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वर्चुअल अभियानों को लेकर बीजेपी उम्मीदवार ने हाई कोर्ट के आदेश को दी चुनौती

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Published : Oct 23, 2020, 5:08 PM IST

Updated : Oct 23, 2020, 10:39 PM IST

वर्चुअल अभियानों के आयोजन को लेकर भारतीय जनता पार्टी के नेता प्रद्युम्न सिंह तोमर ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

supreme court
supreme court

नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी के नेता प्रद्युम्न सिंह तोमर ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, जिसने चुनाव अभियानों पर रोक लगा दी थी और कोविड-19 को देखते हुए केवल वर्चुअल अभियानों की अनुमति दी थी.

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा था कि जिला मजिस्ट्रेट चुनाव अभियान आयोजित करने की अनुमति तब तक नहीं देंगे जब तक कि यह साबित न हो जाए कि किस कारण वर्चुअल रैली आयोजित नहीं की जा सकती है.

कोर्ट ने कहा कि यदि डीएम द्वारा अनुमति दी जाती है तो इसे चुनाव आयोग द्वारा भी अनुमोदित किया जाना चाहिए.

प्रद्युम्न सिंह तोमर ने कहा कि हाई कोर्ट का यह आदेश चुनाव आयोग, केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पारित आदेशों का उल्लंघन है.

उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने कोरोना महामारी के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए सभाओं और चुनावी रैलियों की अनुमति दी है. इसके बाद केंद्र और राज्य ने एसओपी का पालन करते हुए उन स्थानों पर राजनीतिक सभाओं की अनुमति दी जहां चुनाव होने हैं. बता दें कि प्रद्युम्न सिंह तोमर ग्वालियर से चुनाव लड़ेंगे.

याचिका के अनुसार उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश से याचिकाकर्ता के वास्तविक सभा के माध्यम से चुनाव प्रचार करने के अधिकार का हनन होता है क्योंकि निर्वाचन आयोग, केन्द्र सरकार और मप्र सरकार ने इसकी अनुमति दी है.

तोमर ने याचिका में कहा है कि उच्च न्यायालय ने 20 अक्टूबर को अनेक अंतरिम निर्देश जारी किये है जो निर्वाचन आयोग द्वारा 29 सितंबर को जारी कोविड-19 दिशा निर्देशों और केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार के आठ अक्टूबर के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हैं.

तोमर ने उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश और उसके समक्ष लंबित जनहित याचिका पर आगे कार्यवाही करने पर रोक लगाने का अनुरोध किया है.

याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग ने मध्य प्रदेश में 28 सीटों के लिए उपचुनावों की घोषणा करते हुये कोविड-19 के दिशानिर्देश तैयार किए थे जिनका चुनाव के दौरान पालन किया जाना था और इसमे दिशा निर्देशों का पालन करते हुए जनसभाओं तथा चुनावी रैलियों के लिए स्पष्ट अनुमति दी गई थी.

याचिका के अनुसार उच्च न्यायालय में एक अधिवक्ता ने जनहित याचिका दायर की जिसमे आरोप लगाया गया कि विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित राजनीतिक कार्यक्रमों की वजह से कोविड-19 संक्रमण के मामलों में वृद्धि हो रही है लेकिन राज्य प्रशासन ऐसे राजनीतिक दलों और उनके सदस्यों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है.

याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने 12 अक्टूबर को ग्वालियर और दतिया जिलों के प्राधिकारियों को कोविड-19 के प्रोटोकाल के उल्लंघन के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने का निदेश दिया है.

पढ़ें :- बिहार चुनाव : पीएम मोदी करेंगे 12 रैलियां, 23 से शुरुआत

इसमें आगे कहा गया है कि 20 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने ग्वालियर और दतिया जिलों के पुलिस अधीक्षकों द्वारा दाखिल अनुपालन हलफनामे का संज्ञान लिया था.

याचिका में कहा गया था हालांकि यह आरोप लगाया गया था कि राज्य प्रशासन ने केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के खिलाफ कोविड-19 प्रोटोकाल के कथित उल्लंघन के मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई. महाधिवक्ता ने उच्च न्यायालय को यह भरोसा दिलाया कि इन व्यक्तियों के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की जाएगी.

तोमर ने यह भी कहा है उच्च न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश के जरिये यह गलत निर्देश दिया है कि राजनीतिक दल वास्तविक सभाओं के माध्यम से नहीं बल्कि आभासी तरीके से चुनाव प्रचार करेंगे. यही नहीं, उच्च न्यायालय ने सभी जिलाधिकारियों को राजनीतिक दलों तथा प्रत्याशियों को उस समय तक कोई अनुमति नहीं देने का निर्देश दिया है जब तक जिलाधिकारी इस तथ्य से संतुष्ट नहीं हो जाए कि आभासी चुनाव प्रचार संभव नहीं है.

याचिका में सवाल उठाया गया है कि क्या उच्च न्यायालय अपने रिट अधिकार के तहत निर्वाचन आयोग द्वारा संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत 29 सितंबर को जारी कोविड-19 दिशा निर्देशों को बदल सकता है?

याचिका में यह सवाल भी उठाया गया है कि क्या उच्च न्यायालय ने ऐसा अंतरिम आदेश पारित करके निर्वाचन आयोग की संवैधानिक भूमिका का अतिक्रमण किया है जिसके पास अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव कराने की पूरी जिम्मेदारी है.

नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी के नेता प्रद्युम्न सिंह तोमर ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, जिसने चुनाव अभियानों पर रोक लगा दी थी और कोविड-19 को देखते हुए केवल वर्चुअल अभियानों की अनुमति दी थी.

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा था कि जिला मजिस्ट्रेट चुनाव अभियान आयोजित करने की अनुमति तब तक नहीं देंगे जब तक कि यह साबित न हो जाए कि किस कारण वर्चुअल रैली आयोजित नहीं की जा सकती है.

कोर्ट ने कहा कि यदि डीएम द्वारा अनुमति दी जाती है तो इसे चुनाव आयोग द्वारा भी अनुमोदित किया जाना चाहिए.

प्रद्युम्न सिंह तोमर ने कहा कि हाई कोर्ट का यह आदेश चुनाव आयोग, केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पारित आदेशों का उल्लंघन है.

उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने कोरोना महामारी के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए सभाओं और चुनावी रैलियों की अनुमति दी है. इसके बाद केंद्र और राज्य ने एसओपी का पालन करते हुए उन स्थानों पर राजनीतिक सभाओं की अनुमति दी जहां चुनाव होने हैं. बता दें कि प्रद्युम्न सिंह तोमर ग्वालियर से चुनाव लड़ेंगे.

याचिका के अनुसार उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश से याचिकाकर्ता के वास्तविक सभा के माध्यम से चुनाव प्रचार करने के अधिकार का हनन होता है क्योंकि निर्वाचन आयोग, केन्द्र सरकार और मप्र सरकार ने इसकी अनुमति दी है.

तोमर ने याचिका में कहा है कि उच्च न्यायालय ने 20 अक्टूबर को अनेक अंतरिम निर्देश जारी किये है जो निर्वाचन आयोग द्वारा 29 सितंबर को जारी कोविड-19 दिशा निर्देशों और केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार के आठ अक्टूबर के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हैं.

तोमर ने उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश और उसके समक्ष लंबित जनहित याचिका पर आगे कार्यवाही करने पर रोक लगाने का अनुरोध किया है.

याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग ने मध्य प्रदेश में 28 सीटों के लिए उपचुनावों की घोषणा करते हुये कोविड-19 के दिशानिर्देश तैयार किए थे जिनका चुनाव के दौरान पालन किया जाना था और इसमे दिशा निर्देशों का पालन करते हुए जनसभाओं तथा चुनावी रैलियों के लिए स्पष्ट अनुमति दी गई थी.

याचिका के अनुसार उच्च न्यायालय में एक अधिवक्ता ने जनहित याचिका दायर की जिसमे आरोप लगाया गया कि विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित राजनीतिक कार्यक्रमों की वजह से कोविड-19 संक्रमण के मामलों में वृद्धि हो रही है लेकिन राज्य प्रशासन ऐसे राजनीतिक दलों और उनके सदस्यों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है.

याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने 12 अक्टूबर को ग्वालियर और दतिया जिलों के प्राधिकारियों को कोविड-19 के प्रोटोकाल के उल्लंघन के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने का निदेश दिया है.

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इसमें आगे कहा गया है कि 20 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने ग्वालियर और दतिया जिलों के पुलिस अधीक्षकों द्वारा दाखिल अनुपालन हलफनामे का संज्ञान लिया था.

याचिका में कहा गया था हालांकि यह आरोप लगाया गया था कि राज्य प्रशासन ने केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के खिलाफ कोविड-19 प्रोटोकाल के कथित उल्लंघन के मामले में प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई. महाधिवक्ता ने उच्च न्यायालय को यह भरोसा दिलाया कि इन व्यक्तियों के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की जाएगी.

तोमर ने यह भी कहा है उच्च न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश के जरिये यह गलत निर्देश दिया है कि राजनीतिक दल वास्तविक सभाओं के माध्यम से नहीं बल्कि आभासी तरीके से चुनाव प्रचार करेंगे. यही नहीं, उच्च न्यायालय ने सभी जिलाधिकारियों को राजनीतिक दलों तथा प्रत्याशियों को उस समय तक कोई अनुमति नहीं देने का निर्देश दिया है जब तक जिलाधिकारी इस तथ्य से संतुष्ट नहीं हो जाए कि आभासी चुनाव प्रचार संभव नहीं है.

याचिका में सवाल उठाया गया है कि क्या उच्च न्यायालय अपने रिट अधिकार के तहत निर्वाचन आयोग द्वारा संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत 29 सितंबर को जारी कोविड-19 दिशा निर्देशों को बदल सकता है?

याचिका में यह सवाल भी उठाया गया है कि क्या उच्च न्यायालय ने ऐसा अंतरिम आदेश पारित करके निर्वाचन आयोग की संवैधानिक भूमिका का अतिक्रमण किया है जिसके पास अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव कराने की पूरी जिम्मेदारी है.

Last Updated : Oct 23, 2020, 10:39 PM IST
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