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आडवाणी, रथ यात्रा, लालू और एक गिरफ्तारी, जिसने बदल दी BJP की किस्मत

अयोध्या भूमि विवाद पर उच्चतम न्यायालय का फैसला फैसला आ चुका है. न्यायालय के इस फैसले से राम मंदिर निर्माण के लिए रथ यात्रा निकालने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी बेहद खुश होंगे. रथ यात्रा के बाद से बीजेपी हिंदुत्तव का चेहरा बन गई, जिसका आगे चलकर पार्टी को बहुत फायदा हुआ.

लाल कृष्ण आडवाणी, लालू प्रसाद यादव ( फाइल फोटो)
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Published : Nov 10, 2019, 9:42 AM IST

Updated : Nov 10, 2019, 2:16 PM IST

पटना : अयोध्या भूमि विवाद पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से कुछ पक्षों को निराशा हाथ लगी तो कुछ को राहत मिली, लेकिन इस फैसले से भाजपा के वयोवृद्ध नेता लाल कृष्ण आडवाणी निश्चित रूप से खुश होंगे.

उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में राममंदिर का रास्ता साफ करने वाला फैसला ठीक उनके 92वें जन्मदिन के एक दिन बाद दिया है.

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा निकाली थी. 23 अक्टूबर 1990 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी की रथ यात्रा बिहार के समस्तीपुर में रोक दी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इस घटना ने आने वाले वर्षों में देश की राजनीति का रुख ही मोड़ कर रख दिया और भाजपा को इसका सबसे अधिक लाभ हुआ.

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लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा

समस्तीपुर में जब आडवाणी की गिरफ्तारी की गई तब वह भाजपा अध्यक्ष थे और नाटकीय रूप से इसका असर पार्टी की राजनीति पर पड़ा.

वयोवृद्ध पत्रकार एस डी नारायण बताते हैं, 'वह तड़के का समय था जब फोन की घंटी बजी. मैं हतप्रभ था कि दूसरी ओर मुख्यमंत्री थे. उन्होंने कहा कितना सोते हैं जबकि मैं जानता था कि प्रसाद खुद देर से उठते हैं, मैंने पूछा कि इतनी जल्दी उठने का कारण क्या है.'

नारायण ने बताया, 'उन्होंने जवाब दिया बाबा (आडवाणी) को पकड़ लिया है. देश और कई राज्यों की सरकारें राम रथ यात्रा की आंच महसूस कर रहीं थी और इसे रोकने के लिए कुछ करना था. अंतत: बिहार के मुख्यमंत्री ने इसे रोकने का फैसला किया.'

समस्तीपुर के रहने वाले एक पत्रकार उस समय एक अखबार में नए-नए संवाददाता थे. उन्होंने याद करते हुए कहा कि उस समय माहौल तनावपूर्ण था.

ईटीवी भारत रिपोर्ट.

ये भी पढ़ें : विवादित ढांचा विध्वंस मामला : अप्रैल तक फैसला आने की उम्मीद, आडवाणी समेत 32 लोग हैं आरोपी

उन्होंने कहा, 'मुझे कहा गया कि हाजीपुर से समस्तीपुर तक रथ यात्रा के साथ जाऊं. आडवाणी का गर्मजोशी से स्वागत किया गया लेकिन आश्चर्यजनक रूप उस समय आसमान में हेलीकॉप्टर मंडरा रहे थे. हमारे मन में था कि कुछ बड़ा होने वाला है.'

आडवाणी की गिरफ्तारी की खबर पत्रकारों को समस्तीपुर के जिलाधिकारी आरके सिंह की ओर से दी गई.

नारायण ने बताया कि आडवाणी की गिरफ्तारी से पहले सभी टेलीफोन बंद कर दिए गए और सूचना के लिए केवल सरकारी ब्रीफिंग ही जरिया था क्योंकि उस समय मोबाइल फोन या इंटरनेट की सुविधा नहीं थी और फैक्स मशीन विरले ही होती थीं.

आर के सिंह बाद में केंद्रीय गृह सचिव बने और अब केंद्रीय मंत्री हैं.

आडवाणी को कुछ दिन बाद रिहा करने से पहले विमान से मौजूदा झारखंड के दुमका स्थित अतिथि गृह ले जाया गया.

ये भी पढ़ें : अयोध्या फैसला पर बोले आडवाणी - 'यह मेरे लिए पूर्णता का क्षण'

नारायण ने कहा, इस गिरफ्तारी के साथ ही आडवाणी की रथ यात्रा जरूर अचानक से समाप्त हो गई लेकिन इससे बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और विभिन्न शहरों में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए, खासतौर उत्तर भारत में.

आडवाणी की गिरफ्तारी से ने केवल भाजपा को फायदा हुआ और पार्टी का राजनीतिक कद कई गुना बढ़ गया लेकिन इससे लालू को भी लाभ हुआ और उन्होंने खुद को भगवा विरोधी खेमे के नेता के रूप में स्थापित किया. मुस्लिम नेताओं की कमी की वजह से लालू पिछड़े वर्ग के ही नहीं अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने वाले नेता के रूप में उभरे.

ये भी पढ़ें : अयोध्या भूमि विवाद : संक्षेप में समझें फैसले के अहम बिंदु

समस्तीपुर अध्याय के दोनों नायक अब सुर्खियों से दूर हैं. आडवाणी भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में शामिल हैं जबकि लालू झारखंड की जेल में समय बिता रहे हैं.

पटना : अयोध्या भूमि विवाद पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से कुछ पक्षों को निराशा हाथ लगी तो कुछ को राहत मिली, लेकिन इस फैसले से भाजपा के वयोवृद्ध नेता लाल कृष्ण आडवाणी निश्चित रूप से खुश होंगे.

उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में राममंदिर का रास्ता साफ करने वाला फैसला ठीक उनके 92वें जन्मदिन के एक दिन बाद दिया है.

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा निकाली थी. 23 अक्टूबर 1990 को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी की रथ यात्रा बिहार के समस्तीपुर में रोक दी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इस घटना ने आने वाले वर्षों में देश की राजनीति का रुख ही मोड़ कर रख दिया और भाजपा को इसका सबसे अधिक लाभ हुआ.

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लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा

समस्तीपुर में जब आडवाणी की गिरफ्तारी की गई तब वह भाजपा अध्यक्ष थे और नाटकीय रूप से इसका असर पार्टी की राजनीति पर पड़ा.

वयोवृद्ध पत्रकार एस डी नारायण बताते हैं, 'वह तड़के का समय था जब फोन की घंटी बजी. मैं हतप्रभ था कि दूसरी ओर मुख्यमंत्री थे. उन्होंने कहा कितना सोते हैं जबकि मैं जानता था कि प्रसाद खुद देर से उठते हैं, मैंने पूछा कि इतनी जल्दी उठने का कारण क्या है.'

नारायण ने बताया, 'उन्होंने जवाब दिया बाबा (आडवाणी) को पकड़ लिया है. देश और कई राज्यों की सरकारें राम रथ यात्रा की आंच महसूस कर रहीं थी और इसे रोकने के लिए कुछ करना था. अंतत: बिहार के मुख्यमंत्री ने इसे रोकने का फैसला किया.'

समस्तीपुर के रहने वाले एक पत्रकार उस समय एक अखबार में नए-नए संवाददाता थे. उन्होंने याद करते हुए कहा कि उस समय माहौल तनावपूर्ण था.

ईटीवी भारत रिपोर्ट.

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उन्होंने कहा, 'मुझे कहा गया कि हाजीपुर से समस्तीपुर तक रथ यात्रा के साथ जाऊं. आडवाणी का गर्मजोशी से स्वागत किया गया लेकिन आश्चर्यजनक रूप उस समय आसमान में हेलीकॉप्टर मंडरा रहे थे. हमारे मन में था कि कुछ बड़ा होने वाला है.'

आडवाणी की गिरफ्तारी की खबर पत्रकारों को समस्तीपुर के जिलाधिकारी आरके सिंह की ओर से दी गई.

नारायण ने बताया कि आडवाणी की गिरफ्तारी से पहले सभी टेलीफोन बंद कर दिए गए और सूचना के लिए केवल सरकारी ब्रीफिंग ही जरिया था क्योंकि उस समय मोबाइल फोन या इंटरनेट की सुविधा नहीं थी और फैक्स मशीन विरले ही होती थीं.

आर के सिंह बाद में केंद्रीय गृह सचिव बने और अब केंद्रीय मंत्री हैं.

आडवाणी को कुछ दिन बाद रिहा करने से पहले विमान से मौजूदा झारखंड के दुमका स्थित अतिथि गृह ले जाया गया.

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नारायण ने कहा, इस गिरफ्तारी के साथ ही आडवाणी की रथ यात्रा जरूर अचानक से समाप्त हो गई लेकिन इससे बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और विभिन्न शहरों में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए, खासतौर उत्तर भारत में.

आडवाणी की गिरफ्तारी से ने केवल भाजपा को फायदा हुआ और पार्टी का राजनीतिक कद कई गुना बढ़ गया लेकिन इससे लालू को भी लाभ हुआ और उन्होंने खुद को भगवा विरोधी खेमे के नेता के रूप में स्थापित किया. मुस्लिम नेताओं की कमी की वजह से लालू पिछड़े वर्ग के ही नहीं अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने वाले नेता के रूप में उभरे.

ये भी पढ़ें : अयोध्या भूमि विवाद : संक्षेप में समझें फैसले के अहम बिंदु

समस्तीपुर अध्याय के दोनों नायक अब सुर्खियों से दूर हैं. आडवाणी भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में शामिल हैं जबकि लालू झारखंड की जेल में समय बिता रहे हैं.

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.SAMASTIPUR CAL6
AYODHYA-BH-ADVANI ARREST
An arrest that bled India but gave BJP political heft
         Samastipur, Nov 9 (PTI) The Supreme Court's verdict
marking the denouement of the vexatious Ayodhya dispute might
have riled or relieved the warring parties, but L K Advani,
the hawk-turned-dove BJP patriarch, must be a happy man.
         The apex court verdict, which has paved the way for
the construction of a Ram temple in Ayodhya, came just a day
after he celebrated his 92nd birthday.
         Nearly three decades ago, on October 23, 1990, his
'chariot', a swanky air-conditioned monster of a vehicle, was
stopped on track by the orders of an ebullient Bihar Chief
Minister Lalu Prasad at little-known town of Samastipur,
setting off a string of events that would shape the country's
politics in years to come.
         Advani's attempt to galvanise Hindus through his 'Ram
Rath Yatra', and Lalu's act of having him arrested, was a
watershed moment in the country's history that gave birth to
the 'Mandal-Mandir' politics which left society cleaved on
both religious and casteist lines.
         The arrest of Advani, then the BJP president, was as
dramatic as its effects were cataclysmic.
         "It was early in the morning when my telephone rang. I
was surprised to find the chief minister on the other side. He
was his usual chatty self. He asked me kitna sote hain (how
long do you sleep). Knowing that Prasad himself was a late
riser, I enquired what made him rise so early," reminisced S D
Narayan, a veteran journalist who then headed the Patna bureau
of PTI.
         "Baba ko pakad liya (we have caught the old man) was
his terse response. Governments across the country and in many
states were feeling the heat of Ram Rath Yatra and were
itching to do something to bring it to a halt. Finally, the
flamboyant chief minister of Bihar chose to bite the bullet,"
said Narayan.
         A veteran Samastipur-based journalist, who was then a
cub reporter working for a Hindi daily, recalled how the the
air was thick with anticipation that day.
         "I was told to follow the rath yatra from Hajipur to
Samastipur. In Hajipur, Advani had received a rousing welcome
but, oddly, helicopters were hovering in the sky. We had a
vague impression that something big was going to happen," he
said.
         The news of Advani's arrest was broken to journalists
by R K Singh, the redoubtable district magistrate of
Samastipur.
         All telephone lines had gone dead before Advani's
arrest and an official briefing was the only way to gather
news in those days when internet and mobile phones were not
known and fax machines were a rarity.
         Singh later went on to become the Union home secretary
and is now a Union minister from the BJP quota.
         Advani was flown in an aircraft to a government guest
house in Dumka, now in Jharkhand, before being released a few
days later.
         Though Advani's arrest brought an abrupt end to his
hugely successful rath yatra, it triggered massive protests
and communal riots across several towns and cities, especially
in north India.
         The communal frenzy that the arrest left in its wake
saw thousands of radical Hindu 'Karsevaks' (volunteers)
converge in Ayodhya.
         On October 30 that year, 28 Karsevaks were killed in
police action while trying to storm the Babri Masjid, which
was finally felled on December 6, 1992 in the presence of
Advani and a host of top BJP and VHP leaders. Advani is an
accused in the case.
         Years later, Samajwadi Party founder Mulayam Singh
Yadav, who was then the chief minister of Uttar Pradesh,
defended the action, saying if even more people were required
to be killed for the country's unity and integrity, the
security forces would have done that.
         Advani's arrest prompted the BJP to withdraw its
support to the V P Singh government at the Centre, which
declared it will go ahead with the implementation of the
Mandal Commission report that would provide 27 per cent
reservation to backward classes in government jobs and state-
run educational institutions.
         The events that unfolded after Advani's arrest not
only benefited the BJP, whose political clout grew
exponentially, but also catapulted Lalu to the forefront of
the anti-saffron camp.
         In the absence of a towering Muslim leader, Lalu, once
derided as a country bumpkin, emerged as not only a messiah of
the backward classes but also a doughty fighter for the cause
of the minority community.
         The two protagonists of the Samastipur saga, in the
autumn of their lives, are now away from limelight, having
left conflicting legacies.
         While Advani has been relegated to the virtually non-
existent 'Margdarshak Mandal' of the BJP, which now enjoys
hegemony over the country's political landscape, an ailing
Lalu Prasad cools his heels in a Jharkhand prison presiding
over a party left feeble by his absence from public space. PTI
NAC
SK
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NNNN
Last Updated : Nov 10, 2019, 2:16 PM IST
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