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क्या सीमा विवाद को लेकर तनाव कम नहीं होने के पीछे चीन का है षडयंत्र

भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव को कम करने के लिए सैन्य और राजनयिक स्तर पर हुई वार्ता अभी तक स्थिति में सुधार लाने में कामयाब नहीं हुई है. बातचीत की श्रृंखला के बावजूद सीमा पर बड़े पैमाने पर लामबंदी चल रही है. भारतीय सेना ने भी चीनी सैनिकों की लामबंदी के जवाब में बड़े पैमाने पर जवानों की तैनाती की है. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

INDIA CHINA FACEOFF
भारत चीन विवाद
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Published : Jul 1, 2020, 10:44 PM IST

नई दिल्ली : भारत और चीन की सेनाओं के लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अफसरों के बीच मंगलवार (30 जून) को पूर्वी लद्दाख के चुशूल-मोल्दो में तीसरी बार बैठक हुई. यह मैरॉथन बैठक 12 घंटे तक चली.

लंबी अवधि की बैठक कोई आश्चर्य की बात नहीं थी, क्योंकि कई मुद्दों पर चर्चा होनी थी. बीहड़ और बंजर क्षेत्र में कम से कम चार मोर्चों (फेसऑफ प्वाइंट्स) को लेकर चर्चा होनी थी, जहां दोनों देशों की सेनाएं पिछले कई दिनों से आमने-सामने हैं. इसके अलावा विस्तृत सैन्य प्रोटोकॉल के साथ हर बिंदु को दो अनुवादकों के माध्यम से बनाया जाना था.

6 जून और 22 जून के बाद यह तीसरी बैठक थी, जिसमें मोर्चे से पीछे हटने और तनाव कम करने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया गया. एशिया की दोनों महाशक्तियों के विदेश मंत्रियों ने भी 17 जून को सीमा पर तनाव करने को लेकर एक आभासी बैठक की थी.

गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने 15/16 जून की रात भारतीय सैनिकों पर बेरहमी से हमला किया, जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए. इस झड़प में चीनी सैनिक भी मारे गए थे. हालांकि, चीन ने अपने हताहत हुए सैनिकों के बारे में कोई खुलासा नहीं किया. अब हुई बैठकें भी तनाव को कम करने की प्रक्रिया शुरू करने में विफल रही हैं.

मंगलवार की बैठक को लेकर सैन्य सूत्र ने बताया, 'कल की बैठक लंबी थी और कोविड-19 प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए इसे व्यावसायिक तरीके से आयोजित की गईं. पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान पर पहुंचने के लिए सैन्य और राजनयिक स्तर पर और अधिक बैठकें होने की उम्मीद जताई जा रही है.'

मंगलवार वार्ता पर चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने सीमा पर तैनात चीनी सैनिकों के एक सूत्र के हवाले से लिखा कि दोनों पक्षों को अन्य बातों के अलावा 'ऐतिहासिक तथ्यों का सम्मान' करना चाहिए.

'ऐतिहासिक तथ्यों' पर जोर सीमा पर चीन के क्षेत्रीय दावे के कठोर रुख को दर्शाता है. संक्षेप में कहें तो दोनों पक्षों के बीच चल रही वार्ता अभी तक स्थिति में सुधार को वापस ले जाने में कामयाब नहीं हुई है.

यह हमें एक ऐसी स्थिति में लाता है जहां सैन्य और राजनयिक स्तरों पर बातचीत की श्रृंखला के बावजूद सीमा पर बड़े पैमाने पर लामबंदी चल रही है. भारतीय सेना ने भी चीनी सैनिकों की लामबंदी के जवाब में बड़े पैमाने पर जवानों की तैनाती की है.

दोनों देशों की सेनाएं बहुत जल्द पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर एक-दूसरे का सामना करने के लिए लगभग 30,000 सैनिकों को तैनात कर सकती हैं और यह विशाल ठंडे रेगिस्तान के लिए अभूतपूर्व तैनाती है. दोनों देशों ने न केवल जमीन पर सैनिक तैनात किए हैं, बल्कि आर्टिलरी पोजिशन लिए हुए हैं और अपनी वायु सेनाओं को हाई अलर्ट पर रखा है.

हार्वर्ड केनेडी स्कूल के बेलफर सेंटर (Belfer Center) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, चीन की बेहतर बुनियादी सुविधाओं और सैन्य संचालन के बावजूद भारतीय सेना और चीनी सेना भारत-चीन सीमा पर एक समान रूप से डटी हुई हैं.

लेकिन यह समस्या एक अलग आयाम ले सकती है, यदि पाकिस्तान नियंत्रण रेखा (एलओसी) और पीओके के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्रों की ओर बढ़ता है. पहले से ही ऐसी अपुष्ट खबरें हैं कि पाकिस्तानी सेना भारत के साथ लगती सीमा के पास सैनिकों को इकट्ठा कर रही है. संक्षेप में, क्या यह भारत के खिलाफ दो मोर्चे पर लामबंदी है जिसे चीन थोपने की कोशिश कर रहा है?

ये भी पढ़ें- भारत-चीन सैन्य कमांडरों की बैठक में तनाव कम करने पर जोर

अगर पूर्व में सैन्य रणनीतिकारों को चीनी सेना और पाकिस्तान की भारत के खिलाफ पूर्वी लद्दाख में मिलीभगत के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, तो यहां भारत द्वारा तेजी बुनियादी ढांचे के निर्माण के रूप में एक ठोस आधार है. भारत ने श्योक गांव से दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) तक 255 किमी लंबी सड़क का निर्माण किया है. डीबीओ प्रमुख भारतीय सैन्य अड्डा है जो काराकोरम दर्रे के पास स्थित है, और यह दुनिया का सबसे ऊंचा हवाई क्षेत्र है.

जैसा कि पिछले कुछ सालों से गिलगित-बाल्टिस्तान और अक्साई चिन पर भारतीय दावे ने जोर पकड़ा है. इसलिए चीन और पाकिस्तान मिलकर भारत के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं. यह गिलगित-बाल्टिस्तान के माध्यम से हो रहा है, जिससे चीन की प्रमुख परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) गुजरता है. इसलिए, यह जमीनी स्तर पर साझा हितों का स्पष्ट मामला है.

इसलिए, क्या पीछे हटने और तनाव कम करने में प्रगति में कमी के पीछे षड्यंत्र है? क्या यह छल का खेल है जिसे चीन दो-मोर्चे के संघर्ष के साथ खेल रहा है?

नई दिल्ली : भारत और चीन की सेनाओं के लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अफसरों के बीच मंगलवार (30 जून) को पूर्वी लद्दाख के चुशूल-मोल्दो में तीसरी बार बैठक हुई. यह मैरॉथन बैठक 12 घंटे तक चली.

लंबी अवधि की बैठक कोई आश्चर्य की बात नहीं थी, क्योंकि कई मुद्दों पर चर्चा होनी थी. बीहड़ और बंजर क्षेत्र में कम से कम चार मोर्चों (फेसऑफ प्वाइंट्स) को लेकर चर्चा होनी थी, जहां दोनों देशों की सेनाएं पिछले कई दिनों से आमने-सामने हैं. इसके अलावा विस्तृत सैन्य प्रोटोकॉल के साथ हर बिंदु को दो अनुवादकों के माध्यम से बनाया जाना था.

6 जून और 22 जून के बाद यह तीसरी बैठक थी, जिसमें मोर्चे से पीछे हटने और तनाव कम करने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया गया. एशिया की दोनों महाशक्तियों के विदेश मंत्रियों ने भी 17 जून को सीमा पर तनाव करने को लेकर एक आभासी बैठक की थी.

गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने 15/16 जून की रात भारतीय सैनिकों पर बेरहमी से हमला किया, जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए. इस झड़प में चीनी सैनिक भी मारे गए थे. हालांकि, चीन ने अपने हताहत हुए सैनिकों के बारे में कोई खुलासा नहीं किया. अब हुई बैठकें भी तनाव को कम करने की प्रक्रिया शुरू करने में विफल रही हैं.

मंगलवार की बैठक को लेकर सैन्य सूत्र ने बताया, 'कल की बैठक लंबी थी और कोविड-19 प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए इसे व्यावसायिक तरीके से आयोजित की गईं. पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान पर पहुंचने के लिए सैन्य और राजनयिक स्तर पर और अधिक बैठकें होने की उम्मीद जताई जा रही है.'

मंगलवार वार्ता पर चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने सीमा पर तैनात चीनी सैनिकों के एक सूत्र के हवाले से लिखा कि दोनों पक्षों को अन्य बातों के अलावा 'ऐतिहासिक तथ्यों का सम्मान' करना चाहिए.

'ऐतिहासिक तथ्यों' पर जोर सीमा पर चीन के क्षेत्रीय दावे के कठोर रुख को दर्शाता है. संक्षेप में कहें तो दोनों पक्षों के बीच चल रही वार्ता अभी तक स्थिति में सुधार को वापस ले जाने में कामयाब नहीं हुई है.

यह हमें एक ऐसी स्थिति में लाता है जहां सैन्य और राजनयिक स्तरों पर बातचीत की श्रृंखला के बावजूद सीमा पर बड़े पैमाने पर लामबंदी चल रही है. भारतीय सेना ने भी चीनी सैनिकों की लामबंदी के जवाब में बड़े पैमाने पर जवानों की तैनाती की है.

दोनों देशों की सेनाएं बहुत जल्द पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर एक-दूसरे का सामना करने के लिए लगभग 30,000 सैनिकों को तैनात कर सकती हैं और यह विशाल ठंडे रेगिस्तान के लिए अभूतपूर्व तैनाती है. दोनों देशों ने न केवल जमीन पर सैनिक तैनात किए हैं, बल्कि आर्टिलरी पोजिशन लिए हुए हैं और अपनी वायु सेनाओं को हाई अलर्ट पर रखा है.

हार्वर्ड केनेडी स्कूल के बेलफर सेंटर (Belfer Center) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, चीन की बेहतर बुनियादी सुविधाओं और सैन्य संचालन के बावजूद भारतीय सेना और चीनी सेना भारत-चीन सीमा पर एक समान रूप से डटी हुई हैं.

लेकिन यह समस्या एक अलग आयाम ले सकती है, यदि पाकिस्तान नियंत्रण रेखा (एलओसी) और पीओके के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्रों की ओर बढ़ता है. पहले से ही ऐसी अपुष्ट खबरें हैं कि पाकिस्तानी सेना भारत के साथ लगती सीमा के पास सैनिकों को इकट्ठा कर रही है. संक्षेप में, क्या यह भारत के खिलाफ दो मोर्चे पर लामबंदी है जिसे चीन थोपने की कोशिश कर रहा है?

ये भी पढ़ें- भारत-चीन सैन्य कमांडरों की बैठक में तनाव कम करने पर जोर

अगर पूर्व में सैन्य रणनीतिकारों को चीनी सेना और पाकिस्तान की भारत के खिलाफ पूर्वी लद्दाख में मिलीभगत के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, तो यहां भारत द्वारा तेजी बुनियादी ढांचे के निर्माण के रूप में एक ठोस आधार है. भारत ने श्योक गांव से दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) तक 255 किमी लंबी सड़क का निर्माण किया है. डीबीओ प्रमुख भारतीय सैन्य अड्डा है जो काराकोरम दर्रे के पास स्थित है, और यह दुनिया का सबसे ऊंचा हवाई क्षेत्र है.

जैसा कि पिछले कुछ सालों से गिलगित-बाल्टिस्तान और अक्साई चिन पर भारतीय दावे ने जोर पकड़ा है. इसलिए चीन और पाकिस्तान मिलकर भारत के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं. यह गिलगित-बाल्टिस्तान के माध्यम से हो रहा है, जिससे चीन की प्रमुख परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) गुजरता है. इसलिए, यह जमीनी स्तर पर साझा हितों का स्पष्ट मामला है.

इसलिए, क्या पीछे हटने और तनाव कम करने में प्रगति में कमी के पीछे षड्यंत्र है? क्या यह छल का खेल है जिसे चीन दो-मोर्चे के संघर्ष के साथ खेल रहा है?

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