नई दिल्ली : अभूतपूर्व समय अभूतपूर्व बदलाव की मांग करता है. वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास भारतीय और चीनी सेना एक दूसरे के सामने खड़ी है.
शनिवार को दुनिया के दो सबसे बड़ी सेनाओं के प्रतिनिधिमंडल मिलेंगे. बैठक पूर्वी लद्दाख में स्पंगगुर गैप के पास चुशुल में होने की संभावना है. इसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट-जनरल रैंक के अधिकारी करेंगे.
सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया, 'भारत-चीन सीमा टकराव को रोकने के लिए लेफ्टिनेंट-जनरल के स्तर पर वार्ता पहले कभी नहीं हुई है.'
यह वार्ता पूर्वी लद्दाख में चल रहे भारत-चीन टकराव को सुलझाने के लिए जोर देने पर केंद्रित होगी, जिसमें किसी भी क्षण युद्ध की स्थिति में बदलने की आशंका है.
पूर्वी लद्दाख में कम से कम चार छोर पर सेनाओं ने अग्रिम पंक्ति की हजारों सैनिकों, भारी वाहनों और तोपखाने को पहुंचाया है. अक्टूबर 2013 में दोनों देशों के बीच सीमा रक्षा सहयोग समझौते (BDCA) के तहत लेफ्टिनेंट-सामान्य-रैंक वाले अधिकारियों ने एक-दूसरे के सैन्य संभाग की यात्राएं कीं. इस तरह की अंतिम भेंट 8-9 जनवरी, 2020 को हुई थी, जब तत्कालीन उत्तरी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने पीएलए जनरल हान वेन्गूओ और बीजिंग में पश्चिमी थिएटर कमान के कमांडर जनरल झाओ जोंगकी से मुलाकात की थी.
इस स्तर के मुलाकात से कुल मिलाकर कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजरमेंट (सीबीएम) के तहत दोनों देशों के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा पर विवादों को सुलझाने के लिए दोनों के बीच सहमति हुई.
बीडीसीए टकराव को रोकने के लिए कई सीबीएम तंत्र का पालन करता है, जिसमें फ्लैग मीटिंग, फील्ड कमांडरों और सरकारी अधिकारियों के बीच आवधिक बैठकें, संयुक्त सचिव पर भारत-चीन सीमा मामलों (डब्ल्यूएमसीसी) के लिए परामर्श और समन्वय के लिए कार्य प्रणाली शामिल है. सीमा मामलों का स्तर और रक्षा सचिव स्तर पर एक वार्षिक रक्षा संवाद जैसे कदम शामिल है.
हालिया बैठक का आयोजन करने का निर्णय सोशल मीडिया पर भारतीय और चीनी हैंडलों की प्रतिक्रिया के एक दिन बाद लिया गया है. दरअसल सोशल मीडिया सैनिकों के वीडियो और तस्वीरों से लैस है, जिसमें भारत-चीन के सैनिक हाथापाई करते दिख रहे हैं.
बता दें गोपनीयता वास्तव में कूटनीति की आत्मा है. इसी को देखते हुए मीडिया से बाहर सुनियोजि बैठक रखने का प्रयास है. विशेष रूप से चीन सरकार के स्वामित्व वाले दैनिक ग्लोबल टाइम्स ने सोमवार को अपने संपादकीय में भारतीय मीडिया को सलाह दिया कि भारतीय मीडिया को चीन की अपनी समझ को बढ़ाना चाहिए. चीन पर अधिक संतुलित कवरेज पर काम करना चाहिए और रचनात्मक संबंध बनाने में मदद करनी चाहिए. यह भी आशा की जाती है कि वे पश्चिमी प्रभाव को छोड़कर और स्वतंत्र रूप से सोच सकते हैं ताकि वे भारत के हितों को बनाए रख सकें. ग्लोबल टाइम्स के संपादकीय को सरकार का दृष्टिकोण समझा जाता है.