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इंग्लिश चैनल पार करने वाली तैराक आरती साहा, धुंधली हो गई स्मृतियां

इग्लिश चैनल पार करने वाली आरती साहा की यादें आज के समय में धुंधली पड़ गई हैं. मिहिर सेन के बमुश्किल एक साल बाद इंग्लिश चैनल पार करने वाली साहा पहली एशियाई महिला तैराक थीं.

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Published : Sep 24, 2020, 9:48 PM IST

एशियाई महिला तैराक
एशियाई महिला तैराक

कोलकाता : जाने-माने लेखक नीरद सी चौधरी ने एक बार लिखा था, बंगाल के लोग आत्म-विस्मृत व्यक्ति हैं. यह टिप्पणी तब की है जब किसी को भी इंग्लिश चैनल को पार करने वाले पहले भारतीय तैराक के बारे में पूछा जाता है. तब मिहिर सेन का नाम आता है.

1958 में सेन के साथ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के एक अन्य व्यक्ति ब्रजेन दास ने भी चैनल पार कर लिया था, लेकिन शायद ही कभी लोग दास को याद करते हैं. जिस तरह आरती साहा का नाम स्मृति से धुंधला पड़ गया. मिहिर सेन के बमुश्किल एक साल बाद इंग्लिश चैनल पार करने वाली साहा पहली एशियाई महिला तैराक थीं.

आज आरती साहा की जयंती है. गूगल ने इस साल साहा को एक विशेष डूडल के साथ सम्मानित किया है. 29 सितंबर को इस उपलब्धि की वर्षगांठ होगी. 1959 में बंगाल की लंबी दूरी तैराक साहा ने चैनल को पार किया था, लेकिन कई लोग यह नहीं जानते हैं कि आरती भी एक ओलंपियन थी. उसने चैनल पार करने से पहले पांच साल का अंतर अर्जित किया था. बच्चे के रूप में आरती ने पहली बार गंगा में डुबकी लगाई थी.

24 सितंबर 1940 को उत्तरी कोलकाता में जन्मी आरती ने दो साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया. पिता पंचगोपाल साहा को ज्यादातर काम के चलते घर से दूर रहना पड़ता था. चाचा की उंगलियां पकड़े हुए आरती पहली बार गंगा में डुबकी लगाने गई थीं और उसे पानी से प्यार हो गया.

आरती अपने चाचा के संरक्षण में तैराकी का प्रशिक्षण ले रही थीं. इसी दौरान हाटकोला क्लब के बिजेन्द्र नाथ बोस ने पहली बार उन्हें देखा और क्लब में स्वागत किया. हाटकोल क्लब के शिविर में सचिन नाग और जैमिनी दास दो दिग्गज प्रशिक्षक थे. दोनों ने आरती को प्रशिक्षण देना शुरू किया.

मुंबई के डॉली नजीर और आरती दोनों ने 1952 में हेलसिंकी ओलंपिक टीम में अपना स्थान हासिल करने के साथ ही देश का प्रतिनिधित्व किया. एक अन्य बंगाली एथलीट नीलिमा घोष और मैरी डीसूजा टीम की अन्य दो महिला सदस्य थीं. उस दौरान आरती ने 200 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक स्पर्धा में भाग लिया था.

साल बीत गए और 1958 में मिहिर सेन और ब्रजेन दास ने चैनल को पार किया. आरती ने भी चुनौती लेने का फैसला किया. यह तय किया गया था कि वह सेन और दास दोनों द्वारा प्रशिक्षित की जाएगी, लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे.

अंत में युवा तैराक ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय से मदद लेने का फैसला किया. डॉ. रॉय ने शुरू में मना कर दिया, लेकिन बाद में 1969 में अपने प्रबंधक अरुण गुप्ता के साथ इंग्लैंड के लिए रवाना कर दिया. संयोग से साहा और गुप्ता दोनों बाद में शादी के बंधन में बंध गए.

इंग्लैंड में एक महीने के अभ्यास के बाद आरती ने पहली बार 27 अगस्त को चैनल के पानी में तैराकी की. 14 घंटे 10 मिनट तक तैरने के बाद आरती को डोवर के पास नाव की सीढ़ियों पर चढ़ना पड़ा. हालांकि आरती ने अपनी इच्छा पूरी की और फिर से अपना अभ्यास शुरू किया.

अंत में 29 सितंबर 1959 को आरती ने फिर से तैराकी की, लेकिन इस बार फ्रांस के केप ग्रिस नेज से इंग्लिश चैनल में तैराकी करते हुए आरती 16 घंटे और 20 मिनट के बाद इंग्लैंड के सैंडगेट पहुंची, जिसने चैनल को पार करने वाली पहली एशियाई महिला के रूप में इतिहास रच दिया.

कोलकाता : जाने-माने लेखक नीरद सी चौधरी ने एक बार लिखा था, बंगाल के लोग आत्म-विस्मृत व्यक्ति हैं. यह टिप्पणी तब की है जब किसी को भी इंग्लिश चैनल को पार करने वाले पहले भारतीय तैराक के बारे में पूछा जाता है. तब मिहिर सेन का नाम आता है.

1958 में सेन के साथ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के एक अन्य व्यक्ति ब्रजेन दास ने भी चैनल पार कर लिया था, लेकिन शायद ही कभी लोग दास को याद करते हैं. जिस तरह आरती साहा का नाम स्मृति से धुंधला पड़ गया. मिहिर सेन के बमुश्किल एक साल बाद इंग्लिश चैनल पार करने वाली साहा पहली एशियाई महिला तैराक थीं.

आज आरती साहा की जयंती है. गूगल ने इस साल साहा को एक विशेष डूडल के साथ सम्मानित किया है. 29 सितंबर को इस उपलब्धि की वर्षगांठ होगी. 1959 में बंगाल की लंबी दूरी तैराक साहा ने चैनल को पार किया था, लेकिन कई लोग यह नहीं जानते हैं कि आरती भी एक ओलंपियन थी. उसने चैनल पार करने से पहले पांच साल का अंतर अर्जित किया था. बच्चे के रूप में आरती ने पहली बार गंगा में डुबकी लगाई थी.

24 सितंबर 1940 को उत्तरी कोलकाता में जन्मी आरती ने दो साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया. पिता पंचगोपाल साहा को ज्यादातर काम के चलते घर से दूर रहना पड़ता था. चाचा की उंगलियां पकड़े हुए आरती पहली बार गंगा में डुबकी लगाने गई थीं और उसे पानी से प्यार हो गया.

आरती अपने चाचा के संरक्षण में तैराकी का प्रशिक्षण ले रही थीं. इसी दौरान हाटकोला क्लब के बिजेन्द्र नाथ बोस ने पहली बार उन्हें देखा और क्लब में स्वागत किया. हाटकोल क्लब के शिविर में सचिन नाग और जैमिनी दास दो दिग्गज प्रशिक्षक थे. दोनों ने आरती को प्रशिक्षण देना शुरू किया.

मुंबई के डॉली नजीर और आरती दोनों ने 1952 में हेलसिंकी ओलंपिक टीम में अपना स्थान हासिल करने के साथ ही देश का प्रतिनिधित्व किया. एक अन्य बंगाली एथलीट नीलिमा घोष और मैरी डीसूजा टीम की अन्य दो महिला सदस्य थीं. उस दौरान आरती ने 200 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक स्पर्धा में भाग लिया था.

साल बीत गए और 1958 में मिहिर सेन और ब्रजेन दास ने चैनल को पार किया. आरती ने भी चुनौती लेने का फैसला किया. यह तय किया गया था कि वह सेन और दास दोनों द्वारा प्रशिक्षित की जाएगी, लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे.

अंत में युवा तैराक ने तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय से मदद लेने का फैसला किया. डॉ. रॉय ने शुरू में मना कर दिया, लेकिन बाद में 1969 में अपने प्रबंधक अरुण गुप्ता के साथ इंग्लैंड के लिए रवाना कर दिया. संयोग से साहा और गुप्ता दोनों बाद में शादी के बंधन में बंध गए.

इंग्लैंड में एक महीने के अभ्यास के बाद आरती ने पहली बार 27 अगस्त को चैनल के पानी में तैराकी की. 14 घंटे 10 मिनट तक तैरने के बाद आरती को डोवर के पास नाव की सीढ़ियों पर चढ़ना पड़ा. हालांकि आरती ने अपनी इच्छा पूरी की और फिर से अपना अभ्यास शुरू किया.

अंत में 29 सितंबर 1959 को आरती ने फिर से तैराकी की, लेकिन इस बार फ्रांस के केप ग्रिस नेज से इंग्लिश चैनल में तैराकी करते हुए आरती 16 घंटे और 20 मिनट के बाद इंग्लैंड के सैंडगेट पहुंची, जिसने चैनल को पार करने वाली पहली एशियाई महिला के रूप में इतिहास रच दिया.

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