सरगुजा : महाकवि कालिदास जब एक प्रेमी के प्रेम, प्रणय की व्याकुलता को लिखते हैं और मेघ को दूत मानकर संदेश भिजवाते हैं, तब मेघदूतम जैसे महाकाव्य की रचना होती है. मेघदूतम महाकवि कालिदास की रचनाओं का अमिट हस्ताक्षर है. कहते हैं कालिदास ने ये अद्भुत रचना सरगुजा के रामगढ़ पर्वत पर की थी.
शोधकर्ताओं की मानें तो रामगढ़ का पर्वत ही रामगिरि पर्वत है, जिसका उल्लेख महाकाव्य मेघदूतम में मिलता है. दावा है कि यही वो पर्वत है जिसमें बैठकर कालिदास ने प्रेमिका विरह में मेघ पर पत्र लिखे थे और उन्हें अलकापुरी भेजा था. यह दिन था आषाढ़ मास का पहला दिन, जिस दिन वर्षा ऋतु का आगाज माना जाता है. जब घनघोर काले मेघ आसमान में छा जाते हैं और फिर वर्षा बनकर बरसते हैं.
मेघदूतम की लोकप्रियता
मेघदूतम में एक यक्ष की कथा है, जिसे अलकापुरी से निष्कासित कर दिया गया था और तब उन्होंने रामगिरी पर्वत को अपना ठिकाना बनाया था. आषाढ़ महीने के आगाज के साथ जैसे ही बादल छाए उन्हें प्रेमिका की याद सताने लगी. जंगल में अकेले जीवन काट रहे यक्ष को कोई संदेश वाहक नहीं मिला, तब प्रेम पत्र भेजने के लिये मेघों को ही दूत बनाया गया. मेघदूतम की लोकप्रियता भारतीय साहित्य में प्राचीन काल से रही है. संस्कृत के कवि हुए हैं जिन्होंने मेघदूतम से प्रेरित होकर कई काव्य लिखे. सरगुजा के स्वर्णिम इतिहास का यह पन्ना अब तक अनसुलझा है. साहित्य शोधकर्ताओं का दावा यहां मेघदूतम के प्रमाण देता है तो वहीं इसे लेकर कोई पुरातात्विक शोध अबतक नहीं हो सका है.
विशाल मेले का आयोजन
सरगुजा जिले के उदयपुर विकासखंड में स्थित रामगढ़ पर्वत पर हर साल विशाल मेले का आयोजन आषाढ़ के पहले दिन किया जाता है. जिसमें देश भर से संस्कृत और हिंदी के कवि और शोधकर्ता आते हैं. महाकवि कालिदास और रामगढ़ के प्रमाण स्वरूप उस दिन शोध पत्र का वाचन भी किया जाता है. प्रशासन के द्वारा विभिन्न साहित्यिक आयोजन दो दिवस तक आयोजित किये जाते हैं.
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राम वनगमन पथ शामिल
अब यह पर्वत भगवान राम के आगमन की वजह से राम वनगमन पथ में भी शामिल हो चुका है और सरकार इसे पर्यटन के रूप में विकसित करने जा रही है, लेकिन इस पर्वत ने खुद में इतिहास के इतने बड़े रहस्य संजोए हैं, जिनकी महानता के किस्से विश्व स्तर पर पहुंचाने की जरुरत दिखती है.