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विदेशों में भी फेमस है झारखंड की बार्बी डॉल, जानें कैसे शोभा बन गईं गुड़िया वाली दीदी

झारखंड की बार्बी डॉल (barbie doll of ranchi in america )की पहचान देश ही नहीं विदेश तक में है. रांची की शोभा के हुनर से सजने वाली इन गुड़ियों का संसार अमेरिका, नीदरलैंड और आस्ट्रेलिया तक मिल जाएगा.

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Published : Nov 7, 2021, 8:08 PM IST

रांची: कहते हैं जहां चाह है वहां राह है. रांची की शोभा ने इसे साबित कर दिखाया है. बचपन में गुड़ियों का संसार (barbie doll of ranchi in america) सजाने वाली शोभा ने गुड़ियों की नई दुनिया ही बसा दी है. इनके घर में एक से एक बार्बी डॉल मिलेंगी, जिसे शोभा ने खुद ही तैयार किया है. गुड़ियों से प्यार ने उन्हें गुड़िया दीदी बना दिया है. आर्ट एंड क्राफ्ट में महारत रखने वाली शोभा को आसपास के लोग गुड़िया वाली दीदी ही बुलाते हैं.

विदेशों में भी फेमस है झारखंड की बार्बी डॉल

विदेश तक पहुंची शोभा के हाथों की बनी डॉल

रांची निवासी शोभा बताती हैं कि उन्हें बचपन से ही गुड़िया बनाने का शौक था. इसी से उन्होंने अपने शौक को प्रोफेशन बना लिया. शुरुआत में सीमित आय में ही वह घर में डॉल बनाती थीं. बाद में उनकी गुड़ियों की डिमांड बढ़ी और रांची से बाहर के शहरों तक धीरे-धीरे जाने लगीं. देश के विभिन्न शहरों के बाद अब शोभा के हाथों बनी डॉल विदेश तक पहुंच गई है. अमेरिका, नीदरलैंड, आस्ट्रेलिया के बाद अब जल्द ही जर्मनी तक यह पहुंच जाएगी. शोभा बताती हैं कि एक गुड़िया को तैयार करने में उन्हें करीब 28 घंटे लगते हैं, जिसके लिए कई दिनों तक उन्हें बारीकी से काम करना होता है.

रोजगार प्रोवाइडर बनीं शोभा

गुड़ियों के इस संसार में शोभा जॉब सीकर नहीं बल्कि जॉब प्रोवइडर बन चुकी हैं. वे महिलाओं को इसका प्रशिक्षण भी देती हैं. 35 महिलाएं उनसे प्रशिक्षण लेकर स्वरोजगार शुरू कर चुकी हैं. इन महिलाओं में 30 आदिवासी हैं. सबसे खास बात यह है कि महिलाओं को मुफ्त में शोभा ने प्रशिक्षण दिया. इनकी बनाई डॉल भी शोभा खरीदकर मार्केटिंग करती हैं. अब ये महिलाएं हर माह दस हजार रुपये तक कमा रही हैं. इनकी डॉल में झारखंड की संस्कृति और सभ्यता की भी झलक मिलती है. जिसकी डिमांड झारखंड के साथ देश के दूसरे राज्यों में भी काफी है. सबसे खास बात यह है कि वे न किसी एसएचजी ग्रुप से न ही किसी एनजीओ से जुड़ी हैं.

डॉल बनाने से लेकर मार्केटिंग तक की जिम्मेदारी

शोभा की डॉल की दुनिया में 800 रुपये से लेकर 15 हजार रुपये तक की कीमत की डॉल हैं. शोभा खुद इसे बनाने के साथ मार्केटिंग भी खुद ही करती हैं.ऑनलाइन आनेवाले आर्डर से लेकर देशभर में खादी एवं हस्तशिल्प मेले में लगनेवाले स्टॉल तक का काम खुद ही संभालती हैं. इसके जरिये वे महिलाओं को भी सशक्त कर रही हैं. लेकिन राज्य सरकार की ओर से उनके काम को सम्मान नहीं मिला.

इधर चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने शोभा के हुनर को देखकर सहयोग का हाथ बढाया है. झारखंड चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष धीरज तनेजा और उपाध्यक्ष दीनदयाल वर्णवाल ने शोभा की डॉल और उनके व्यवसाय की सराहना की है. चैंबर्स का कहना है कि महिलाओं को रोजगार देने वाली ऐसी महिला को चेम्बर सम्मानित करेगा.

रांची: कहते हैं जहां चाह है वहां राह है. रांची की शोभा ने इसे साबित कर दिखाया है. बचपन में गुड़ियों का संसार (barbie doll of ranchi in america) सजाने वाली शोभा ने गुड़ियों की नई दुनिया ही बसा दी है. इनके घर में एक से एक बार्बी डॉल मिलेंगी, जिसे शोभा ने खुद ही तैयार किया है. गुड़ियों से प्यार ने उन्हें गुड़िया दीदी बना दिया है. आर्ट एंड क्राफ्ट में महारत रखने वाली शोभा को आसपास के लोग गुड़िया वाली दीदी ही बुलाते हैं.

विदेशों में भी फेमस है झारखंड की बार्बी डॉल

विदेश तक पहुंची शोभा के हाथों की बनी डॉल

रांची निवासी शोभा बताती हैं कि उन्हें बचपन से ही गुड़िया बनाने का शौक था. इसी से उन्होंने अपने शौक को प्रोफेशन बना लिया. शुरुआत में सीमित आय में ही वह घर में डॉल बनाती थीं. बाद में उनकी गुड़ियों की डिमांड बढ़ी और रांची से बाहर के शहरों तक धीरे-धीरे जाने लगीं. देश के विभिन्न शहरों के बाद अब शोभा के हाथों बनी डॉल विदेश तक पहुंच गई है. अमेरिका, नीदरलैंड, आस्ट्रेलिया के बाद अब जल्द ही जर्मनी तक यह पहुंच जाएगी. शोभा बताती हैं कि एक गुड़िया को तैयार करने में उन्हें करीब 28 घंटे लगते हैं, जिसके लिए कई दिनों तक उन्हें बारीकी से काम करना होता है.

रोजगार प्रोवाइडर बनीं शोभा

गुड़ियों के इस संसार में शोभा जॉब सीकर नहीं बल्कि जॉब प्रोवइडर बन चुकी हैं. वे महिलाओं को इसका प्रशिक्षण भी देती हैं. 35 महिलाएं उनसे प्रशिक्षण लेकर स्वरोजगार शुरू कर चुकी हैं. इन महिलाओं में 30 आदिवासी हैं. सबसे खास बात यह है कि महिलाओं को मुफ्त में शोभा ने प्रशिक्षण दिया. इनकी बनाई डॉल भी शोभा खरीदकर मार्केटिंग करती हैं. अब ये महिलाएं हर माह दस हजार रुपये तक कमा रही हैं. इनकी डॉल में झारखंड की संस्कृति और सभ्यता की भी झलक मिलती है. जिसकी डिमांड झारखंड के साथ देश के दूसरे राज्यों में भी काफी है. सबसे खास बात यह है कि वे न किसी एसएचजी ग्रुप से न ही किसी एनजीओ से जुड़ी हैं.

डॉल बनाने से लेकर मार्केटिंग तक की जिम्मेदारी

शोभा की डॉल की दुनिया में 800 रुपये से लेकर 15 हजार रुपये तक की कीमत की डॉल हैं. शोभा खुद इसे बनाने के साथ मार्केटिंग भी खुद ही करती हैं.ऑनलाइन आनेवाले आर्डर से लेकर देशभर में खादी एवं हस्तशिल्प मेले में लगनेवाले स्टॉल तक का काम खुद ही संभालती हैं. इसके जरिये वे महिलाओं को भी सशक्त कर रही हैं. लेकिन राज्य सरकार की ओर से उनके काम को सम्मान नहीं मिला.

इधर चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने शोभा के हुनर को देखकर सहयोग का हाथ बढाया है. झारखंड चेम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष धीरज तनेजा और उपाध्यक्ष दीनदयाल वर्णवाल ने शोभा की डॉल और उनके व्यवसाय की सराहना की है. चैंबर्स का कहना है कि महिलाओं को रोजगार देने वाली ऐसी महिला को चेम्बर सम्मानित करेगा.

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