बनगांव: पश्चिम बंगाल में इच्छामति नदी लोगों के जीवन यापन का साधन नहीं बल्कि बड़ी समस्या बन गई है. इसके पानी में आर्सेनिक की अधिक मात्रा को लेकर लोग चिंतित है. लोग डरे हुए हैं क्योंकि पानी का उपयोग खेती के लिए किया जा रहा है. बनगांव अनुमंडल में इच्छामति नदी लगभग 85 किलोमीटर में फैली हुई है.
नगरपालिका सूत्रों के अनुसार अमृत परियोजना के माध्यम से नगर पालिका ने इच्छामती नदी के पानी को फिल्टर कर घरों तक पहुंचाने की योजना बनाई थी. उस कारण से, नगर पालिका के इंजीनियरिंग निदेशालय ने इच्छामती नदी के पानी को जादवपुर विश्वविद्यालय और आईआईटी के स्कूल ऑफ एनवायरनमेंटल साइंस एंड इंजीनियरिंग, खड़गपुर में परीक्षण के लिए भेजा. इच्छामती नदी का पानी तीन मौसमों सर्दी, गर्मी और मानसून में अलग-अलग भेजा जाता है. बनगांव नगर पालिका के मेयर गोपाल सेठ ने कहा, 'उस रिपोर्ट में इच्छामती के पानी में 27 प्रतिशत आर्सेनिक पाया गया था, जो सामान्य से बहुत अधिक है. हालांकि, मानसून के दौरान आर्सेनिक का स्तर बहुत कम हो जाता है.'
इच्छामती नदी में कृत्रिम तरंगें बनाने की योजना है. पता चला है कि राज्य सरकार ने नगर निगम क्षेत्र में विभिन्न स्थानों से पानी एकत्र करने और इसे शुद्ध करने और इच्छामती नदी में छोड़ने के लिए 10 करोड़ रुपये और तालाब के लिए 3 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. इसके अलावा, उपचारित जल को इच्छामती नदी में ले जाने के लिए कई नई जल निकासी परियोजनाएं शुरू की गई हैं.
आर्सेनिक प्रदूषण निवारण समिति के राज्य सचिव, अशोक दास ने कहा, 'पश्चिम बंगाल में हमने आर्सेनिक युक्त पानी को भूमिगत पाया. सतह के पानी में आमतौर पर आर्सेनिक नहीं माना जाता है. लेकिन अगर नदी ज्वारीय नहीं है, तो आर्सेनिक खेती के लिए जमीन से निकाला गया पानी नदी में मिल जाता है, जिससे नदी के पानी में भी आर्सेनिक पहुंच जाता है.'
दास के मुताबिक, नदी के पानी में आर्सेनिक मिला कर नहाने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन अगर इस पानी का सेवन किया जाए तो आर्सेनिक शरीर में चला जाएगा. फिर अगर इस पानी से खेती की जाए तो फसलों के जरिए आर्सेनिक मानव शरीर में प्रवेश कर सकता है. अगर गाय आर्सेनिक युक्त पानी पीती है तो इसका असर गाय के दूध पर भी पड़ेगा. इस तरह अगर लोग उस दूषित दूध को पीते हैं तो आर्सेनिक मानव शरीर में प्रवेश कर जाएगा.
इच्छामती नदी के पानी में आर्सेनिक मिलने से किसान सहमे हुए हैं. उनका कहना है कि खेती के लिए नदी का पानी ही एकमात्र सहारा है. अगर नदी का पानी प्रदूषित होगा तो उनकी खेती को नुकसान होगा. किसानों का कहना है कि वे न केवल अपनी उपज बेचते हैं. ऐसे में वे आर्सेनिक के संपर्क में भी आ सकते हैं.
वे चाहते हैं कि प्रशासन नदी का जीर्णोद्धार करे. बनगांव निवासी वकील दीपंजय दत्त ने मामले को लेकर चिंता जताई है. दत्त ने कहा, 'प्रशासन को इस मामले को देखना चाहिए. आर्सेनिक युक्त पानी को शुद्ध करने के लिए सरकार के पास जो परियोजनाएं हैं, उन्हें ठीक से लागू करें. साथ ही उन्हें प्रचार के माध्यम से नदी के किनारे के निवासियों जागरूक करना चाहिए.' आर्सेनिक प्रदूषण निवारण समिति के सूत्रों ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानदंडों के अनुसार प्रति लीटर पानी में 0.01 मिलीग्राम आर्सेनिक सामान्य माना जाता है.