नई दिल्ली : बलूचिस्तान की निर्वासित प्रधानमंत्री नायला कादरी बलूच अपने देश को पाकिस्तानी कब्जे से छुड़ाने और आजाद मुल्क बनाने के लिए पूरी दुनिया में घूम-घूम कर समर्थन जुटा रही हैं. बीते मंगलवार को वह ईटीवी भारत के दिल्ली दफ्तर में थीं. हमारे नेशनल ब्यूरो चीफ राकेश त्रिपाठी ने उनसे कई मुद्दों पर बात की.
सवाल- साल भर बाद आपका भारत आना हुआ है. क्या उम्मीदें लेकर आई हैं ?
जवाब- उम्मीदें हमें सबसे ज्यादा भारत के लोगों से हैं. बलूचिस्तान जल रहा है, वहां जेनोसाइड हो रहा है. अब उस आग को बुझाने क लिए हम भारत की तरफ देख रहे हैं. दूसरे मुल्कों से भी हम बात कर रहे हैं. यूरोप के सात देशों का दौरा करके हम अभी लौटे हैं. वहां लोगों से मिले, यूरोप के कई सांसदों से मिले.. स्ट्रैटेजिस्ट से मिले और संयुक्त राष्ट्र में भी हमने जा कर अपनी प्रेज़ेंटेशन दी. ये सब काम करते करते जब थक जाते हैं तो भारत याद आता है. बलूचिस्तान तो जा नहीं सकते अभी, तो भारत आने से बलोचिस्तान की खुशबू आती है. भारत में ऐसे लोग जिनके पुरखों ने आज़ादी की जंग लड़ी, वो हमारे साथ जुड़ गए हैं. भारत आने पर उनसे मुलाकात होती है तो ऊर्जा मिलती है, तो यहां जो प्यार मिलता है, जो मान-सम्मान मिलता है, वो दुनिया में कहीं नहीं मिलता.
सवाल- कोई उम्मीद भी मिलती है कि नहीं ?
जवाब- भारत के लोगों से बहुत उम्मीद मिलती है. मुझे कहा जाता है कि आप तो बार-बार भारत जाती हैं. लेकिन अभी तक तो भारत की सरकार ने बलूचों के लिए कुछ नहीं किया, मेरा जवाब होता है कि एक भारत सरकार है और एक भारत देश है. हम भारत जाते हैं, जिस दिन पाकिस्तान से ये जंग हम हार गए, तो उसके बाद एक दिन ये गजवा-ए-हिंद भारत की ओर ही आएगा. हमें मार कर वे हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर कब्ज़ा करते हैं, आपको मार कर तो उन्हें आखिरत भी मिल जाएगी.
सवाल- आपकी ये शिकायत रही है कि आपको अपनी लड़ाई के लिए भारत से मदद नहीं मिलती. पाकिस्तान कहता है कि भारत बलूचियों की मदद करता है. इसको कैसे देखती हैं आप ?
उत्तर- ये देख कर दुख होता है कि एक तो हम बिना किसी की मदद के अपनी लड़ाई अकेले लड़ रहे हैं, फिर जो हम करते हैं, उसका क्रेडिट बिना कुछ किए भारत को मिल जाता है. लोग कहते हैं कि इंडिया तुम लोगों पर डॉलर्स की बारिश कर रहा है. हम कहते हैं कि हमे डॉलर्स की ज़रूरत नहीं है. हम तो चाहते हैं कि इंडिया हमारे लिए संयुक्त राष्ट्र में और इंटरनेशनल फोरम्स पर खड़ा हो.
सवाल- बलूचिस्तान की आज़ादी की कोशिशें आपकी ओर से हो रही हैं, क्या आप एक और बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग होते हुए देख रही हैं ?
जवाब- बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था, हम पाकिस्तान का हिस्सा नहीं थे. बांग्लादेश और हमारा मामला बिलकुल अलग है. हमारे यहां मुसलमानों की बहुतायत है, लेकिन हिंदू बलूच भी उसी एहतेराम, उसी मान-सम्मान से रहते हैं. बलूचिस्तान एक आजाद मुल्क था और हम अपनी आज़ादी वापस ले कर रहेंगे. सौ साल लगे या हजार साल, बलूच अपना वतन, अपना मुल्क वापस लेगा, ये हमने अपना फैसला लिख दिया है. अपनी आज़ादी लेंगे, किसी की ग़ुलामी में हम नहीं रह सकते.
सवाल- क्या आपको नहीं लगता कि सीपेक (चीन का प्रोजेक्ट) के आने से आपकी आज़ादी थोड़ी और दूर हो गई ?
जवाब- सीपेक या बीआरआई को कहीं कामयाबी नहीं मिल रही. उसकी बेसिक वजह ये है कि ये लोग ग्वादर के इलाके में जिस तरह पाकिस्तानी फौज को लेकर हमें मारते हुए इस इलाके में आए, लोगों के घर गिरा दिए, जिस को चाहा उठा लिया, लाशें गिरा दीं, तो वो प्रोजेक्ट पहले दिन से ही बलूचों के लिए मौत की सजा बन गया. मानवाधिकार का हनन धीरे-धीरे जेनोसाइड में बदल गया. हमारे बलूच सागर में फिशिंग की इजाज़त नहीं है, लेकिन उनसे पैसे लेके ये सब करवाता है. चीनियों के पास जो तकनीक है, उसके ज़रिये वे पानी में तो छोड़िए, ज़मीन के भीतर रहने वाले जीवों को भी निकाल लेते हैं. इसमें ग्रीन टर्टल जैसा एनडेंजर्ड स्पेसी भी है, डॉल्फिन, व्हेल और शार्क जैसी मछलियां भी हैं. वे किसी को नहीं छोड़ रहे.
सवाल- आपको संघर्ष जारी रखने के लिए मदद कहां से मिल रही है ?
जवाब- अगर मदद मिलती तो हमारे ऊपर इनका कब्ज़ा नहीं हो सकता था. ये जो 74 साल लगे हैं, सिर्फ इसलिए कि हम अकेले लड़ रहे हैं. अगर मदद मिले तो दो दिन के भीतर बलोच इनको बलोचिस्तान से खदेड़ देगा.
सवाल- आपके हिसाब से बलूचिस्तान की आजादी को लेकर भारत से कहां चूक हो गई ? क्या कोई टीस है आपके मन में ?
जवाब- एक टीस ? गिनवाना शुरू करें तो बहुत सी हैं. 1947 में जब जिन्ना ने संदेश भेजने शुरू किए कि बलूचिस्तान को पाकिस्तान में मिल जाना चाहिए, तब बलूच नेता इंडिया जा कर आपके प्रधानमंत्री से मिले, लेकिन नेहरू कहा कि हम कुछ नहीं कर सकते. अगले ही महीने पाकिस्तान ने हम पर हमला कर दिया. इसके बाद 1971 का भारत-पाक युद्ध जब हो रहा था, हमारे लीडर नवाब अकबर खान बुगती ने शेख मुजीबुर्रहमान से मुलाकात की. लेकिन आपकी उस वक्त की प्रधानमंत्री ने मना कर दिया.
सवाल- 2016 में मोदी ने लाल किले से बलूचिस्तान की चर्चा की थी. लेकिन उसके बाद फिर वो मुद्दा गायब हो गया.
जवाब- लाल किले से बलोचिस्तान के ज़िक्र के बाद बलोचों की उम्मीदें काफी बढ़ गई थीं. लेकिन उसके बाद तो कुछ हुआ ही नहीं. अलबत्ता उसके फौरन बाद पाक फौजों ने कलात में जा कर काली का मंदिर तोड़ दिय. और बलूचों पर जुल्म बढ़ा दिए. ये तक कह कर बलोचों को मारा कि बुलाओ मोदी को आकर तुम्हें बचाएं.
सवाल- संघ के नेताओं से आप कभी मिलीं मदद के लिए.
जवाब- हमने अपनी बात सबके सामने रखी है. लेकिन लोगों को लगता है कि बांग्लादेश बना के ही हमको क्या मिल गया...वहां भी हिंदू मारे जा रहे हैं....या अगर बलूचिस्तान और सिंध आजाद भी हो गए तो मुस्लिम देश एक की बजाय चार होंगे और वहां भी हम मारे जाएंगे. इस तरह के मिथक हैं जो जेनुइन भी हैं. फायदा ये है कि दुनिया में हर मुद्दे पर बांग्लादेश भारत के साथ खड़ा होता है. भारत को कभी भी सिक्योरिटी काउंसिल में जाना होगा तो हम उसका साथ देंगे. भारत हमारा फेवरिट कंट्री होगा. भारत के अलावा कोई भी जगह अगर ऐसी है जहां हिंदू प्यार से जी रहा है, तो वो जगह बलूचिस्तान है. जिस दिन हम अपनी लड़ाई पाकिस्तानियों से हार गए, उस दिन आपका सारी तहज़ीब हार जाएगी.
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