देहरादून : आज देश और दुनिया में लोग नैनीताल को पर्यटन नगरी के तौर पर जानते हैं. यहां आकर सभी सुकून महसूस करते हैं, लेकिन अतीत में नैनीताल की स्थिति ऐसी नहीं थी.
18 सितंबर 1880 के दिन नैनीताल में एक विनाशकारी भूस्खलन हुआ था, जिसने न सिर्फ इस शहर का भूगोल बदल दिया था, बल्कि ब्रिटिश और भारतीयों को मिलाकर करीब 151 लोगों जान भी ली थी. तभी से नैनीताल में हर साल 18 सितंबर का दिन काले दिवस के रूप में मनाया जाता है.
सरोवर नगरी नैनीताल की खोज 1841 में एक ब्रिटिश व्यापारी पीटर बैरन ने की थी, जिसके बाद नैनीताल को ब्रिटिश शासकों ने एक नए रूप में विकसित किया. ब्रिटिश शासकों को नैनीताल इतना पसंद आया था कि उन्होंने इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का फैसला किया था.
इसके बाद से नैनीताल ब्रिटिश शासकों का गढ़ बन गया, लेकिन इसी बीच 18 सितंबर 1880 को नैनीताल में एक बड़ा भूस्खलन हुआ, जिसमें करीब 151 लोग जमींदोज हो गए थे. इस हादसे में कई हेक्टेयर क्षेत्र मलबे में तब्दील हो गया. इतना ही नहीं, इस भूस्खलन की वजह से नैनीताल का प्रसिद्ध मां नैना देवी मंदिर 500 मीटर दूर खिसक गया.
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भूस्खलन के बाद नैनीताल के मल्लीताल क्षेत्र में एक खेल के मैदान का निर्माण भी हुआ. वहां पहले कभी नैनी झील हुआ करती थी, इस भूस्खलन के बाद ने झील का क्षेत्रफल भी कम हो गया था. हालांकि, इस विनाशकारी भूस्खलन के बाद ब्रिटिश शासकों ने नैनीताल को दोबारा सहेजने की कवायद की थी.
नैनीताल की कमजोर पहाड़ियों को भूस्खलन से रोकने के लिए ब्रिटिश शासकों ने करीब 64 छोटे बड़े नालों का निर्माण कराया था, जिनकी कुल लंबाई 6499 फीट है.
शहर के जानकार मानते हैं कि इन्हीं नालों की वजह से आज भी सरोवर नगरी नैनीताल का वजूद कायम है. 1841 में जब पीटर बैरन ने नैनीताल की खोज की तब उन्होंने ये नहीं सोचा था कि जिस स्थान की खोज वो कर रहे हैं वो एक दिन पर्यटन के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध होगा.
यही कारण है कि आज नैनीताल में हर साल लाखों की संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं, जो यहां आकर नैनीताल के विभिन्न पर्यटन स्थलों के साथ-साथ नैनीताल की ब्रिटिश कालीन इमारतों का दीदार करते हैं.