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अयोध्या केस : 10वें दिन की सुनवाई में निर्मोही अखाड़े की अधूरी तैयारी, नाराज हुए CJI

प्रधान न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ ने अयोध्या मामला में 10वें दिन सुनवाई की. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील ने विवादित स्थल में पूजा करने का उसका अधिकार लागू किए जाने का अनुरोध किया. सुनवाई के दौरान CJI गोगोई ने निर्मोही अखाड़े की अधूरी तैयारी पर नाराजगी भी जाहिर की. जानें पूरा विवरण

सुप्रीम कोर्ट ( फाइल फोटो)
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Published : Aug 22, 2019, 4:28 PM IST

Updated : Sep 27, 2019, 9:32 PM IST

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में गुरुवार को 10वें दिन सुनवाई की. इस दौरान मूल याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील ने विवादित स्थल में पूजा करने का उसका अधिकार लागू किए जाने का अनुरोध किया.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ ने मालिकाना हक मामले की सुनवाई शुरू की. मूल याचिकाकर्ताओं में शामिल गोपाल सिंह विशारद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने पीठ के समक्ष दलीलें पेश कीं.

गुरुवार को 10वें दिन सुनवाई के दौैरान कोर्ट में गोपाल सिंह विराषद की जगह पेश हुए रंजीत कुमार ने अपनी पेशी पर कहा कि 'यह जगह एक धार्मिक जगह है और पूजक होने के नाते यह मेरा अधिकार है और इस पर कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए.जन्मस्थान के अलावा वह स्थान जहां भगवान राम का जन्म हुआ था, मैं श्री रंजीत कुमार की उपासना का अधिकार मांग रहा हूं.

रंजीत कुमार ने अब्दुल गनी द्वारा दिए गए एक बयान का हवाला देते हुए कहा कि अब्दुल ने गनी कहा था कि विवादित स्थल को रामजन्मभूमि है और मस्जिद को विवादित स्थल पर बनाया गया और जहां लेख और मूर्तियां बरामद की गई हैं वह जगह शरीयत कानून के सिद्धांतों के खिलाफ हैं और यह विवादित स्थल हिंदुओं को सौंप दिया जाना चाहिए.

जब जस्टिस बोबड़े ने रंजीत से पूछा कि क्या अब्दुल गनी एक शिया या सुन्नी था, तो इस पर रंजीत कुमार जवाब देते हैं कि गनी एक सुन्नी मुसलमान थे.

पढ़ें- अयोध्या केस: वकील ने कहा , मस्जिद बनाने के लिए मंदिर गिराया गया

इसके बाद मुख्य न्यायधीश ने उनसे कहा कि वह आवेदन कहां है जिसके द्वारा आप इन हलफनामों को रिकॉर्ड में लाए हैं और इसके संबंध में मजिस्ट्रेट का आदेश क्या था?

  • वहां सालों से पूजा हो रही है और उनके अधिकार को छीना नहीं जा सकता.
  • उन्होंने 2 फैसलों को हवाला देते हुए कहा वहां पूजा का अधिकार बरकरार रखा गया है.
  • उन्होंने कहा कि मंदिर में पूजा हिंदू धर्म का हिस्सा.
  • एक फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि मंदिर के लाभार्थी वहां के पुजारी हैं.
  • सुनवाई के दौरान कुमार ने 145 आदेशों को पेश किया.

पढ़ें- हिंदुओं का विश्वास है कि अयोध्या राम का जन्मस्थान है, राम लला के वकील का SC में तर्क

वहीं, सुनवाई कर रही पीठ के सामने कहा कि वो चूंकि इस मामले की कार्यवाही कर रहे काउंसिल की अक्टूबर 2018 में मृत्यु हो गई और इसलिए उन्हें घटनाओं के पाठ्यक्रम का पता लगाने का अवसर नहीं मिला. इसलिए वह अपना केस तैयार करने के लिए कुछ समय चाहते हैं.

इसके बाद निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील जैन ने कोर्ट में अपनी बात रखी.

⦁ जमीन पर कब्जे का दावा किया.
⦁ पूजा करने का और संपत्ति को रखने का अधिकार
⦁ मंदिर में निर्मोही अखाड़ा द्वारा चुनने गए पुजारी पूजा करते हैं
⦁ मुस्लिम पक्ष के अधिकार 1934 में थे, तो उन्हें 1949 में मुकदमा दायर करना चाहिए था.
⦁ शेबियत प्रॉपर्टी अधिकारों को किसी ने चुनौती नहीं दी है.

निर्मोही अखाड़ा के पास शेबियत (यह संपत्ति के स्वामित्व का एक न्यायिक पहलू है जिसके अनुसार आदर्श संपत्ति निहित होती है) अधिकार है.

जैन की दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि वो उनकी दलीलों से संतुष्ट नहीं हैं. जैन के लिखित बयान में विविधता, न्यायिक चरित्र के कई पहलुओं पर सवाल उठाया गया लेकिन मौखिक रूप से उनका कहना हैं कि वे न्यायिक चरित्र को स्वीकार करते हैं.

वहीं, जैन की दलीलें सुनने के बाद चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा कि वो उनकी दलीलों से पीठ संतुष्ट नहीं है, जबकि जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आप देवता के न्यायिक चरित्र को नकार रहे हैं.

पढ़ें- अयोध्या विवाद: SC ने पूछा, क्या खुदाई में प्राप्त वस्तुओं की कार्बन डेटिंग हुई थी?

जस्टिस बोबडे ने कहा कि उनका बयान इससे इनकार कर रहा है, लेकिन मौखिक रूप से वह कह रहे हैं कि वह इनकार नहीं कर रहे हैं. अगर हम संतुष्ट नहीं हैं तो आपकी बात नहीं सुनेगे, प्लीज पहले तैयारी करो.

पढ़ें- अयोध्या विवाद: SC में मंगलवार को होगी पांचवें दिन सुनवाई

क्या है पूरा केस, कहां से शुरु हुआ मामला
चार दीवानी मामलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में 14 याचिकाएं दायर की गई हैं. बता दें कि इस मामले पर उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि अयोध्या की 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षों - सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच समान रूप से बांटा जाए. दक्षिण पंथी कार्यकर्ताओं ने छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी थी. इसके बाद से लंबी कानूनी लड़ाई आरंभ हुई.

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में गुरुवार को 10वें दिन सुनवाई की. इस दौरान मूल याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील ने विवादित स्थल में पूजा करने का उसका अधिकार लागू किए जाने का अनुरोध किया.

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ ने मालिकाना हक मामले की सुनवाई शुरू की. मूल याचिकाकर्ताओं में शामिल गोपाल सिंह विशारद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने पीठ के समक्ष दलीलें पेश कीं.

गुरुवार को 10वें दिन सुनवाई के दौैरान कोर्ट में गोपाल सिंह विराषद की जगह पेश हुए रंजीत कुमार ने अपनी पेशी पर कहा कि 'यह जगह एक धार्मिक जगह है और पूजक होने के नाते यह मेरा अधिकार है और इस पर कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए.जन्मस्थान के अलावा वह स्थान जहां भगवान राम का जन्म हुआ था, मैं श्री रंजीत कुमार की उपासना का अधिकार मांग रहा हूं.

रंजीत कुमार ने अब्दुल गनी द्वारा दिए गए एक बयान का हवाला देते हुए कहा कि अब्दुल ने गनी कहा था कि विवादित स्थल को रामजन्मभूमि है और मस्जिद को विवादित स्थल पर बनाया गया और जहां लेख और मूर्तियां बरामद की गई हैं वह जगह शरीयत कानून के सिद्धांतों के खिलाफ हैं और यह विवादित स्थल हिंदुओं को सौंप दिया जाना चाहिए.

जब जस्टिस बोबड़े ने रंजीत से पूछा कि क्या अब्दुल गनी एक शिया या सुन्नी था, तो इस पर रंजीत कुमार जवाब देते हैं कि गनी एक सुन्नी मुसलमान थे.

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इसके बाद मुख्य न्यायधीश ने उनसे कहा कि वह आवेदन कहां है जिसके द्वारा आप इन हलफनामों को रिकॉर्ड में लाए हैं और इसके संबंध में मजिस्ट्रेट का आदेश क्या था?

  • वहां सालों से पूजा हो रही है और उनके अधिकार को छीना नहीं जा सकता.
  • उन्होंने 2 फैसलों को हवाला देते हुए कहा वहां पूजा का अधिकार बरकरार रखा गया है.
  • उन्होंने कहा कि मंदिर में पूजा हिंदू धर्म का हिस्सा.
  • एक फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि मंदिर के लाभार्थी वहां के पुजारी हैं.
  • सुनवाई के दौरान कुमार ने 145 आदेशों को पेश किया.

पढ़ें- हिंदुओं का विश्वास है कि अयोध्या राम का जन्मस्थान है, राम लला के वकील का SC में तर्क

वहीं, सुनवाई कर रही पीठ के सामने कहा कि वो चूंकि इस मामले की कार्यवाही कर रहे काउंसिल की अक्टूबर 2018 में मृत्यु हो गई और इसलिए उन्हें घटनाओं के पाठ्यक्रम का पता लगाने का अवसर नहीं मिला. इसलिए वह अपना केस तैयार करने के लिए कुछ समय चाहते हैं.

इसके बाद निर्मोही अखाड़ा के वकील सुशील जैन ने कोर्ट में अपनी बात रखी.

⦁ जमीन पर कब्जे का दावा किया.
⦁ पूजा करने का और संपत्ति को रखने का अधिकार
⦁ मंदिर में निर्मोही अखाड़ा द्वारा चुनने गए पुजारी पूजा करते हैं
⦁ मुस्लिम पक्ष के अधिकार 1934 में थे, तो उन्हें 1949 में मुकदमा दायर करना चाहिए था.
⦁ शेबियत प्रॉपर्टी अधिकारों को किसी ने चुनौती नहीं दी है.

निर्मोही अखाड़ा के पास शेबियत (यह संपत्ति के स्वामित्व का एक न्यायिक पहलू है जिसके अनुसार आदर्श संपत्ति निहित होती है) अधिकार है.

जैन की दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि वो उनकी दलीलों से संतुष्ट नहीं हैं. जैन के लिखित बयान में विविधता, न्यायिक चरित्र के कई पहलुओं पर सवाल उठाया गया लेकिन मौखिक रूप से उनका कहना हैं कि वे न्यायिक चरित्र को स्वीकार करते हैं.

वहीं, जैन की दलीलें सुनने के बाद चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा कि वो उनकी दलीलों से पीठ संतुष्ट नहीं है, जबकि जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आप देवता के न्यायिक चरित्र को नकार रहे हैं.

पढ़ें- अयोध्या विवाद: SC ने पूछा, क्या खुदाई में प्राप्त वस्तुओं की कार्बन डेटिंग हुई थी?

जस्टिस बोबडे ने कहा कि उनका बयान इससे इनकार कर रहा है, लेकिन मौखिक रूप से वह कह रहे हैं कि वह इनकार नहीं कर रहे हैं. अगर हम संतुष्ट नहीं हैं तो आपकी बात नहीं सुनेगे, प्लीज पहले तैयारी करो.

पढ़ें- अयोध्या विवाद: SC में मंगलवार को होगी पांचवें दिन सुनवाई

क्या है पूरा केस, कहां से शुरु हुआ मामला
चार दीवानी मामलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में 14 याचिकाएं दायर की गई हैं. बता दें कि इस मामले पर उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि अयोध्या की 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षों - सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच समान रूप से बांटा जाए. दक्षिण पंथी कार्यकर्ताओं ने छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी थी. इसके बाद से लंबी कानूनी लड़ाई आरंभ हुई.

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SC-LD AYODHYA
Ayodhya: SC commences hearing for 10th day
(Eds: Adding details)
         New Delhi, Aug 22 (PTI) The Supreme Court on Thursday commenced hearing in the Ram Janmabhoomi-Babri Masjid case for the 10th day, with counsel for the one of the original litigants seeking enforcement of his rights to worship at the disputed site.
          Senior advocate Ranjit Kumar, appearing for Gopal Singh Visharad, one of the original litigants, commenced arguments before a five-Judge Constitution bench headed by Chief Justice Ranjan Gogoi, which was hearing the title dispute.
          "I am making my submissions with reference to Parasaran's and Vaidyanathan's submissions that the place is itself a divine site and that I being the worshipper my right to worship, which is a civil right, should not be curtailed," Kumar told a bench, also comprising Justices S A Bobde, DY Chandrachud, Ashok Bhushan and S Abdul Nazeer.
          Senior advocates K Prasaran and C S Vaidyanathan, appearing for 'Ram Lalla Virajaman', a deity which is one of the parties in the decades old dispute, had earlier told the bench that the birthplace of Lord Ram at Ayodhya is itself a deity and no one can claim ownership right over the sacred place by merely putting up a structure like a mosque.
          Vaidyanathan had said that neither Nirmohi Akhara nor the Muslim parties can take benefit of legal principal of adverse possession to claim ownership right over the 2.77 acre disputed land in Ayodhya.
          Visharad had filed a lawsuit in 1950 seeking enforcement of his right to worship at the disputed site.
          Fourteen appeals have been filed in the apex court against the 2010 Allahabad High Court judgment, delivered in four civil suits, that the 2.77-acre land in Ayodhya be partitioned equally among the three parties -- the Sunni Waqf Board, the Nirmohi Akhara and Ram Lalla.
          Babri Masjid was demolished by right-wing activists on December 6, 1992 in Ayodhya, leading to a protracted legal battle. PTI SJK URD URD
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08221142
NNNN
Last Updated : Sep 27, 2019, 9:32 PM IST
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