नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल में ही स्वच्छ भारत मिशन 2.0 की लॉन्च किया. इस मिशन का उद्देश्य देश के सभी शहरों को कचरा मुक्त बनाना है. लेकिन आज भी देश के कई राज्य हैं, जो कचरा इकट्ठा करने के मामले में पीछे हैं. सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि घर-घर कचरा संग्रह के मामले में उत्तर प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल जैसे प्रमुख राज्य अन्य राज्यों की तुलना में बहुत पीछे हैं.
घर-घर कचरा इकट्ठा कराना भारत के स्वच्छ भारत मिशन का एक महत्वपूर्ण घटक है. डोर टू डोर कचरा इकट्ठा न होने से स्वास्थ्य और पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है. आंकड़ों के अनुसार, असम में घर-घर जाकर कचरा कलेक्शन 43 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 62 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 65 प्रतिशत दर्ज किया गया है.
दूसरी ओर, आंध्र प्रदेश, गोवा, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और सिक्किम, अंडमान और निकोबार द्वीप, चंडीगढ़, दमन और दीव में 100 प्रतिशत डोर टू डोर कचरा कलेक्शन दर्ज किया गया है. वहीं, राजस्थान में 99 फीसदी, तमिलनाडु में 90 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 96 फीसदी डोर टू डोर कचरा कलेक्शन दर्ज किया है.
इस मामले पर ईटीवी भारत ने भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) में शहरी मामलों के विशेषज्ञ और शहरी अध्ययन केंद्र के समन्वयक डॉ कमला कांत पांडे से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि जागरूकता की कमी के कारण कई राज्य पिछड़ रहे हैं.
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डॉ पांडे ने कहा कि सामुदायिक जागरूकता की कमी है. कचरा संग्रह करने वाले व्यक्ति के दरवाजे पर आने पर बहुत से लोग शायद ही कचरा लाते हैं. यहां कचरा संग्रह प्रणाली को सख्त करने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि गैर सरकारी संगठन और पड़ोस के समुदाय इस पहलू में एक प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं. पांडे ने कहा कि कचरे के संग्रह के साथ-साथ पृथक्करण भी महत्वपूर्ण है. रसोई के कचरे और कचरे को अलग करना महत्वपूर्ण है. क्योंकि ऐसा न होने पर पुनर्चक्रण करने में दिक्कतें आएंगी.
स्थिति का संज्ञान लेते हुए एक संसदीय समिति ने भी सुझाव दिया है कि इस क्षेत्र में विशेष रूप से असम, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों में भी कचरा मुक्त शहरों और आईईसी गतिविधियों आदि के लिए स्टार रेटिंग प्रोटोकॉल जैसे उपलब्ध तंत्र के साथ कवरेज में तेजी लाने आवश्यकता है.
यह पाया गया है कि कई राज्यों में स्रोत पृथक्करण का परिदृश्य भी निराशाजनक है और जो कुछ भी प्रगति हुई है वह केवल कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक ही सीमित है.