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जिस छात्रा की मौत के बाद यूपी के स्कूल बंद हुए, उसकी मां बोली- मेरी बेटी को बदनाम न करें

आजमगढ़ में छात्रा श्रेया तिवारी की मौत का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है. छात्रा की मौत के बाद स्कूल की प्रिंसिपल सोनम मिश्रा और शिक्षक अभिषेक राय को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था. लेकिन, इसके बाद दोनों को जमानत मिल गई. इसी को लेकर आज छात्रा के माता-पिता ने अपनी बेटी को न्याय देने की मांग की.

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Published : Aug 10, 2023, 6:04 PM IST

Updated : Aug 10, 2023, 7:27 PM IST

छात्रा श्रेया तिवारी के माता पिता
छात्रा श्रेया तिवारी के माता पिता
छात्रा श्रेया तिवारी के माता-पिता से मीडिया की बातचीत

आजमगढ़: आजमगढ़ में गर्ल्स कॉलेज में 11वीं की छात्रा श्रेया तिवारी की मौत के बाद मामला शांत होने का नाम नहीं ले रहा है. छात्रा के परिजनों की शिकायत पर प्रिंसिपल और क्लास टीचर को गिरफ्तार करके जेल भेजा गया था और अब दोनों को जमानत भी मिल गई है. गुरुवार को दोनों की रिहाई हो चुकी है. इसके बाद छात्रा के माता-पिता अपनी बेटी को न्याय देने की मांग कर रहे हैं.

मां के आंखों के आंसू सूख नहीं रहे हैं और पिता जो हमेशा सख्त कहे जाते हैं, उनका भी रो-रो कर बुरा हाल है. मां-बाप बस अब यही गुहार लगा रहे हैं कि उनकी बेटी की मौत के बाद योगी सरकार उसे न्याय दिलाए. 31 जुलाई को आजमगढ़ के गर्ल्स कॉलेज में चेकिंग के दौरान 11वीं की छात्र के बैग से मोबाइल फोन मिलने के बाद यह प्रकरण सामने आया था.

आरोप है कि प्रिंसिपल सोनम मिश्रा और क्लास टीचर अभिषेक राय ने मोबाइल मिलने के बाद छात्रा को इतनी फटकार लगाई कि वह डर गई. अभिभावक को बुलाने की बात कहने पर छात्रा फूट-फूट कर रोई. लेकिन, उसकी किसी ने नहीं सुनी. इसके बाद बेइज्जती और माता-पिता के डर से छात्रा ने स्कूल की ही तीसरी मंजिल से छलांग लगा दी. इसके बाद उसकी मौके पर ही मौत हो गई. बात यह भी है कि छात्रा के घर वालों को सूचित किए बिना ही स्कूल प्रबंधन छात्रा को लेकर अस्पताल ले गया, जहां अस्पताल प्रबंधन की तरफ से पुलिस को सूचना दी गई. मौके पर पुलिस पहुंची तो स्कूल में घटनास्थल से छात्रा के खून के निशान भी गायब मिले थे. इसके बाद पूरा मामला संदेह के दायरे में आ गया.

इस प्रकरण में अब छात्रा की मां नीतू तिवारी और पिता ने स्कूल प्रबंधन पर आरोप लगाते हुए कहा है कि स्कूल प्रबंधन अपने वर्चस्व की वजह से इस केस को खत्म करना चाह रहा है. पुलिस ने खुद से ही केस खत्म कर दिया है और आरोपियों को कोर्ट तक नहीं पहुंचने दिया. छात्रा की मां का कहना है कि गरीबों का कोई नहीं है. अगर गरीब है तो उसे सिर्फ हारना है. सिर्फ दबाना है और आज मैं हारी हूं या दबाई गई हूं. मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि मैं आगे की लड़ाई कैसे लड़ूं. मैं किस पर भरोसा करके लड़ाई लडूंगी. मुझे कौन न्याय दिलवाएगा. मेरी बेटी चली गई है, मुझे मेरी बेटी तो नहीं मिलेगी. मुझे न्याय तो मिलता. मुझे तो अब न्याय भी नहीं मिल रहा है.

बच्ची की मां नीतू तिवारी ने कहा कि पहले वह गर्ल्स स्कूल में नहीं पढ़ती थी. स्कूल में बॉयज के साथ भी पढ़ती थी. लेकिन, बच्चा किसी से बात भी कर रहा है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह लोग उसे मार डालेंगे. उसकी पर्सनल लाइफ भी कुछ है कि नहीं. कहा कि वह निजी जिंदगी थी मेरी बेटी की. वह लोग कौन होते हैं कि वह किस से बात करें या किससे बात न करें. घर में हमारे 11 बेटे हैं, हो सकता है वह अपने भाइयों से बात कर रही हो. सब के साथ वह गलत ही लगा देंगे.

छात्रा की मां ने कहा कि वह बहुत शर्मिंदा हैं कि उन्होंने ऐसे लोगों पर भरोसा किया जो उनके साथ कभी थे ही नहीं. कभी यह नहीं कहा कि प्रशासन उनके साथ नहीं है. उन्होंने कहा कि उन्हें लगता था कि सब उनके साथ खड़े हैं. लेकिन, लोग कहते हैं पुलिस के पास कोई हमदर्दी नहीं होती है. उनके लिए कोई अपना नहीं होता है. सबके साथ ऐसे ही होता है और उनके साथ भी वही हो रहा है. उन्होंने कहा कि अगर उनकी गलती है तो उसको साबित कर दीजिए. अगर आपकी गलती है तो उसको भी साबित कीजिए. कहा कि सिर्फ यही मांगा है कि कैमरे की जांच कीजिए. कैमरे में क्या आया है, यह देखना चाहिए. लेकिन, यह कैसे प्रूफ हो रहा है कि वह किसी से प्यार करती थी, किसी के साथ बात करती थी या चीजें उछालने का क्या मतलब है. प्रशाशन कह रहा है कि चीजों को गोपनीय रखा जाएगा. लेकिन, यहां तो चीजों को उछाला जा रहा है. अगर उसके फोन में कुछ मिला भी है तो उसको क्यों उछाला जा रहा है.

वहीं, लड़की के पिता का कहना है कि वह क्या कहें. प्रशासन ने उनकी तरफ से कुछ किया ही नहीं. एक रात में ही सब कुछ बदल गया. यह नामुमकिन लग रहा है कि यह चीजें कैसे हुईं. न्यायालय का काम याद दिलाना होता है. पुलिस प्रशासन ने अपना काम कर दिया था. उसे जो भी गलत लगा, उसने वह काम कर दिया. यह न्यायालय का काम था. लेकिन, पुलिस ने कहा, सब कुछ ठीक है. यह लोग निर्दोष हैं और जैसी उनकी प्रोसीडिंग हुई, उसी हिसाब से न्यायालय ने भी काम किया. एक ईमानदार एसपी को दूसरे जिले में भेज दिया गया. तभी लगा कि कुछ तो गड़बड़ है. सब कुछ सच देखते हुए भी सब कुछ साफ करके दोषियों को छोड़ दिया गया. बात न्यायालय तक भी नहीं पहुंचे. एक आम आदमी के बस की बात नहीं है. समझ में आ गया है.

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छात्रा श्रेया तिवारी के माता-पिता से मीडिया की बातचीत

आजमगढ़: आजमगढ़ में गर्ल्स कॉलेज में 11वीं की छात्रा श्रेया तिवारी की मौत के बाद मामला शांत होने का नाम नहीं ले रहा है. छात्रा के परिजनों की शिकायत पर प्रिंसिपल और क्लास टीचर को गिरफ्तार करके जेल भेजा गया था और अब दोनों को जमानत भी मिल गई है. गुरुवार को दोनों की रिहाई हो चुकी है. इसके बाद छात्रा के माता-पिता अपनी बेटी को न्याय देने की मांग कर रहे हैं.

मां के आंखों के आंसू सूख नहीं रहे हैं और पिता जो हमेशा सख्त कहे जाते हैं, उनका भी रो-रो कर बुरा हाल है. मां-बाप बस अब यही गुहार लगा रहे हैं कि उनकी बेटी की मौत के बाद योगी सरकार उसे न्याय दिलाए. 31 जुलाई को आजमगढ़ के गर्ल्स कॉलेज में चेकिंग के दौरान 11वीं की छात्र के बैग से मोबाइल फोन मिलने के बाद यह प्रकरण सामने आया था.

आरोप है कि प्रिंसिपल सोनम मिश्रा और क्लास टीचर अभिषेक राय ने मोबाइल मिलने के बाद छात्रा को इतनी फटकार लगाई कि वह डर गई. अभिभावक को बुलाने की बात कहने पर छात्रा फूट-फूट कर रोई. लेकिन, उसकी किसी ने नहीं सुनी. इसके बाद बेइज्जती और माता-पिता के डर से छात्रा ने स्कूल की ही तीसरी मंजिल से छलांग लगा दी. इसके बाद उसकी मौके पर ही मौत हो गई. बात यह भी है कि छात्रा के घर वालों को सूचित किए बिना ही स्कूल प्रबंधन छात्रा को लेकर अस्पताल ले गया, जहां अस्पताल प्रबंधन की तरफ से पुलिस को सूचना दी गई. मौके पर पुलिस पहुंची तो स्कूल में घटनास्थल से छात्रा के खून के निशान भी गायब मिले थे. इसके बाद पूरा मामला संदेह के दायरे में आ गया.

इस प्रकरण में अब छात्रा की मां नीतू तिवारी और पिता ने स्कूल प्रबंधन पर आरोप लगाते हुए कहा है कि स्कूल प्रबंधन अपने वर्चस्व की वजह से इस केस को खत्म करना चाह रहा है. पुलिस ने खुद से ही केस खत्म कर दिया है और आरोपियों को कोर्ट तक नहीं पहुंचने दिया. छात्रा की मां का कहना है कि गरीबों का कोई नहीं है. अगर गरीब है तो उसे सिर्फ हारना है. सिर्फ दबाना है और आज मैं हारी हूं या दबाई गई हूं. मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि मैं आगे की लड़ाई कैसे लड़ूं. मैं किस पर भरोसा करके लड़ाई लडूंगी. मुझे कौन न्याय दिलवाएगा. मेरी बेटी चली गई है, मुझे मेरी बेटी तो नहीं मिलेगी. मुझे न्याय तो मिलता. मुझे तो अब न्याय भी नहीं मिल रहा है.

बच्ची की मां नीतू तिवारी ने कहा कि पहले वह गर्ल्स स्कूल में नहीं पढ़ती थी. स्कूल में बॉयज के साथ भी पढ़ती थी. लेकिन, बच्चा किसी से बात भी कर रहा है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह लोग उसे मार डालेंगे. उसकी पर्सनल लाइफ भी कुछ है कि नहीं. कहा कि वह निजी जिंदगी थी मेरी बेटी की. वह लोग कौन होते हैं कि वह किस से बात करें या किससे बात न करें. घर में हमारे 11 बेटे हैं, हो सकता है वह अपने भाइयों से बात कर रही हो. सब के साथ वह गलत ही लगा देंगे.

छात्रा की मां ने कहा कि वह बहुत शर्मिंदा हैं कि उन्होंने ऐसे लोगों पर भरोसा किया जो उनके साथ कभी थे ही नहीं. कभी यह नहीं कहा कि प्रशासन उनके साथ नहीं है. उन्होंने कहा कि उन्हें लगता था कि सब उनके साथ खड़े हैं. लेकिन, लोग कहते हैं पुलिस के पास कोई हमदर्दी नहीं होती है. उनके लिए कोई अपना नहीं होता है. सबके साथ ऐसे ही होता है और उनके साथ भी वही हो रहा है. उन्होंने कहा कि अगर उनकी गलती है तो उसको साबित कर दीजिए. अगर आपकी गलती है तो उसको भी साबित कीजिए. कहा कि सिर्फ यही मांगा है कि कैमरे की जांच कीजिए. कैमरे में क्या आया है, यह देखना चाहिए. लेकिन, यह कैसे प्रूफ हो रहा है कि वह किसी से प्यार करती थी, किसी के साथ बात करती थी या चीजें उछालने का क्या मतलब है. प्रशाशन कह रहा है कि चीजों को गोपनीय रखा जाएगा. लेकिन, यहां तो चीजों को उछाला जा रहा है. अगर उसके फोन में कुछ मिला भी है तो उसको क्यों उछाला जा रहा है.

वहीं, लड़की के पिता का कहना है कि वह क्या कहें. प्रशासन ने उनकी तरफ से कुछ किया ही नहीं. एक रात में ही सब कुछ बदल गया. यह नामुमकिन लग रहा है कि यह चीजें कैसे हुईं. न्यायालय का काम याद दिलाना होता है. पुलिस प्रशासन ने अपना काम कर दिया था. उसे जो भी गलत लगा, उसने वह काम कर दिया. यह न्यायालय का काम था. लेकिन, पुलिस ने कहा, सब कुछ ठीक है. यह लोग निर्दोष हैं और जैसी उनकी प्रोसीडिंग हुई, उसी हिसाब से न्यायालय ने भी काम किया. एक ईमानदार एसपी को दूसरे जिले में भेज दिया गया. तभी लगा कि कुछ तो गड़बड़ है. सब कुछ सच देखते हुए भी सब कुछ साफ करके दोषियों को छोड़ दिया गया. बात न्यायालय तक भी नहीं पहुंचे. एक आम आदमी के बस की बात नहीं है. समझ में आ गया है.

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Last Updated : Aug 10, 2023, 7:27 PM IST
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