शाहजहांपुर: 'शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का बस यही बाकी निशां होगा.' यह चंद लाइनें शाहजहांपुर के अमर शहीद अशफाक उल्ला खां पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं. देश को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने अपने जान की कुर्बानी दे दी. उन्हीं की याद में 19 दिसंबर को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है.
शाहजहांपुर को शहीदों की नगरी के रूप में जाना जाता है. यह स्थान काकोरी कांड के महानायक क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की जन्मस्थली है. शाहजहांपुर से ही काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार की गई थी, जिसके बाद काकोरी कांड को अंजाम तक पहुंचाया गया. इसके बाद अंग्रेजों ने इन तीनों क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करके अलग-अलग जेलों में डाल दिया और 19 दिसंबर 1927 को इन महानायकों को फांसी दे दी गई.
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पं. राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे स्तंभ हैं जिनपर आज का यह आज़ाद भारत बुलंद होकर खड़ा है।
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भारत की जनता को लूटने वाली अंग्रेजी हुकूमत को काकोरी में ललकारने वाले माँ भारती के वीर सपूतों के बलिदान दिवस पर उन्हे कोटिशः नमन। pic.twitter.com/vwYSsCoWaN
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— Amit Shah (@AmitShah) December 19, 2020
भारत की जनता को लूटने वाली अंग्रेजी हुकूमत को काकोरी में ललकारने वाले माँ भारती के वीर सपूतों के बलिदान दिवस पर उन्हे कोटिशः नमन। pic.twitter.com/vwYSsCoWaNपं. राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे स्तंभ हैं जिनपर आज का यह आज़ाद भारत बुलंद होकर खड़ा है।
— Amit Shah (@AmitShah) December 19, 2020
भारत की जनता को लूटने वाली अंग्रेजी हुकूमत को काकोरी में ललकारने वाले माँ भारती के वीर सपूतों के बलिदान दिवस पर उन्हे कोटिशः नमन। pic.twitter.com/vwYSsCoWaN
शहीद अशफाक उल्ला खां का जन्म शहर के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था. उन्होंने शाहजहांपुर के एवी रिच इंटर कॉलेज में पढ़ाई की. यहां राम प्रसाद बिस्मिल उनके सहपाठी थे. दोनों कॉलेज में पढ़ने के बाद आर्य समाज मंदिर में देश की आजादी की रूपरेखा तैयार करते थे. इसी वजह से आज भी यह आर्य समाज मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है.
इस मंदिर में राम प्रसाद बिस्मिल के पिता पुजारी थे. जबकि, अशफाक उल्ला खां कट्टर मुसलमान थे. लेकिन, दोनों दोस्त एक ही थाली में खाना खाया करते थे. इन दोनों महान क्रांतिकारियों की दोस्ती आज भी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है. अशफाक उल्ला खां आर्य समाज मंदिर में अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताते थे.
काकोरी कांड से बौखला गई थी अंग्रेजी हुकूमत
दोनों मित्र देश की आजादी के लिए इसी मंदिर में नई-नई योजनाएं बनाया करते थे. इन दोनों की अमर दोस्ती ने काकोरी कांड में अंग्रेजों से लोहा लिया था. शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला का कहना है कि शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र लहरी इन सभी क्रांतिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने काकोरी कांड को अंजाम देने वाला मानते हुए 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जिलों में फांसी दे दी थी.
हिंदुस्तान की आजादी के लिए इन क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया. 19 दिसंबर को देश के अलग-अलग कोनों में इन्हीं शहीदों याद किया जाता है. शाहजहांपुर जिला शहीदों को याद करने में अग्रणी है, क्योंकि यहां काकोरी कांड के तीन शहीद अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की जन्मस्थली है.
मजार में हर वर्ष होता है कार्यक्रम
19 दिसंबर को शाहजहांपुर में अमर शहीद अशफाक उल्ला खां की मजार पर विशेष कार्यक्रम करके उन्हें याद किया जाता है. शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला का यह भी कहना है कि शहीद अशफाक उल्ला खान की फांसी से पहले परिवार उनसे मिलने गया था. उन्होंने खुशी जाहिर की थी कि वे देश की आजादी के लिए अपनी जान दे रहे हैं.
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शहीद अशफाक उल्ला खां ने मां को लिखा था आखिरी खत
अमर शहीद अशफाक उल्ला खां ने फांसी से पहले अपनी मां को एक खत भी लिखा था, जिसमें लिखा था कि 'ऐ दुखिया मां, मेरा वक्त बहुत करीब आ गया है, मैं फांसी के फंदे पर जाकर आपसे रुखसत हो जाऊंगा, लेकिन आप पढ़ी-लिखी मां हैं. ईश्वर ने और कुदरत ने मुझे आपकी गोद में दिया था. लोग आपको मुबारकबाद देते थे. मेरी पैदाइश पर आप लोगों से कहा करती थे कि यह अल्लाह ताला की अमानत है. अगर मैं उसकी अमानत था तो वो अब इस देश के लिए अपनी अमानत मांग रहे हैं.
आपको अमानत में खयानत नहीं करनी चाहिए और इस देश को सौंप देना चाहिए.' अशफाक उल्ला खान ने फांसी से पहले एक आखरी श्येर भी कहा था, 'कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो ये है कि रख दे कोई जरा सी खाक-ए-वतन कफन में.'