नई दिल्ली : बिहार में चुनाव प्रचार के आखिरी समय में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बयान 'अंत भला तो सब भला' कहीं न कहीं यह उजागर करता दिखा कि नीतीश कुमार को लेकर एनडीए खेमे में बहुत ज्यादा अंतर्विरोध था. भले ही जेडीयू की तरफ से बाद में सफाई दी गई. मगर कहीं न कहीं यह एक सोची समझी राजनीति के तहत ही दिया गया बयान था.
करीब डेढ़ दशक तक बिहार में शासन करने वाले नीतीश कुमार पहली बार किसी सभा में इस तरह से अपने राजनीतिक संन्यास को लेकर कुछ बोल गए. हालांकि, बयान के कुछ घंटों के बाद नीतीश कुमार के करीबी नेताओं ने इस तथ्य को साफ कर दिया कि सीएम का कहना कुछ और था और वह चुनाव प्रचार की आखिरी बैठक की बात कर रहे थे. इसे प्रतिद्वंद्वियों ने एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया.
नीतीश कई बार घिरे
नीतीश कुमार की कई चुनाव सभाओं में इस बार लालू जिंदाबाद और तेजस्वी यादव जिंदाबाद के नारे लगे. यहां तक कि प्याज और जूते तक उनकी सभाओं में फेंके गए. यही नहीं तेजस्वी यादव और लालू यादव पर किए गए कमेंट को लेकर भी नीतीश कुमार कई बार घिरे.
हालांकि, अगर नीतीश कुमार चौथी बार जीत जाते हैं तो बिहार के पहले मुख्यमंत्री कृष्ण सिंह के रिकॉर्ड को पार करेंगे. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान पहली बार ऐसा देखने को मिला कि जब एक राज्य का सीएम ड्राइविंग सीट पर नजर नहीं आया और पूरी तरह से देश के प्रधानमंत्री पर चुनाव के लिए निर्भर दिखा. नीतीश कुमार ने अपनी चुनावी सभाओं में भी राज्य से ज्यादा देश के मुद्दों पर बात की.