नेतृत्व कर चुके जी माधवन नायर ने पीटीआई से कहा कि यह कुछ ऐसा है जैसे विज्ञान गल्प में उड़न तश्तरी आती है और ऊपर चक्कर लगाने लगती है तथा इसके बाद धीरे-धीरे नीचे उतरती है.
उन्होंने कहा, 'यह एक ऐतिहासिक घटना होने जा रही है और हम इसे लेकर आशान्वित हैं. मुझे विश्वास है कि इसमें 100 प्रतिशत सफलता मिलेगी.'
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए इसरो ने कक्षा आठ से कक्षा 10 तक के छात्र-छात्राओं के लिए अगस्त में एक ऑनलाइन प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता भी आयोजित की थी.
अंतरिक्ष एजेंसी ने प्रतियोगिता में शामिल होने वालों में से शीर्ष 60 छात्रों का चयन उन्हें चंद्रमा पर 'विक्रम' की 'सॉफ्ट लैंडिंग' का ऐतिहासिक क्षण दिखाने के लिए किया है.
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इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि प्रतियोगिता में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले विद्यार्थी बेंगलुरु स्थित इसरो केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठकर चंद्रयान की 'सॉफ्ट लैंडिंग' का दृश्य सीधे देखेंगे.
'चंद्रयान-2' ने धरती की कक्षा छोड़कर चंद्रमा की तरफ अपनी यात्रा 14 अगस्त को शुरू की थी. इसके बाद 20 अगस्त को यह चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया था.
इसरो ने बताया कि यहां स्थित इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (आईएसटीआरएसी) में मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स से 'ऑर्बिटर' और 'लैंडर' की स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है. इस काम में ब्याललु स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) की मदद ली जा रही है.
'चंद्रयान-2' के 'ऑर्बिटर' में आठ वैज्ञानिक उपकरण हैं जो चंद्रमा की सतह का मानचित्रण करेंगे और पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह के बाह्य परिमंडल का अध्ययन करेंगे. 'लैंडर' के साथ तीन उपकरण हैं जो चांद की सतह और उप सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे. वहीं, 'रोवर' के साथ दो उपकरण हैं जो चंद्रमा की सतह के बारे में जानकारी जुटाएंगे.
इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-2 मिशन का उद्देश्य 'सॉफ्ट लैंडिंग' और चंद्रमा की सतह पर घूमने सहित शुरू से अंत तक चंद्र मिशन क्षमता के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रदर्शन करना है.